इंदौर July 23, 2010
कम वर्षा के बाद सोया उत्पादकों को इल्ली की मार से दो-चार होना पड़ रहा है। इसके चलते सोया की अधिकतर घनी फसलों में उत्पादन लगभग 30 फीसदी तक कम होने की आशंका बनी हुई है। वर्तमान बुआई सत्र में इल्ली लगने का प्रमुख कारण सामान्य से कम वर्षा और अधिक गर्मी को बताया जा रहा है। ऐसे में पहले से ही कम वर्षा के चलते सोया के कम उत्पादन की आशंका बनी हुई थी, इल्ली के प्रकोप से फसलों को और नुकसान होगा। इल्ली लगने वाली फसलों में अधिकतर 1 माह के आस-पास बोवनी वाली फसलें हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, सोया बुआई के 20 से 25 दिनों में ही फसलों में फूल आने शुरू हो जाते हैं, जबकि इस बार ऐसा न होने से सोया फसलों को भारी नुकसान हो सकता है। वर्तमान सत्र में कम वर्षा के चलते जमीन में नमी की कमी है। साथ ही बुआई में हुई देरी से भी सोया उत्पादन प्रभावित हो रहा है। राज्य में जहां सोया की अधिक घनी फसल है, वहां पर इल्ली का प्रकोप ज्यादा है। सोया की फसल घनी होने का प्रमुख कारण किसानों द्वारा बुआई के समय खेतों में अधिक बीज डालना है।इल्ली से सोया की वर्तमान फसल को होने वाले नुकसान के बारे में कृषि विभाग के संचालक डी एन शर्मा ने बात करने से मना कर दिया। इस संबंध में सोपा के प्रवक्ता राजेश अग्रवाल ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि राज्य में कई जगह सोया की फसलों में इल्ली लगने की शिकायत आ रही है। अगर जल्द ही इल्ली प्रभावित क्षेत्रों में सामान्य से अधिक वर्षा नहीं होती है तो सोया की फसलों को काफी नुकसान होने की आशंका है। वर्तमान में राज्य में केवल बौछारें ही आ रही हैं। इन बौछारों से सोया की फसलों में लगी इल्ली को हटाया नहीं जा सकता है। मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र तथा राजस्थान जैसे राज्यों में काफी मात्रा में सोयाबीन की बुआई की जाती है। देश भर का लगभग 65 फीसदी सोया उत्पादन मध्य प्रदेश में ही किया जाता है। सोया उत्पादक राज्यों में सोयाबीन की बुआई जून के दूसरे-तीसरे हफ्ते से शुरू होकर जुलाई के आखिरी दिनों तक की जाती है। राज्य के कृषि विभाग के अनुसार, अभी तक राज्य में लगभग 35।70 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सोया की बुआई की जा चुकी है। रीवा, मुरैना, गुना, ग्वालियर और सागर क्षेत्र बुआई को लेकर सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में शामिल हैं।वर्तमान वर्ष में लगभग 85 लाख टन सोया के उत्पादन का अनुमान लगाया जा रहा है, जोकि पिछले वर्ष के लगभग 95 लाख टन उत्पादन से काफी कम है। साथ ही पिछले वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष सोया के दामों में भी कमी आयी है। पिछले वर्ष इसी समय सोयाबीन के दाम लगभग 2500-2550 प्रति क्विंटल रुपये के आस-पास बने हुए थे जबकि वर्तमान में सोया के दाम घटकर केवल लगभग 1850-1900 रुपये तक ही रह गए हैं। अमेरिकन रिपोर्ट के मुताबिक, विश्व में वर्ष 2010-11 में सोयाबीन उत्पादन 24.99 करोड़ टन ही रहने की उम्मीद है, जबकि पिछले वर्ष 25.92 करोड़ टन सोयाबीन का उत्पादन दर्ज किया गया था। रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका में इस बार सोयाबीन उत्पादन 9.01 करोड़ टन, ब्राजील में 6.50 करोड़ टन, अर्जेंटीना में 5.10 करोड़ टन, चीन में 1.46 करोड़ टन और भारत में 0.88 करोड़ टन ही रहने का अनुमान है। वर्तमान में देश में सोयाबीन की खेती करने वाले किसानों को चारों तरफ से बेरुखी की मार सहनी पड़ रही है। पिछले वर्षों की तुलना में वर्तमान सत्र में सोयाबीन के दामों में लगभग 500 रुपये प्रति क्विंटल तक की कमी को भी कम उत्पादन के संकेत के रूप में देखा जा रहा है। कम वर्षा के चलते वर्ष 2010-11 में सोयाबीन के प्रमुख उत्पादक राज्यों में सोयाबीन की बुआई में लगभग 20 से 25 फीसदी तक की कमी की आशंका जतायी जा रही थी। अमेरिकन कृषि विभाग ने भी जून माह में जारी अपनी रिपोर्ट में सोयाबीन का वैश्विक उत्पादन कम रहने की आशंका जतायी है। इन सबको लेकर किसान और व्यापारी सभी काफी विचलित हो रहे हैं। हालाकि सोयाबीन की बुआई में किसानों की नीरसता को देखते हुए इस वर्ष सोया के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्घि जरूर की गई है। पिछले वर्ष सोया का एमएसपी 1390 रुपये ही था। इसे बढ़ाकर वर्तमान सत्र के लिए 1450 रुपये कर दिया गया है। देवास के सोया उत्पादक किसान कृष्ण कुमार ने बताया कि इस वर्ष सोया की फसल इल्ली का शिकार हो गयी है। ऐसे में सोया के उत्पादन को लेकर काफी ऊहापोह की स्थिति है। चारों तरफ से सोया उत्पादन को लेकर नकारात्मक संकेत ही मिल रहे हैं। (बीएस हिंदी)
24 जुलाई 2010
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