बेंगलुरु July 27, 2010
चीन में मांग कमजोर होने से लौह अयस्क की मांग में गिरावट आई है। इसके बाद से लौह अयस्क निर्यातक तेजी से घरेलू बाजार का रुख कर रहे हैं। चीन, भारतीय अयस्क के प्रमुख खरीदारों में एक है। इसके अलावा देश के कई राज्यों में अवैध खनन के विवाद और लोहे पर निर्यात कर पर स्पष्टता के अभाव ने इस चलन में इजाफा ही किया है।खननकर्ता भी निर्यात पर निर्भर होने के बजाय घरेलू विनिर्माताओं के साथ आपूर्ति समझौता करके 'सेफ हैवन' विकल्प को चुनना चाहते हैं। भारतीय खनिज उद्योग संघ (एफआईएमआई) के महासचिव आरके शर्मा ने बताया, 'एक खननकर्ता के सामने हमेशा दो विकल्प होते हैं। पहला यह कि अंतरराष्ट्रीय बाजार को लौह अयस्क का निर्यात करे, जिसमें अस्थिरता का जोखिम होता है।दूसरा विकल्प यह कि घरेलू विनिर्माताओं के साथ आपूर्ति सौदा किया जाए।' हालांकि उन्होंने कहा कि जब कभी अंतरराष्ट्रीय बाजार में लौह अयस्क की मांग में कमी होती है, कुछ खननकर्ता घरेलू बाजार पर ही विचार करते हैं। शर्मा ने कहा, 'इस चलन में नया कुछ भी नहीं है। मगर खननकर्ताओं के पास निर्यात का सहारा लेने के अलावा कोई चारा नहीं होता है। इसकी वजह यह है कि घरेलू विनिर्माता देश में उत्पादित समूचे लौह अयस्क का उपभोग करने में सक्षम नहीं है।' धीमी वैश्विक रिकवरी और हाल ही में लौह अयस्क सौदों में वार्षिक से तिमाही के बदलाव से उपजी चिंताओं के चलते अप्रैल के बाद से लौह अयस्क की कीमतें गिर गई हैं। एशियाई बाजारों में 185 डॉलर प्रति टन के ऊंचे भाव पर पहुंचने वाले स्पॉट लौह अयस्क की कीमतें भी मंद चीनी मांग के कारण गिरकर 140 डॉलर प्रति टन पर आ गई। चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जून अवधि के दौरान देश से लौह अयस्क का निर्यात 15 फीसदी गिरकर 2।08 करोड़ टन पर आ गया, जबकि एक साल पहले यह निर्यात 2.45 करोड़ टन था। खननकर्ताओं का मानना है कि देश के कुछ हिस्सों में बढ़ते पेलेट संयंत्रों के चलते खननकर्ता इस जिंस को इन संयंत्रों में ला रहे हैं। खनन कंपनी एमजीएम ग्रुप के प्रवर्तक आरएल मोहंती ने बताया, 'देश के पूर्वी हिस्से में बहुत से खननकर्ता पेलेट संयंत्र और स्पंज लौह इकाइयां स्थापित कर रहे हैं। इस वजह से खननकर्ता इस जिंस को इन इकाइयों की ओर मोड़ रहे हैं।' (बीएस हिंदी)
28 जुलाई 2010
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