21 जुलाई 2010
MCX-SX ने ठोंका SEBI पर मुकदमा
मुंबई : एक असाधारण कदम उठाते हुए एमसीएक्स की स्टॉक एक्सचेंज शाखा एमसीएक्स-एसएक्स ने बाजार नियामक सेबी के खिलाफ मुकदमा दाखिल कर दिया है। एमसीएक्स-एसएक्स का कहना है कि इक्विटी और कुछ अन्य इंस्ट्रूमेंट में ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म की सुविधा शुरू करने के लिए उसने कायदे-कानून के तहत सभी उपाय कर लिए हैं, फिर भी सेबी उसे इसकी इजाजत नहीं दे रहा है। एमसीएक्स-एसएक्स ने बम्बई उच्च न्यायालय में रिट याचिका दाखिल की है। इस याचिका पर 28 जुलाई को सुनवाई होगी। पिछले सप्ताह एमसीएक्स-एसएक्स ने अपनी शिकायतें सबके सामने रखने के लिए एक विज्ञापन भी जारी किया था।याचिका की एक प्रति सेबी के बांदा कुर्ला कार्यालय में मंगलवार को पहुंचाई गई। सेबी के अधिकारी इस मामले पर टिप्पणी देने के लिए उपलब्ध नहीं थे। एमएसीएक्स-एसएक्स के प्रवक्ता ने ईटी के सवालों का जवाब नहीं दिया। घटनाक्रम की जानकारी रखने वाले एक व्यक्ति ने कहा, 'एक्सचेंज अदालत से इस बात पर मुहर लगवाना चाहता है कि उसने सभी रेगुलेटरी दिशानिर्देशों का पालन किया है और इक्विटी सेगमेंट में उसे कामकाज शुरू करने की इजाजत दी जाए।' हाईकोर्ट ने इसी हफ्ते यह याचिका स्वीकार की है। याचिका में एमसीएक्स-एसएक्स ने कहा है कि इस रिट याचिका की सुनवाई होने और इस पर फैसला आने तक सेबी को यह निर्देश दिया जाए कि वह एमसीएक्स-एसएक्स को इक्विटी, इंटरेस्ट रेट फ्यूचर्स, फ्यूचर्स एंड ऑप्शन, म्यूचुअल फंड स्कीम, डेट इंस्ट्रूमेंट जैसे सेगमेंट में कामकाज शुरू करने की इजाजत दे। फिलहाल यह एक्सचेंज करेंसी डेरिवेटिव में ट्रेडिंग की सुविधा मुहैया कराता है। सितंबर 2008 में एमसीएक्स-एसएक्स को स्टॉक एक्सचेंज के रूप में मान्यता मिली थी। यह मान्यता इस शर्त के साथ दी गई थी कि प्रमोटर एक साल के भीतर अपनी हिस्सेदारी घटाकर सेबी की ओर से तय 5 फीसदी की सीमा तक लाएंगे। जब एमसीएक्स-एसएक्स का गठन हुआ था तो इसके प्रमोटरों एमसीएक्स और फाइनेंशियल टेक्नोलॉजी (एफटीआईएल) के पास क्रमश: 51 फीसदी और 49 फीसदी हिस्सा था। साल 2009 तक इन्होंने अपनी हिस्सेदारी घटाकर क्रमश: 37 फीसदी और 33।9 फीसदी कर ली। 2009 में सेबी ने इस एक्सचेंज की मान्यता सितंबर 2010 तक एक साल के लिए इस शर्त पर बहाल की मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंजों में पब्लिक शेयरहोल्डिंग बढ़ाने और उसे बनाए रखने से जुड़े कानूनों के दायरे से बाहर प्रतिभूतियों में कॉन्ट्रैक्ट की कोई नई श्रेणी शुरू नहीं की जाएगी। इस प्रक्रिया की जानकारी रखने वाले एक व्यक्ति ने बताया, 'यह सांप-छंछूदर वाली स्थिति थी। एक ओर निवेशक थे जो निवेश करना चाहते थे और इक्विटी तथा अन्य प्रोडक्ट के लिए एक्सचेंज को मंजूरी मिलने का इंतजार कर रहे थे, तो दूसरी ओर नियामक ने अन्य सेगमेंट में कामकाज शुरू करने की मंजूरी देने के साथ विनिवेश की अनिवार्य शर्त जोड़ दी।' शेयरहोल्डिंग के नियमों के पालन में शीघ्रता के लिए एक्सचेंज ने पूंजी घटाने और उसके इंतजाम की एक योजना के लिए हाईकोर्ट से मंजूरी हासिल कर ली। एमसीएक्स-एसएक्स ने कहा कि सेबी को इसके बारे में दिसंबर 2009 में सूचित कर दिया गया था। एक अन्य एक्सचेंज के एक अधिकारी ने कहा, 'अब देखना यह है कि पूंजी घटाने की इस कवायद पर सेबी का क्या रुख रहता है।' कंपनी ने अप्रैल 2010 में कैपिटल रीस्ट्रक्चरिंग की जिसके बाद एमसीएक्स-एसएक्स के दोनों प्रमोटरों ने कंपनी में अपनी सामूहिक हिस्सेदारी 70 फीसदी से घटाकर 10 फीसदी कर ली (दोनों के पास 5-5 फीसदी)। हालांकि इस प्रक्रिया में प्रमोटर कंपनियों ने खुद के नाम भी वारंट जारी किए जिन्हें शेयरों में बदले जाने पर कंपनी में उनकी हिस्सेदारी 60 फीसदी हो जाएगी। आवंटन के छह महीने के बाद किसी भी वक्त इन्हें शेयरों में बदला जा सकता है और इन्हें ट्रांसफर करने पर भी कोई पाबंदी नहीं है। उद्योग जगत के जानकारों का कहना है कि रीस्ट्रक्चरिंग से एमसीएक्स-एसएक्स के प्रमोटरों को राहत मिली है क्योंकि अब वे एक तय समय-सीमा पर अपनी हिस्सेदारी बेचने के लिए मजबूर नहीं होंगे। हाईकोर्ट में दाखिल याचिका के अनुसार, कंपनी ने एमसीएक्स के नाम 61.17 करोड़ वारंट और एफटीआईएल के नाम 56.25 करोड़ वारंट जारी किए थे। (ई टी हिंदी)
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