कानपुर July 22, 2010
करीब दो साल पहले आलू किसानों और कारोबारियों को रुला देने वाला डर फिर सताने लगा है। वर्ष 2008 में राज्य में हुई आलू की बंपर फसल के कुप्रबंधन के चलते किसानों और व्यापारियों को जबरदस्त नुकसान झेलना पड़ा था। इस साल फिर वक्त खुद को दोहराता नजर आ रहा है। राज्य में बंपर आलू उत्पादन के कारण 'आलू पट्टी' के नाम से मशहूर इटावा, मैनपुरी, कन्नौज, उरई, फर्रुखाबाद और फिरोजाबाद जिलों में शुरुआती अनुमान के तौर पर करीब 10 करोड़ टन से भी ज्यादा आलू की पैदावार होने की उम्मीद जताई जा रही है।सरकार चुपभारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के क्षेत्रीय महासचिव राजीव सिंह का कहना है कि पिछले साल सूखे और कई अन्य वजहों से कम हुए उत्पादन के बाद इस साल आलू का रकबा बढ़ाने वाले किसानों को कुछ राहत देने के बजाय सरकार इस मसले पर खामोशी अख्तियार किए हुए है। आलू की कीमतों में प्रति क्विंटल 300 से 500 रुपये की गिरावट आनी शुरू हो चुकी है और बंपर उत्पादन की स्थिति में यह गिरावट और भी बढ़ सकती है। उत्तर प्रदेश आलू थोक विक्रेता संघ (यूपीपीडब्ल्यूए) के अध्यक्ष हरिशंकर गुप्ता के मुताबिक पिछले साल भी कीमतों में गिरावट का रुख शुरू हो गया था लेकिन बिहार, बंगाल, उड़ीसा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में आलू की मांग ने ज्यादा नुकसान नहीं होने दिया और कीमतों को स्थिरता दी। लेकिन इस साल के हालात जरा जुदा नजर आते हैं।नहीं जाएगा बाहरवह कहते हैं, 'इस साल इन राज्यों में आलू की अच्छी पैदावार हुई जिसके मद्देनजर हमारे यहां से इन राज्यों को आलू बेचने की संभावनाएं धूमिल पड़ती नजर आ रही हैं।' इस वजह से कई किसान लागत से भी कम पर अपनी फसल बेचने को मजबूर हो रहे हैं। चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय में कृषि वैज्ञानिक डॉ। आर पी कटियार कहते हैं कि एक बीघा आलू उत्पादन में करीब 15,000 रुपये की लागत आ रही है जबकि मौजूदा भाव के हिसाब से बाजार में इतनी जमीन में होने वाली फसल का 60 फीसदी तक ही दाम मिल पा रहा है। इस वजह से किसानों को कोल्ड स्टोरेज का रुख करना पड़ रहा है।कर्ज की बेलये किसान पहले से ही 'किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी)' के तहत कर्ज ले चुके हैं ऐसे में इन्हें और कर्ज लेना पड़ रहा है। वर्ष 2008 में भी आलू की बंपर फसल ने किसानों को मुश्किल में खड़ा कर दिया था। उस साल मार्च में आलू की कीमतें 400 रुपये प्रति क्विंटल थीं जो मई में गिरकर 250 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई थीं। इस बीच फर्रुखाबाद और इटावा जैसे जिलों से किसानों की खुदकुशी के मामले भी सामने आए थे। (बीएस हिंदी)
23 जुलाई 2010
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