मुंबई July 28, 2010
कपड़ा मंत्रालय ने जूट पैकेजिंग मैटेरियल ऐक्ट 1987 में छूट देने की सिफारिश की है। मामले से जुड़े सूत्रों का कहना है कि यह प्रस्ताव मंत्रिमंडल के समक्ष विचाराधीन है और इस पर जल्दी ही कोई फैसला लिया जाएगा। प्लास्टिक पैकेजिंग के इस्तेमाल को बढ़ाने के लिए जूट पैकेजिंग मेटिरियल्स एक्ट 1987 को हटाने के लिए रसायन और उर्वरक मंत्रालय की सिफारिश के बाद मामले में आए ताजा मोड़ से इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि इस कानून को पूरी तरह नहीं हटाया जा सकता क्योंकि इससे एक खास जिंस पर बुरा असर पड़ेगा। हालांकि इसमें राहत तो दी ही जाएगी ताकि जूट के साथ अन्य पदार्थों को भी पैकेजिंग के लिए इस्तेमाल किया जा सके। रसायन और उर्वरक मंत्रालय का मानना है कि एक मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था में विनिर्माताओं, उत्पादकों और लॉजिस्टिक्स उत्पादकों को इतनी आजादी होनी चाहिए कि वे अपनी सहूलियत के हिसाब से पैकेजिंग उत्पाद को इस्तेमाल कर सकें। फिलवक्त यह अनिवार्य है कि चीनी और अनाज के लिए जूट पैकेजिंग का इस्तेमाल किया जाए।मगर फिर भी इस प्रस्तावित छूट के बाद ऐसा हो सकता है कि कुछ अनाजों में तय मात्रा के लिए पैकेजिंग में अन्य पदार्थों का इस्तेमाल भी किया जाए। एक अधिकारी ने कहा, 'इसमें छूट तो दी जाएगी, क्योंकि इस साल जूट उत्पादन भी अच्छा है, अनाज उत्पादन के भी बेहतर रहने के अनुमान है। ऐसे में जूट उद्योग के लिए कोई समस्या नहीं होनी चाहिए।'वहीं दूसरी ओर चूंकि इस मांग का विकल्प प्लास्टिक पैकेजिंग होगा इसलिए प्लास्टिक उद्योग के लिए यह एक बड़ा प्रोत्साहन होगा। दरअसल इस कानून को हटाने की सिफारिश रसायन और उर्वरक मंत्रालय ने एक अध्ययन के आधार पर की है। यह तकनीकी अध्ययन इंडियन सेंटर फॉर प्लास्टिक इन द इनवायरनमेंट (आईसीपीई) के द्वारा किया गया। आईसीपीई द्वारा जूट, कागज और पॉलीमर्स के जीवन चक्र विश्लेषण पर किए गए इस अध्ययन में कहा गया है कि इन कच्चे माल के उत्पादन में सबसे ज्यादा ऊर्जा, पानी और रसायन की खपत कागज के लिए होती है। उसके बाद जूट और उसके बाद पॉलीमर का स्थान आता है। इन पदार्थों से थैले बनाने की प्रक्रिया में भी बिजली की खपत, पानी और रसायनों का संतुलन कुछ ऐसा ही रहता है। (बीएस हिंदी)
29 जुलाई 2010
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