14 जुलाई 2010
गेहूं सड़ता रहा, महंगाई बढ़ती रही
नई दिल्ली। दो साल पहले आटा 14 रुपये प्रति किलो मिल जाता था। आज कीमत 19 रुपये प्रति किलो है। दो साल में करीब 40 फीसदी इजाफा! वैसे कुछ लोग संतोष कर सकते हैं कि कई चीजों के दाम तो दोगुने या इससे भी ज्यादा बढ़ गए हैं। ऐसे में आटा का भाव काबू में ही है, पर सच यह है कि अधिसंख्य लोगों की दाल-रोटी पर भी आफत आ गई है।महंगाई क्यों? सरकार बढ़ती महंगाई को सीधे-सीधे कम पैदावार से जोड़ देती है। पर सच यह है कि इसमें असलियत कम और जिम्मेदारी से बचने की सरकार की मंशा ज्यादा है। आटे के भाव के जरिये यह आसानी से समझा जा सकता है। देश में जितना गेहूं उत्पादन होता है, उसे सुरक्षित रखने का इंतजाम ही नहीं है। नतीजा होता है गेहूं की बर्बादी। जरूरत पूरी करने के लिए ज्यादा कीमत पर विदेश से गेहूं का आयात और लोगों के लिए आटे की बढ़ी कीमत। देश में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) और प्रदेश सरकारों के वेयरहाउसेस में कुल करीब 261.22 लाख टन स्टोरेज की सुविधा है। साल 2008-09 में कुल खाद्यान्न उत्पादन 2364.70 लाख टन रहा था। यानी उत्पादन के लिहाज से गोदामों की क्षमता को ऊंट के मुंह में जीरा ही कहा जाएगा। देश में गेहूं का कुल उत्पादन 146.9 लाख टन है। इसका बड़ा हिस्सा ऐसे ही खुले आसमान में रखा जाता है। मानसून में भी यह ऐसे ही रखा रहता है। नतीजा होता है गेहूं की बर्बादी। बुरा हाल गेहूं के तीन प्रमुख उत्पादक प्रदेशों – हरियाणा, पंजाब औऱ उत्तर प्रदेश - में गेहूं सुरक्षित रखने की पुख्ता व्यवस्था न होने के कारण बड़े पैमाने पर गेहूं खराब हो रहा है। इस कारण गेहूं के दाम में और बढ़ोतरी की आशंका है। उत्तर प्रदेश, पंजाब औऱ हरियाणा कुल गेहूं की 65 प्रतिशत पैदावार करते हैं और इनमें अकेले उत्तरप्रदेश का हिस्सा 33.02 फीसदी है। लेकिन किसी भी प्रदेश में स्टोरेज की ठोस व्यवस्था नहीं है। हाल ही में हापुड़ (उत्तर प्रदेश) में करीब 5 लाख टन गेहूं बारिश के कारण खराब हो गया, जिससे ढाई करोड़ के नुकसान का अनुमान है। जुलाई के पहले सप्ताह में 13 मालवाहक ट्रेनों से हापुड़ में गेहूं के साढ़े चार लाख बोरे लाए गए थे। इन्हें एफसीआई के स्थानीय गोदाम में रखा जाना था, लेकिन रखा नहीं गया। करीब एक सप्ताह तक वे खुले में रखे रहे। बीते सोमवार को अचानक आई बारिश से पूरा गेहूं भीग गया। उदयपुर (राजस्थान) में भी हाल ही की बारिश के बाद स्थानीय रेलवे स्टेशन पर असुरक्षित रखा करीब पांच करोड़ मूल्य का गेहूं खराब हो गया। गेहूं करीब एक लाख बोरों में रखा था, जिन पर फफूंद लग गया। पंजाब में भी गेहूं के स्टोरेज की पूरी व्यवस्था नहीं है। पंजाब मंडी बोर्ड के अध्यक्ष अजमेर सिंह लखोवाल तो मानते हैं कि प्रदेश में गेहूं को सुरक्षित रखने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। इस साल प्रदेश के अलग अलग वेयरहाउसेस में जगह की कमी के कारण करीब 65 लाख टन गेहूं खुले में पड़ा है। लखोवाल मानते हैं कि कई वेयरहाउसेस में रखा गया गेहूं खाने योग्य नहीं रह गया है। उनके अनुसार केंद्र न तो पुराना स्टॉक उठा रहा है, और न ही गेहूं निर्यात करने की इजाजत दे रहा है। पंजाब के अधिकारियों के अनुसार हर साल गेहूं सड़ने के कारण करीब 450 करोड़ रूपए का नुकसान हो रहा है। पंजाब में 2006-2007 से 2008-2009 के बीच करीब 16,500 टन गेहूं सड़ गया। प्रदेश में हर साल करीब 44 लाख टन गेहूं खुले में रखा रहता है। और मानसून के बावजूद इसे सुरक्षित नहीं रखा जाता और अंततः यह सड़ जाता है। हरियाणा में भी करीब 40 लाख टन गेहूं खुले में रखा हुआ है और सड़ता जा रहा है।अनिवार्य वस्तु एक्ट में गेहूं शामिल नहीं (बिज़नस भास्कर)
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