30 जून 2010
मानसून के लिए जुलाई से आस
मानसूनी बारिश के लिए अब सभी की उम्मीदें जुलाई के पहले सप्ताह पर टिक गई हैं। मानसून की एक सप्ताह की देरी से ज्यादा फर्क पड़ने वाला नहीं है लेकिन जुलाई में भी मानसून धोखा दे गया तो जरूर मुश्किल हो सकती है। चालू सीजन में अभी तक सामान्य से करीब 15 फीसदी कम वर्षा हुई है। देश के कुल 36 सब डिवीजनों में से 15 में सामान्य से काफी कम वर्षा हुई है।कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार जुलाई के पहले सप्ताह में उत्तर भारत में मानसून सक्रिय होने की उम्मीद है। लेकिन अगर इसमें ज्यादा देरी हुई तो खरीफ फसलों की बुवाई पर प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने बताया कि सरकार स्थिति से निपटने के लिए आपातकालीन योजना बना रहा है। उड़ीसा के कटक स्थित केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ। टी. के. आध्या ने बताया कि पूर्वी भारत में अच्छी वर्षा हो रही है तथा उत्तर भारत में ज्यादातर सिंचित क्षेत्र है। इसलिए एक सप्ताह की देरी से ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। पश्चिमी विक्षोभ बनना शुरू हो गया है। इससे उम्मीद है कि जल्दी ही उत्तर भारत में भी मानसूनी वर्षा शुरू हो जाएगी। जुलाई में कैसी वर्षा होती है, इस पर खरीफ फसलों का भविष्य निर्भर करगा। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के वरिष्ठ वैज्ञानिक (एग्रोनॉमी) डॉ. शिवाधर मिश्र ने बताया कि उत्तर भारत में किसानों ने पौध तैयार कर ली है। वर्षा न होने से पौध खराब हो रही है। आईएआरआई के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. जे. पी. डबास ने बताया कि उत्तर भारत के राज्यों में चार जुलाई तक मानसून पहुंचने की संभावना है। इसलिए किसानों को खेत तैयार कर लेने चाहिए। जहां पानी की उपलब्धता है, वहां रोपाई शुरू कर देनी चाहिए। राजस्थान कृषि निदेशालय के अतिरिक्त निदेशक हरबंस यादव ने बताया कि आमतौर पर राज्य में 25 जून से बाजरा समेत मोटे अनाज की बुवाई शुरू हो जाती है। लेकिन मानसून की धीमी चाल के चलते अब तक किसान आसमान को टकटकी लगाए देख रहे हैं। जुलाई के पहले सप्ताह तक बारिश नहीं होती है तो प्रदेश में बाजरा समेत मोटे अनाज की पैदावार बढ़ाने की सरकारी योजना पर पानी फिर सकता है। दस जुलाई तक हालात में सुधार नहीं होता है तो निदेशालय को आपात योजना बनाने को विवश होना पड़ सकता है। मौसम वैज्ञानिकों के अनुमान के अनुसार मध्य प्रदेश में जुलाई प्रथम सप्ताह से मानसून पूरी तरह से सक्रिय हो जाएगा। किसान कल्याण विभाग द्वारा संचालित किसान कॉल सेंटर ने कृषकों को आवश्यक सलाह दी है। (दिल्ली से आर. एस. राणा, जयपुर से प्रमोद कुमार शर्मा एवं भोपाल से धर्मेद्र सिंह भदौरिया) (बिज़नस भास्कर)
चीनी का 230 लाख टन उत्पादन
पिछले दो साल से चीनी का उत्पादन घरेलू मांग के मुकाबले कम रहने के बाद अगले सीजन में उत्पादन बढ़कर 230 लाख टन के आसपास पहुंचने की संभावना है। गन्ने का बुवाई एरिया बढ़ने के कारण अक्टूबर से शुरू होने वाले नए सीजन में चीनी का उत्पादन मांग के बराबर रहने की उम्मीद है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया कि अब तक की बुवाई के अनुसार गन्ने का कुल रकबा 13 फीसदी बढ़कर 47 लाख टन हो गया है। इस वजह से चीनी का उत्पादन 230 लाख टन तक हो सकता है। हाल में विभिन्न गन्ना उत्पादक राज्यों के गन्ना आयुक्तों की बैठक में चीनी उत्पादन का यह अनुमान लगाया गया है। उत्पादन बढ़ने पर सरकार को चीनी के मूल्य नियंत्रण में रखने में मदद मिलेगी। दिल्ली में चीनी के दाम 30-33 रुपये प्रति किलो चल रहे हैं जबकि पिछले जनवरी में दाम 50 रुपये प्रति किलो के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गए थे। (बिज़नस भास्कर)
पंजाब के कपास में फांस
चंडीगढ़ June 29, 2010
अत्यधिक गर्मी, नहरों में पानी की कमी और बी टी बीजों ने मिलकर पंजाब में कपास के रकबे पर असर डाला है। नतीजतन राज्य कपास की खेती के अपने लक्ष्य से पीछे छूट गया है। राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक इस सत्र में कपास का कुल रकबा 5।325 लाख हेक्टेयर रहा है।सिंचाई वाली नहरों में पानी की कमी और जरूरत से ज्यादा गर्मी के चलते पंजाब में कपास बुआई कुछ हफ्ते देर से शुरू हुई थी जिसकी अंतिम तारीख 15 मई को पूरी हो गई। आमतौर पर कपास की बुआई 15 अप्रैल को शुरू होती है। अधिकारियों ने पहले कहा था कि बुआई में देरी के बावजूद कपास का रकबा 5.50 लाख हेक्टेयर के स्तर तक पहुंच जाएगा। पिछले साल 5.11 लाख हेक्टेयर रकबे में कपास की बुआई हई थी। राज्य सरकार के अनुमानों के मुताबिक कुल उत्पादन का आंकड़ा पिछले साल के 20.96 लाख गांठ के मुकाबले इस साल 23 लाख गांठ तय किया गया था।कपास उत्पादन के लिए अधिकतर क्षेत्र नहरों के पानी पर निर्भर करता है। इस समस्या को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने नए ट्यूबवेल कनेक्शन भी जारी किए हैं, ताकि कपास उत्पादन के लक्ष्य को पूरा किया जा सके। पिछले साल के मुकाबले इस साल राज्य में कपास उत्पादन क्षेत्र में 4.2 फीसदी का मामूली इजाफा हुआ है, जबकि सरकार ने 7-8 फीसदी इजाफे का लक्ष्य रखा था। अधिकारियों के अनुसार खराब मौसम का कपास की बुआई पर काफी खराब असर पड़ा है। बुआई के समय उत्तरी क्षेत्र में तापमान 42-43 डिग्री के बीच था, जो सामान्य से 4 डिग्री अधिक है। कृषि विशेषज्ञों ने बताया कि 40 डिग्री से अधिक तापमान कपास की फसल के लिए बहुत खराब होता है। सूत्रों ने बताया कि कपास की बुआई वाले क्षेत्र में से 95 फीसदी क्षेत्र में बीटी कॉटन बोई जाएगी। उन्होंने बताया कि पिछले साल किसानों को कपास की फसल के बदले अच्छे दाम मिले। पिछले सीजन राज्य की कई मंडियों में कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2,800 रुपये प्रति क्विंटल से अधिक था। इस कारण किसान अधिक उत्पादन वाले बीज बो रहे हैं। इसके अलावा किसानों को कपास की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है क्योंकि चावल के मुकाबले यह कम पानी मांगती हैै। (बीएस हिंदी)
अत्यधिक गर्मी, नहरों में पानी की कमी और बी टी बीजों ने मिलकर पंजाब में कपास के रकबे पर असर डाला है। नतीजतन राज्य कपास की खेती के अपने लक्ष्य से पीछे छूट गया है। राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक इस सत्र में कपास का कुल रकबा 5।325 लाख हेक्टेयर रहा है।सिंचाई वाली नहरों में पानी की कमी और जरूरत से ज्यादा गर्मी के चलते पंजाब में कपास बुआई कुछ हफ्ते देर से शुरू हुई थी जिसकी अंतिम तारीख 15 मई को पूरी हो गई। आमतौर पर कपास की बुआई 15 अप्रैल को शुरू होती है। अधिकारियों ने पहले कहा था कि बुआई में देरी के बावजूद कपास का रकबा 5.50 लाख हेक्टेयर के स्तर तक पहुंच जाएगा। पिछले साल 5.11 लाख हेक्टेयर रकबे में कपास की बुआई हई थी। राज्य सरकार के अनुमानों के मुताबिक कुल उत्पादन का आंकड़ा पिछले साल के 20.96 लाख गांठ के मुकाबले इस साल 23 लाख गांठ तय किया गया था।कपास उत्पादन के लिए अधिकतर क्षेत्र नहरों के पानी पर निर्भर करता है। इस समस्या को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने नए ट्यूबवेल कनेक्शन भी जारी किए हैं, ताकि कपास उत्पादन के लक्ष्य को पूरा किया जा सके। पिछले साल के मुकाबले इस साल राज्य में कपास उत्पादन क्षेत्र में 4.2 फीसदी का मामूली इजाफा हुआ है, जबकि सरकार ने 7-8 फीसदी इजाफे का लक्ष्य रखा था। अधिकारियों के अनुसार खराब मौसम का कपास की बुआई पर काफी खराब असर पड़ा है। बुआई के समय उत्तरी क्षेत्र में तापमान 42-43 डिग्री के बीच था, जो सामान्य से 4 डिग्री अधिक है। कृषि विशेषज्ञों ने बताया कि 40 डिग्री से अधिक तापमान कपास की फसल के लिए बहुत खराब होता है। सूत्रों ने बताया कि कपास की बुआई वाले क्षेत्र में से 95 फीसदी क्षेत्र में बीटी कॉटन बोई जाएगी। उन्होंने बताया कि पिछले साल किसानों को कपास की फसल के बदले अच्छे दाम मिले। पिछले सीजन राज्य की कई मंडियों में कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2,800 रुपये प्रति क्विंटल से अधिक था। इस कारण किसान अधिक उत्पादन वाले बीज बो रहे हैं। इसके अलावा किसानों को कपास की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है क्योंकि चावल के मुकाबले यह कम पानी मांगती हैै। (बीएस हिंदी)
मॉनसूनी फुहार से खेतों में बहार
मुंबई 06 29, 2010
इस साल खरीफ फसलों की बुआई पिछले साल की अपेक्षा काफी अच्छी हो रही है। अभी तक पिछले साल के मुकाबले फसलों की बुआई 22 फीसदी से भी अधिक हुई है। हालांकि मौसम विभाग के अनुमान के विपरीत इस बार भी अभी तक सामान्य से करीब 11 फीसदी कम बारिश हुई है। इसके बावजूद बुआई को लेकर किसान उत्साहित दिख रहे हैं।कृषि मंत्रालय से प्राप्त आंकड़ों में 25 जून तक कुल 119।8 लाख हेक्टयर क्षेत्र में खरीफ फसलों की बुआई हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक महज 98.8 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में ही बुआई हुई थी। शुरुआती दौर में धान और तिलहन की फसलों की रिकॉर्ड बुआई किसानों ने की है। 25 जून तक 24.1 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की बुआई की जा चुकी है जबकि पिछले साल इसी अवधि तक 18.3 लाख हेक्टेयर पर ही धान की रोपाई की गई थी। तिलहन फसलों की बुआई 6.6 लाख हेक्टेयर की जगह इस बार अभी तक 11.5 लाख हेक्टेयर पर की गई है, जबकि गन्ने और कपास की बुआई भी पिछले साल से करीबन 10 फीसदी और 40 फीसदी ज्यादा की गई है। सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने की वजह से इस साल कुल गन्ने और कपास की बुआई ज्यादा होने की उम्मीद जताई जा रही है। जबकि तिलहन से किसानों का मोह थोड़ा कमजोर पड़ सकता है। हालांकि दलहन फसलों की बुआई पिछले साल 4.5 लाख हेक्टेयर पर हुई थी जो इस बार कम होकर महज 3.1 लाख हेक्टेयर पर ही हो सकी है।पिछले साल की अपेक्षा अच्छी बारिश होने की वजह से किसानों ने बुआई शुरू कर दी है। हालांकि मौसम विभाग के दावे इस बार भी पूरी तरह से खरे नहीं उतरे हैं । मौसम विभाग ने अनुमान व्यक्त किया था कि इस बार मॉनसून अच्छा रहेगा और सामान्य बारिश होगी जबकि अभी तक मॉनसून देश के कई हिस्सों में पूरी तरह से अपना रंग नहीं दिखा पाया है और सामान्य से करीबन 11 फीसदी कम बारिश भी हुई है। मौसम विभाग का अभी भी दावा है कि इस साल बारिश अच्छी होगी, जुलाई और अगस्त में देशभर में जोरदार बारिश होगी। बरसात को लेकर मौसम विभाग के अधिकारियों काफी आश्वस्त दिखाई दे रहे हैं तो किसानों में भी फसाल बुआई को लेकर जोश दिखाई दे रहा है, क्योंकि पिछले कई सालों की अपेक्षा इस बार बारिश ठीक बताई जा रही है। खरीफ फसल की बुआई के शुरुआती आंकड़ों को कमोडिटी विशेषज्ञ बहुत ज्यादा अहमियत नहीं दे रहे हैं। शेअर खान कमोडिटी प्रमुख मेहुल अग्रवाल कहते है कि इन आंकड़ों को देखकर पूरे सीजन का अनुमान लगाना ठीक नहीं होगा। शुरूआती ट्रेंड बहुत जल्द बदल जाएगा। उनके अनुसार इस बार तिलहन की बुआई पिछले साल की अपेक्षा कमजोर रहने वाली है जबकि गन्ना और कपास पिछले साल की अपेक्षा करीबन 10-10 फीसदी ज्यादा क्षेत्र पर बोये जा सकते हैं क्योंकि सरकार द्वारा घोषित समर्थन मूल्य, बाजार में मांग और कीमत के साथ मॉनसून का रुझान भी इनको प्रभावित करने वाला है। अग्रवाल का मानना है कि जुलाई अगस्त में अल नीनो अगर आता है तो भारी बारिश होगी जैसा मौसम विभाग का कहना है, तो तिलहन और दलहन फसलों को सबसे ज्यादा नुकसान हो सकता है, जबकि गन्ना , कपास और धान की फसलें मजबूत हो सकती हैं। (बीएस हिंदी)
इस साल खरीफ फसलों की बुआई पिछले साल की अपेक्षा काफी अच्छी हो रही है। अभी तक पिछले साल के मुकाबले फसलों की बुआई 22 फीसदी से भी अधिक हुई है। हालांकि मौसम विभाग के अनुमान के विपरीत इस बार भी अभी तक सामान्य से करीब 11 फीसदी कम बारिश हुई है। इसके बावजूद बुआई को लेकर किसान उत्साहित दिख रहे हैं।कृषि मंत्रालय से प्राप्त आंकड़ों में 25 जून तक कुल 119।8 लाख हेक्टयर क्षेत्र में खरीफ फसलों की बुआई हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक महज 98.8 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में ही बुआई हुई थी। शुरुआती दौर में धान और तिलहन की फसलों की रिकॉर्ड बुआई किसानों ने की है। 25 जून तक 24.1 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की बुआई की जा चुकी है जबकि पिछले साल इसी अवधि तक 18.3 लाख हेक्टेयर पर ही धान की रोपाई की गई थी। तिलहन फसलों की बुआई 6.6 लाख हेक्टेयर की जगह इस बार अभी तक 11.5 लाख हेक्टेयर पर की गई है, जबकि गन्ने और कपास की बुआई भी पिछले साल से करीबन 10 फीसदी और 40 फीसदी ज्यादा की गई है। सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने की वजह से इस साल कुल गन्ने और कपास की बुआई ज्यादा होने की उम्मीद जताई जा रही है। जबकि तिलहन से किसानों का मोह थोड़ा कमजोर पड़ सकता है। हालांकि दलहन फसलों की बुआई पिछले साल 4.5 लाख हेक्टेयर पर हुई थी जो इस बार कम होकर महज 3.1 लाख हेक्टेयर पर ही हो सकी है।पिछले साल की अपेक्षा अच्छी बारिश होने की वजह से किसानों ने बुआई शुरू कर दी है। हालांकि मौसम विभाग के दावे इस बार भी पूरी तरह से खरे नहीं उतरे हैं । मौसम विभाग ने अनुमान व्यक्त किया था कि इस बार मॉनसून अच्छा रहेगा और सामान्य बारिश होगी जबकि अभी तक मॉनसून देश के कई हिस्सों में पूरी तरह से अपना रंग नहीं दिखा पाया है और सामान्य से करीबन 11 फीसदी कम बारिश भी हुई है। मौसम विभाग का अभी भी दावा है कि इस साल बारिश अच्छी होगी, जुलाई और अगस्त में देशभर में जोरदार बारिश होगी। बरसात को लेकर मौसम विभाग के अधिकारियों काफी आश्वस्त दिखाई दे रहे हैं तो किसानों में भी फसाल बुआई को लेकर जोश दिखाई दे रहा है, क्योंकि पिछले कई सालों की अपेक्षा इस बार बारिश ठीक बताई जा रही है। खरीफ फसल की बुआई के शुरुआती आंकड़ों को कमोडिटी विशेषज्ञ बहुत ज्यादा अहमियत नहीं दे रहे हैं। शेअर खान कमोडिटी प्रमुख मेहुल अग्रवाल कहते है कि इन आंकड़ों को देखकर पूरे सीजन का अनुमान लगाना ठीक नहीं होगा। शुरूआती ट्रेंड बहुत जल्द बदल जाएगा। उनके अनुसार इस बार तिलहन की बुआई पिछले साल की अपेक्षा कमजोर रहने वाली है जबकि गन्ना और कपास पिछले साल की अपेक्षा करीबन 10-10 फीसदी ज्यादा क्षेत्र पर बोये जा सकते हैं क्योंकि सरकार द्वारा घोषित समर्थन मूल्य, बाजार में मांग और कीमत के साथ मॉनसून का रुझान भी इनको प्रभावित करने वाला है। अग्रवाल का मानना है कि जुलाई अगस्त में अल नीनो अगर आता है तो भारी बारिश होगी जैसा मौसम विभाग का कहना है, तो तिलहन और दलहन फसलों को सबसे ज्यादा नुकसान हो सकता है, जबकि गन्ना , कपास और धान की फसलें मजबूत हो सकती हैं। (बीएस हिंदी)
सरकारी रुख से चीनी उद्योग निराश
