भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) निजी मालभाड़ा टर्मिनलों के पास अनाज भंडारण के
लिए बुखारियां बनाने की निजी कंपनियों को मंजूरी दे सकता है, बशर्ते निजी
कंपनियों के पास जमीन उपलब्ध हो। निगम ऐसी बुखारियों के लिए गारंटीशुदा
क्षमता सुनिश्चित करेगा और निवेशकों को एक तय दर पर किराया चुकाएगा।
अधिकारी ने कहा कि निगम ने यह घोषणा बुखारियों के जरिये 2 करोड़ टन भंडारण
क्षमता सृजन के अपने राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत निवेशकों के साथ बैठक में
की। इस समय निगम की भंडारण क्षमता 7.11 करोड़ टन है। इसमें बुखारियों की
भंडारण क्षमता महज 55 लाख टन है, जिनका संचालन अदाणी एग्रो लॉजिस्टिक
लिमिटेड कर रही है।
बुखारियों के निर्माण और विकास की खातिर निजी निवेश आकर्षित करने के लिए निगम ने पहले ही दो योजनाएं चला रखी हैं और निजी मालभाड़ा टर्मिनलों के पास बुखारियों के निर्माण की तीसरी योजना पर विचार किया जा रहा है। पहली योजना में 20 फीसदी वाइबिलिटी गैप फंडिंग का प्रावधान है, जबकि दूसरी बिना वाइबिलिटी गैप फंडिंग के पीपीपी मॉडल पर आधारित है। बिना वाइबिलिटी गैप फंडिंग योजना आमतौर पर उन इलाकों में चलाई जाती है, जहां एफसीआई के पास खुद की जमीन नहीं है। अधिकारियों ने कहा कि निगम द्वारा किए गए प्रारंभिक आकलन के मुताबिक रेल साइडिंग पर 87 डिपो हैं, इसलिए 25,000 टन से ज्यादा क्षमता की बुखारियां विकसित की जा सकती हैं। इसके अलावा 56 अन्य ऐसी जगह हैं, जहां 50,000 टन से ज्यादा क्षमता की बुखारियों का निर्माण किया जा सकता है।
निगम में बुखारी खंड के कार्यकारी निदेशक अभिषेक सिंह ने सम्मेलन में कहा, 'एफसीआई ने बुखारियों के जरिये अपनी भंडारण सुविधाओं को उन्नत बनाने की योजना बनाई है और अपनी जमीन एवं निजी क्षेत्र की विशेषज्ञता से पीपीपी मॉडल के जरिये लागत को कम से कम करेगा।' उन्होंने कहा कि पूंजीगत लागत के हिसाब से बुखारियों के निर्माण में लागत 5,900 रुपये प्रति टन आती है, जबकि परंपरागत गोदामों के निर्माण पर 6,750 रुपये प्रति टन लागत आती है।
इसके अलावा परंपरागत गोदामों की तुलना में बुखारियों में अनाज की बरबादी बहुत कम होती है। अपने बुखारी विकास कार्यक्रम के के जरिये निगम ने कवर्ड एरिया प्लिंथ (सीएपी) में खाद्यान्न का भंडारण पूरी तरह बंद करने की योजना बनाई है। सीएपी में खाद्यान्न को पक्के ऊंचे स्थान रखकर इसे प्लास्टिक की सीटों से ढंका जाता है। अपनी रणनीति के तहत निगम ने पंजाब, हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश जैसे खरीद राज्यों में बड़ी बुखारियों के निर्माण, मंडियों में छोटी बुखारियां और महाराष्ट्र जैसे उपभोक्ता राज्यों में मध्यम आकार की बुखारियां बनाने की योजना बनाई है। (BS Hindi)
बुखारियों के निर्माण और विकास की खातिर निजी निवेश आकर्षित करने के लिए निगम ने पहले ही दो योजनाएं चला रखी हैं और निजी मालभाड़ा टर्मिनलों के पास बुखारियों के निर्माण की तीसरी योजना पर विचार किया जा रहा है। पहली योजना में 20 फीसदी वाइबिलिटी गैप फंडिंग का प्रावधान है, जबकि दूसरी बिना वाइबिलिटी गैप फंडिंग के पीपीपी मॉडल पर आधारित है। बिना वाइबिलिटी गैप फंडिंग योजना आमतौर पर उन इलाकों में चलाई जाती है, जहां एफसीआई के पास खुद की जमीन नहीं है। अधिकारियों ने कहा कि निगम द्वारा किए गए प्रारंभिक आकलन के मुताबिक रेल साइडिंग पर 87 डिपो हैं, इसलिए 25,000 टन से ज्यादा क्षमता की बुखारियां विकसित की जा सकती हैं। इसके अलावा 56 अन्य ऐसी जगह हैं, जहां 50,000 टन से ज्यादा क्षमता की बुखारियों का निर्माण किया जा सकता है।
निगम में बुखारी खंड के कार्यकारी निदेशक अभिषेक सिंह ने सम्मेलन में कहा, 'एफसीआई ने बुखारियों के जरिये अपनी भंडारण सुविधाओं को उन्नत बनाने की योजना बनाई है और अपनी जमीन एवं निजी क्षेत्र की विशेषज्ञता से पीपीपी मॉडल के जरिये लागत को कम से कम करेगा।' उन्होंने कहा कि पूंजीगत लागत के हिसाब से बुखारियों के निर्माण में लागत 5,900 रुपये प्रति टन आती है, जबकि परंपरागत गोदामों के निर्माण पर 6,750 रुपये प्रति टन लागत आती है।
इसके अलावा परंपरागत गोदामों की तुलना में बुखारियों में अनाज की बरबादी बहुत कम होती है। अपने बुखारी विकास कार्यक्रम के के जरिये निगम ने कवर्ड एरिया प्लिंथ (सीएपी) में खाद्यान्न का भंडारण पूरी तरह बंद करने की योजना बनाई है। सीएपी में खाद्यान्न को पक्के ऊंचे स्थान रखकर इसे प्लास्टिक की सीटों से ढंका जाता है। अपनी रणनीति के तहत निगम ने पंजाब, हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश जैसे खरीद राज्यों में बड़ी बुखारियों के निर्माण, मंडियों में छोटी बुखारियां और महाराष्ट्र जैसे उपभोक्ता राज्यों में मध्यम आकार की बुखारियां बनाने की योजना बनाई है। (BS Hindi)
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