July 11, 2010
भारत का चीनी उद्योग जल्द ही सरकारी नियंत्रण से मुक्त होने का गवाह बन सकता है। इसकी उम्मीदें इसलिए भी काफी अधिक हैं क्योंकि सरकार ने हाल ही में पेट्रोल को विनियंत्रित करने का फैसला लिया है। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) लगातार इसे नियंत्रण मुक्त किए जाने के लिए दबाव बना रहा है। संघ के अध्यक्ष और बलरामपुर चीनी के प्रबंध निदेशक विवेक सरावगी ने अजय मोदी से उद्योग के भविष्य के बारे में बात की। पेश हैं मुख्य अंश :
विनियंत्रण पर इस्मा की क्या राय है और इसे लागू करने का तरीका क्या होना चाहिए?विनियंत्रण का सीधा मतलब है कि लेवी चीनी की योजना सरकार द्वारा वित्तपोषित और संचालित होनी चाहिए। दूसरा, चीनी जारी किए जाने को लेकर कोई सरकारी व्यवस्था नहीं होनी चाहिए। चीनी क्षेत्र को नियंत्रण मुक्त किए जाने के लिए ऐसा होना जरूरी है।क्या सरकार को मिलों के लिए गन्ना क्षेत्र तय करने का क्रम जारी रखना चाहिए?हम दीर्घ अवधि के लिए गन्ना क्षेत्र आरक्षित किए जाने की सिफारिश करेंगे। दीर्घ अवधि से हमारा मतलब है कि 10 साल से है।गन्ना मूल्य निर्धारण की प्रक्रिया क्या हो?हम मुख्य उत्पाद की कीमत का 62 फीसदी साझा करने को तैयार हैं (यही ग्लोबल बेंचमार्क है)। मुख्य उत्पाद चीनी और उपोत्पाद बगास व शीरा होता है। हम कह रहे हैं कि जब चीनी की कीमतें ऊपर जाती हैं तो एक फार्मूले के तहत किसानों के हितों रक्षा होनी चाहिए, लेकिन उन्हें दामों के गिरने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। ब्राजील का संगठन यूनिका कई दशकोंं से इस पर अमल कर रहा है और वह दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक बना हुआ है।क्या गिरती कीमतों के फार्मूले से किसान सहमत होंगे?हम प्रसंस्करणकर्ता हैं। एक प्रसंस्करणकर्ता के रूप में हम उतना ही भुगतान कर सकते हैं, जो हमें वास्तविक लगता है। हमारी लागत के बारे में सभी जानते हैं। किसानों को भी इसे समझना चाहिए। हालांकि हम एफआरपी के खिलाफ नहीं है, जो न्यूनतम कीमत है।क्या आपको लगता है कि सरकार गन्ना मूल्य के निर्धारण का तरीका बदलने के लिए कदम उठाएगी?संसद के पास सारे अधिकार हैं। मूल्य निर्धारण फार्मूले और उसके क्रियान्वयन पर हम तटस्थ रहना चाहते हैं। अगर कोई भुगतान करने में असमर्थ रहता है तो उस पर कार्रवाई होनी चाहिए।क्या विनियंत्रण को लेकर उद्योग जगत (निजी और सहकारिता क्षेत्र) में दो राय हैं?ऐसा नहीं है।आप लंबे समय से विनियंत्रण की मांग कर रहे हैं। अगर ऐसा हो जाता है तो आपको क्या महसूस होगा?सरकार आर्थिक सुधारों के लिए कदम बढ़ा रही है। हमें लगता है कि चीनी पेट्रोल की तुलना में कम आवश्यक है। मंत्री (शरद पवार) ने भी बयान दिया है कि अब सिर्फ चीनी ही नियंत्रित उद्योग है। हमें खुशी होगी, अगर अगले सत्र की शुरुआत में अक्टूबर से यह लागू हो जाता है।विनियंत्रण से उद्योग जगत को क्या मिलेगा?कच्चे माल के लिए हमें राज्य सरकार का मुंह देखना पड़ता है और तैयार माल के लिए केंद्र सरकार का। विनियंत्रण से हमें अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। हम निवेश में और इजाफा करेंगे। घरेलू बाजार में विदेशी निवेश बढ़ेगा। नियंत्रण मुक्त क्षेत्र में पूंजी का निवेश अधिक होता है।क्या एक बार चीनी क्षेत्र के नियंत्रण मुक्त होने के बाद लेवी सिस्टम खत्म हो जाएगा? क्या आप इसका समर्थन करेंगे कि सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत वितरित की जाने वाली चीनी की खरीद के लिए बाजार से टेंडर के जरिए चीनी खरीदे?यह हमारा काम नहीं है।अगले सत्र में उत्पादन के बारे में चीनी उद्योग की उम्मीदें?गन्ने का रकबा औसत से 20 फीसदी से अधिक है। पिछले अनुभव से पता चलता है कि अगर इसमें 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी होती है तो कम से कम 70 लाख टन अतिरिक्त उत्पादन होता है। इसलिए हम मान रहे हैं कि अगले साल 250 लाख टन से ज्यादा चीनी का उत्पादन होगा।क्या लेवी चीनी के दाम बढ़े हैं?हां, सत्र 2009-10 में सभी चीनी मिलों की लेवी चीनी कीमतों में करीब 400 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी हुई हैं।क्या उद्योग की हालत सुधर रही है या अभी भी स्थिति अच्छी नहीं है?अभी भी कमियां बरकरार हैं। लेकिन स्थिति में अधिक बदलाव नहीं होने के बावजूद कुछ बातें सकारात्मक भी रही हैं। हालांकि, यह कोई सुखद आश्चर्य नहीं है। गन्ने के दाम (एफआरपी) बढऩे के कारण ऐसा हुआ है।क्या पेट्रोल में एथेनॉल मिलाया जाना व्यावहारिक है? क्या उद्योग आपूर्ति की प्रतिबद्धता को पूरा कर सकते हैं? रसायन उद्योग के विरोध को आप किस तरह से देखते हैं?तेल विपणन कंपनियां (ओएमसी) प्रति लीटर एथेनॉल के सम्मिश्रण पर आठ रुपये का लाभ कमाती हैं। हम 27 रुपये प्रति लीटर पर तीन साल तक इसकी आपूर्ति करने के लिए तैयार हैं। हम बैंक गारंटी सहित सभी नियमों का सख्ती से पालन करने के लिए तैयार हैं। बीते समय में भुगतान करने में असमर्थ रहीं कंपनियां कानूनी बाध्यताएं पूरी कर रही हैं। यदि रसायन उद्योग कच्चे माल की उपलब्धता को लेकर असुरक्षित महसूस कर रहे हैं तो उनके कर मुक्त एल्कोहल के आयात पर हमें कोई आपत्ति नहीं है।विवेक सरावगी, अध्यक्ष, इस्मा और प्रबंध निदेशक, बलरामपुर चीनी (बीएस हिंदी)
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