महंगाई को लेकर परशान केंद्र सरकार ने चीनी पर आयात शुल्क लगाने के मामले में फैसला टाल दिया। चीनी उद्योग ने इस पर गहरी निराशा व्यक्त की है और कहा है कि सरकार को फैसला टालने का निश्चय करने से पहले चीनी की बढ़ती लागत पर ध्यान देना चाहिए था।उद्योग ने कहा कि वह सरकार से रिफाइंड शुगर पर आयात शुल्क लगाने का दुबारा अनुरोध करगा, ताकि घरलू उद्योग को संरक्षण मिल सके। गौरतलब है कि पिछले सप्ताह अधिकार प्राप्त मंत्री समूह (ईजीओएम) ने चीनी पर आयात शुल्क लगाने के बार में फैसला टाल दिया था। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के डिप्टी डायरक्टर जनरल एम. एन. राव ने कहा कि महंगाई से चिंतित सरकार द्वारा रिफाइंड शुगर के आयात पर शुल्क लगाने का फैसला टालना दुर्भाग्यपूर्ण है। राव ने कहा कि सरकार को यह अपेक्षा नहीं करनी चाहिए कि चीनी के दाम पिछले साल के स्तर पर आ जाएंगे। अक्टूबर से शुरू हुए सीजन 2009-10 के दौरान मिलों ने 250 रुपये प्रति क्विंटल के मूल्य पर गन्ने की खरीद की है। सरकार चीनी की ऊंची उत्पादन लागत को कैसे नजरंदाज कर सकती है। चीनी के दाम जनवरी में 50 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गए थे, जबकि इन दिनों दाम 32-34 रुपये प्रति किलो चल रहा है। लेकिन चीनी का मूल्य पिछले साल से अभी भी ज्यादा है। नेशनल फेडरशन ऑफ कोआपरटिव शुगर फैक्ट्रीज के मैनेजिंग डायरक्टर विनय कुमार ने कहा कि हमें निराशा हुई है कि सरकार ने इस मुद्दे पर फैसला टाल दिया। इस पर फैसले के लिए हम दुबारा सरकार से बात करेंगे। अगर आयात शुल्क नहीं लगता है तो हम किसानों को अगले सरकार गन्ने का अच्छा दाम नहीं दे पाएंगे। पिछले साल मिलों ने 250 रुपये प्रति क्विंटल से भी ऊंचा दाम दिया था जबकि केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित फेयर एंड रिम्यूनरटिव प्राइस (एफआरपी) 130 रुपये प्रति क्विटंल तय किया गया था। उससे पिछले साल 2008-09 में वैधानिक न्यूनतम मूल्य (एसएमपी) 81 रुपये प्रति क्विंटल था। (बिज़नस भास्कर)
जून में सोने का आयात 75फीसदी गिरा
मुंबई। लगातार बढ़ते सोने के भाव के चलते जून महीने में सोने का आयात लगभग 75 फीसदी घटने का अनुमान है। पिछले साल जून में 29.9 टन सोने का आयात हुआ था जबकि इस साल जून में यह घटकर 8-9 टन ही रह गया। बाम्बे बुलियन एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरश हुंडिया ने बिजनेस भास्कर को बताया कि अभी सोना आयात के आंकड़ों को अंतिम रूप नहीं दिया गया है। लेकिन अनुमान यही है कि जून का आयात 75 फीसदी कम रहेगा। उन्होंने बताया सोने के बढ़ती कीमतों की वजह से सोने के आयात में भारी कमी देखने को मिल रही है। बाजार में खरीदार और निवेशक दोनों की लिवाली हल्की पड़ गई है। मुंबई के जवेरी बाजार के सोना व्यापारियों का कहना है कि सोने की दैनिक बिक्री करीब 80 फीसदी गिर गई है। शादी-ब्याह के मौसम में, जिसमें बड़े पैमाने पर सोने की खरीदारी होती थी, वह खत्म हो चुका है। अब अगले त्यौहारांे की मांग सितंबर व अक्टूबर में आएगी। उम्मीद है कि त्योहारी सीजन में सोने का आयात भी बढ़ने लगेगा। (बिज़नस भास्कर)
चांदी के दाम नए शिखर पर
अंतरराष्ट्रीय बाजार में भाव बढ़ने से घरलू बाजार में चांदी की कीमतें नए रिकार्ड स्तर पर पहुंच गई। दिल्ली सराफा बाजार में सोमवार को चांदी का भाव बढ़कर 30,200 रुपये प्रति किलो के नए शिखर पर पहुंच गया। इससे पहले चांदी ने 21 जून को 30,180 रुपये प्रति किलो का उच्चतम भाव बनाया था। उधर विदेशी बाजार में इस दौरान चांदी 19.08 डॉलर प्रति औंस पर कारोबार करते देखी गई। ऑल इंडिया सराफा एसोसिएशन के अध्यक्ष शील चंद जैन ने बताया कि विदेशी बाजार में चांदी की कीमतें तेज बनी हुई है। पिछले बीस दिनों में चांदी के दाम करीब 9 फीसदी बढ़ चुके हैं। सात जून को विदेशी बाजार में चांदी का भाव 17.50 डॉलर प्रति औंस था जो सोमवार को बढ़कर 19.08 डॉलर प्रति औंस हो गया। इधर, घरेलू बाजार में भी गहने निर्माताओं के साथ औद्योगिक मांग बढ़ने से तेजी को बल मिल रहा है। दिल्ली में इस दौरान चांदी की कीमतों में 5.5 फीसदी की तेजी आई है। सात जून को चांदी का भाव 28,600 रुपये प्रति किलो था जो सोमवार को बढ़कर 30,200 रुपये प्रति किलो के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई। इस तरह तीन सप्ताह के भीतर चांदी के भाव पांच फीसदी से भी ज्यादा बढ़ गए हैं। दिल्ली में सोमवार को सोने की कीमतों में 80 रुपये की तेजी आकर भाव 19,150 रुपये प्रति दस ग्राम हो गए। अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोवार को सोने का भाव 1,255 डॉलर प्रति औंस पर खुला तथा चार डॉलर की तेजी आकर भाव बढ़कर 1,259 डॉलर प्रति औंस हो गया था। लेकिन ऊंचे भावों में निवेशकों के मुनाफावसूली आने से 1,255 डॉलर प्रति औंस पर कारोबार करते देखा गया। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
सोने के कर्ज पर सुहागा
मुंबई June 28, 2010
सोना खरीदने की योजना बना रहे लोगों को इसके बढ़ते दाम के कारण भले ही अपनी योजनाएं टाल दी हों, लेकिन सोना गिरवी रखकर कर्ज देने वाली कंपनियों को इससे काफी मुनाफा हो रहा है। सोना गिरवी रखकर कर्ज देने वाली कंपनियों का काम करने का तरीका बेहद सीधा है। ये कंपनियां सोने के बदले कर्ज देती हैं और सोने का भाव बढ़ा, तो उतने ही सोने पर ये और कर्ज दे देती हैं।सोने के बदले कर्ज देने के मामले में देश की सबसे बड़ी कंपनी मुथूट फाइनैंस के कार्यकारी निदेशक के पी पद्मकुमार ने बताया, 'सोने के दाम में आई तेजी से हमें काफी फायदा मिला है, इससे परिसंपत्ति के बदले दिये जाने वाले कर्ज की रकम अधिक हो गई है। हम हर महीने 500 करोड़ रुपये कर्ज के तौर पर दे रहे हैं। कंपनी 8,900 करोड़ रुपये का कर्ज दे चुकी है। सोने के बदले कर्ज देने वाली एक और कंपनी मण्णापुरम फाइनैंस भी सोने की बढ़ती कीमतों का फायदा उठा रही है। कंपनी के प्रबंधन निदेशक आई उन्नीकृष्णन ने बताया, 'पिछले 3 महीनों में हमने 20 फीसदी अधिक कर्ज दिया है। इसमें से 4-5 फीसदी इजाफा सोने के दाम बढऩे के कारण है और बाकी हमारी शाखाओं की संख्या बढऩे के कारण। उन्होंने कहा, 'ग्राहक सोने के बढ़ते दाम का पूरा फायदा उठा रहे हैं और कंपनी करीब 3,000 करोड़ रुपये के कर्ज दे चुकी है।यूरोपीय देशों में फैले ऋण संकट और वित्तीय बाजार की अस्थिरता के कारण इस साल सोने के दाम 15 फीसदी से भी अधिक बढ़े हैं। इसके अलावा बाजार अस्थिर रहने की आशंका के कारण लोग सोने में निवेश करना सुरक्षित मान रहे हैं। मार्च की शुरुआत से अब तक सोने के दाम 1,995 रुपये प्रति 10 ग्राम बढ़कर 26 जून को 18,830 रुपये प्रति 10 ग्राम हो गए हैं। (बीएस हिंदी)
सोना खरीदने की योजना बना रहे लोगों को इसके बढ़ते दाम के कारण भले ही अपनी योजनाएं टाल दी हों, लेकिन सोना गिरवी रखकर कर्ज देने वाली कंपनियों को इससे काफी मुनाफा हो रहा है। सोना गिरवी रखकर कर्ज देने वाली कंपनियों का काम करने का तरीका बेहद सीधा है। ये कंपनियां सोने के बदले कर्ज देती हैं और सोने का भाव बढ़ा, तो उतने ही सोने पर ये और कर्ज दे देती हैं।सोने के बदले कर्ज देने के मामले में देश की सबसे बड़ी कंपनी मुथूट फाइनैंस के कार्यकारी निदेशक के पी पद्मकुमार ने बताया, 'सोने के दाम में आई तेजी से हमें काफी फायदा मिला है, इससे परिसंपत्ति के बदले दिये जाने वाले कर्ज की रकम अधिक हो गई है। हम हर महीने 500 करोड़ रुपये कर्ज के तौर पर दे रहे हैं। कंपनी 8,900 करोड़ रुपये का कर्ज दे चुकी है। सोने के बदले कर्ज देने वाली एक और कंपनी मण्णापुरम फाइनैंस भी सोने की बढ़ती कीमतों का फायदा उठा रही है। कंपनी के प्रबंधन निदेशक आई उन्नीकृष्णन ने बताया, 'पिछले 3 महीनों में हमने 20 फीसदी अधिक कर्ज दिया है। इसमें से 4-5 फीसदी इजाफा सोने के दाम बढऩे के कारण है और बाकी हमारी शाखाओं की संख्या बढऩे के कारण। उन्होंने कहा, 'ग्राहक सोने के बढ़ते दाम का पूरा फायदा उठा रहे हैं और कंपनी करीब 3,000 करोड़ रुपये के कर्ज दे चुकी है।यूरोपीय देशों में फैले ऋण संकट और वित्तीय बाजार की अस्थिरता के कारण इस साल सोने के दाम 15 फीसदी से भी अधिक बढ़े हैं। इसके अलावा बाजार अस्थिर रहने की आशंका के कारण लोग सोने में निवेश करना सुरक्षित मान रहे हैं। मार्च की शुरुआत से अब तक सोने के दाम 1,995 रुपये प्रति 10 ग्राम बढ़कर 26 जून को 18,830 रुपये प्रति 10 ग्राम हो गए हैं। (बीएस हिंदी)
28 जून 2010
पंजाब में खाद्यान्न भंडारण का संकट
चंडीगढ़ June 25, 2010
एक ओर जहां देश में खाद्यान्न महंगाई दर चिंता का कारण बनी हुई है, वहीं गेहूं का भंडारण भी समस्या की वजह बन गया है।
पंजाब के विभिन्न इलाकों में 120 लाख टन गेहूं गोदामों और खुले आसमान के नीचे पड़ा है, जिससे भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की नींद हराम हो गई है। पंजाब में गेहूं का कारोबार प्रति माह करीब 8 लाख टन है।
इन आंकड़ों के मुताबिक राज्य अगले रबी सीजन तक करीब 50 लाख टन का भंडार खत्म कर सकेगा। उसके बाद भी करीब 70 लाख टन गेहूं बच जाएगा। इससे धान पर भी असर पड़ेगा, क्योंकि खरीद एजेंसियों को धान के भंडारण के लिए गोदाम की जरूरत होगी, क्योंकि खुले चबूतरे पर धान का भंडारण नहीं किया जा सकता, जैसा कि गेहूं के मामले में किया गया।
एफसीआई से जुड़े सूत्रों के मुताबिक राज्य में 71.2 लाख टन भंडारण क्षमता की जरूरत है। निजी कारोबारियों को गोदाम बनाने का काम दिए जाने के लिए टेंडर जारी किए गए हैं, लेकिन निजी क्षेत्र की ओर से बेहतर प्रतिक्रिया नहीं मिली है। एफसीआई के अधिकारियों ने कहा कि वे इस तरह से अतिरिक्त खरीद को लेकर तैयार नहीं थे, क्योंकि 2 साल पहले तक स्थिति संकटपूर्ण नहीं थी।
उन्होंने कहा कि राज्य में अतिरिक्त गेहूं करीब 74.8 लाख टन था, लेकिन यह मात्रा बढ़कर 161 लाख टन हो गई, क्योंकि पिछले साल का भी 74.8 लाख टन गेहूं बचा रह गया। इस साल कुल गेहूं 178 लाख टन हो गया है। न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी प्राथमिक वजह है, जिसकी वजह से बाजार में बड़ी मात्रा में आवक हुई।
योजना आयोग ने भी राज्य सरकार को चेतावनी दी है कि उसे गेहूं-चावल की बुआई का चक्र तोड़ना चाहिए, क्योंकि वहां पर भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो रही है और राज्य का जल स्तर भी बहुत नीचे जा रहा है।
पंजाब में गेहूं और चावल को मिलाकर कुल भंडारण क्षमता 170 लाख टन है। साथ ही 65 लाख टन का भंडारण खुले चबूतरे पर किया जा सकता है। अभी भंडारण बढ़ाने की अनुमानित जरूरत 220 लाख टन की है। ऐसी स्थिति में किसी भी हाल में 50 लाख टन अनाज खुले में पड़ा रहेगा।
योजना आयोग के सदस्य अभिजीत सेन के मुताबिक खाद्यान्न के भंडारण को लेकर समस्या है, लेकिन स्थिति अभी खतरनाक स्तर पर नहीं है। उन्होंने कहा- पंजाब और हरियाणा में भंडारण की क्षमता क म है, लेकिन इस समय जैसी स्थिति पहले नहीं आई थी।
बहरहाल इस संकट का निकट भविष्य में हल निकलता नहीं नजर आ रहा है। पंजाब में जमीन की कीमत बहुत ज्यादा है, जिसकी वजह से निजी क्षेत्र के कारोबारी गोदाम बनाने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। खाद्य निगम ऐसी स्थिति में निजी क्षेत्र से कुछ खास उम्मीद नहीं कर रहा है। यहां तक कि एफसीआई के प्रमुख शिराज हुसैन के उद्योग जगत के प्रतिनिधियों से बातचीत के बाद भी समस्या का कोई समाधान नहीं निकल सका है।
अर्थशास्त्री और स्थानीय लोग आरोप लगाते हैं कि खाद्यान्न खरीद एजेंसियां ही इस कुप्रबंधन के लिए जिम्मेदार हैं, जिसके चलते हजारों की संख्या में बच्चे कुपोषण का शिकार हैं और समय से वितरण न होने की वजह से कई टन अनाज सड़ जाता है।
जब खाद्यान्न के वितरण के बारे में पूछा गया तो एफसीआई से जुड़े सूत्रों ने कहा कि निगम एक खरीद एजेंसी है और इसकी जिम्मेदारी रखरखाव और वितरण की है। उसे भारत सरकार से दिशानिर्देश मिलते हैं, जिसके मुताबिक काम होता है।
उन्होंने कहा कि कृषि मंत्रालय, उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण के बारे में फैसले करते हैं और सरकारी एजेंसियों द्वारा खरीदे गए अनाज का वितरण उसी के मुताबिक होता है। (बीएस हिंदी)
एक ओर जहां देश में खाद्यान्न महंगाई दर चिंता का कारण बनी हुई है, वहीं गेहूं का भंडारण भी समस्या की वजह बन गया है।
पंजाब के विभिन्न इलाकों में 120 लाख टन गेहूं गोदामों और खुले आसमान के नीचे पड़ा है, जिससे भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की नींद हराम हो गई है। पंजाब में गेहूं का कारोबार प्रति माह करीब 8 लाख टन है।
इन आंकड़ों के मुताबिक राज्य अगले रबी सीजन तक करीब 50 लाख टन का भंडार खत्म कर सकेगा। उसके बाद भी करीब 70 लाख टन गेहूं बच जाएगा। इससे धान पर भी असर पड़ेगा, क्योंकि खरीद एजेंसियों को धान के भंडारण के लिए गोदाम की जरूरत होगी, क्योंकि खुले चबूतरे पर धान का भंडारण नहीं किया जा सकता, जैसा कि गेहूं के मामले में किया गया।
एफसीआई से जुड़े सूत्रों के मुताबिक राज्य में 71.2 लाख टन भंडारण क्षमता की जरूरत है। निजी कारोबारियों को गोदाम बनाने का काम दिए जाने के लिए टेंडर जारी किए गए हैं, लेकिन निजी क्षेत्र की ओर से बेहतर प्रतिक्रिया नहीं मिली है। एफसीआई के अधिकारियों ने कहा कि वे इस तरह से अतिरिक्त खरीद को लेकर तैयार नहीं थे, क्योंकि 2 साल पहले तक स्थिति संकटपूर्ण नहीं थी।
उन्होंने कहा कि राज्य में अतिरिक्त गेहूं करीब 74.8 लाख टन था, लेकिन यह मात्रा बढ़कर 161 लाख टन हो गई, क्योंकि पिछले साल का भी 74.8 लाख टन गेहूं बचा रह गया। इस साल कुल गेहूं 178 लाख टन हो गया है। न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी प्राथमिक वजह है, जिसकी वजह से बाजार में बड़ी मात्रा में आवक हुई।
योजना आयोग ने भी राज्य सरकार को चेतावनी दी है कि उसे गेहूं-चावल की बुआई का चक्र तोड़ना चाहिए, क्योंकि वहां पर भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो रही है और राज्य का जल स्तर भी बहुत नीचे जा रहा है।
पंजाब में गेहूं और चावल को मिलाकर कुल भंडारण क्षमता 170 लाख टन है। साथ ही 65 लाख टन का भंडारण खुले चबूतरे पर किया जा सकता है। अभी भंडारण बढ़ाने की अनुमानित जरूरत 220 लाख टन की है। ऐसी स्थिति में किसी भी हाल में 50 लाख टन अनाज खुले में पड़ा रहेगा।
योजना आयोग के सदस्य अभिजीत सेन के मुताबिक खाद्यान्न के भंडारण को लेकर समस्या है, लेकिन स्थिति अभी खतरनाक स्तर पर नहीं है। उन्होंने कहा- पंजाब और हरियाणा में भंडारण की क्षमता क म है, लेकिन इस समय जैसी स्थिति पहले नहीं आई थी।
बहरहाल इस संकट का निकट भविष्य में हल निकलता नहीं नजर आ रहा है। पंजाब में जमीन की कीमत बहुत ज्यादा है, जिसकी वजह से निजी क्षेत्र के कारोबारी गोदाम बनाने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। खाद्य निगम ऐसी स्थिति में निजी क्षेत्र से कुछ खास उम्मीद नहीं कर रहा है। यहां तक कि एफसीआई के प्रमुख शिराज हुसैन के उद्योग जगत के प्रतिनिधियों से बातचीत के बाद भी समस्या का कोई समाधान नहीं निकल सका है।
अर्थशास्त्री और स्थानीय लोग आरोप लगाते हैं कि खाद्यान्न खरीद एजेंसियां ही इस कुप्रबंधन के लिए जिम्मेदार हैं, जिसके चलते हजारों की संख्या में बच्चे कुपोषण का शिकार हैं और समय से वितरण न होने की वजह से कई टन अनाज सड़ जाता है।
जब खाद्यान्न के वितरण के बारे में पूछा गया तो एफसीआई से जुड़े सूत्रों ने कहा कि निगम एक खरीद एजेंसी है और इसकी जिम्मेदारी रखरखाव और वितरण की है। उसे भारत सरकार से दिशानिर्देश मिलते हैं, जिसके मुताबिक काम होता है।
उन्होंने कहा कि कृषि मंत्रालय, उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण के बारे में फैसले करते हैं और सरकारी एजेंसियों द्वारा खरीदे गए अनाज का वितरण उसी के मुताबिक होता है। (बीएस हिंदी)
इस हफ्ते सोना होगा सर्वोच्च स्तर पर!
