कुल पेज दृश्य

03 जुलाई 2010

मिठास के लिए चीनी उद्योग के फिर प्रयास

नई दिल्ली July 02, 2010
पेट्रोल को नियंत्रण मुक्त किए जाने के फैसले से प्रेरित घरेलू चीनी उद्योग ने एक बार फिर चीनी को भी नियंत्रण मुक्त करने की मांग की है। भारतीय चीनी मिल संघ (आईएसएमए) ने इस मसले पर खाद्य और वित्त मंत्रायलय के साथ बैठक की इच्छा जाहिर की है।इस्मा के अध्यक्ष और बलरामपुर चीनी मिल्स के निदेशक विवेक सरावगी ने कहा, 'हम इसके लिए दबाव बना रहे हैं। सरकार ने पेट्रोल जैसी आवश्यक वस्तु को नियंत्रण मुक्त किया है और यह सुधार चाहती है। अब हमें उम्मीद है कि आने वाले दिनों में चीनी पर भी नियंत्रण हल्का होगा।हालांकि, खाद्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने फिलहाल ऐसी किसी संभावना से इनकार किया है। पिछले हफ्ते सरकार ने पेट्रोल की कीमतों को नियंत्रण मुक्त कर दिया और कहा कि डीजल के मामले में भी आने वाले दिनों में ऐसा फैसला आ सकता है। अभी तक सरकार पेट्रोल की कीमतें तय करती रही है जो लागत के मुकाबले कम रखी जाती थीं। सरकारी क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियों को होने वाले नुकसान की भरपाई सरकारी बॉन्ड और सरकारी तेल उत्पादक कंपनियों द्वारा की जाती रही हैं।चीनी देश के सबसे ज्यादा नियंत्रित क्षेत्रों में एक रहा है। चीनी को नियंत्रण मुक्त करने की कोशिश 1971-72 और 1978-79 में की जा चुकी है। सरकार ने समय के साथ स्टील, सीमेंट आदि उद्योगों में नियंत्रण हल्का किया है। चीनी उद्योग में सरकारी नियंत्रण मुख्य रूप से चीनी का बिक्री कोटा और लेवी चीनी की मात्रा तय करने संबंधी है। चीनी मिलें खुल बाजार में चीनी कोटे के मुताबिक ही बेच सकती हैं। केंद्र सरकार में चीनी विभाग हर महीने मिलों के लिए बिक्री कोटा तय करती है। मिलें इससे ज्यादा चीनी नहीं बेच सकती हैं। अगर मिलें कोटे में तय मात्रा समय से नहीं बेच सकीं, तो अतिरिक्त चीनी को लेवी कोटा में शामिल कर लिया जाता है। सरकार इस व्यवस्था का इस्तेमाल कम उत्पादन वाले साल में करती है। चालू सत्र में सरकार ने चीनी का का बिक्री कोटा दोबारा साप्ताहिक और फिर 15 दिनों का किया है। इसके अलावा एक और प्रमुख नियंत्रण लेवी अनिवार्यता है।मिलों को अपने वार्षिक उत्पादन की निर्धारित मात्रा (फिलहाल 20 फीसदी) चालू बाजार कीमत से कम दर पर सरकार को बेचनी होती है। यह चीनी सरकार गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों को जन वितरण प्रणाली के जरिए बेचती है। एक औद्योगिक विश्लेषक का कहना है कि चीनी को नियंत्रण मुक्त करने का यह सही समय है। घरेलू चीनी उत्पादन चक्र किल्लत से प्रचुरता की स्थिति की ओर बढ़ रहा है। 2008-09 में उत्पादन 5 सालों में सबसे कम 145 लाख टन रहा था। इसके मुकाबले 2009-10 में उत्पादन 190 लाख टन और 2010-11 में 230-240 लाख टन रहने का अनुमान है जो घरेलू उपभोग के बराबर है। ऐसे में चीनी को नियंत्रण मुक्त करने से कीमतों पर ज्यादा असर नहीं होगा। (बीएस हिंदी)

कोई टिप्पणी नहीं: