मुंबई July 11, 2010
महाराष्ट्र की सहकारी चीनी मिलों को उम्मीद है कि सरकार द्वारा चीनी को नियंत्रण मुक्त किए जाने से उन्हें वित्तीय स्वतंत्रता मिलेगी। चीनी के कुल उत्पादन में इन मिलों की हिस्सेदारी 30 प्रतिशत है। मिलों का मानना है कि इसके बाद वे पेशेवर तरीके से काम का संचालन कर सकेंगी। हालांकि मिलें अभी सरकार से कर्ज की गारंटी चाहती हैं और इसके लिए जल्दबाजी में नहीं हैं।चीनी को नियंत्रण मुक्त किए जाने की सरकारी मंशा पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए सहकारी चीनी उद्योग से जुड़े एक अधिकारी ने कहा कि बाजार नियंत्रित कीमतों से उन्हें फायदा होगा। लेवी चीनी के रूप में 20 प्रतिशत चीनी दिए जाने की बाध्यता न होने से वे इस स्थिति में होंगी कि बिक्री के बारे में वे सही फै सला कर सकें। इससे मिलों को न केवल बिक्री बल्कि निर्यात आधारित बाजार की स्थितियों पर फैसले करने में मदद मिलेगी। सहकारी मिलों को इससे अपने संचालन क्षमता में बढ़ोतरी करने और विस्तार योजनाओं को गति देने में मदद मिलेगी और उन्हें सरकारी दिशानिर्देशों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। सरकारी चीनी उद्योग का मानना है कि नियंत्रण खत्म किए जाने से सरकार लेवी चीनी का कोटा तय नहीं करेगी, न ही कीमतों में हस्तक्षेप करेगी। ऐसे में बाजार ही चीनी की कीमतों की दिशा तय करेगा, जिससे मिलों और गन्ना उत्पादकों को फायदा मिलेगा। 170 मिलों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन, फे डरेशन आप कोऑपरेटिव शुगर मिल्स इन महाराष्ट्र लंबे समय से चीनी को नियंत्रण मुक्त किए जाने की मांग कर रहा है। फेडरेशन के सूत्रों ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, 'इस समय चीनी को सरकारी नियंत्रण से मुक्त किए जाने का उचित समय है। कम से कम अगले तीन साल तक चीनी उत्पादन बेहतर रहने की उम्मीद की जा रही है। महाराष्ट्र में अगले साल 80 लाख टन चीनी उत्पादन की उम्मीद है। मिलों को 20 प्रतिशत चीनी 1700 रुपये प्रति क्विंटल के भाव लेवी चीनी के रूप में देना होता है। वहीं चीनी का बाजार मूल्य 2500 रुपये प्रति क्विंटल है। ऐसे में मिलों को वित्तीय नुकसान उठाना पड़ता है। अगर मिलें वित्तीय बोझ नहीं उठा सकेंगी तो वे पूरी तरह से ठप पड़ जाएंगी। चीनी उद्योग को विश्वास में लेकर सरकार को चीनी से नियंत्रण हटा लेना चाहिए। सूत्रों ने कहा कि अगर चीनी को नियंत्रण मुक्त किया जाता है तो मिलें एक साल के भीतर स्थिति को काबू में कर लेंगी। हाल की रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार ने लेवी की बाध्यता खत्म करने और चीनी जारी करने की व्यवस्था हटाने का प्रस्ताव रखा है। बहरहाल चीनी को नियंत्रण मुक्त किए जाते समय सरकार गन्ने का उचित एवं लाभकारी मूल्य तय करने का अधिकार अपने पास रखना चाहती है, जिस दर पर मिलें गन्ने के दाम का भुगतान किसानों को करेंगी। चीनी को नियंत्रण मुक्त किए जाने के दौरान सरकार लेवी और मुक्त चीनी कोटा तय करने का फैसला नहीं करेगी।साथ ही सरकार चीनी के आयात व निर्यात के बारे में नियंत्रण नहीं रखेगी। साथ ही चीनी मिलों के बीच की दूरी तय किए जाने के मसले पर भी कोई सरकारी नियंत्रण नहीं होगा। महाराष्ट्र के पूर्व सहकारिता मंत्री शंकर राव कोल्हे ने कहा, 'चीनी से नियंत्रण हटाया जाना सहकारी चीनी उद्योग की सेहत के लिए जरूरी है। केंद्र द्वारा 20 प्रतिशत चीनी पहले से तय दाम पर लेवी चीनी के रूप में दिए जाने की बाध्यता से मिलों को भारी नुकसान होता है। लेवी चीनी की कीमतें न केवल बाजार भाव से कम होती हैं, बल्कि यह उत्पादन लागत से भी कम मूल्य पर लिया जाता है। नियंत्रण हटाए जाने के बाद से मिलों को सरकारी गारंटी और विभिन्न सरकारी पैकेजों का मुंह नहीं देखना पड़ेगा। (बीएस हिंदी)
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