मुंबई June 27, 2010
न्यूयॉर्क मर्केंटाइल एक्सचेंज, लंदन में शुक्रवार को सोने का वायदा भाव नए रिकॉर्ड पर बंद हुआ। प्रमुख देशों की अर्थव्यवस्थाओं में अफरातफरी के माहौल के बीच निवेशकों ने सोने का रुख किया है। सोने का अगस्त वायदा 1256।20 डॉलर प्रति औंस पर बंद हुआ, जबकि यह इंट्रा डे रिकॉर्ड में 1259.50 डॉलर प्रति औंस पर पहुंच गया। शुक्रवार को बाजार बंद होने से पहले सोने में थोड़ी सुस्ती दिखी और लगातार चार सप्ताह की तेजी के बाद सप्ताहांत में 0.2 प्रतिशत की मामूली गिरावट पर बंद हुआ। अभी 18 डॉलर प्रति कांट्रैक्ट के प्रीमियम पर सोने की खरीदारी 1275 डॉलर पर हुई, जिससे संकेत मिलता है कि सोना 1300 डॉलर प्रति औंस के स्तर को छू सकता है। सोने को 1250 डॉलर के स्तर पर मजबूत समर्थन मिला, जिससे अनुमान लगता है कि निकट भविष्य में सोने को और समर्थन मिलेगा। टाइम-प्राइस अपार्चुनिटी चार्ट से संकेत मिलता है कि सोने की कीमतें निकट भविष्य में 1270 डॉलर प्रति औंस के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच सकती हैं। कमोडिटीज फ्यूचर ट्रेडिंग कमीशन (सीएफटीसी) द्वारा प्रकाशित कमिटमेंट आफ ट्रेडर्स रिपोर्ट (सीओटी)में कहा गया है कि हर मंगलवार को बाजार के ओपन इंट्रेस्ट में प्रमुख 20 या उससे ज्यादा कारोबारियों से 22 जून को समाप्त सप्ताह में खरीद की स्थिति का पता चलता है। सीएफटीटी गोल्ड डाटा में वायदा और एफऐंडओ सौदों में धन प्रबंधन में लॉन्ग पोजिशन्स और उत्पादकों, उपभोक्ताओं और स्वैप डीलर्स की शॉर्ट पोजिशंन्स के संकेत मिलते हैं। शिकागो की फ्यूचर पाथ ट्रेडिंग के सोने के ब्रोकर फ्रैंक लेश ने कहा- सोना रिकॉर्ड की ओर है। कीमतों में अचानक बढ़ोतरी की जगह, इसमें धीरे-धीरे और बेहतर तरीके से बढ़त देखी जा रही है। उन्होंने कहा कि हम अब भी उम्मीद कर रहे हैं कि नजदीकी कारोबार में सोना 1300 डॉलर प्रति औंस पर पहुंच सकता है। यूरोप की वित्तीय स्थिति के साथ साथ आॢथक सुधार और तमाम तत्व इस तरफ संकेत दे रहे हैं। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज आफ इंडिया (एमसीएक्स) में सोने का जुलाई माह का वायदा सौदा शनिवार 26 जून को 18726 रुपये प्रति 10 ग्राम पर बंद हुआ। 25 और 26 जून को जुलाई वायदा की खरीदारी से संकेत मिलता है कि निकट भविष्य में सोने की कीमतें 18,800 रुपये प्रति 10 ग्राम पर पहुंच सकती हैं। (बीएस हिंदी)
न्यूयॉर्क मर्केंटाइल एक्सचेंज, लंदन में शुक्रवार को सोने का वायदा भाव नए रिकॉर्ड पर बंद हुआ। प्रमुख देशों की अर्थव्यवस्थाओं में अफरातफरी के माहौल के बीच निवेशकों ने सोने का रुख किया है। सोने का अगस्त वायदा 1256।20 डॉलर प्रति औंस पर बंद हुआ, जबकि यह इंट्रा डे रिकॉर्ड में 1259.50 डॉलर प्रति औंस पर पहुंच गया। शुक्रवार को बाजार बंद होने से पहले सोने में थोड़ी सुस्ती दिखी और लगातार चार सप्ताह की तेजी के बाद सप्ताहांत में 0.2 प्रतिशत की मामूली गिरावट पर बंद हुआ। अभी 18 डॉलर प्रति कांट्रैक्ट के प्रीमियम पर सोने की खरीदारी 1275 डॉलर पर हुई, जिससे संकेत मिलता है कि सोना 1300 डॉलर प्रति औंस के स्तर को छू सकता है। सोने को 1250 डॉलर के स्तर पर मजबूत समर्थन मिला, जिससे अनुमान लगता है कि निकट भविष्य में सोने को और समर्थन मिलेगा। टाइम-प्राइस अपार्चुनिटी चार्ट से संकेत मिलता है कि सोने की कीमतें निकट भविष्य में 1270 डॉलर प्रति औंस के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच सकती हैं। कमोडिटीज फ्यूचर ट्रेडिंग कमीशन (सीएफटीसी) द्वारा प्रकाशित कमिटमेंट आफ ट्रेडर्स रिपोर्ट (सीओटी)में कहा गया है कि हर मंगलवार को बाजार के ओपन इंट्रेस्ट में प्रमुख 20 या उससे ज्यादा कारोबारियों से 22 जून को समाप्त सप्ताह में खरीद की स्थिति का पता चलता है। सीएफटीटी गोल्ड डाटा में वायदा और एफऐंडओ सौदों में धन प्रबंधन में लॉन्ग पोजिशन्स और उत्पादकों, उपभोक्ताओं और स्वैप डीलर्स की शॉर्ट पोजिशंन्स के संकेत मिलते हैं। शिकागो की फ्यूचर पाथ ट्रेडिंग के सोने के ब्रोकर फ्रैंक लेश ने कहा- सोना रिकॉर्ड की ओर है। कीमतों में अचानक बढ़ोतरी की जगह, इसमें धीरे-धीरे और बेहतर तरीके से बढ़त देखी जा रही है। उन्होंने कहा कि हम अब भी उम्मीद कर रहे हैं कि नजदीकी कारोबार में सोना 1300 डॉलर प्रति औंस पर पहुंच सकता है। यूरोप की वित्तीय स्थिति के साथ साथ आॢथक सुधार और तमाम तत्व इस तरफ संकेत दे रहे हैं। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज आफ इंडिया (एमसीएक्स) में सोने का जुलाई माह का वायदा सौदा शनिवार 26 जून को 18726 रुपये प्रति 10 ग्राम पर बंद हुआ। 25 और 26 जून को जुलाई वायदा की खरीदारी से संकेत मिलता है कि निकट भविष्य में सोने की कीमतें 18,800 रुपये प्रति 10 ग्राम पर पहुंच सकती हैं। (बीएस हिंदी)
चीनी मिलों के मसले पर गेंद अब केंद्र के पाले में
मुंबई June 27, 2010
चीनी मिलों के समर्थन में महाराष्ट्र सरकार ने मामले को केंद्र सरकार तक पहुंचाने का फैसला किया है। सरकार ने चीनी के आयात पर 60 प्रतिशत शुल्क लगाए जाने, आयातित चीनी में से 20 प्रतिशत लेवी चीनी के नियम के तहत लाए जाने, केंद्र सरकार द्वारा दी जाने वाली लेवी चीनी की कीमतों में बढ़ोतरी और लेवी कोटे को 20 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत किए जाने की मांग करेगी। महाराष्ट्र देश का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक राज्य है और यहां कुल उत्पादन का 40 प्रतिशत उत्पादन होता है। राज्य सरकार के अधिकारियों ने कहा कि इस मसले को केंद्र सरकार के सामने प्राथमिकता के आधार पर रखे जाने का फैसला किया गया है। चीनी की कीमतों में तेज गिरावट की वजह से आयात शुल्क और लेवी चीनी की कीमतों में बढ़ोतरी किए जाने की खबरें आ रही हैं। जनवरी की शुरुआत में जहां चीनी की कीमतें 40 रुपये प्रति किलो थीं, अब थोक बाजार में दाम गिरकर 23 रुपये प्रति किलो रह गए हैं। इससे चीनी मिलों का मुनाफा प्रभावित हुआ है। इस सिलसिले में तमाम बातचीत के बावजूद केंद्र सरकार की ओर से कोई अधिसूचना नहीं जारी हुई है। पिछले गुरुवार को महाराष्ट्र सरकार ने राज्य की चीनी मिलों के प्रतिनिधियों से मुलाकात की थी। चीनी की कीमतों में गिरावट की वजह से चीनी मिलें संकट में आ गई हैं, पहली बार ऐसा हो रहा है जब कोई राज्य सरकार चीनी उद्योग की समस्या हल करने के लिए सामने आई है और मिलों के मामले को केंद्र सरकार के सामने रखने का फैसला किया है। चीनी की कीमतों में तेज गिरावट से मिलों के घाटे में आने के मसले पर राज्य की चीनी मिलों के साथ महाराष्ट के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण की अध्यक्षता में बैठक हुई। इसमें मिल मालिकों ने चीनी के आयात पर 60 प्रतिशत शुल्क लगाए जाने के पक्ष में दलील दी। मिलों ने चीनी क्षेत्र को सरकार के हस्तक्षेप से मुक्त किए जाने का भी मसला उठाया। साथ ही लेवी चीनी का प्रतिशत कम किए जाने और लेवी चीनी की कीमतों में बढ़ोतरी किए जाने के लिए केंद्र सरकार के संबंधित मंत्रालय के सामने मिलों का पक्ष रखने का अनुरोध किया गया। बैठक में मिलों ने 10 साल के कर्ज पर 5 साल का अधिस्थगन दिए जाने की भी मांग की, जैसा कि केंद्र सरकार ने 2006-07 में किया था। अधिस्थगन की मांग चीनी उद्योग को दिए गए 2500 करोड़ रुपये के कर्ज की किस्त लिए जाने पर की गई है। राज्य सरकार के एक अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा- राज्य की मिलें इस सयम मुनाफे की कमी की अनोखी समस्या में फंसी हैं। चीनी की कीमतों में अचानक गिरावट से मुनाफा घटा है और इस समय तो स्थिति यह है कि उत्पादन लागत से 400 रुपये प्रति क्विंटल कम दाम मिल रहे हैं। इसे देखते हुए चीनी मिलों के संगठन फेडरेशन आफ कोआपरेटिव शुगर फैक्टरीज इन महाराष्ट्र ने कर्ज के भुगतान पर अधिस्थगन का तर्क दृढ़तापूर्वक रखा है, जैसा कि केंद्र सरकार ने 2006-07 में किया था। नाबार्ड और अन्य वित्तीय संस्थानों से 2500 करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज लिया गया है। मिलों का तर्क है कि अगर अधिस्थगन की अनुमति नहीं मिलती तो मिलों की वित्तीय हालत पर बहुत बुरा असर होगा। अधिकारी ने कहा कि मिलों द्वारा चीन खरीद कर में छूट दिए जाने की मांग राज्य सरकार ने खारिज कर दी है। (बीएस हिंदी)
चीनी मिलों के समर्थन में महाराष्ट्र सरकार ने मामले को केंद्र सरकार तक पहुंचाने का फैसला किया है। सरकार ने चीनी के आयात पर 60 प्रतिशत शुल्क लगाए जाने, आयातित चीनी में से 20 प्रतिशत लेवी चीनी के नियम के तहत लाए जाने, केंद्र सरकार द्वारा दी जाने वाली लेवी चीनी की कीमतों में बढ़ोतरी और लेवी कोटे को 20 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत किए जाने की मांग करेगी। महाराष्ट्र देश का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक राज्य है और यहां कुल उत्पादन का 40 प्रतिशत उत्पादन होता है। राज्य सरकार के अधिकारियों ने कहा कि इस मसले को केंद्र सरकार के सामने प्राथमिकता के आधार पर रखे जाने का फैसला किया गया है। चीनी की कीमतों में तेज गिरावट की वजह से आयात शुल्क और लेवी चीनी की कीमतों में बढ़ोतरी किए जाने की खबरें आ रही हैं। जनवरी की शुरुआत में जहां चीनी की कीमतें 40 रुपये प्रति किलो थीं, अब थोक बाजार में दाम गिरकर 23 रुपये प्रति किलो रह गए हैं। इससे चीनी मिलों का मुनाफा प्रभावित हुआ है। इस सिलसिले में तमाम बातचीत के बावजूद केंद्र सरकार की ओर से कोई अधिसूचना नहीं जारी हुई है। पिछले गुरुवार को महाराष्ट्र सरकार ने राज्य की चीनी मिलों के प्रतिनिधियों से मुलाकात की थी। चीनी की कीमतों में गिरावट की वजह से चीनी मिलें संकट में आ गई हैं, पहली बार ऐसा हो रहा है जब कोई राज्य सरकार चीनी उद्योग की समस्या हल करने के लिए सामने आई है और मिलों के मामले को केंद्र सरकार के सामने रखने का फैसला किया है। चीनी की कीमतों में तेज गिरावट से मिलों के घाटे में आने के मसले पर राज्य की चीनी मिलों के साथ महाराष्ट के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण की अध्यक्षता में बैठक हुई। इसमें मिल मालिकों ने चीनी के आयात पर 60 प्रतिशत शुल्क लगाए जाने के पक्ष में दलील दी। मिलों ने चीनी क्षेत्र को सरकार के हस्तक्षेप से मुक्त किए जाने का भी मसला उठाया। साथ ही लेवी चीनी का प्रतिशत कम किए जाने और लेवी चीनी की कीमतों में बढ़ोतरी किए जाने के लिए केंद्र सरकार के संबंधित मंत्रालय के सामने मिलों का पक्ष रखने का अनुरोध किया गया। बैठक में मिलों ने 10 साल के कर्ज पर 5 साल का अधिस्थगन दिए जाने की भी मांग की, जैसा कि केंद्र सरकार ने 2006-07 में किया था। अधिस्थगन की मांग चीनी उद्योग को दिए गए 2500 करोड़ रुपये के कर्ज की किस्त लिए जाने पर की गई है। राज्य सरकार के एक अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा- राज्य की मिलें इस सयम मुनाफे की कमी की अनोखी समस्या में फंसी हैं। चीनी की कीमतों में अचानक गिरावट से मुनाफा घटा है और इस समय तो स्थिति यह है कि उत्पादन लागत से 400 रुपये प्रति क्विंटल कम दाम मिल रहे हैं। इसे देखते हुए चीनी मिलों के संगठन फेडरेशन आफ कोआपरेटिव शुगर फैक्टरीज इन महाराष्ट्र ने कर्ज के भुगतान पर अधिस्थगन का तर्क दृढ़तापूर्वक रखा है, जैसा कि केंद्र सरकार ने 2006-07 में किया था। नाबार्ड और अन्य वित्तीय संस्थानों से 2500 करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज लिया गया है। मिलों का तर्क है कि अगर अधिस्थगन की अनुमति नहीं मिलती तो मिलों की वित्तीय हालत पर बहुत बुरा असर होगा। अधिकारी ने कहा कि मिलों द्वारा चीन खरीद कर में छूट दिए जाने की मांग राज्य सरकार ने खारिज कर दी है। (बीएस हिंदी)
घरेलू बाजार में कॉफी की मांग तेज
बेंगलुरु June 27, 2010
भारत में कॉफी की घरेलू मांग बनी हुई है। हालांकि यूरोप के कर्ज संकट के चलते विदेश से खरीदारी में कमी आई है। घरेलू मांग ज्यादा होने की वजह से रोबस्टा किस्म की कॉफी की कीमतों में मजबूती बनी हुई है और कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार के बराबर ही चल रही हैं।भारतीय कॉफी बोर्ड के कृषि अर्थशास्त्री बाबू रेड्ड़ी ने कहा- भारत से होने वाले निर्यात कारोबार में यूरोप की बड़ी हिस्सेदारी है। कर्ज संकट की वजह से बाजार में बहुत कम खरीदार बचे हैं। बहरहाल घरेलू मांग बनी हुई है, साथ ही भविष्य में भी मांग और कीमतों में मजबूती रहने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में उत्तर भारत में कॉफी की मांग में 40 से 45 प्रतिशत की तेजी आई है। वहीं दक्षिण भारत के परंपरागत बाजारों में भी 5 प्रतिशत की तेजी देखी गई है। हालांकि उन्होंने कहा कि यूरोप में अर्थव्यवस्था में सुधार के साथ ही निर्यात पहले जैसी स्थिति में आ जाएगा। कॉफी बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक 1 अक्टूबर से शुरू हुए कॉफी वर्ष में इस साल करीब 2,89,000 टन कॉफी उत्पादन की उम्मीद है। देश में कुल उत्पादन का दो तिहाई हिस्सा निर्यात होता है। बहरहाल कॉफी बोर्ड के अधिकारियों का कहना है कि बोर्ड जल्द ही उत्पादन के पुनरीक्षित आंकड़े जारी करेगा, क्योंकि इसके ज्यादा उत्पादन की उम्मीद है। रेड्डी ने कहा- कॉफी उत्पादकों की ओर से मिल रही सूचना के मुताबिक इस साल फसल अच्छी रहने की उम्मीद है। इसलिए हम उम्मीदत करते हैं कि उत्पादन ज्यादा होगा, हालांकि हमने अभी पुनरीक्षित अनुमान जारी नहीं किया है। बहरहाल, इस महीने न्यूयॉर्क में कॉफी वायदा में 17 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है और इसकी कीमतें 27 माह के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई हैं। पैराडिगम कमोडिटीज के निदेशक बीरेन वकील ने कहा- अभी कॉफी बाजार में तेजी का रुख है और उम्मीद की जा रही है कि निकट भविष्य में कीमतें 10-25 प्रतिशत और बढ़ सकती हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान तेजी की वजह डॉलर का कमजोर होना और ब्याज दरें कम होना है, जिसकी वजह से फंड हाउसों ने जिंसों में अपना निवेश बढ़ा दिया है। (बीएस हिंदी)
भारत में कॉफी की घरेलू मांग बनी हुई है। हालांकि यूरोप के कर्ज संकट के चलते विदेश से खरीदारी में कमी आई है। घरेलू मांग ज्यादा होने की वजह से रोबस्टा किस्म की कॉफी की कीमतों में मजबूती बनी हुई है और कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार के बराबर ही चल रही हैं।भारतीय कॉफी बोर्ड के कृषि अर्थशास्त्री बाबू रेड्ड़ी ने कहा- भारत से होने वाले निर्यात कारोबार में यूरोप की बड़ी हिस्सेदारी है। कर्ज संकट की वजह से बाजार में बहुत कम खरीदार बचे हैं। बहरहाल घरेलू मांग बनी हुई है, साथ ही भविष्य में भी मांग और कीमतों में मजबूती रहने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में उत्तर भारत में कॉफी की मांग में 40 से 45 प्रतिशत की तेजी आई है। वहीं दक्षिण भारत के परंपरागत बाजारों में भी 5 प्रतिशत की तेजी देखी गई है। हालांकि उन्होंने कहा कि यूरोप में अर्थव्यवस्था में सुधार के साथ ही निर्यात पहले जैसी स्थिति में आ जाएगा। कॉफी बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक 1 अक्टूबर से शुरू हुए कॉफी वर्ष में इस साल करीब 2,89,000 टन कॉफी उत्पादन की उम्मीद है। देश में कुल उत्पादन का दो तिहाई हिस्सा निर्यात होता है। बहरहाल कॉफी बोर्ड के अधिकारियों का कहना है कि बोर्ड जल्द ही उत्पादन के पुनरीक्षित आंकड़े जारी करेगा, क्योंकि इसके ज्यादा उत्पादन की उम्मीद है। रेड्डी ने कहा- कॉफी उत्पादकों की ओर से मिल रही सूचना के मुताबिक इस साल फसल अच्छी रहने की उम्मीद है। इसलिए हम उम्मीदत करते हैं कि उत्पादन ज्यादा होगा, हालांकि हमने अभी पुनरीक्षित अनुमान जारी नहीं किया है। बहरहाल, इस महीने न्यूयॉर्क में कॉफी वायदा में 17 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है और इसकी कीमतें 27 माह के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई हैं। पैराडिगम कमोडिटीज के निदेशक बीरेन वकील ने कहा- अभी कॉफी बाजार में तेजी का रुख है और उम्मीद की जा रही है कि निकट भविष्य में कीमतें 10-25 प्रतिशत और बढ़ सकती हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान तेजी की वजह डॉलर का कमजोर होना और ब्याज दरें कम होना है, जिसकी वजह से फंड हाउसों ने जिंसों में अपना निवेश बढ़ा दिया है। (बीएस हिंदी)
ई-बोली की व्यवस्था पूरी नहीं
नई दिल्ली June 27, 2010
एशिया की सबसे बड़ी फल एवं सब्जी मंडी आजादपुर में इलेक्ट्रॉनिक बोली (ई-बोली) की व्यवस्था अभी तक पूरी नहीं हो पाई है। यह व्यवस्था दिल्ली कृषि विपणन बोर्ड (डीएएमबी) की मंडी के कंप्यूटरीकरण का हिस्सा है। इस व्यवस्था को लागू करने का मकसद बोली प्रक्रिया में पारदर्शिता लाना है। वर्तमान में अपनाई जा रही बोली प्रक्रिया के तहत मंडी में आढ़ती और खरीदार रूमाल के अंदर हाथ डालकर फल और सब्जियों के दाम तय करते है। इस प्रक्रिया में बेइमानी होने की शिकायतें आने लगी हैं।इस बारे में कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) आजादपुर के सचिव राजकुमार का कहना है कि इस व्यवस्था के लागू होने में अभी और समय लगेगा। देरी के पीछे कारण के बारे में राजकुमार ने कुछ नहीं बताया। डीएएमबी के चैयरमेन ब्रह्मï यादव ने कहा कि मंडी को आधुनिक बनाने के लिए मंडी में कंप्यूटरीकरण और ई-नीलामी की व्यवस्था की जानी है। इस योजना में हो रही देरी के बारे में यादव का कहना है कि सॉफ्टवेयर का काम पूरा हो चुका है। जल्द ही उपकरणों की खरीद कर ली जाएगी। इस योजना पर करीब 10-12 करोड़ रुपये खर्च किए जाने हैं। फल कारोबारी राजकुमार भाटिया ने बताया कि बोर्ड और मंडी प्रशासन ने जमीनी हकीकत जाने बिना तीन-चार वर्ष पहले इलेक्ट्रॉनिक- बोली की योजना बनाई थी, लेकिन यह अभी तक पूरी नहीं हो पाई । इस व्यवस्था में हो रही देरी को देखते हुए इसके पूरा होने की उम्मीद कम है।कंप्यूटरीकरण की व्यवस्था होने के बाद मंडी में वाहनों के आवागमन, जिंसों की आपूर्ति के आंकड़े इकट्ठा करने में आसानी होगी। ऐसा होने से कार्यपद्घति में अधिक पारदर्शिता आएगी। मंडी में रोजाना छोटे व बड़े करीब 5000 वाहनों की आवाजाही होती है। यहां 118 जिंसों का कारोबार किया जाता है। 4100 कमीशन एजेंट व थोक बिक्रेता है। इसके अलावा मंडी में 438 बड़ी और 836 छोटी दुकाने है। वित्त वर्ष 2009-2010 के दौरान मंडी प्रशासन ने मार्केट फीस के रूप में 55।23 करोड़ रुपये वसूले है। वित्त वर्ष 2008-2009 में करीब 46 करोड़ रुपये वसूले गए थे। (बीएस हिंदी)
