अहमदाबाद July 12, 2010
वित्त वर्ष 2009-10 की आखिरी दो तिमाहियों में कीमतों में तेजी के बाद पॉलिस्टर यार्न की कीमतें कम हुई हैं। इसकी वजह कमजोर मांग और कच्चे माल की कीमतों में तेज गिरावट है। पार्शियली ओरिएंटेड यार्न (पीओवाई) की कीमतों में पिछले माह के अंत तक दो रुपये प्रति किलो की गिरावट आई है, वहीं पॉलिस्टर टेक्सचराइज्ड यार्न (पीटीवाई) की कीमतों में आने वाले दिनों में 1 रुपये प्रति किलो की गिरावट की उम्मीद है।इसी तरह से कपास यार्न की कीमतें बढ़े हुए स्तर से नीचे आ चुकी हैं। यार्न कारोबारियों का कहना है कि जुलाई के दूसरे सप्ताह तक कपास के धागों की कीमतों में स्थिरता आ जाएगी। यूरोप से कम मांग और आपूर्ति ज्यादा होने की वजह से कीमतों में गिरावटआई है। एक प्रमुख यार्न उत्पादक कंपनी के अधिकारी ने कहा- जहां तक पॉलिस्टर यार्न का सवाल है, पीओआई की कीमतें मांग कम होने की वजह से जुलाई के पहले सप्ताह में 2 रुपये प्रति किलो तक कम हुई हैं। कच्च्चे माल की कीमतों में गिरावट, पीटीए (पॉलिएथेलीन टेरेपैथालेट एसिड) और एमईजी (मोनो एथिल ग्लाइकॉल) की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों में आई गिरावट की वजह से आई है। इसका पॉलिस्टर यार्न की कीमतों पर असर पड़ा है। सूत्रों ने कहा- पॉलिस्टर टेक्सचराइज्ड यार्न (पीटीवाई) की कीमतें पिछले महीने ज्यादा थीं, जिस पर कच्चे माल की कम कीमत और कच्चे तेल की कीमतों में हाल में आई कमी की वजह से असर पड़ा है। अब संभावना है कि पीटीवाई की कीमतें आने वाले दिनों में 1 रुपये प्रति किलो तक कम हो जाएं। निर्यात बाजार में मांग की कमी की वजह से कॉटन यार्न की कीमतें बढ़े हुए स्तर से 5-10 रुपये प्रति किलो कम हुई हैं। साथ ही देश के बड़े यार्न उत्पादक केंद्र भिवाड़ी में उत्पादन बढ़ा है।मुंबई स्थित आईबी यार्न एजेंसी के भरत मालकन ने कहा- भिवाड़ी में मजदूर और बिजली के संकट की वजह से बाजार में यार्न की कमी हो गई थी। अब उत्पादन सामान्य हो गया है, जिसकी वजह से आपूर्ति बढ़ी है। इसका असर कीमतों पर देखा जा रहा है। कारोबारियों के मुताबिक कपास यार्न की कीमतों में जल्द ही स्थिरता आ जाएगी। अहमदाबाद के एक यार्न कारोबारी चिराग शाह ने कहा- इस समय बाजार धारणा गिरावट की ओर है। पिछली दो तिमाही के दौरान मांग ज्यादा होने की वजह से कॉटन यार्न की कीमतों में तेजी आई थी। यार्न उत्पादकों को बेहतर मुनाफा हो रहा था। वहीं बुनकर और परिधान निर्माताओं पर इसका बुरा असर पड़ रहा था और वे बढ़ी कीमतों का भार पूरी तरह से ग्राहकों पर डालने की स्थिति में नहीं थे। यार्न की ज्यादा कीमतों की वजह से बुनकरों और परिधान उद्योग पर पड़ रहे बुरे असर के चलते कपड़ा मंत्रालय ने कपड़ा उद्योग से जुड़े विभिन्न प्रतिनिधियों के बीच 24 जून 2010 को मध्यस्थता भी की थी। बाजार के आंकड़े उपलब्ध कराने वाली कैपिटलाइन के मुताबिक- इसके परिणामस्वरूप कपास यार्न उत्पादक कीमतें कम करने को सहमत हुए थे और कपास यार्न की कीमतों में 6 से 9 रुपये प्रति किलो की गिरावट भी आई थी। (बीएस हिंदी)
13 जुलाई 2010
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