मुंबई July 19, 2010
महंगाई के मोर्चे से अभी तक कोई राहत नहीं आई है लेकिन इसने और रुलाने का इरादा कर लिया है। दरअसल पहले से आसमान छू रही खाद्य वस्तुओं की कीमतों में अब मसालों की ऊंची कीमतों का दर्द सताने वाला है जो आम आदमी को रुलाने वाला है। इन दिनों वैश्विक स्तर पर मसालों की कीमतों में आई तेजी से घरेलू बाजार में भी मसालों के भाव में तेजी का तड़का लगा हुआ है। पिछले एक महीने के दौरान अधिकांश मसालों की कीमतें औसतन 25 फीसदी तक ऊपर चली गई हैं। काली मिर्च के दाम में सबसे ज्यादा 27 फीसदी की तेजी देखने को मिली है। बरसात और आने वाले जाड़े के मौसम को देखते हुए मसालों की मांग बढ़ेगी जिससे कीमतों के नीचे आने के आसान नजर नहीं आ रहे हैं। वैश्विक स्तर पर वियतनाम, इंडोनेशिया और ब्राजील काली मिर्च के प्रमुख उत्पादक देश हैं। इन देशों से ज्यादातर स्टॉक बाजार में पहुंच चुका है और इन तीनों देशों में काली मिर्च का बहुत ज्यादा स्टॉक भी नहीं बचा हुआ है। पिछले साल की तुलना में इन देशों में उत्पादन में भी बहुत ज्यादा तेजी नहीं आई है। वैश्विक स्तर पर काली मिर्च की कीमतें 4,500 डॉलर प्रति टन के आस पास चल रही हैं जबकि घरेलू बाजार में 4,400 डॉलर के आस-पास कीमतें हैं। इसके मद्देनजर जानकार कह रहे हैं कि काली मिर्च अभी और तीखी होगी। जीरे का छौंक लगाना और भी महंगा हो सकता है। पिछले एक महीने में ही जीरे के भाव 18 फीसदी से भी ज्यादा चढ़ चुके हैं।जीरा उत्पादक प्रमुख देश तुर्की में फसल खराब होने की वजह से इस बार उत्पादन कम होने की आशंका जताई जा रही है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में जीरा 3,600 डॉलर प्रति टन के हिसाब से बिक रहा है जबकि भारत में इसकी कीमत 3,200 डॉलर प्रति टन पड़ रही है। कीमतों में अंतर होने की वजह से जीरा कारोबारी पहले से बुक किये गए माल की बुकिंग रद्द कर रहे हैं। इन्हें उम्मीद है कि इस बार जीरे का उत्पादन बहुत कम होने वाला है जिससे इसके दाम और बढ़ेंगे। पिछले कई साल से मुनाफे की सौगात बनी हल्दी की चमक अभी भी फीकी नहीं पड़ी है। इस साल बढिय़ा उत्पादन के अनुमान के बावजूद कीमतें ऊपर की ओर जाने की मुख्य वजह नई फसल आने में लगने वाला लंबा वक्त है। कारोबारी इसका स्टॉक करने में जुटे हैं क्योंकि हल्दी की नई फसल जनवरी तक बाजार में आती है।ऐंजल ब्रोकिंग में शोध विश्लेषक नलिनी राय कहती हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार की तेजी का असर भारतीय बाजारों पर भी पड़ रहा है। मसालों के प्रमुख उत्पादक देश उत्पादन का बड़ा हिस्सा निर्यात कर चुके हैं अब उनके पास निर्यात करने के लिए बहुत ज्यादा स्टॉक नहीं बचा हुआ है।बाजार में कम माल और मांग अच्छी होने के साथ ही लगभग सभी मसालों की नई फसल आने में अभी काफी समय है। दूसरी बात वैश्विक बाजार की तुलना में घरेलू बाजार में अभी भी कीमतें कम हैं जिसकी वजह से आयात नहीं किया जा सकता है। आने वाले एक दो महीनों में भारत में मसालों की मांग बढ़ेगी क्योंकि ठंड के दिनों में भारतीय ज्यादा मसाला खाना पसंद करते हैं। इस बात को कारोबारी भी समझ रहे हैं और यही वजह है कि मसालों के दाम कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं। बल्कि अभी कुछ महीनों तक मसालों में तेजी का रुख बरकरार रहेगा। (बीएस हिंदी)
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