एशिया की सबसे बड़ी फल एवं सब्जी मंडी आजादपुर में इलेक्ट्रॉनिक बोली (ई-बोली) की व्यवस्था अभी तक पूरी नहीं हो पाई है। यह व्यवस्था दिल्ली कृषि विपणन बोर्ड (डीएएमबी) की मंडी के कंप्यूटरीकरण का हिस्सा है। इस व्यवस्था को लागू करने का मकसद बोली प्रक्रिया में पारदर्शिता लाना है। वर्तमान में अपनाई जा रही बोली प्रक्रिया के तहत मंडी में आढ़ती और खरीदार रूमाल के अंदर हाथ डालकर फल और सब्जियों के दाम तय करते है। इस प्रक्रिया में बेइमानी होने की शिकायतें आने लगी हैं।इस बारे में कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) आजादपुर के सचिव राजकुमार का कहना है कि इस व्यवस्था के लागू होने में अभी और समय लगेगा। देरी के पीछे कारण के बारे में राजकुमार ने कुछ नहीं बताया। डीएएमबी के चैयरमेन ब्रह्मï यादव ने कहा कि मंडी को आधुनिक बनाने के लिए मंडी में कंप्यूटरीकरण और ई-नीलामी की व्यवस्था की जानी है। इस योजना में हो रही देरी के बारे में यादव का कहना है कि सॉफ्टवेयर का काम पूरा हो चुका है। जल्द ही उपकरणों की खरीद कर ली जाएगी। इस योजना पर करीब 10-12 करोड़ रुपये खर्च किए जाने हैं। फल कारोबारी राजकुमार भाटिया ने बताया कि बोर्ड और मंडी प्रशासन ने जमीनी हकीकत जाने बिना तीन-चार वर्ष पहले इलेक्ट्रॉनिक- बोली की योजना बनाई थी, लेकिन यह अभी तक पूरी नहीं हो पाई । इस व्यवस्था में हो रही देरी को देखते हुए इसके पूरा होने की उम्मीद कम है।कंप्यूटरीकरण की व्यवस्था होने के बाद मंडी में वाहनों के आवागमन, जिंसों की आपूर्ति के आंकड़े इकट्ठा करने में आसानी होगी। ऐसा होने से कार्यपद्घति में अधिक पारदर्शिता आएगी। मंडी में रोजाना छोटे व बड़े करीब 5000 वाहनों की आवाजाही होती है। यहां 118 जिंसों का कारोबार किया जाता है। 4100 कमीशन एजेंट व थोक बिक्रेता है। इसके अलावा मंडी में 438 बड़ी और 836 छोटी दुकाने है। वित्त वर्ष 2009-2010 के दौरान मंडी प्रशासन ने मार्केट फीस के रूप में 55।23 करोड़ रुपये वसूले है। वित्त वर्ष 2008-2009 में करीब 46 करोड़ रुपये वसूले गए थे। (बीएस हिंदी)
जनता की जेब पर डीजल की मार
केंद्र सरकार द्वारा पेट्रोल और डीजल के मूल्यों में की गई बढ़ोतरी का असर खाद्यान्न की कीमतों पर भी पड़ने लगा है। कारोबारी दलहन, खाद्य तेलों और सब्जियों की कीमतों में पांच से लेकर दस फीसदी तक की बढ़ोतरी करने जा रहे हैं। रोजमर्रा उपभोग की वस्तुएं भी 5 फीसदी तक महंगी होने वाली हैं। फल, दूध, स्टील और सीमेंट के दाम भी इससे अछूते नहीं रहेंगे। ऐसे में दलहन तथा सब्जियों की आसमान छूती कीमतों से पहले से ही परशान आम उपभोक्ता की जेब अब और ढीली हो जाएगी।मालूम हो कि सरकार ने डीजल की कीमत में दो रुपये, पेट्रोल की कीमत में 3।50 रुपये और केरोसीन की कीमत में तीन रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी की है। फेडरशन ऑफ ट्रेडर्स एसोसिएशन दिल्ली के सचिव हेमंत गुप्ता ने बताया कि पेट्रोल, डीजल और केरोसीन की कीमतों में बढ़ोतरी का सीधा असर आम आदमी पर पड़ता है। दरअसल, पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी से माल भाड़ा बढ़ गया है। इससे खाद्य तेल, दलहन और सब्जियों की कीमतों में पांच से लेकर दस फीसदी तक की बढ़ोतरी तय है। एक तरफ तो सरकार आम आदमी को राहत देने की बात करती है, वहीं दूसरी तरफ वह अकेले चालू वर्ष में ही तीन बार पेट्रो उत्पादों के दाम बढ़ा चुकी है। आजादपुर मंडी के थोक कारोबारी पी एम शर्मा ने बताया कि बारिश न होने से सब्जियों के दाम पहले से ही बढ़े हुए थे। अब सरकार ने पेट्रोलियम उत्पादों के दाम बढ़ा दिए हैं जिसका सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ेगा। हरी सब्जियां इस समय फुटकर में 30-40 रुपये प्रति किलो की दर से बिक रही हंै।पड़ोसी राज्यों हरियाणा, पंजाब, हिमाचल और उत्तर प्रदेश से आ रही गाड़ियों ने शनिवार को ही भाड़े में बढ़ोतरी कर दी है। दिल्ली के दलहन कारोबारी दुर्गा प्रसाद ने बताया कि राजधानी में दलहनों की आवक महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान से होती है। ट्रांसपोर्ट कपंनियों ने भाड़े सात से दस फीसदी तक बढ़ा दिए हैं। इस समय उपभोक्ताओं को उड़द दाल के लिए 70-80 रुपये और मूंग दाल के लिए 100-108 रुपये प्रति किलो चुकाने पड़ रहे हैं। आगामी दिनों में इनके दाम और भी बढ़ जाएंगे। पंजाब और हरियाणा के ट्रक ऑपरटरांे ने भी माल भाड़े मंे 10 फीसदी बढ़ोतरी कर दी है। यहां के व्यापारी और उद्योगपति बढ़े माल भाड़े का असर किराना वस्तुओं,फल, सब्जी और दूध के अलावा स्टील, सीमेंट और वाहनों तक की कीमतों में भी इजाफे के रूप में देख रहे हैं। चंडीगढ़ के थोक किराना व्यापारी रविप्रकाश कांसल कहते हैं कि खेतांे से लेकर मंडी और थोक व्यापारी तक पंहुचते-पहुंचते किराना वस्तुआंे पर तीन-चार दफा माल भाड़ा लग जाता है। माल जितनी अधिक दूरी तय करके व्यापारी तक पहुंचेगा, स्वाभाविक है उस पर भाड़े का खर्च उतना ही बढ़ जाएगा। किराना वस्तुओं के दाम 4 से 5 फीसदी बढ़ने की संभावना है। सीमेंट और स्टील के कारोबारी सतभूषण मंगला का कहना है कि बढ़े माल भाड़े के कारण चंडीगढ़ में मंडीगोबिंदगढ़ से आने वाले स्टील और रोपड़ से आने आने वाले सीमेंट पर प्रति 9 टन पर भाड़ा 4000 रुपये से बढ़कर 4500 रुपये हो गया है। चंडीगढ़ मे मारुति के डीलर बकर्ले मोटर्स के बिक्री प्रतिनिधि मनजीत सिंह के मुताबिक गुड़गांव और मानेसर फैक्टरी से चंडीगढ़ के लिए प्रति कार 2000 रुपये का ढुलाई शुल्क ग्राहक से लिया जाता है। डीजल का दाम 2 रुपये लीटर बढ़ जाने से प्रति कार ढुलाई शुल्क अब 2200 से 2400 रुपये होने की संभावना है।भोपाल के किराना व्यवसायियों का कहना है कि ट्रक भाड़े में बढ़ोतरी का असर तीन-चार दिन बाद देखने को मिलेगा। अग्रवाल ट्रेडर्स के अनुपम अग्रवाल ने कहा कि डीजल के दाम बढ़ने से कीमतें तो बढ़ना तय है, लेकिन फिलहाल ये स्थिर हैं। चीनी के टेंडर भाव के बाद प्रति क्विंटल करीब 200 रुपये का खर्च भोपाल तक लाने में होता है, लेकिन अब यह 250 रुपये होगा। अग्रवाल ने कहा कि बीते दो दिनों के दौरान टेंडर भाव प्रति क्ंिवटल 100 से 150 रुपये बढ़े हैं। जमनादास कुंदनदास के संचालक जोनी बाधवानी ने कहा कि आने वाले तीन-चार दिनों में जब माल की डिलीवरी आएगी तभी कीमतें बढ़ने का सही अनुमान लगेगा। हालांकि, तीन से चार फीसदी की वृद्धि तो निश्चित है। अभी हल्दी, जीरा, सौंफ, दाल और चावल सहित सभी वस्तुओं में तेजी का माहौल है। तेजी का प्रमुख कारणमानसून की अनिश्चितता है। मानसून में देरी के कारण व्यापारी माल ज्यादा ले रहे हैं और मांग भी बढ़ रही है। मूलचंद-भूलचंद फर्म के अरुण सोगानी ने कहा कि बीते 15 दिनों में 10 से 15 फीसदी की बढ़ोतरी तो सिर्फ मसाले और ड्रायफ्रूट में आ गई है। सोगानी ने कहा कि पेट्रो मूल्य बढ़ने के कारण तीन से चार फीसदी की महंगाई आने वाले चार दिनों में दिखाई देगी।(इनपुट : दिल्ली से आर.एस. राणा, चंडीगढ़ से हरीश मानव, जयपुर से प्रमोद कुमार शर्मा, लुधियाना से नरेश बातिश, भोपाल से धर्मेन्द्र ¨सह भदौरिया)पंजाब में चीनी समेत कई वस्तुएं महंगी पंजाब व हरियाणा के व्यापारी और उद्योगपति बढ़े माल भाड़े का असर किराना वस्तुओं, फल, सब्जी और दूध के अलावा स्टील, सीमेंट और वाहनों तक की कीमतों में भी बढ़ोतरी के रूप में देख रहे हैं। चीनी 300 रुपये क्विंटल तक महंगी कर दी गई है।दिल्ली में दलहन समेत कई पदार्थ महंगेपड़ोसी राज्यों हरियाणा, पंजाब, हिमाचल और उत्तर प्रदेश से आ रहे ट्रकों ने शनिवार से ही भाड़े बढ़ा दिए हैं। इस वजह से दिल्ली में खाद्य तेल, दलहन और सब्जियों की कीमतों में पांच से लेकर दस फीसदी तक की बढ़ोतरी तय है। एमपी में महंगाई बढ़ेगी 4फीसदी तकट्रक भाड़े में बढ़ोतरी का असर तीन-चार दिन बाद देखने को मिलेगा। इसका असर चीनी के दाम पर भी पड़ेगा। मूलचंद-भूलचंद फर्म के अरुण सोगानी ने कहा कि आने वाले चार दिनों में तीन से चार फीसदी की महंगाई दिखाई देगी।राजस्थान में वस्तुएं होंगी 5 फीसदी तक महंगी फेडरशन ऑफ राजस्थान ट्रेड एंड इंडस्ट्री के महामंत्री प्रेम बियानी का कहना कि पेट्रो उत्पादों की मूल्यवृद्धि से दैनिक उपयोग की सभी वस्तुओं की कीमतें पांच फीसदी तक बढ़ने की आशंका है। कीमतों में बढ़ोतरी इस सप्ताह से दिखाई देने लग जाएगी। (बिज़नस भास्कर.........)
जुलाई में घटने लगेगी इलायची की कीमत
जुलाई में इलायची के मूल्य में गिरावट आने की संभावना है। अनुकूल मौसम से नए सीजन में इलायची की पैदावार नौ फीसदी बढ़ने की संभावना है। अगले महीने नीलामी केंद्रों पर नई आवक शुरू जाएगी। ऐसे में अगस्त तक मौजूदा कीमतों में करीब 25 फीसदी की गिरावट आने की संभावना है। सैमेक्स एजेंसी के मैनेजिंग डायरक्टर मूलचंद रुबारल ने बिजनेस भास्कर को बताया कि इस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय इलायची का भाव 34 से 38 डॉलर प्रति किलो है। लेकिन इन भावों में आयातकों की मांग कमजोर है। आयातक नई फसल को देखते हुए नए आयात सौदे नहीं कर रहे हैं। इसीलिए आगामी दिनों में इसकी कीमतों में करीब तीन से चार डॉलर की गिरावट आ सकती है। उधर ग्वाटेमाला की इलायची का भाव अंतरराष्ट्रीय बाजार में 28 से 30 डॉलर प्रति किलो है। ग्वाटेमाला में नई इलायची की आवक अक्टूबर में बनेगी। हाल ही में हुई बारिश से वहां भी नई फसल को फायदा हुआ है। कार्डमम प्लांटर्स एसोसिएशन के अनुसार जूलाई महीने में नीलामी केंद्रों पर नई इलायची की आवक शुरू हो जाएगी। इस समय उत्पादक क्षेत्रों में हो रही बारिश को देखते हुए नए सीजन में इलायची की पैदावार में करीब नौ फीसदी की बढ़ोतरी होने का अनुमान है। चालू सीजन में देश में इलायची का उत्पादन 13,000 टन से ज्यादा का हुआ है। मौसम अनुकूल रहा तो नए सीजन में पैदावार बढ़कर 14,200 टन के करीब होने की संभावना है। ऐसे में अगस्त महीने में नीलामी केंद्रों पर आवक का दबाव बनने के बाद इलायची की मौजूदा कीमतों में 450 से 500 रुपये प्रति किलो की गिरावट आने की संभावना है। इस समय नीलामी में 6।5 एमएम की इलायची के भाव 1500-1525 रुपये, 7 एमएम की इलायची के भाव 1600-1630 रुपये, 7.5 एमएम की इलायची के भाव 1680-1700 रुपये और आठ एमएम की इलायची का भाव 1740-1750 रुपये प्रति किलो है। वित्त वर्ष 2009-10 में निर्यात बढ़कर 1,975 टन का हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 750 टन इलायची का ही निर्यात हुआ था। (बिज़नस भास्कर.....आर अस राणा)
बांग्लादेश व श्रीलंका से लाल मिर्च की निर्यात मांग बढ़ी
लाल मिर्च में बांग्लादेश और श्रीलंका की निर्यात मांग तो बढ़ रही है लेकिन स्टॉक ज्यादा होने से भाव पूर्व स्तर पर ही टिके हुए हैं। गुंटूर में लाल मिर्च का स्टॉक करीब 50 लाख बोरी (प्रति बोरी 40 किलो) का है जो पिछले साल के मुकाबले करीब दस लाख बोरी ज्यादा है। चीन में लाल मिर्च की फसल को नुकसान हुआ है। इसीलिए आगामी दिनों में भारत से निर्यात में और बढ़ोतरी की संभावना है। वैसे भी मानसून की देरी से मध्य प्रदेश में लाल मिर्च की बुवाई में तेजी नहीं आ पा रही है। ऐसे में आगामी दिनों में इसकी मौजूदा कीमतों में 300-400 रुपये प्रति `िंटल की तेजी आने की संभावना है। अशोक एंड कंपनी के अध्यक्ष अशोक दत्तानी ने बताया कि इस समय बांग्लादेश और श्रीलंका की निर्यात मांग बढ़ी है तथा मलेशिया की मांग भी बराबर आ रही है। उधर चीन में लाल मिर्च की फसल को नुकसान हुआ है। इसीलिए आगामी दिनों में भारत से निर्यात मांग में और भी बढ़ोतरी होने की संभावना है। भारतीय मसाला बोर्ड के सूत्रों के अनुसार चालू वित्त वर्ष के अप्रैल में लाल मिर्च के निर्यात में 45 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इस दौरान 19,750 टन का निर्यात हुआ है जबकि पिछले साल अप्रैल में 13,625 टन का ही निर्यात हुआ था। वित्त वर्ष 2009-10 में भी निर्यात 23 फीसदी बढ़ा था। इस दौरान लाल मिर्च का कुल निर्यात 2।04 लाख टन का हुआ था जो वित्त वर्ष 2008-09 के 1.88 लाख टन से ज्यादा था। वित्त वर्ष 2009-10 में मलेशिया को 45,525 टन, श्रीलंका को 34,800 टन, बांग्लादेश को 28,175 टन, यूएई को 23,250 टन और अमेरिका को 17,750 टन का निर्यात हुआ है। वायदा बाजार में पिछले दस दिनों में लाल मिर्च की कीमतों में हल्की गिरावट आई है। एनसीडीईएक्स पर जुलाई महीने के वायदा अनुबंध का भाव 18 जून को 4,706 रुपये प्रति `िंटल था जो शनिवार को घटकर 4,641 रुपये प्रति `िंटल रह गया। लाल मिर्च व्यापारी मांगी लाल मुंदड़ा ने बताया कि गुंटूर में तेजा `ालिटी की लाल मिर्च के भाव 5900-6200 रुपये, 334 `ालिटी की लाल मिर्च के भाव 4400-4800 रुपये, ब्याडगी `ालिटी के भाव 6000-6100 रुपये, सनम `ालिटी के भाव 4700-4900 रुपये प्रति `िंटल चल रहा है। इस समय फटकी `ालिटी के भाव 2200-2600 रुपये प्रति `िंटल चल रहे हैं। उन्होंने बताया कि चालू सीजन में लाल मिर्च की पैदावार पिछले साल के 1.25 करोड़ बोरी के मुकाबले बढ़कर 1.60 करोड़ बोरी होने का अनुमान है। उधर मध्य प्रदेश में मानसून की देरी से लाल मिर्च की बुवाई में तेजी नहीं आ पा रही है, अगर बारिश में और देरी हुई तो मौजूदा कीमतों में तेजी की संभावना है।बात पते कीचालू वित्त वर्ष के अप्रैल में लाल मिर्च के निर्यात में 45 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इस दौरान 19,750 टन का निर्यात हुआ है जबकि पिछले साल अप्रैल में 13,625 टन का ही निर्यात हुआ था। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
छोटे व्यापारियों को भी मिलेगा सरकारी गेहूं
नई खरीद का गेहूं रखने के लिए गोदाम खाली करने की जल्दी और मूल्य नियंत्रण के मकसद से केंद्र सरकार ने गेहूं बिक्री की नीति में बड़ा बदलाव किया है। सरकार अब बड़े औद्योगिक उपभोक्ताओं जैसे फ्लोर मिलों को ही नहीं बल्कि छोटे व्यापारियों और उपभोक्ताओं को भी गेहूं अपने गोदामों से बेचेगी। सरकारी गोदाम से कम से कम एक ट्रक गेहूं की खरीद की जा सकती है। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अगुवाई में हुई अधिकार प्राप्त मंत्रीसमूह (ईजीओएम) की बैठक में पिछले सप्ताह 50 लाख टन गेहूं खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत बेचने का फैसला किया। सरकार का उद्देश्य घरलू बाजार में गेहूं के दाम नियंत्रित रखना है। अप्रैल से नई फसल के गेहूं की खरीद शुरू हो गई है। पिछले साल 2000-10 के दौरान सूखे के बावजूद देश में 809।8 लाख टन गेहूं का उत्पादन हुआ। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) जुलाई से गेहूं की बिक्री शुरू करगी और मार्च तक बिक्री जारी रहेगी। गेहूं के बिक्री मूल्य में सरकारी खरीद कीमत और लुधियाना से बिक्री केंद्र तक के भाड़े को जोड़कर तय होगा। दिल्ली में गेहूं की बिक्री के लिए रिजर्व मूल्य 1254 रुपये प्रति क्विंटल होगा। खरीदार इससे ऊपर भाव पर ऑक्शन में बिड भर सकेंगे। दिल्ली बाजार में भी गेहूं का यह भाव खुले बाजार से कम है। खुले बाजार में गेहूं 1400 रुपये प्रति क्विंटल और आटा 16 रुपये प्रति किलो बिक रहा है।सरकारी गेहूं की बिक्री न सिर्फ बड़े औद्योगिक उपभोक्ताओं जैसे फ्लोर मिलों को होगी बल्कि छोटे उद्योगों, व्यापारियों व सामान्य उपभोक्ताओं को भी सरकारी गोदामों से गेहूं सुलभ कराया जाएगा। छोटे व्यापारी जहां न्यूनतम एक ट्रक लोड यानि 9 टन (90 क्विंटल) गेहूं की खरीद कर सकेंगे, वहीं बड़े औद्योगिक उपभोक्ताओं को टेंडर के जरिये गेहूं खरीद की अनुमति होगी। खाद्य मंत्रालय जल्दी ही गेहूं बिक्री के लिए विस्तृत स्कीम तैयार कर लेगा। (बिज़नस भास्कर)
कमोडिटी ट्रैकर
गर्मी ज्यादा पड़ने से स्टॉक में रखे प्याज को नुकसान हो रहा है। इस समय घरलू और निर्यातकों की मांग भी अच्छी निकल रही है। मई में प्याज का निर्यात 34।8 फीसदी बढ़ा है। जुलाई-अगस्त में निर्यात मांग में और बढ़ोतरी की संभावना है। ऐसे में इस दौरान इसकी कीमतों में 150-200 रुपये प्रति `िंटल की तेजी आने की संभावना है। चालू सीजन में देश में प्याज का कुल उत्पादन बढ़कर 95 लाख टन होने का अनुमान है जो पिछले साल के 85 लाख टन से ज्यादा है। लेकिन मौसम ज्यादा गर्म होने के कारण राजस्थान और मध्य प्रदेश में प्याज को नुकसान हुआ है। मई के मुकाबले जून में निर्यात बढ़ा है। राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास फाउंडेशन (एनएचआरडीएफ) के अनुसार अप्रैल में प्याज का निर्यात 106,891 टन हुआ था जोमई में बढ़कर 144,109 टन हो गया। जुलाई-अगस्त में निर्यात मांग में और भी इजाफा होने की संभावना है। हालांकि निर्यात में बढ़ोतरी प्याज के न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) पर निर्भर करगी। इस समय प्याज का एमईपी 200-205 डॉलर प्रति टन है तथा नेफेड हर महीने घरलू बाजार में प्याज की उपलब्धता की समीक्षा के आधार पर एमईपी तय करती है। भारत से प्याज का सबसे ज्यादा निर्यात बांग्लादेश, सिंगापुर, मलेशिया और खाड़ी देशों को होता है। वित्त वर्ष 2009-10 में देश से प्याज का निर्यात बढ़कर 18.14 लाख टन का हुआ था जबकि वित्त वर्ष 2008-09 में कुल निर्यात 17.83 लाख टन का हुआ था। चालू वित्त वर्ष में निर्यात में और बढ़ोतरी की संभावना है। इस समय उत्पादक मंडियों में प्याज की आवक कम हो गई है। दिल्ली में प्याज की दैनिक आवक करीब 85-90 मोटरों की हो रही है। इसमें 90 फीसदी माल राजस्थान और मध्य प्रदेश से आ रहा है। राजस्थान में गर्मी से प्याज को ज्यादा नुकसान हुआ है वैसे भी जुलाई के बाद राजस्थान से आवक कम हो जाएगी। हालांकि जुलाई में महाराष्ट्र से आवक बढ़ जाएगी। लेकिन चूंकि ज्यादातर माल स्टॉकिस्टों के पास हैं तथा महाराष्ट्र से दिल्ली का भाड़ा राजस्थान और मध्य प्रदेश से ज्यादा है। इसीलिए स्टॉकिस्टों की बिकवाली कम आने से प्याज की मौजूदा कीमतों में तेजी की संभावना है। दिल्ली में राजस्थान के प्याज का भाव 300 से 600 रुपये और मध्य प्रदेश के प्याज का भाव 800 से 1000 रुपये प्रति `िंटल है। उधर महाराष्ट्र के नासिक में प्याज का भाव 400 से 600 रुपये प्रति `िंटल चल रहा है। जुलाई-अगस्त में घरलू और निर्यातकों की मांग से इसकी कीमतों में करीब 150-200 रुपये प्रति `िंटल की तेजी आने की संभावना है। हालांकि कर्नाटक में अगस्त-सितंबर में आने वाली फसल का उत्पादन कैसा रहता है इस पर भी तेजी-मंदी निर्भर करेगी। आंध्र प्रदेश के करनूल में भी प्याज की आवक जुलाई में बन जाएगी लेकिन इसकी खपत वहीं हो जाती है। इसलिए इसका असर दिल्ली में प्याज की कीमतों में नहीं पड़ता है। rana@businessbhaskar.netबात पते कीदिल्ली में प्याज की दैनिक आवक करीब 85-90 मोटरों की हो रही है। इसमें 90 फीसदी माल राजस्थान और मध्य प्रदेश से आ रहा है। राजस्थान में गर्मी से प्याज को ज्यादा नुकसान हुआ है वैसे भी जुलाई के बाद राजस्थान से आवक कम हो जाएगी। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
25 जून 2010
सरकारी गेहूं की बिक्री जुलाई से ही शुरू होने की उम्मीद
सीजन खत्म होने के बाद भी इस बार गेहूं के दाम संभवत: ज्यादा नहीं बढ़ेंगे क्योंकि केंद्र सरकार खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत गेहूं की बिक्री जल्दी शुरू कर देगी। यह बिक्री फ्लोर मिलों और दूसर औद्योगिक उपभोक्ताओं को की जाएगी। पिछले साल सरकार ने अक्टूबर के बाद ही अपने भंडार से गेहूं की बिक्री शुरू की थी जबकि इस साल जुलाई से बिक्री शुरू कर देगी। पिछले साल सरकारी गेहूं बाजार में आने से पहले ही खुले बाजार में भाव काफी बढ़ गए थे। इस साल सरकार 50 लाख टन गेहूं ओएमएसएस के तहत बेचने की मंजूरी दे सकती है। इस पर फैसला शुक्रवार को अधिकार प्राप्त मंत्रियों के समूह (ईजीओएम) की बैठक में हो सकता है। पिछले साल ओएमएसएस के तहत आवंटित किए गए 20.81 लाख टन में से 8.32 लाख टन गेहूं का अभी भी उठान नहीं हो पाया है। केंद्र सरकार ओएमएसएस के तहत गेहूं का आवंटन बढ़ाएगी, लेकिन कीमतें ज्यों की त्यों रखेगी। खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार ओएमएसएस के तहत गेहूं की बिक्री बढ़ाने के लिए लंबी अवधि की योजना बनाई जा रही है। इसमें जुलाई से मार्च के लिए करीब 50 लाख टन गेहूं का आवंटन किया जाएगा। दिल्ली में ओएमएसएस के तहत निविदा भरने का न्यूनतम भाव पूर्वस्तर 1,254 रुपये, पंजाब तथा हरियाणा में 1,240 रुपये तथा मध्य प्रदेश में 1,310 रुपये प्रति `िंटल ही रहेगा। गेहूं की बिक्री पहले की तरह निविदा के आधार पर ही होगी। बिक्री नियमों में फ्लोर मिलों को राहत देने के लिए निविदा भरने की अधिकतम सीमा 1,000 `िंटल से बढ़ाए जाने जाने की संभावना है, ताकि मिलें ज्यादा गेहूं खरीद सकें। सूत्रों के अनुसार 25 जून को अधिकार प्राप्त मंत्रियों के समूह (ईजीओएम) की बैठक में इस पर फैसला होने की संभावना है। पिछले साल सरकार ने अक्टूबर से गेहूं की बिक्री शुरू की थी। जून तक के लिए 20.81 लाख टन गेहूं का आवंटन किया गया था। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के सूत्रों के अनुसार कुल आवंटन में से अभी तक केवल 12.49 लाख टन गेहूं की निविदा भरी गई हैं। इसमें से 12.33 लाख टन गेहूं का उठान हो पाया है। करीब 8.32 लाख टन गेहूं अभी बचा है।चालू विपणन सीजन 2010-11 में गेहूं की खरीद कम होने के बाद भी केंद्र सरकार के पास एक जून को 351.62 लाख टन गेहूं का भारी-भरकम स्टॉक बचा हुआ है जबकि तय मानकों (बफर) के हिसाब से एक जुलाई को केंद्रीय पूल में 171 लाख टन गेहूं का स्टॉक होना चाहिए। जून में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) और अन्य योजनाओं के तहत 18-20 लाख टन गेहूं का उठान होने के बाद भी एक जुलाई को 330 लाख टन से ज्यादा गेहूं का स्टॉक बचेगा। चालू विपणन सीजन में भारतीय खाद्य निगम ने अभी तक न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर करीब 224 लाख टन गेहूं ही खरीदा है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 244 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी थी। पिछले साल कुल खरीद 253 लाख टन से ज्यादा की हुई थी।बात पते कीसरकार के पास गेहूं का भारी-भरकम स्टॉक बचा है। फ्लोर मिलों को ज्यादा गेहूं खरीद की अनुमति दे सकती है। अभी वे अधिकतम 1,000 टन गेहूं खरीद सकती हैं। बिक्री के लिए गेहूं आवंटन 50 लाख टन हो सकता है लेकिन मूल्य पिछले साल के बराबर ही रहेंगे। (बिज़नस भास्कर.....आर अस राणा)
24 जून 2010
दालों के थोक-फुटकर मूल्य का अंतर बढ़ा
दलहन की थोक कीमतों में गिरावट का असर फुटकर कीमतों पर नहीं पड़ रहा है। पिछले एक महीने में अरहर की कीमत में करीब 800 रुपये प्रति `िंटल की गिरावट आकर भाव 3,800 रुपये प्रति `िंटल रह गए लेकिन फुटकर में इसकी कीमत 72-75 रुपये प्रति किलो से नीचे नहीं आई है। इसी तरह से उड़द और मूंग की थोक कीमत में भी 200 से 300 रुपये प्रति `िंटल का मंदा आया है लेकिन फुटकर में उड़द दाल की कीमत उपभोक्ताओं को 80-90 रुपये प्रति किलो की दर से चुकानी पड़ रही है। मूंग दाल का भाव 100-108 रुपये प्रति किलो हो गया है, इसके थोक मूल्य में भी तेजी दर्ज की गई है। महीने भर में आयातित दालों के दाम भी घटे हैं लेकिन घरलू बाजार में दलहन की कीमतों में अगस्त के बाद ही गिरावट आने की संभावना है। ग्लोबल दाल इंडस्ट्रीज के मैनेजिंग डायरक्टर चंद्रशेखर एस। नाडर ने बताया कि थोक बाजार में दाम घटने का असर फुटकर में आने में थोड़ा समय लग जाता है। फुटकर विक्रेता एक-दो `िंटल दालों की खरीद करते हैं। जब तक ऊंचे भाव की दाल खत्म नहीं हो जाती है, तब तक फुटकर दाम नहीं घटाते हैं। इस तरह वह मूल्य गिरावट से होने वाले नुकसान से बचने की कोशिश करते हैं। चूंकि आयातित दालों की कीमतें पिछले एक महीने में घटी है। ऐसे में मानसून सामान्य रहा तो अगस्त के बाद फुटकर में दालों की कीमतों में नरमी आने की संभावना है। अनुकूल मौसम रहा तो म्यांमार के निर्यातकों की बिकवाली बढ़ सकती है। कमोडिटी विशेषज्ञ अभय लाखवान ने बताया कि इन दिनों थोक में साबुत दलहन और फुटकर में मिलिंग की हुई दालों के मूल्य में अंतर और ज्यादा बढ़ गया है। वैसे भी उत्पादक केंद्रों से फुटकर उपभोक्ताओं तक पहुंचते-पहुंचते दालों के दाम दोगुने से भी ज्यादा हो जाते हैं। थोक और फुटकर मूल्य के बीच का भारी अंतर व्यापारियों की जेब में जाता है। एक ओर किसानों को दलहन का कम दाम मिलता है तो दूसरी ओर उपभोक्ताओं को ऊंचे दाम पर दाल खरीदनी पड़ती है। दलहन के मामले में वितरण मार्जिन काफी ज्यादा है। ऐसे में उत्पादक और उपभोक्ताओं के बीच व्यापार करने वाले थोक और फुटकर व्यापारी मोटा फायदा उठा रहे हैं।rana@businessbhaskar.netबात पते कीथोक में साबुत दलहन और फुटकर में मिलिंग की हुई दालों के मूल्य में अंतर और ज्यादा बढ़ गया है। उत्पादक केंद्रों से उपभोक्ताओं तक पहुंचते-पहुंचते दालों के दाम दोगुने से भी ज्यादा हो जाते हैं। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
नए वित्त वर्ष में बासमती का निर्यात फीका पड़ा
बासमती चावल निर्यात के मामले में चालू वित्त वर्ष की शुरूआत फीकी रही है। विगत अप्रैल और मई में बासमती चावल के निर्यात सौदे करीब 24 फीसदी घट गए। कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक चालू वित्त के अप्रैल-मई में 4।72 लाख टन बासमती चावल के निर्यात सौदों का रजिस्ट्रेशन हुआ जबकि पिछले साल की समान अवधि में 6.21 लाख टन के सौदे पंजीकृत हुए थे। इस समय ईरान की मांग कम आ रही है लेकिन निर्यातकों को उम्मीद है कि अगस्त-सितंबर के बाद निर्यात में तेजी आएगी। अधिकारी ने बताया कि बीते वित्त वर्ष 2009-10 के अप्रैल से फरवरी (11 माह) के दौरान 18.11 लाख टन बासमती चावल का निर्यात हुआ जबकि 2008-09 में 15 लाख टन का ही निर्यात हुआ था। ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टस एसोसिएशन के अध्यक्ष विजय सेतिया ने बताया कि इस समय ईरान की आयात मांग कम आ रही है। इसीलिए निर्यात सौदों के रजिस्ट्रेशन सौदों में कमी आई हैं। अगस्त-सितंबर के बाद ईरान, सऊदी अरब और कुवैत की मांग बढ़ने की संभावना है। हालांकि उन्होंने माना कि पाकिस्तान में 1121 बासमती चावल का उत्पादन बढ़ रहा है जिसका असर भारत के निर्यात पर पड़ रहा है। विजय सेतिया ने बताया कि जिस तरह से बासमती चावल के निर्यात के लिए केंद्र सरकार ने न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) 900 डॉलर प्रति टन निर्धारित किया है। उसी तरह से गैर बासमती सुपीरियर चावल की सभी किस्मों के लिए एमईपी निर्धारित करके निर्यात खोल देना चाहिए। ऐसा करने पर चालू वित्त वर्ष में कुल निर्यात बढ़कर 40 लाख टन हो सकता है। पिछले साल बासमती चावल के 32 लाख टन के निर्यात सौदों का रजिस्ट्रेशन हुआ था। उन्होंने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में पारंपरिक बासमती में कच्चे चावल का भाव 1,600-1750 डॉलर, रॉ बासमती चावल का 1,250-1,350 डॉलर, पूसा-1121 बासमती चावल सेला का भाव 950-1,150 डॉलर तथा 1121 पूसा बासमती के रॉ चावल का भाव 1,400 से 1,500 डॉलर प्रति टन है। डॉलर के मुकाबले रुपये में मजबूती आने का भी निर्यात पर असर पड़ रहा है। रुपया मजबूत होने से निर्यातक ज्यादा भाव चाहते हैं। दूसरी ओर डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी रुपया इतना मजबूत नहीं हुआ है। इससे पाकिस्तानी निर्यातकों कम भाव पर निर्यात करने की स्थिति में हैं। इसका उन्हें फायदा हो रहा है। सूत्रों के अनुसार पाकिस्तान से चावल के कुल निर्यात में करीब 50 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। केआरबीएल लिमिटेड के संयुक्त प्रबंध निदेशक अनुप कुमार गुप्ता ने बताया कि ईरान के पास बकाया स्टॉक बचा हुआ है। साथ ही ईरान पाकिस्तान से आयात कर रहा है। इसके अलावा यूरो जोन में आर्थिक संकट के कारण यूरोपीय देशों की मांग भी कम हुई है। अमेरिका की मांग भी पहले की तुलना में घटी है। इसीलिए भारत से निर्यात सौदों के रजिस्ट्रेशन में कमी आई है। हालांकि सऊदी अरब और कुवैत की आयात मांग बराबर बनी हुई है। अगस्त के बाद निर्यात सौदों में तेजी आने की संभावना है। बंजरबली राइस ट्रेडर्स के प्रोपराइटर श्रीभगवान मित्तल ने बताया कि निर्यात मांग कमजोर होने से दिल्ली थोक बाजार में भी 1121 बासमती चावल सेला का भाव घटकर 3800 रुपये और स्टीम का भाव 5000 से 5,200 रुपये प्रति `िंटल रह गया। बात पते कीईरान की आयात मांग कम आ रही है। इसीलिए निर्यात सौदों के रजिस्ट्रेशन सौदों में कमी आई हैं। अगस्त-सितंबर के बाद ईरान, सऊदी अरब और कुवैत की मांग बढ़ने की संभावना है। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
खरीद बढ़ने से जौ तेज
नई दिल्ली June 21, 2010
स्टॉकिस्टों की खरीदारी बढ़ने से जौ के दाम 5 फीसदी से अधिक बढ़ चुके हैं। कारोबारियों का कहना है कि आने वाले समय में निर्यात मांग को देखेते हुए स्टॉकिस्ट जौ की अधिक खरीदारी कर रहे हैं।
बीते तीन सप्ताह के दौरान प्रमुख उत्पादक राज्य राजस्थान की जयपुर मंडी में जौ के दाम 50 रुपये बढ़कर 970-980 रुपये प्रति क्विंटल , दिल्ली में 60 रुपये बढ़कर 1050 रुपये प्रति क्विंटल हो चुके हैं।
जयपुर मंडी के जौ कारोबारी के.जी. झालानी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि इन दिनों स्टॉकिस्टों ने जौ की खरीदारी तेज कर दी है। इससे जौ की कीमतों में तेजी आई है। उनका कहना है कि आगे निर्यात मांग को देखते हुए जौ की मांग में इजाफा हुआ है।
गुजरात की जौ निर्यातक और घरेलू कारोबार करने वाली कंपनी बिश्नोई ट्रेडिंग कॉरपोरेशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ)संजय बिश्नोई का कहना है कि जल्द की प्रमुख जौ उत्पादक देश यूक्रेन में इसकी नई फसल खत्म होने वाली है। ऐसे में आगे भारतीय जौ की निर्यात मांग बढ़ने की उम्मीद है।
उनके मुताबिक यूक्रेन में भी जौ के दाम करीब 10 डॉलर बढ़कर 200-210 डॉलर प्रति टन हो गए है। आगे वहां इसकी कीमतें और बढ़ने की संभावना है । इसलिए भारतीय जौ के आयातक देश खासतौर पर सऊदी अरब से निर्यात मांग बढ़ने के आसार है।
बिश्नोई के अनुसार इन दिनों देश में माल्ट उद्योग की मांग भी ठीक चल रही है। इस वजह से भी कीमतों में तेजी को बल मिला है। गुजरात में जौ के दाम 50-60 रुपये बढ़कर 1060 रुपये प्रति क्विंटल हो गए हैं।
झालानी का कहना है कि आने वाले दिनों में जौ की कीमतों में 50-100 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी हो सकती है। इसकी वजह कम उत्पादन के बीच निर्यात और घरेलू मांग बढ़ना है। इसके अलावा उत्पादन में कमी से इस बार पिछले साल से जौ का स्टॉक भी कम है।
बिश्नोई ने कहा कि देश में इस समय 80-90 हजार टन जौ का स्टॉक बचा हुआ है। भारतीय कृषि मंत्रालय के तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार वर्ष 2009-10 में 12.60 लाख टन जौ का उत्पादन होने का अनुमान है, वर्ष 2008-2009 में 16.90 लाख टन जौ का उत्पादन हुआ था।
सरकार ने वर्ष 2009-10 के लिए 16 लाख टन जौ उत्पादन का लक्ष्य रखा था। सरकार ने जौ उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए इसके न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को 70 रुपये बढ़ाकर वर्ष 2009-10 के लिए 750 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया था। (बीएस हिंदी)
स्टॉकिस्टों की खरीदारी बढ़ने से जौ के दाम 5 फीसदी से अधिक बढ़ चुके हैं। कारोबारियों का कहना है कि आने वाले समय में निर्यात मांग को देखेते हुए स्टॉकिस्ट जौ की अधिक खरीदारी कर रहे हैं।
बीते तीन सप्ताह के दौरान प्रमुख उत्पादक राज्य राजस्थान की जयपुर मंडी में जौ के दाम 50 रुपये बढ़कर 970-980 रुपये प्रति क्विंटल , दिल्ली में 60 रुपये बढ़कर 1050 रुपये प्रति क्विंटल हो चुके हैं।
जयपुर मंडी के जौ कारोबारी के.जी. झालानी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि इन दिनों स्टॉकिस्टों ने जौ की खरीदारी तेज कर दी है। इससे जौ की कीमतों में तेजी आई है। उनका कहना है कि आगे निर्यात मांग को देखते हुए जौ की मांग में इजाफा हुआ है।
गुजरात की जौ निर्यातक और घरेलू कारोबार करने वाली कंपनी बिश्नोई ट्रेडिंग कॉरपोरेशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ)संजय बिश्नोई का कहना है कि जल्द की प्रमुख जौ उत्पादक देश यूक्रेन में इसकी नई फसल खत्म होने वाली है। ऐसे में आगे भारतीय जौ की निर्यात मांग बढ़ने की उम्मीद है।
उनके मुताबिक यूक्रेन में भी जौ के दाम करीब 10 डॉलर बढ़कर 200-210 डॉलर प्रति टन हो गए है। आगे वहां इसकी कीमतें और बढ़ने की संभावना है । इसलिए भारतीय जौ के आयातक देश खासतौर पर सऊदी अरब से निर्यात मांग बढ़ने के आसार है।
बिश्नोई के अनुसार इन दिनों देश में माल्ट उद्योग की मांग भी ठीक चल रही है। इस वजह से भी कीमतों में तेजी को बल मिला है। गुजरात में जौ के दाम 50-60 रुपये बढ़कर 1060 रुपये प्रति क्विंटल हो गए हैं।
झालानी का कहना है कि आने वाले दिनों में जौ की कीमतों में 50-100 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी हो सकती है। इसकी वजह कम उत्पादन के बीच निर्यात और घरेलू मांग बढ़ना है। इसके अलावा उत्पादन में कमी से इस बार पिछले साल से जौ का स्टॉक भी कम है।
बिश्नोई ने कहा कि देश में इस समय 80-90 हजार टन जौ का स्टॉक बचा हुआ है। भारतीय कृषि मंत्रालय के तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार वर्ष 2009-10 में 12.60 लाख टन जौ का उत्पादन होने का अनुमान है, वर्ष 2008-2009 में 16.90 लाख टन जौ का उत्पादन हुआ था।
सरकार ने वर्ष 2009-10 के लिए 16 लाख टन जौ उत्पादन का लक्ष्य रखा था। सरकार ने जौ उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए इसके न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को 70 रुपये बढ़ाकर वर्ष 2009-10 के लिए 750 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया था। (बीएस हिंदी)
बढ़ सकता है दलहन का रकबा
मुंबई June 22, 2010
खरीफ सत्र में दलहन के रकबे में 10-12 प्रतिशत की बढ़ोतरी की उम्मीद है। इसकी प्रमुख वजह है कि बड़े पैमाने पर किसान तिलहन की खेती से मुंह मोड़कर दलहन का रुख कर रहे हैं।
हालांकि कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक 18 जून को समाप्त सप्ताह में 7 प्रतिशत की मामूली गिरावट आई है और इस अवधि में बुआई का रकबा पिछले साल के 1.4 लाख हेक्टेयर की तुलना में घटकर 1.3 लाख हेक्टेयर रह गया है।
लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि जल्द ही रिकवरी हो जाएगी। इससे पिछले सप्ताह में बुआई का रकबा पिछले साल की तुलना में 18 प्रतिशत ज्यादा था। फसल वर्ष 2009-10 में कुल रकबा 231.6 लाख हेक्टेयर रहने की उम्मीद है, जिसमें खरीफ और रबी दोनों की फसलें शामिल हैं। दलहन की खेती खरीफ में 45 प्रतिशत और रबी में 55 प्रतिशत होती है।
2009-10 में दलहन की बुआई का क्षेत्रफल इससे पिछले के फसल वर्ष की तुलना में 5.63 प्रतिशत कम रहा। दाल आयातक संघ के अध्यक्ष केसी भरतिया दलहन के रकबे में बढ़ोतरी की तीन वजह बताते हैं। पहला- सरकार ने सभी दालों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी की है। यह बुआई के पहले हुआ है, जिससे किसान ज्यादा रकबे में बुआई के लिए प्रोत्साहित होंगे।
अरहर दाल के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 30 प्रतिशत या 700 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की गई है और यह 3000 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है। वहीं मूंग और उड़द के एमएसपी में 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई है और इसकी कीमतें क्रमश: 3170 और 2900 रुपये प्रति क्विंटल हो गई हैं।
वाशी स्थित एक दाल कारोबारी हिम्मतभाई त्रिमूर्ति ने सरकार से अनुरोध किया है कि एमएसपी में और ज्यादा बढ़ोतरी की जानी चाहिए, जिससे किसान इसकी बुआई की ओर आकर्षित हों। दूसरे- दलहन की खुदरा कीमतों में पिछले साल जोरदार बढ़ोतरी हुई।
अरहर दाल 94 रुपये और उड़द की दाल 72 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गई। अब कीमतें गिर गई हैं, फिर भी अरहर दाल 65-70 रुपये और उड़द की दाल 45-55 रुपये प्रति किलो बिक रही है। भरतिया का कहना है कि वैश्विक रूप से दलहन का उत्पादन कम है, इसलिए कीमतों में गिरावट की कोई उम्मीद नहीं लगती।
