भुवनेश्वर July 21, 2010
केंद्रीय वस्त्र मंत्रालय का कहना है कि जूट उद्योग की सर्वोच्च संस्था भारतीय जूट मिल संघ (आईजेएमए) की ओर से निर्माण क्षमता को लेकर किए गए दावे अवास्तविक और गलत हैं। जूट आयोग कार्यालय (जेसीओ) द्वारा तैयार पत्र में कहा गया है कि 70-75 फीसदी जूट मिलें जूट निर्माता विकास परिषद् के तय मानकों से नीचे परिचालन कर रहे हैं। आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीईए) की जल्दी ही होने वाली बैठक में इस पत्र को स्वीकृति के लिए पेश किया जाएगा।केंद्र सरकार की स्थायी सलाहकार समिति द्वारा पैकेजिंग बारी बनाने में 25 फीसदी हिस्सेदारी प्लास्टिक उद्योग को देने के प्रस्ताव का विरोध करते हुए आईजेएमए ने कहा कि क्षमता में कोई परेशानी नही है और 2010-11 में सरकारी खरीद एजेंसियों की पैकेजिंग मांग पूरी करने के लिए जूट उद्योग पूरी तरह से काम कर रहा है।हालांकि, जेसीओ के पत्र के मुताबिक आईजेएमए की ओर बताई जा रही क्षमता हासिल नहीं की जा सकती क्योंकि उद्योग में संयंत्र और दूसरी कई परेशानियां हैं। आईजेएमए का कहना है कि जूट उद्योग की संस्थापित क्षमता 15 लाख टन जूट बोरियां बनाने की है, वहीं, जेसीओ का कहना है कि वास्तिवक क्षमता 11।8 लाख टन है।चालू वित्त वर्ष में प्लास्टिक बारियों के लिए 25 फीसदी हिस्सेदारी के समर्थन में वस्त्र मंत्रालय ने कहा कि यह अर्थव्यवस्था के हित में किया जा रहा है और यह राष्ट्रीय जूट नीति 2005 के अनुसार है। जहां तक जूट पैकेजिंग मटिरियल अधिनियम (जेपीएमए) के मुताबिक सरकारी खरीद एजेंसियों के लिए अनाज और चीनी की पैकेजिंग के लिए 100 फीसदी जूट बोरियों का इस्तेमाल अनिवार्य है।2009-10 में वस्त्र मंत्रालय ने इसी तरह का सुझाव दिया था, लेकिन सितंबर 2009 की सीसीईए बैठक में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी और रेल मंत्री ममता बनर्जी के हस्तक्षेप के बाद इसे वापस कर दिया गया। इस साल भी कहा जा रहा है कि आईजेएमए का प्रतिनिधि दल ममता बनर्जी से मिला है। संघ ने भी प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री से मिलने की इच्छा जाहिर की है। हालांकि, वस्त्र मंत्रालय ने पहले ही अनिवार्यता घटाने के पक्ष में राय दी है और संभव है कि सीसीईए की बैठक में यह अपना पक्ष मजबूत करेगा। (बीएस हिंदी)
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