नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। महंगाई के मुद्दे पर संसद से सड़क तक चौतरफा घिरी केंद्र सरकार चीनी उद्योग को नियंत्रणमुक्त करने से हिचकिचाने लगी है। कृषि व खाद्य मंत्री शरद पवार ने अपने पूर्व के बयान से पलटी मारते हुए कहा 'चीनी उद्योग को नियंत्रणमुक्त करने के लिए यह उचित समय नहीं है।' किसानों व उपभोक्ताओं के हितों को देखते हुए फिलहाल यह संभव नहीं है। अब इस मुद्दे पर अगले साल ही विचार किया जा सकेगा।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के एक समारोह में बुधवार को हिस्सा लेने के बाद पवार पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। उन्होंने कहा 'हम तत्काल कोई ऐसा फैसला नहीं करेंगे जो उपभोक्ताओं पर फौरी असर डाले। हमें उपभोक्ताओं, किसानों और उद्योग के हितों को देखना होगा।' जबकि पवार ने इसी महीने के पहले सप्ताह में चीनी उद्योग से सरकारी पाबंदियां हटा लेने के लिए सबसे उपयुक्त समय बताया था। उन्होंने चीनी उद्योग को इसके लिए प्रोत्साहित भी किया था। चीनी उद्योग के प्रमुख संगठनों भारतीय चीनी मिल संघ [इस्मा] और नेशनल फेडरेशन आफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्टरीज [एनएफसीएसएफ] ने अपने मतभेदों को भूलकर साझा प्रयास शुरू कर दिया है। दोनों संगठनों ने हर महीने चीनी कोटा जारी करने की प्रणाली को खत्म करने की मांग की है।
इन संगठनों ने सरकार को सलाह दी है कि वह राशन प्रणाली से बंटने वाली रियायती दर की चीनी की खरीद खुले बाजार से करे। साथ ही चीनी को आवश्यक वस्तु अधिनियम के दायरे से अलग कर दिया जाए।
चीनी उद्योग के आग्रह पर पवार इसी सप्ताह उनके साथ विचार-विमर्श करेंगे। खाद्य मंत्रालय और चीनी उद्योग का मानना है कि अगले साल देश में चीनी का उत्पादन अधिक रहेगा, जिससे कीमतें बहुत नीचे जा सकती हैं। वहीं सरकार के ही एक बड़े धड़े का मानना है कि चीनी उद्योग को नियंत्रणमुक्त करने से महंगाई फिर भड़क उठेगी। चीनी का मूल्य 60 रुपये प्रति किलो से ऊपर पहुंच जाएगा। इस साल की शुरुआत में चीनी के खुदरा दाम 50 रुपये प्रति किलो तक जा भी चुके हैं। (दैनिक जागरण)
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