तीसरे- वैश्विक बाजार में दलहन की कीमतें ज्यादा हैं। इसका असर स्वाभाविक रूप से भारतीय बाजार पर पड़ रहा है। घरेलू उपभोक्ताओं ने अब उच्च कीमतों को स्वीकार कर लिया है, जिसका संकेत यह है कि उच्च कीमतों पर भी खपत में बढ़ोतरी हो रही है। ऐसी स्थिति में भविष्य में भी कीमतों में कमी की कोई संभावना नहीं बनती है।
केयर रेटिंग के अर्थशात्री मदन सबनवीस ने कहा, 'अभी कुछ भी कहना अभी जल्दबाजी होगी कि किसान तिलहन से मुंह मोड़कर दलहन का रुख कर लेंगे।' उन्होंने कहा कि सरकार इस समय दलहन परियोजना पर ज्यादा खर्च कर रही है।
कोशिश है कि इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाई जाए और वर्तमान क्षेत्रफल में ही उत्पादकता में बढ़ोतरी हो। पिछले साल हमने देखा था कि वर्तमान रकबे में ही बुआई पर ज्यादा उपज हुई थी, जिसका मतलब यह हुआ कि सरकार की योजना सही ढंग से चल रही है।
भारत में दाल का कुल उत्पादन 147 लाख टन है और औसत उत्पादकता 659 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। यह विकसित देशों से बहुत कम है, जहां उत्पादकता 1700-2000 किलो प्रति हेक्टेयर है। भारत को घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए हर साल 30-40 लाख टन दलहन का आयात करना पड़ता है।
पिछले कुछ दिनों में कमी की वजह से दलहन की कीमतें आसमान पर पहुंच गई हैं, जिससे निम्न मध्यम वर्ग में दाल की खपत में कमी आई है। उदाहरण के लिए जब अरहर की दाल 94 रुपये प्रति किलोग्राम पर थी तो एक उपभोक्ता, जो सामान्यतया 200 ग्राम दाल खाता था, उसने खपत कम करके 75-100 ग्राम कर दिया था।
भारत में दलहन की प्रति व्यक्ति सालाना खपत करीब 12 किलोग्राम है। देश में मांग की तुलना में दलहन की बहुत ज्यादा कमी है, जिसके चलते बड़े पैमाने पर आयात करना पड़ता है। दलहन आयात में लगातार बढ़ोतरी हुई है। जहां, 1998-99 में 4।6 लाख टन दलहन का आयात हुआ था, वहीं अब आयात बढ़कर 20 लाख टन पर पहुंच गया है। (बीएस हिंदी)
खरीफ सत्र में दलहन के रकबे में 10-12 प्रतिशत की बढ़ोतरी की उम्मीद है। इसकी प्रमुख वजह है कि बड़े पैमाने पर किसान तिलहन की खेती से मुंह मोड़कर दलहन का रुख कर रहे हैं।
हालांकि कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक 18 जून को समाप्त सप्ताह में 7 प्रतिशत की मामूली गिरावट आई है और इस अवधि में बुआई का रकबा पिछले साल के 1.4 लाख हेक्टेयर की तुलना में घटकर 1.3 लाख हेक्टेयर रह गया है।
लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि जल्द ही रिकवरी हो जाएगी। इससे पिछले सप्ताह में बुआई का रकबा पिछले साल की तुलना में 18 प्रतिशत ज्यादा था। फसल वर्ष 2009-10 में कुल रकबा 231.6 लाख हेक्टेयर रहने की उम्मीद है, जिसमें खरीफ और रबी दोनों की फसलें शामिल हैं। दलहन की खेती खरीफ में 45 प्रतिशत और रबी में 55 प्रतिशत होती है।
2009-10 में दलहन की बुआई का क्षेत्रफल इससे पिछले के फसल वर्ष की तुलना में 5.63 प्रतिशत कम रहा। दाल आयातक संघ के अध्यक्ष केसी भरतिया दलहन के रकबे में बढ़ोतरी की तीन वजह बताते हैं। पहला- सरकार ने सभी दालों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी की है। यह बुआई के पहले हुआ है, जिससे किसान ज्यादा रकबे में बुआई के लिए प्रोत्साहित होंगे।
अरहर दाल के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 30 प्रतिशत या 700 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की गई है और यह 3000 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है। वहीं मूंग और उड़द के एमएसपी में 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई है और इसकी कीमतें क्रमश: 3170 और 2900 रुपये प्रति क्विंटल हो गई हैं।
वाशी स्थित एक दाल कारोबारी हिम्मतभाई त्रिमूर्ति ने सरकार से अनुरोध किया है कि एमएसपी में और ज्यादा बढ़ोतरी की जानी चाहिए, जिससे किसान इसकी बुआई की ओर आकर्षित हों। दूसरे- दलहन की खुदरा कीमतों में पिछले साल जोरदार बढ़ोतरी हुई।
अरहर दाल 94 रुपये और उड़द की दाल 72 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गई। अब कीमतें गिर गई हैं, फिर भी अरहर दाल 65-70 रुपये और उड़द की दाल 45-55 रुपये प्रति किलो बिक रही है। भरतिया का कहना है कि वैश्विक रूप से दलहन का उत्पादन कम है, इसलिए कीमतों में गिरावट की कोई उम्मीद नहीं लगती।
तीसरे- वैश्विक बाजार में दलहन की कीमतें ज्यादा हैं। इसका असर स्वाभाविक रूप से भारतीय बाजार पर पड़ रहा है। घरेलू उपभोक्ताओं ने अब उच्च कीमतों को स्वीकार कर लिया है, जिसका संकेत यह है कि उच्च कीमतों पर भी खपत में बढ़ोतरी हो रही है। ऐसी स्थिति में भविष्य में भी कीमतों में कमी की कोई संभावना नहीं बनती है।
केयर रेटिंग के अर्थशात्री मदन सबनवीस ने कहा, 'अभी कुछ भी कहना अभी जल्दबाजी होगी कि किसान तिलहन से मुंह मोड़कर दलहन का रुख कर लेंगे।' उन्होंने कहा कि सरकार इस समय दलहन परियोजना पर ज्यादा खर्च कर रही है।
कोशिश है कि इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाई जाए और वर्तमान क्षेत्रफल में ही उत्पादकता में बढ़ोतरी हो। पिछले साल हमने देखा था कि वर्तमान रकबे में ही बुआई पर ज्यादा उपज हुई थी, जिसका मतलब यह हुआ कि सरकार की योजना सही ढंग से चल रही है।
भारत में दाल का कुल उत्पादन 147 लाख टन है और औसत उत्पादकता 659 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। यह विकसित देशों से बहुत कम है, जहां उत्पादकता 1700-2000 किलो प्रति हेक्टेयर है। भारत को घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए हर साल 30-40 लाख टन दलहन का आयात करना पड़ता है।
पिछले कुछ दिनों में कमी की वजह से दलहन की कीमतें आसमान पर पहुंच गई हैं, जिससे निम्न मध्यम वर्ग में दाल की खपत में कमी आई है। उदाहरण के लिए जब अरहर की दाल 94 रुपये प्रति किलोग्राम पर थी तो एक उपभोक्ता, जो सामान्यतया 200 ग्राम दाल खाता था, उसने खपत कम करके 75-100 ग्राम कर दिया था।
भारत में दलहन की प्रति व्यक्ति सालाना खपत करीब 12 किलोग्राम है। देश में मांग की तुलना में दलहन की बहुत ज्यादा कमी है, जिसके चलते बड़े पैमाने पर आयात करना पड़ता है। दलहन आयात में लगातार बढ़ोतरी हुई है। जहां, 1998-99 में 4।6 लाख टन दलहन का आयात हुआ था, वहीं अब आयात बढ़कर 20 लाख टन पर पहुंच गया है। (बीएस हिंदी)
गन्ने के दाम घटा सकता है महाराष्ट्र
मुंबई June 22, 2010
महाराष्ट्र सरकार किसानों को गन्ने का कम मूल्य दिए जाने पर विचार कर रही है, जिससे मिलों को दीवालिया होने से बचाया जा सके।
इस सिलसिले में अंतिम फैसला चीनी मिलों के प्रतिनिधियों, राज्य सरकार के अधिकारियों और राजनेताओं की बैठक के बाद लिया जाएगा। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने चीनी उद्योग के हिस्सेदारों के साथ गुरुवार को एक बैठक बुलाई है।
इस मामले से जुड़े सूत्रों के मुताबिक यह बैठक चीनी मिलों को राहत देने के लिए गन्ने की कीमतों में कटौती किए जाने के सिलसिले में बुलाई गई है। गन्ने की वर्तमान कीमतें 240-250 रुपये प्रति क्विंटल हैं, वहीं चीनी उत्पादन की लागत 2700 रुपये प्रति क्विंटल पड़ रही है।
चीनी की एक्स मिल कीमतें इस समय गिरकर 2300 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गई हैं, जिसके चलते मिलों को प्रति क्विंटल 400 रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है, और उनका वित्तीय गणित गड़बड़ा रहा है।
महाराष्ट्र स्टेट फेडरेशन आफ कोआपरेटिव शुगर फैक्टरीज के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनवरे ने कहा, 'ऐसी स्थिति पिछले डेढ़ महीने से है। अगर यह स्थिति जारी रहती है तो चीनी मिलों की सेहत पर बहुत बुरा असर पडेग़ा। राज्य के मुख्यमंत्री को पहले ही इस हकीकत से वाकिफ करा दिया गया है।'
चीनी मूल रूप से केंद्र सरकार का विषय है, इसमें राज्य सरकार बहुत कुछ नहीं कर सकती। नाइकनवरे ने कहा कि मुख्य मंत्री केंद्रीय कृषि मंत्री को इस सिलसिले में स्थिति की जानकारी दे सकते हैं कि मिलों को संचालन में किस तरह की दिक्कतें आ रही हैं।
सूत्रों के मुताबिक पिछले साल 170 से ज्यादा मिलों में गन्ने की पेराई हुई थी और उन्हें अभी भी किसानों को अंतिम भुगतान करना बाकी है। इसके साथ ही मिलों को अगले सत्र की शुरुआत में पहला अग्रिम भुगतान भी करना है। उन्होंने कहा कि अगर गन्ने की कीमतें फिर से तय नहीं की जाती हैं तो किसानों को भुगतान करना संकट बन जाएगा।
चीनी मिलों को उम्मीद थी कि इस पूरे साल में चीनी की कीमतों में तेजी बनी रहेगी। उत्पादन के गलत अनुमानों के आधार पर यह कयास लगाया गया थी। इसी आधार पर मिलों ने अधिक दाम पर गन्ने का भुगतान भी किया।
उसके बाद जब उत्पादन अनुमानों में बदलाव किया गया और 90 लाख टन का अग्रिम स्टॉक का अनुमान आया तो चीनी की कीमतें इस साल की शुरुआत के 44 रुपये किलो से गिरकर अब 23 रुपये प्रति किलो पर पहुंच गईं।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (आईएसएमए) ने शुरुआत में अनुमान लगाया था कि 2009-10 चीनी सत्र में कुल उत्पादन 150 लाख टन रहेगा। बाद में इसे संशोधित कर 160 लाख टन कर दिया गया। बाद में पेराई सत्र की समाप्ति होते होते उत्पादन अनुमान बढ़कर 180 लाख टन पर पहुंच गया।
रेटिंग एजेंसी आईसीआरए की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जब चीनी की कीमतें ज्यादा थीं, तो गन्ने के उच्च दाम आर्थिक रूप से व्यावहारिक थे, लेकिन चीनी की वर्तमान कीमतों की वजह से चीनी वर्ष की दूसरी तिमाही में मुनाफे पर दबाव बढ़ा है।
अधिक उत्पादन लागत और चीनी के दाम गिरने से संकट
गन्ने के दाम ज्यादा होने और चीनी की कीमतें घटने से मिलों को हो रहा है 400 रुपये प्रति क्विंटल का नुकसानगुरुवार को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री चीनी उद्योग के हिस्सेदारों के साथ करेंगे बैठकचीनी मिलों को थी पूरे साल कीमतों में तेजी रहने की उम्मीद (बीएस हिंदी)
महाराष्ट्र सरकार किसानों को गन्ने का कम मूल्य दिए जाने पर विचार कर रही है, जिससे मिलों को दीवालिया होने से बचाया जा सके।
इस सिलसिले में अंतिम फैसला चीनी मिलों के प्रतिनिधियों, राज्य सरकार के अधिकारियों और राजनेताओं की बैठक के बाद लिया जाएगा। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने चीनी उद्योग के हिस्सेदारों के साथ गुरुवार को एक बैठक बुलाई है।
इस मामले से जुड़े सूत्रों के मुताबिक यह बैठक चीनी मिलों को राहत देने के लिए गन्ने की कीमतों में कटौती किए जाने के सिलसिले में बुलाई गई है। गन्ने की वर्तमान कीमतें 240-250 रुपये प्रति क्विंटल हैं, वहीं चीनी उत्पादन की लागत 2700 रुपये प्रति क्विंटल पड़ रही है।
चीनी की एक्स मिल कीमतें इस समय गिरकर 2300 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गई हैं, जिसके चलते मिलों को प्रति क्विंटल 400 रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है, और उनका वित्तीय गणित गड़बड़ा रहा है।
महाराष्ट्र स्टेट फेडरेशन आफ कोआपरेटिव शुगर फैक्टरीज के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनवरे ने कहा, 'ऐसी स्थिति पिछले डेढ़ महीने से है। अगर यह स्थिति जारी रहती है तो चीनी मिलों की सेहत पर बहुत बुरा असर पडेग़ा। राज्य के मुख्यमंत्री को पहले ही इस हकीकत से वाकिफ करा दिया गया है।'
चीनी मूल रूप से केंद्र सरकार का विषय है, इसमें राज्य सरकार बहुत कुछ नहीं कर सकती। नाइकनवरे ने कहा कि मुख्य मंत्री केंद्रीय कृषि मंत्री को इस सिलसिले में स्थिति की जानकारी दे सकते हैं कि मिलों को संचालन में किस तरह की दिक्कतें आ रही हैं।
सूत्रों के मुताबिक पिछले साल 170 से ज्यादा मिलों में गन्ने की पेराई हुई थी और उन्हें अभी भी किसानों को अंतिम भुगतान करना बाकी है। इसके साथ ही मिलों को अगले सत्र की शुरुआत में पहला अग्रिम भुगतान भी करना है। उन्होंने कहा कि अगर गन्ने की कीमतें फिर से तय नहीं की जाती हैं तो किसानों को भुगतान करना संकट बन जाएगा।
चीनी मिलों को उम्मीद थी कि इस पूरे साल में चीनी की कीमतों में तेजी बनी रहेगी। उत्पादन के गलत अनुमानों के आधार पर यह कयास लगाया गया थी। इसी आधार पर मिलों ने अधिक दाम पर गन्ने का भुगतान भी किया।
उसके बाद जब उत्पादन अनुमानों में बदलाव किया गया और 90 लाख टन का अग्रिम स्टॉक का अनुमान आया तो चीनी की कीमतें इस साल की शुरुआत के 44 रुपये किलो से गिरकर अब 23 रुपये प्रति किलो पर पहुंच गईं।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (आईएसएमए) ने शुरुआत में अनुमान लगाया था कि 2009-10 चीनी सत्र में कुल उत्पादन 150 लाख टन रहेगा। बाद में इसे संशोधित कर 160 लाख टन कर दिया गया। बाद में पेराई सत्र की समाप्ति होते होते उत्पादन अनुमान बढ़कर 180 लाख टन पर पहुंच गया।
रेटिंग एजेंसी आईसीआरए की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जब चीनी की कीमतें ज्यादा थीं, तो गन्ने के उच्च दाम आर्थिक रूप से व्यावहारिक थे, लेकिन चीनी की वर्तमान कीमतों की वजह से चीनी वर्ष की दूसरी तिमाही में मुनाफे पर दबाव बढ़ा है।
अधिक उत्पादन लागत और चीनी के दाम गिरने से संकट
गन्ने के दाम ज्यादा होने और चीनी की कीमतें घटने से मिलों को हो रहा है 400 रुपये प्रति क्विंटल का नुकसानगुरुवार को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री चीनी उद्योग के हिस्सेदारों के साथ करेंगे बैठकचीनी मिलों को थी पूरे साल कीमतों में तेजी रहने की उम्मीद (बीएस हिंदी)
मांग की मंदी का शिकार हुआ मालवा का खास 'चिप्स आलू'
भोपाल June 22, 2010
चिप्स बनाने के लिए प्रयोग किये जाने वाले मालवा के आलू की मांग में कमी देखी जा रही है।
पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष लगभग 30 से 35 फीसदी तक कमी आयी है। कमी का मुख्य कारण चिप्स बनाने वाली कंपनियों के पास चिप्स वाले आलू का अधिक स्टॉक होना बताया जा रहा है। इसके चलते कंपनियां पहले अपने स्टॉक के आलू से चिप्स बनाने का काम कर रही हैं।
साथ ही व्यापारियों के पास चिप्स वाले आलू का पर्याप्त मात्रा में स्टॉक होना और मॉनसून सीजन की शुरुआत को भी मांग कम होने का कारण माना जा रहा है। ऐसे में चिप्स वाले आलू के दाम में भी 250 रुपये से लेकर 300 रुपये प्रति बोरी की कमी आई है।
वर्तमान में चिप्स वाले ज्योति आलू की कीमत केवल 450-550 रुपये ही रह गई है। इसके अलावा यूपी के आलू की कीमत 350 से 400 रुपये प्रति बोरी तथा लोकल आलू की कीमत 250 से 350 रुपये प्रति बोरी ही रह गयी है।
उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश के मालवा अंचल में चिप्स बनाने के लिए प्रयोग किये जाने वाले आलू का भारी मात्रा में उत्पादन होता है। प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र के देवास, इंदौर और उज्जैन जैसे इलाके चिप्स वाले आलू के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं। लगभग 70903 हेक्टेयर में बोये जाने वाले इस आलू की अधिकतर मांग चिप्स बनाने वाली कंपनियों के द्वारा की जाती है।
इसका प्रमुख कारण इस आलू में 2 फीसदी से भी कम मिठास होना है। चिप्स बनाने वाले आलू में मिठास होने पर चिप्स के स्वाद और गुणवत्ता में कमी आती है। स्नैक्स निर्माण करने वाली अधिकतर बड़ी कंपनियां मालवा अंचल के आलू का ही प्रयोग करती हैं। इनमें लेश, बालाजी, एवरेस्ट, यलो डायमंड प्रमुख कंपनियां है।
आकंड़ों के अनुसार, प्रदेश में प्रत्येक वर्ष लगभग 11 लाख टन आलू का उत्पादन किया जाता है, जोकि 15 टन प्रति हेक्टेयर में उत्पादित होता है। इनका अधिकतर प्रयोग चिप्स और स्नैक्स बनाने के लिए होता है। उल्लेखनीय है कि भारत में लगभग 14 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा का स्नैक्स बाजार मौजूद है।
साथ ही संगठित बाजार में प्रति वर्ष लगभग 15 से 20 फीसदी की तेजी देखी जा रही है जबकि असंगठित स्नैक्स बाजार में 8 से 10 फीसदी प्रति वर्ष का इज़ाफा हो रहा है। 1000 से भी अधिक प्रोडक्ट के साथ स्नैक्स बाजार के उपभोक्ताओं और निर्माताओं में भी वृद्धि हो रही है। इनमें आईटीसी का बिंगो, लिप चिप और मंच टाइम जैसे उत्पाद प्रमुख हैं।
वर्तमान में फ्रीटो ले, हल्दीराम, बालाजी, पेप्सी, एवरेस्ट और आईटीसी कंपनियां प्रमुख स्नैक्स निर्माताओं में शामिल है। इसमें से लगभग 45 फीसदी बाजार फ्रीटो ले का, लगभग 27 फीसदी हल्दीराम का और 11 फीसदी के करीब बाजार हिस्सा आईटीसी कंपनी का है। प्रदेश में भी कई छोटे-बड़ी तथा संगठित-असंगठित कंपनियां स्नैक्स और चिप्स निर्माण करने का काम रही हैं।
इस संबंध में इंदौर के मनप्रीत फूड यूनिट प्राइवेट लिमिटेड के तरुण जैन ने बिानेस स्टैंडर्ड को बताया कि मॉनसून के आने के बाद से चिप्स की बिक्री और निर्माण में कमी आ जाती है। इसके चलते चिप्स बनाने के लिए प्रयोग किये जाने वाले आलू की मांग भी कमजोर ही रहती है। हालाकि मॉनसून के खत्म होने के बाद मांग पहले जैसे ही तेज हो जाती है।
देवास के चिप्स आलू उत्पादक रमेश यादव ने बताया कि हर साल चिप्स वाले सोना और ज्योति जैसे आलू की खेती में मुनाफा ही होता था, लेकिन इस साल मांग कम होने से कीमतें घटी हैं।
मांग में आई 30-35 प्रतिशत की कमी
चिप्स और स्नैक्स बनाने के काम आता हैं मालवा का आलूशुगर की कम मात्रा के कारण होती है मांगस्टॉक अधिक होने से कम हुई मांग, कंपनियों के पास पर्याप्त स्टॉकमांग घटने से कीमतों में 300 रुपये तक गिरावट (बीएस हिंदी)
चिप्स बनाने के लिए प्रयोग किये जाने वाले मालवा के आलू की मांग में कमी देखी जा रही है।
पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष लगभग 30 से 35 फीसदी तक कमी आयी है। कमी का मुख्य कारण चिप्स बनाने वाली कंपनियों के पास चिप्स वाले आलू का अधिक स्टॉक होना बताया जा रहा है। इसके चलते कंपनियां पहले अपने स्टॉक के आलू से चिप्स बनाने का काम कर रही हैं।
साथ ही व्यापारियों के पास चिप्स वाले आलू का पर्याप्त मात्रा में स्टॉक होना और मॉनसून सीजन की शुरुआत को भी मांग कम होने का कारण माना जा रहा है। ऐसे में चिप्स वाले आलू के दाम में भी 250 रुपये से लेकर 300 रुपये प्रति बोरी की कमी आई है।
वर्तमान में चिप्स वाले ज्योति आलू की कीमत केवल 450-550 रुपये ही रह गई है। इसके अलावा यूपी के आलू की कीमत 350 से 400 रुपये प्रति बोरी तथा लोकल आलू की कीमत 250 से 350 रुपये प्रति बोरी ही रह गयी है।
उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश के मालवा अंचल में चिप्स बनाने के लिए प्रयोग किये जाने वाले आलू का भारी मात्रा में उत्पादन होता है। प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र के देवास, इंदौर और उज्जैन जैसे इलाके चिप्स वाले आलू के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं। लगभग 70903 हेक्टेयर में बोये जाने वाले इस आलू की अधिकतर मांग चिप्स बनाने वाली कंपनियों के द्वारा की जाती है।
इसका प्रमुख कारण इस आलू में 2 फीसदी से भी कम मिठास होना है। चिप्स बनाने वाले आलू में मिठास होने पर चिप्स के स्वाद और गुणवत्ता में कमी आती है। स्नैक्स निर्माण करने वाली अधिकतर बड़ी कंपनियां मालवा अंचल के आलू का ही प्रयोग करती हैं। इनमें लेश, बालाजी, एवरेस्ट, यलो डायमंड प्रमुख कंपनियां है।
आकंड़ों के अनुसार, प्रदेश में प्रत्येक वर्ष लगभग 11 लाख टन आलू का उत्पादन किया जाता है, जोकि 15 टन प्रति हेक्टेयर में उत्पादित होता है। इनका अधिकतर प्रयोग चिप्स और स्नैक्स बनाने के लिए होता है। उल्लेखनीय है कि भारत में लगभग 14 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा का स्नैक्स बाजार मौजूद है।
साथ ही संगठित बाजार में प्रति वर्ष लगभग 15 से 20 फीसदी की तेजी देखी जा रही है जबकि असंगठित स्नैक्स बाजार में 8 से 10 फीसदी प्रति वर्ष का इज़ाफा हो रहा है। 1000 से भी अधिक प्रोडक्ट के साथ स्नैक्स बाजार के उपभोक्ताओं और निर्माताओं में भी वृद्धि हो रही है। इनमें आईटीसी का बिंगो, लिप चिप और मंच टाइम जैसे उत्पाद प्रमुख हैं।
वर्तमान में फ्रीटो ले, हल्दीराम, बालाजी, पेप्सी, एवरेस्ट और आईटीसी कंपनियां प्रमुख स्नैक्स निर्माताओं में शामिल है। इसमें से लगभग 45 फीसदी बाजार फ्रीटो ले का, लगभग 27 फीसदी हल्दीराम का और 11 फीसदी के करीब बाजार हिस्सा आईटीसी कंपनी का है। प्रदेश में भी कई छोटे-बड़ी तथा संगठित-असंगठित कंपनियां स्नैक्स और चिप्स निर्माण करने का काम रही हैं।
इस संबंध में इंदौर के मनप्रीत फूड यूनिट प्राइवेट लिमिटेड के तरुण जैन ने बिानेस स्टैंडर्ड को बताया कि मॉनसून के आने के बाद से चिप्स की बिक्री और निर्माण में कमी आ जाती है। इसके चलते चिप्स बनाने के लिए प्रयोग किये जाने वाले आलू की मांग भी कमजोर ही रहती है। हालाकि मॉनसून के खत्म होने के बाद मांग पहले जैसे ही तेज हो जाती है।
देवास के चिप्स आलू उत्पादक रमेश यादव ने बताया कि हर साल चिप्स वाले सोना और ज्योति जैसे आलू की खेती में मुनाफा ही होता था, लेकिन इस साल मांग कम होने से कीमतें घटी हैं।
मांग में आई 30-35 प्रतिशत की कमी
चिप्स और स्नैक्स बनाने के काम आता हैं मालवा का आलूशुगर की कम मात्रा के कारण होती है मांगस्टॉक अधिक होने से कम हुई मांग, कंपनियों के पास पर्याप्त स्टॉकमांग घटने से कीमतों में 300 रुपये तक गिरावट (बीएस हिंदी)
चांदी की चमक पर बट्टा
मुंबई June 23, 2010
सोने के सरपट भागते भाव के साथ कदमताल करती चांदी भी सराफा बाजार में रिकॉर्ड दर रिकॉर्ड बना रही है।
निवेशक भी इसमें जमकर मुनाफा काट रहे हैं, इसलिए ऊंचे भाव के बावजूद इसकी मांग में कमी नहीं दिख रही है और मांग लगातार बढ़ते रहने के ही आसार हैं। इसके बावजूद मुंबई में चांदी के आभूषणों, बर्तन और फर्नीचर की गुणवत्ता रामभरोसे ही है क्योंकि यहां इन पर हॉलमार्क करने वाला एक भी केंद्र नहीं है।
दरअसल ग्राहकों को धोखे से बचाने और सोने-चांदी के जेवरों की गुणवत्ता बरकरार रखने के लिए सरकार ने 2007 से जेवरात पर हॉलमार्किंग अनिवार्य कर दी है। कानूनन अब सोने, चांदी और प्लेटिनम के आभूषणों पर हॉलमार्क लगाना अनिवार्य है।
ज्यादातर सोना कारोबारी ऐसा करने भी लगे हैं, लेकिन चांदी को अभी हॉलमार्क मयस्सर नहीं हुआ है। सरकारी नियमों के बावजूद बिना हॉलमार्क के चांदी के जेवर और सामान खुलेआम बिकते हैं। कारोबारियों का कहना है कि इसकी वजह मुंबई में चांदी का एक भी हॉलमार्किंग केंद्र नहीं होना है।
चांदी की वस्तुएं बेचने वाले देश के एकमात्र मॉल सिल्वर इंपोरियम के चेयरमैन कांति मेहता भी यही मानते हैं। उनके मुताबिक हॉलमार्किंग के लिए चांदी का सामान दिल्ली भेजना पड़ता है। हॉलमार्किंग पर प्रति नग 15 रुपये खर्च आता है और माल की ढुलाई 300 रुपये प्रति किलोग्राम पड़ती है, जो छोटे कारोबारियों के लिए मुमकिन नहीं है।
हॉलमार्किंग नहीं होने के बावजूद मुंबई में चांदी का कारोबार अच्छा खासा होता है। बॉम्बे बुलियन एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश हुंडिया के मुताबिक मुंबई में महीने भर में तकरीबन 15 टन चांदी की खपत होती है। निवेशकों को पिछले 3 साल में इस धातु ने 55 फीसदी रिटर्न दिया है। लेकिन एसोसिएशन को भी हॉलमार्किंग केंद्र की कमी खलती है।
सरकारी नियमों के मुताबिक केंद्र खोलने के लिए कम से कम 800 वर्गफुट जमीन चाहिए, जो सोने-चांदी की मशहूर मंडी जवेरी बाजार में मिलना बेहद मुश्किल है। अगर जमीन मिल भी जाती है तो इस इलाके में उसकी कीमत 8 करोड़ रुपये से कम नहीं होगी।
मेहता के मुताबिक हॉलमार्किंग केंद्र की जमीन में में मशीनों और लाइसेंस का खर्च जोड़ दें तो रकम 8.5 करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगी, जो खर्च करना आसान नहीं।
चांदी हुई काली
मुंबई में चांदी पर हॉलमार्क के लिए नहीं है कोई केंद्र हॉलमार्क ही होता है धातु की शुद्धता का सबूतकेंद्र नहीं होने के कारण यहां बिक रही घटिया चांदीदिल्ली से हॉलमार्किंग कराना पड़ता है बहुत महंगा (बीएस हिंदी)
सोने के सरपट भागते भाव के साथ कदमताल करती चांदी भी सराफा बाजार में रिकॉर्ड दर रिकॉर्ड बना रही है।
निवेशक भी इसमें जमकर मुनाफा काट रहे हैं, इसलिए ऊंचे भाव के बावजूद इसकी मांग में कमी नहीं दिख रही है और मांग लगातार बढ़ते रहने के ही आसार हैं। इसके बावजूद मुंबई में चांदी के आभूषणों, बर्तन और फर्नीचर की गुणवत्ता रामभरोसे ही है क्योंकि यहां इन पर हॉलमार्क करने वाला एक भी केंद्र नहीं है।
दरअसल ग्राहकों को धोखे से बचाने और सोने-चांदी के जेवरों की गुणवत्ता बरकरार रखने के लिए सरकार ने 2007 से जेवरात पर हॉलमार्किंग अनिवार्य कर दी है। कानूनन अब सोने, चांदी और प्लेटिनम के आभूषणों पर हॉलमार्क लगाना अनिवार्य है।
ज्यादातर सोना कारोबारी ऐसा करने भी लगे हैं, लेकिन चांदी को अभी हॉलमार्क मयस्सर नहीं हुआ है। सरकारी नियमों के बावजूद बिना हॉलमार्क के चांदी के जेवर और सामान खुलेआम बिकते हैं। कारोबारियों का कहना है कि इसकी वजह मुंबई में चांदी का एक भी हॉलमार्किंग केंद्र नहीं होना है।
चांदी की वस्तुएं बेचने वाले देश के एकमात्र मॉल सिल्वर इंपोरियम के चेयरमैन कांति मेहता भी यही मानते हैं। उनके मुताबिक हॉलमार्किंग के लिए चांदी का सामान दिल्ली भेजना पड़ता है। हॉलमार्किंग पर प्रति नग 15 रुपये खर्च आता है और माल की ढुलाई 300 रुपये प्रति किलोग्राम पड़ती है, जो छोटे कारोबारियों के लिए मुमकिन नहीं है।
हॉलमार्किंग नहीं होने के बावजूद मुंबई में चांदी का कारोबार अच्छा खासा होता है। बॉम्बे बुलियन एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश हुंडिया के मुताबिक मुंबई में महीने भर में तकरीबन 15 टन चांदी की खपत होती है। निवेशकों को पिछले 3 साल में इस धातु ने 55 फीसदी रिटर्न दिया है। लेकिन एसोसिएशन को भी हॉलमार्किंग केंद्र की कमी खलती है।
सरकारी नियमों के मुताबिक केंद्र खोलने के लिए कम से कम 800 वर्गफुट जमीन चाहिए, जो सोने-चांदी की मशहूर मंडी जवेरी बाजार में मिलना बेहद मुश्किल है। अगर जमीन मिल भी जाती है तो इस इलाके में उसकी कीमत 8 करोड़ रुपये से कम नहीं होगी।
मेहता के मुताबिक हॉलमार्किंग केंद्र की जमीन में में मशीनों और लाइसेंस का खर्च जोड़ दें तो रकम 8.5 करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगी, जो खर्च करना आसान नहीं।
चांदी हुई काली
मुंबई में चांदी पर हॉलमार्क के लिए नहीं है कोई केंद्र हॉलमार्क ही होता है धातु की शुद्धता का सबूतकेंद्र नहीं होने के कारण यहां बिक रही घटिया चांदीदिल्ली से हॉलमार्किंग कराना पड़ता है बहुत महंगा (बीएस हिंदी)
मॉनसून के साथ चलेगा धान
मुंबई June 24, 2010
धान की बुआई वाले प्रदेशों में जून के तीसरे हफ्ते तक दक्षिण पश्चिम मॉनसून की धीमी रफ्तार का असर इस खरीफ सत्र में धान की बुआई पर होने की संभावना कम है।
इस साल अब तक की बारिश सामान्य से 5 फीसदी कम रही है और यह धान बुआई वाले क्षेत्रों में 6.5 फीसदी कम है। मगर, मॉनसून वर्षा के विस्तार के साथ कुल बुआई रकबे में बढ़त की उम्मीद है। इस सत्र में 1-2 फीसदी ज्यादा क्षेत्रफल में धान की बुआई हो सकती है, साथ ही उत्पादन भी 15 फीसदी तक बढ़ सकता है।
कृषि मंत्रालय के अनुमानों में 2010-22 में धान का रकबा 420 लाख हेक्टेयर रहने की उम्मीद है। पिछले साल धान का रकबा 361.2 लाख हेक्टेयर रहा था। विश्लेषकों के मुताबिक ये अनुमान काफी महत्वाकांक्षी हैं।
अखिल भारतीय चावल निर्यातक संघ के अध्यक्ष विजय सेतिया ने कहा, 'मॉनसून की शुरुआत काफी धीमी है, लिहाजा रकबे में मुश्किल से 1-2 फीसदी की बढ़त हो सकती है। हालांकि, उत्पादन 15 फीसदी तक बढ़ सकता है क्योंकि सत्र के बीच में अच्छी बारिश से चावल के दाने अच्छे होंगे।'
अमेरिकी कृषि विभाग ने अपनी हालिया रिपोर्ट में अनुमान लगाया है कि इस साल सामान्य मॉनसून की वजह से भारत का चावल उत्पादन 16 फीसदी बढ़कर 990 लाख टन रह सकता है। पिछले साल कमजोर मॉनसून के चलते चावल का उत्पादन 12 फीसदी घटकर 875 लाख टन रहा था।
वहीं, 2008-09 में चावल का बंपर उत्पादन हुआ था। यह 992 लाख टन रहा था। धान बुआई का रकबा खरीफ सत्र में 80-85 फीसदी और रबी सत्र में 15-20 फीसदी के बीच रहा है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक खरीफ में धान का रकबा 18 जून 2010 को पिछले साल के मुकाबले 6.5 फीसदी घटकर 10.97 लाख हेक्टेयर रहा है।
पिछले साल इस समय ते 11.73 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई थी। इस साल बारिश में अत तक 5 फीसदी की कमी से रकबा कम रहा है। धान की बुआई अभी शुरुआती चरण में है। हालांकि, राज्यों से मिले आंकड़ों से पता चलता है कि इस बार खरीफ सत्र में केरल, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल में पिछले साल के मुकाबले धान की बुआई ज्यादा रकबे में हो रही है।
इस साल धान की बुआई 10.97 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गई है जो पिछले हफ्ते के मुकाबले 3.75 लाख हेक्टेयर ज्यादा है। उत्तर भारत के धान बुआई वाले ज्यादातर प्रदेशों में जून के अंतिम सप्ताह में बारिश शुरू हो जाती है जब किसान आमतौर पर धान के पौधों की बुआई शुरू कर देते हैं।
पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में मॉनसून से पहले बीच-बीच में बारिश होने से किसानों को खेतों में धान के बीज बोने के लिए जरूरी नमी मिल गई। मगर, पौधों की बुआई के साथ पानी की जरूरत बढ़ती जाती है।
देश के एक प्रमुख चावल शोध संस्थान के विश्लेषक का कहना है, 'यह धान की बुआई के लिए अनुकूल समय है।' धान की फसल के लिए काफी पानी की जरूरत होती है। बंपर पैदावार के लिए लगातार 90-120 दिनों तक खेतों में 2-3 इंच पानी जमा रहने की जरूरत होती है।
भारतीय मौसम विभाग ने इस साल सामान्य बारिश आ अनुमान लगाया है और इसमें मामूली रूप से 5 फीसदी कमी की आशंका जताई है। हालांकि, मॉनसून विभाग के अनुमान ज्यादातर मौकों पर गलत साबित हुए हैं, लेकिन धान के रकबे में सुधार होगा।
अनाज, चावल और तिलहन व्यापार संघ (जीआरओएमए) के अध्यक्ष शरद मारू का कहना है, 'इस समय धान के रकबे का अनुमान लगाना जल्दबाजी होगी क्योंकि अभी पूरा सत्र बाकी है। धान की बुआई कुल बारिश और उसके विस्तार पर निर्भर करती है, लेकिन हम मान सकते हैं कि मॉनसून के आगे बढ़ने के साथ रकबा बढ़ेगा।'
धान का उत्पादन
साल उत्पादन उत्पादकता (लाख टन) (कि।ग्रा. प्रति हेक्टेयर)2003-04 885.3 20782007-08 966.9 22022008-09 991.5 21862009-10 876.60 2425स्त्रोत : कृषि मंत्रालय (बीएस हिंदी)
धान की बुआई वाले प्रदेशों में जून के तीसरे हफ्ते तक दक्षिण पश्चिम मॉनसून की धीमी रफ्तार का असर इस खरीफ सत्र में धान की बुआई पर होने की संभावना कम है।
इस साल अब तक की बारिश सामान्य से 5 फीसदी कम रही है और यह धान बुआई वाले क्षेत्रों में 6.5 फीसदी कम है। मगर, मॉनसून वर्षा के विस्तार के साथ कुल बुआई रकबे में बढ़त की उम्मीद है। इस सत्र में 1-2 फीसदी ज्यादा क्षेत्रफल में धान की बुआई हो सकती है, साथ ही उत्पादन भी 15 फीसदी तक बढ़ सकता है।
कृषि मंत्रालय के अनुमानों में 2010-22 में धान का रकबा 420 लाख हेक्टेयर रहने की उम्मीद है। पिछले साल धान का रकबा 361.2 लाख हेक्टेयर रहा था। विश्लेषकों के मुताबिक ये अनुमान काफी महत्वाकांक्षी हैं।
अखिल भारतीय चावल निर्यातक संघ के अध्यक्ष विजय सेतिया ने कहा, 'मॉनसून की शुरुआत काफी धीमी है, लिहाजा रकबे में मुश्किल से 1-2 फीसदी की बढ़त हो सकती है। हालांकि, उत्पादन 15 फीसदी तक बढ़ सकता है क्योंकि सत्र के बीच में अच्छी बारिश से चावल के दाने अच्छे होंगे।'
अमेरिकी कृषि विभाग ने अपनी हालिया रिपोर्ट में अनुमान लगाया है कि इस साल सामान्य मॉनसून की वजह से भारत का चावल उत्पादन 16 फीसदी बढ़कर 990 लाख टन रह सकता है। पिछले साल कमजोर मॉनसून के चलते चावल का उत्पादन 12 फीसदी घटकर 875 लाख टन रहा था।
वहीं, 2008-09 में चावल का बंपर उत्पादन हुआ था। यह 992 लाख टन रहा था। धान बुआई का रकबा खरीफ सत्र में 80-85 फीसदी और रबी सत्र में 15-20 फीसदी के बीच रहा है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक खरीफ में धान का रकबा 18 जून 2010 को पिछले साल के मुकाबले 6.5 फीसदी घटकर 10.97 लाख हेक्टेयर रहा है।
पिछले साल इस समय ते 11.73 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई थी। इस साल बारिश में अत तक 5 फीसदी की कमी से रकबा कम रहा है। धान की बुआई अभी शुरुआती चरण में है। हालांकि, राज्यों से मिले आंकड़ों से पता चलता है कि इस बार खरीफ सत्र में केरल, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल में पिछले साल के मुकाबले धान की बुआई ज्यादा रकबे में हो रही है।
इस साल धान की बुआई 10.97 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गई है जो पिछले हफ्ते के मुकाबले 3.75 लाख हेक्टेयर ज्यादा है। उत्तर भारत के धान बुआई वाले ज्यादातर प्रदेशों में जून के अंतिम सप्ताह में बारिश शुरू हो जाती है जब किसान आमतौर पर धान के पौधों की बुआई शुरू कर देते हैं।
पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में मॉनसून से पहले बीच-बीच में बारिश होने से किसानों को खेतों में धान के बीज बोने के लिए जरूरी नमी मिल गई। मगर, पौधों की बुआई के साथ पानी की जरूरत बढ़ती जाती है।
देश के एक प्रमुख चावल शोध संस्थान के विश्लेषक का कहना है, 'यह धान की बुआई के लिए अनुकूल समय है।' धान की फसल के लिए काफी पानी की जरूरत होती है। बंपर पैदावार के लिए लगातार 90-120 दिनों तक खेतों में 2-3 इंच पानी जमा रहने की जरूरत होती है।
भारतीय मौसम विभाग ने इस साल सामान्य बारिश आ अनुमान लगाया है और इसमें मामूली रूप से 5 फीसदी कमी की आशंका जताई है। हालांकि, मॉनसून विभाग के अनुमान ज्यादातर मौकों पर गलत साबित हुए हैं, लेकिन धान के रकबे में सुधार होगा।
अनाज, चावल और तिलहन व्यापार संघ (जीआरओएमए) के अध्यक्ष शरद मारू का कहना है, 'इस समय धान के रकबे का अनुमान लगाना जल्दबाजी होगी क्योंकि अभी पूरा सत्र बाकी है। धान की बुआई कुल बारिश और उसके विस्तार पर निर्भर करती है, लेकिन हम मान सकते हैं कि मॉनसून के आगे बढ़ने के साथ रकबा बढ़ेगा।'
धान का उत्पादन
साल उत्पादन उत्पादकता (लाख टन) (कि।ग्रा. प्रति हेक्टेयर)2003-04 885.3 20782007-08 966.9 22022008-09 991.5 21862009-10 876.60 2425स्त्रोत : कृषि मंत्रालय (बीएस हिंदी)
जल संकट से घटा कपास का रकबा
अहमदाबाद June 24, 2010
उद्योग जगत भले ही उम्मीद कर रहा है कि इस साल कपास का रकबा बढ़ेगा, लेकिन उत्तर भारत में सिंचाई के लिए जल संकट ने बुआई का रकबा घटा दिया है।
राजस्थान और हरियाणा में बुआई का रकबा कम हुआ है, वहीं पंजाब में कपास के रकबे में महज 29000 हेक्टेयर की बढ़ोतरी हुई है। नॉर्थ इंडिया कॉटन एसोसिएशन के आंकड़ों के मुताबिक उत्तर भारत के इन तीन राज्यों में कपास की बुआई का रकबा अब तक 13.05 लाख हेक्टेयर है, जो पिछले साल की समान अवधि में हुई बुआई की तुलना में 1.42 लाख हेक्टेयर कम है।
2009-10 में इस अवधि में 14.47 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में कपास की बुआई हुई थी। इन तीन राज्यों में कपास की खेती सिंचाई पर निर्भर है। कपास की बुआई अप्रैल के मध्य में शुरू होती है और जून के दूसरे सप्ताह तक ज्यादातर हिस्सों में बुआई का काम पूरा हो जाता है।
हरियाणा और राजस्थान में कपास की बुआई का रकबा खरीफ 2010 में गिरकर क्रमश: 4.50 लाख हेक्टेयर और 3.30 लाख हेक्टेयर रह गया है, जबकि 2009 के खरीफ सत्र में बुआई का रकबा क्रमश: 5.07 लाख हेक्टेयर और 4.44 लाख हेक्टेयर था।
वहीं दूसरी ओर पंजाब में कपास के रकबे में 29000 हेक्टेयर की बढ़ोतरी हुई है और 2009 के 4.96 लाख हेक्टेयर की तुलना में खरीफ 2010 में बुआई का रकबा बढ़कर 5.25 लाख हेक्टेयर हो गया है।
नॉर्थ इंडिया कॉटन एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश राठी ने कहा, 'नहरों में पानी न होने की वजह से उत्तर भारत में कपास की बुआई के क्षेत्रफल में कमी आई है। खासकर हरियाणा और राजस्थान में इसका असर ज्यादा है।' इसके पहले कपास संगठन ने कपास के रकबे में 5-10 प्रतिशत की बढ़ोतरी का अनुमान लगाया था।
हालांकि कपास संगठन का कहना है कि उत्तर भारत में चल रही गर्म हवाओं का असर कपास के उन पौधों पर नहीं पड़ेगा, जिनकी बुआई जून के पहले हुई है। चालू माह के पहले दो सप्ताह में बहुत कम बुआई हुई है, जिन पर गर्मी का असर हो सकता है। बुआई के रकबे में कमी को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है कि उत्तर भारत में कपास का उत्पादन गिरकर 27-35 लाख गांठ (1 गांठ 170 किलो की) रह सकता है। इसके पहले कपास वर्ष में 40 लाख गांठ कपास का उत्पादन हुआ था।
बहरहाल कपास संगठन और सरकारी अधिकारियों का मानना है कि कुल मिलाकर इस साल कपास के उत्पादन में बढ़ोतरी होगी। गुजरात, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश जैसे बड़े कपास उत्पादक राज्यों में कपास की बुआई पहले ही शुरू हो चुकी है। अहमदाबाद की कपास कारोबार करने वाली कंपनी अरुण दलाल ऐंड कंपनी के मालिक अरुण दलाल ने कहा, 'पूरे देश में करीब 30 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में कपास की बुआई हो चुकी है।'
विश्लेषकों का मानना है कि कपास की बुआई का रकबा 2010-11 में बढ़कर 110 लाख हेक्टेयर हो सकता है, जबकि 2009-10 में बुआई का रकबा 101 लाख हेक्टेयर था। कॉटन एसोसिएशन आफ इंडिया के मई के अनुमानों के मुताबिक भी देश में कपास के उत्पादन में बढ़ोतरी की उम्मीद जताई गई है। (बीएस हिंदी)
उद्योग जगत भले ही उम्मीद कर रहा है कि इस साल कपास का रकबा बढ़ेगा, लेकिन उत्तर भारत में सिंचाई के लिए जल संकट ने बुआई का रकबा घटा दिया है।
राजस्थान और हरियाणा में बुआई का रकबा कम हुआ है, वहीं पंजाब में कपास के रकबे में महज 29000 हेक्टेयर की बढ़ोतरी हुई है। नॉर्थ इंडिया कॉटन एसोसिएशन के आंकड़ों के मुताबिक उत्तर भारत के इन तीन राज्यों में कपास की बुआई का रकबा अब तक 13.05 लाख हेक्टेयर है, जो पिछले साल की समान अवधि में हुई बुआई की तुलना में 1.42 लाख हेक्टेयर कम है।
2009-10 में इस अवधि में 14.47 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में कपास की बुआई हुई थी। इन तीन राज्यों में कपास की खेती सिंचाई पर निर्भर है। कपास की बुआई अप्रैल के मध्य में शुरू होती है और जून के दूसरे सप्ताह तक ज्यादातर हिस्सों में बुआई का काम पूरा हो जाता है।
हरियाणा और राजस्थान में कपास की बुआई का रकबा खरीफ 2010 में गिरकर क्रमश: 4.50 लाख हेक्टेयर और 3.30 लाख हेक्टेयर रह गया है, जबकि 2009 के खरीफ सत्र में बुआई का रकबा क्रमश: 5.07 लाख हेक्टेयर और 4.44 लाख हेक्टेयर था।
वहीं दूसरी ओर पंजाब में कपास के रकबे में 29000 हेक्टेयर की बढ़ोतरी हुई है और 2009 के 4.96 लाख हेक्टेयर की तुलना में खरीफ 2010 में बुआई का रकबा बढ़कर 5.25 लाख हेक्टेयर हो गया है।
नॉर्थ इंडिया कॉटन एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश राठी ने कहा, 'नहरों में पानी न होने की वजह से उत्तर भारत में कपास की बुआई के क्षेत्रफल में कमी आई है। खासकर हरियाणा और राजस्थान में इसका असर ज्यादा है।' इसके पहले कपास संगठन ने कपास के रकबे में 5-10 प्रतिशत की बढ़ोतरी का अनुमान लगाया था।
हालांकि कपास संगठन का कहना है कि उत्तर भारत में चल रही गर्म हवाओं का असर कपास के उन पौधों पर नहीं पड़ेगा, जिनकी बुआई जून के पहले हुई है। चालू माह के पहले दो सप्ताह में बहुत कम बुआई हुई है, जिन पर गर्मी का असर हो सकता है। बुआई के रकबे में कमी को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है कि उत्तर भारत में कपास का उत्पादन गिरकर 27-35 लाख गांठ (1 गांठ 170 किलो की) रह सकता है। इसके पहले कपास वर्ष में 40 लाख गांठ कपास का उत्पादन हुआ था।
बहरहाल कपास संगठन और सरकारी अधिकारियों का मानना है कि कुल मिलाकर इस साल कपास के उत्पादन में बढ़ोतरी होगी। गुजरात, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश जैसे बड़े कपास उत्पादक राज्यों में कपास की बुआई पहले ही शुरू हो चुकी है। अहमदाबाद की कपास कारोबार करने वाली कंपनी अरुण दलाल ऐंड कंपनी के मालिक अरुण दलाल ने कहा, 'पूरे देश में करीब 30 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में कपास की बुआई हो चुकी है।'
विश्लेषकों का मानना है कि कपास की बुआई का रकबा 2010-11 में बढ़कर 110 लाख हेक्टेयर हो सकता है, जबकि 2009-10 में बुआई का रकबा 101 लाख हेक्टेयर था। कॉटन एसोसिएशन आफ इंडिया के मई के अनुमानों के मुताबिक भी देश में कपास के उत्पादन में बढ़ोतरी की उम्मीद जताई गई है। (बीएस हिंदी)
एनएसईएल पर जिंस में निवेश के लिए कैश सेगमेंट
मुंबई June 24, 2010
नैशनल स्पॉट एक्सचेंज (एनएसईएल) पर जिंसों में निवेश को प्रोत्साहित करने लिए कैश या निवेश सेगमेंट शुरू करने की घोषणा की गई। इस सेगमेंट में ई-श्रृंखला के अंतर्गत 15 जिंसों के उत्पाद खरीद-बिक्री के लिए उपलब्ध कराए जाएंगे।
जिंस एक्सचेंज प्राय: भाव जोखिम से प्रतिरक्षा के लिए हेज की सुविधा उपलब्ध कराते हैं, ताकि निवेशक पैसा डाल सकें और उसके प्रतिलाभ का फायदा ले सकें। नैशनल स्पॉट एक्सचेंज के प्रबंध निदेशक एवं सीईओ अंजनि सिन्हा ने कहा कि एनएसईएल पर एक साल में ऐसे लघु अनुबंधों को मिल रहे प्रतिसाद से हमें अत्यंत खुशी है। ई-श्रृंखला इसका ही हिस्सा है।
ई-गोल्ड और ई-सिल्वर हमारे बेहतरीन उत्पाद हैं जो कैश सेगमेंट में नई कारोबारी क्रांति का निर्माण करेंगे। एक निवेशक 2000 रु पये का भी निवेश कर सकता है। साथ में एक एचएनआई 5 लाख रुपये तक भी इसमें डाल सकते हैं।
आने वाले दिनों में पूरे देश में अपने उत्पादों के विस्तार के लिये ई-श्रृंखला के नए उत्पाद लांच करेंगे। शेयरों की घट-बढ़ से चिंतित निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो विविधकृत करके कमोडिटी सेक्टर में ऐसे निवेश उत्पादों का लाभ लेना चाहिए।
ई-श्रृंखला के अंतर्गत एनएसईएल पर ई-गोल्ड और ई-सिल्वर के उत्पाद पहले ही शुरू किये जा चुके हैं। एनएसईएल की अब ई-कॉपर, ई-जिंक आदि के विभिन्न जिंसों के उत्पाद लांच करने की योजना है। इन उत्पादों को निवेशकों के अनुकूल बनाया गया है। इनके माध्यम से निवेशक अब शेयरों की तरह सोने में 1 ग्राम और चांदी 100 ग्राम तक डिमैट फार्म में निवेश कर सकते है।
ई-श्रृंखला के उत्पादों में निवेश करने के इच्छुकों को एनएसईएल के सदस्यों के यहां एक्सचेंज से संबंध डीपी के पास डीमेट खाता खोलना होगा। ताकि ई-श्रृंखला के उत्पादों को खरीदे जाने के बाद इसमें रखा जा सके और बेचने के समय इसका इस्तेमाल किया जा सके। क्रय सौदों के दौरान निवेशकों को दो चक्रीय अनुबंध के अंतर्गत क्रय मूल्य से भुगतान करना पड़ता है। (बीएस हिंदी)
नैशनल स्पॉट एक्सचेंज (एनएसईएल) पर जिंसों में निवेश को प्रोत्साहित करने लिए कैश या निवेश सेगमेंट शुरू करने की घोषणा की गई। इस सेगमेंट में ई-श्रृंखला के अंतर्गत 15 जिंसों के उत्पाद खरीद-बिक्री के लिए उपलब्ध कराए जाएंगे।
जिंस एक्सचेंज प्राय: भाव जोखिम से प्रतिरक्षा के लिए हेज की सुविधा उपलब्ध कराते हैं, ताकि निवेशक पैसा डाल सकें और उसके प्रतिलाभ का फायदा ले सकें। नैशनल स्पॉट एक्सचेंज के प्रबंध निदेशक एवं सीईओ अंजनि सिन्हा ने कहा कि एनएसईएल पर एक साल में ऐसे लघु अनुबंधों को मिल रहे प्रतिसाद से हमें अत्यंत खुशी है। ई-श्रृंखला इसका ही हिस्सा है।
ई-गोल्ड और ई-सिल्वर हमारे बेहतरीन उत्पाद हैं जो कैश सेगमेंट में नई कारोबारी क्रांति का निर्माण करेंगे। एक निवेशक 2000 रु पये का भी निवेश कर सकता है। साथ में एक एचएनआई 5 लाख रुपये तक भी इसमें डाल सकते हैं।
आने वाले दिनों में पूरे देश में अपने उत्पादों के विस्तार के लिये ई-श्रृंखला के नए उत्पाद लांच करेंगे। शेयरों की घट-बढ़ से चिंतित निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो विविधकृत करके कमोडिटी सेक्टर में ऐसे निवेश उत्पादों का लाभ लेना चाहिए।
ई-श्रृंखला के अंतर्गत एनएसईएल पर ई-गोल्ड और ई-सिल्वर के उत्पाद पहले ही शुरू किये जा चुके हैं। एनएसईएल की अब ई-कॉपर, ई-जिंक आदि के विभिन्न जिंसों के उत्पाद लांच करने की योजना है। इन उत्पादों को निवेशकों के अनुकूल बनाया गया है। इनके माध्यम से निवेशक अब शेयरों की तरह सोने में 1 ग्राम और चांदी 100 ग्राम तक डिमैट फार्म में निवेश कर सकते है।
ई-श्रृंखला के उत्पादों में निवेश करने के इच्छुकों को एनएसईएल के सदस्यों के यहां एक्सचेंज से संबंध डीपी के पास डीमेट खाता खोलना होगा। ताकि ई-श्रृंखला के उत्पादों को खरीदे जाने के बाद इसमें रखा जा सके और बेचने के समय इसका इस्तेमाल किया जा सके। क्रय सौदों के दौरान निवेशकों को दो चक्रीय अनुबंध के अंतर्गत क्रय मूल्य से भुगतान करना पड़ता है। (बीएस हिंदी)
डिटर्जेंट बनाने वालों को राहत
मुंबई June 24, 2010
साबुन और डिटर्जेंट बनाने में काम आने वाले लीनियर एल्काइल बेंजीन (एलएबी) की कीमतों में सालाना आधार पर 17 फीसदी की उछाल आने के बाद अब स्थिरता आ गई है।
कृत्रिम डिटर्जेंट और साबुन बनाने में आवश्यक कच्चेमाल के तौर पर एलएबी का इस्तेमाल किया जाता है। कैपिटल ऑनलाइन आंकड़ों के मुताबिक एलएबी उत्पादन का करीब 95 फीसदी घरेलू कंपनियों द्वारा कृत्रिम डिटर्जेंट बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। बाकी 5 फीसदी का इस्तेमाल तरल डिटर्जेंट, चमड़ा प्रसंस्करण, कीटनाशक और पेंट उद्योग में होता है।
कृत्रिम डिटर्जेंट निर्माण की लागत में 45 फीसदी हिस्सा एलएबी का होता है। एलएबी के निर्माण से जुड़े सूत्रों के मुताबिक कीमतों में नरमी आने की मुख्य वजह आपूर्ति बढ़ना है जबकि इस बीच मांग पहले जितनी ही है।
सूत्रों का कहना है, 'एलएबी बनाने वाली कई विदेशी इकाइयों को मांग में कमीका सामना करना पड़ रहा है, जिससे ज्यादातर इकाइयां या तो क्षमता से नीचे काम कर रही हैं या बंद हो रही हैं। वैश्विक स्तर पर मांग में कमी के चलते वैश्विक कंपनियां अपना माल भारत भेज रही हैं। घरेलू उत्पादकों को अतिरिक्त आपूर्ति से मुकाबला करना होगा। एलएबी के कच्चेमाल केरोसिन और बेंजीन की कीमतों में भी कमी आ सकती है।'
घरेलू उद्योग ने पहले सुरक्षा शुल्क या ऐंटी डंपिंग शुल्क लगाने की मांग की थी जो सरकार की ओर से ठुकरा दी गई। लिहाजा एलएबी के प्राथमिक स्त्रोत कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के बिना इसकी कीमतों में बढत की वजह समझ नहीं आई। उद्योग सूत्रों ने कहा कि ज्यादा आपूर्ति से घरेलू उत्पादकों की परिचालन क्षमता पर कोई असर नहीं है क्योंकि उद्योग ने प्रतिस्पर्धी कीमत रणनीति अपनाई है।
सूत्रों ने कहा कि कीमतों में बहुत ज्यादा गिरावट नहीं आएगी और एक सीमित दायरे में कारोबार होगा क्योंकि घरेलू बाजार में एलएबी का कोई नजदीकी पूरक नहीं हैं। डिटर्जेंट उद्योग में ग्लाइकॉल या ओलेफिन का इस्तेमाल किया गया है, लेकिन इसके बाद गुणवत्ता को लेकर भरोसा नहीं दिया जा सका है।
लिहाजा औद्योगिक सूत्रों का मानना है कि एलएबी की कीमतें कुछ समय के लिए स्थिर रहेंगी, लेकिन एक महीने के भीतर इनमें 500-1,000 रुपये प्रति टन की नरमी आ सकती है। एलएबी की कीमतें मई 2010 में 89,200 रुपये प्रति टन चल रही थीं और इनमें सालाना आधार पर 17 फीसदी की बढ़त दर्ज हुई है। मई 2009 में कीमतें 76,200 रुपये प्रति टन थीं। (बीएस हिंदी)
साबुन और डिटर्जेंट बनाने में काम आने वाले लीनियर एल्काइल बेंजीन (एलएबी) की कीमतों में सालाना आधार पर 17 फीसदी की उछाल आने के बाद अब स्थिरता आ गई है।
कृत्रिम डिटर्जेंट और साबुन बनाने में आवश्यक कच्चेमाल के तौर पर एलएबी का इस्तेमाल किया जाता है। कैपिटल ऑनलाइन आंकड़ों के मुताबिक एलएबी उत्पादन का करीब 95 फीसदी घरेलू कंपनियों द्वारा कृत्रिम डिटर्जेंट बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। बाकी 5 फीसदी का इस्तेमाल तरल डिटर्जेंट, चमड़ा प्रसंस्करण, कीटनाशक और पेंट उद्योग में होता है।
कृत्रिम डिटर्जेंट निर्माण की लागत में 45 फीसदी हिस्सा एलएबी का होता है। एलएबी के निर्माण से जुड़े सूत्रों के मुताबिक कीमतों में नरमी आने की मुख्य वजह आपूर्ति बढ़ना है जबकि इस बीच मांग पहले जितनी ही है।
सूत्रों का कहना है, 'एलएबी बनाने वाली कई विदेशी इकाइयों को मांग में कमीका सामना करना पड़ रहा है, जिससे ज्यादातर इकाइयां या तो क्षमता से नीचे काम कर रही हैं या बंद हो रही हैं। वैश्विक स्तर पर मांग में कमी के चलते वैश्विक कंपनियां अपना माल भारत भेज रही हैं। घरेलू उत्पादकों को अतिरिक्त आपूर्ति से मुकाबला करना होगा। एलएबी के कच्चेमाल केरोसिन और बेंजीन की कीमतों में भी कमी आ सकती है।'
घरेलू उद्योग ने पहले सुरक्षा शुल्क या ऐंटी डंपिंग शुल्क लगाने की मांग की थी जो सरकार की ओर से ठुकरा दी गई। लिहाजा एलएबी के प्राथमिक स्त्रोत कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के बिना इसकी कीमतों में बढत की वजह समझ नहीं आई। उद्योग सूत्रों ने कहा कि ज्यादा आपूर्ति से घरेलू उत्पादकों की परिचालन क्षमता पर कोई असर नहीं है क्योंकि उद्योग ने प्रतिस्पर्धी कीमत रणनीति अपनाई है।
सूत्रों ने कहा कि कीमतों में बहुत ज्यादा गिरावट नहीं आएगी और एक सीमित दायरे में कारोबार होगा क्योंकि घरेलू बाजार में एलएबी का कोई नजदीकी पूरक नहीं हैं। डिटर्जेंट उद्योग में ग्लाइकॉल या ओलेफिन का इस्तेमाल किया गया है, लेकिन इसके बाद गुणवत्ता को लेकर भरोसा नहीं दिया जा सका है।
लिहाजा औद्योगिक सूत्रों का मानना है कि एलएबी की कीमतें कुछ समय के लिए स्थिर रहेंगी, लेकिन एक महीने के भीतर इनमें 500-1,000 रुपये प्रति टन की नरमी आ सकती है। एलएबी की कीमतें मई 2010 में 89,200 रुपये प्रति टन चल रही थीं और इनमें सालाना आधार पर 17 फीसदी की बढ़त दर्ज हुई है। मई 2009 में कीमतें 76,200 रुपये प्रति टन थीं। (बीएस हिंदी)
उत्पादन बढ़ने के बावजूद बेहतर गुणवत्ता के सेब की होगी कमी
नई दिल्ली June 24, 2010
सेब उत्पादक इलाकों में ओले पड़ने से इसकी फसल को नुकसान हुआ है। उत्पादकों का कहना है कि इस बार अधिक ओले पड़ने से सेब की गुणवत्ता काफी खराब हो गई है।
वहीं पिछले साल के मुकाबले अनुकूल मौसम की वजह से सेब का उत्पादन 40 फीसदी से अधिक बढ़ने का अनुमान है, लेकिन उत्पादकों को बेहतर गुणवत्ता के अभाव में सेब के दाम कम मिलने वाले हैं।
अखिल भारतीय सेब उत्पादक संघ के अध्यक्ष रवींद्र चौहान ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि सेब उत्पादक राज्य जम्मू-कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड में हाल ही में ओले पड़ने से सेब की गुणवत्ता खराब हुई है।
उनके मुताबिक कश्मीर में बर्फ अधिक पड़ने से भी सेब को नुकसान हुआ है। इससे आने वाले दिनों में बेहतर गुणवत्ता वाले सेब की बाजार में उपलब्धता कम रहने वाली है। ऐसे में उत्पादकों को उत्पादन बढ़ने के बाद भी अधिक फायदा नहीं होने वाला है।
हिमाचल प्रदेश में सबसे अधिक सेब की गुणवत्ता में कमी आने की आशंका है। हिमाचल प्रदेश सेब उत्पादक संघ के अध्यक्ष लेखराज चौहान ने कहा कि वैसे तो हर साल इन दिनों ओले पड़ते हैं, लेकिन इस बार बीते वर्षों की तुलना में अधिक ओले पड़े है। इस वजह से राज्य में अच्छी गुणवत्ता वाले सेब की 30 फीसदी तक कमी रहने की आशंका है।
उधर, देश में सेब का कुल उत्पादन पिछले साल से अधिक रहने का अनुमान है। रवींद्र चौहान के अनुसार अनुकूल मौसम के चलते कश्मीर में सेब का उत्पादन 8-9 करोड़ बॉक्स (20 किलोग्राम) से बढ़कर 11-12 करोड़ और हिमाचल प्रदेश में उत्पादन दोगुने से अधिक बढ़कर 2-2.5 करोड़ बॉक्स होने का अनुमान है। इस तरह कुल उत्पादन में 40 फीसदी से अधिक बढ़ोतरी हो सकती है।
उत्पादकों के मुताबिक अधिक उत्पादन और बेहतर गुणवत्ता के अभाव में कम दाम मिलने की संभावना है। चौहान के मुताबिक इस बार उत्पादकों को औसतन 700-900 रुपये प्रति बॉक्स सेब की कीमत मिलने के आसार है।
उन्होंने कहा हि पिछले साल उत्पादन में भारी कमी के चलते उत्पादकों को औसतन 1000-1200 रुपये प्रति बॉक्स कीमत मिली थी। इस तरह उपभोक्ताओं को पिछले साल की तुलना में सेब खरीदने के लिए अधिक दाम नहीं चुकाने होंगे।
दिल्ली की फल एवं सब्जी मंडी आजादपुर के सेब कारोबारी सोनू सिंह का कहना है कि अगले महीने से नये सेब की आवक बाजार में होने लगेगी। उत्पादकों के अनुसार हिमाचल में अगेती किस्म के सेब की आवक शुरू होने लगी है। (बीएस हिंदी)
सेब उत्पादक इलाकों में ओले पड़ने से इसकी फसल को नुकसान हुआ है। उत्पादकों का कहना है कि इस बार अधिक ओले पड़ने से सेब की गुणवत्ता काफी खराब हो गई है।
वहीं पिछले साल के मुकाबले अनुकूल मौसम की वजह से सेब का उत्पादन 40 फीसदी से अधिक बढ़ने का अनुमान है, लेकिन उत्पादकों को बेहतर गुणवत्ता के अभाव में सेब के दाम कम मिलने वाले हैं।
अखिल भारतीय सेब उत्पादक संघ के अध्यक्ष रवींद्र चौहान ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि सेब उत्पादक राज्य जम्मू-कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड में हाल ही में ओले पड़ने से सेब की गुणवत्ता खराब हुई है।
उनके मुताबिक कश्मीर में बर्फ अधिक पड़ने से भी सेब को नुकसान हुआ है। इससे आने वाले दिनों में बेहतर गुणवत्ता वाले सेब की बाजार में उपलब्धता कम रहने वाली है। ऐसे में उत्पादकों को उत्पादन बढ़ने के बाद भी अधिक फायदा नहीं होने वाला है।
हिमाचल प्रदेश में सबसे अधिक सेब की गुणवत्ता में कमी आने की आशंका है। हिमाचल प्रदेश सेब उत्पादक संघ के अध्यक्ष लेखराज चौहान ने कहा कि वैसे तो हर साल इन दिनों ओले पड़ते हैं, लेकिन इस बार बीते वर्षों की तुलना में अधिक ओले पड़े है। इस वजह से राज्य में अच्छी गुणवत्ता वाले सेब की 30 फीसदी तक कमी रहने की आशंका है।
उधर, देश में सेब का कुल उत्पादन पिछले साल से अधिक रहने का अनुमान है। रवींद्र चौहान के अनुसार अनुकूल मौसम के चलते कश्मीर में सेब का उत्पादन 8-9 करोड़ बॉक्स (20 किलोग्राम) से बढ़कर 11-12 करोड़ और हिमाचल प्रदेश में उत्पादन दोगुने से अधिक बढ़कर 2-2.5 करोड़ बॉक्स होने का अनुमान है। इस तरह कुल उत्पादन में 40 फीसदी से अधिक बढ़ोतरी हो सकती है।
उत्पादकों के मुताबिक अधिक उत्पादन और बेहतर गुणवत्ता के अभाव में कम दाम मिलने की संभावना है। चौहान के मुताबिक इस बार उत्पादकों को औसतन 700-900 रुपये प्रति बॉक्स सेब की कीमत मिलने के आसार है।
उन्होंने कहा हि पिछले साल उत्पादन में भारी कमी के चलते उत्पादकों को औसतन 1000-1200 रुपये प्रति बॉक्स कीमत मिली थी। इस तरह उपभोक्ताओं को पिछले साल की तुलना में सेब खरीदने के लिए अधिक दाम नहीं चुकाने होंगे।
दिल्ली की फल एवं सब्जी मंडी आजादपुर के सेब कारोबारी सोनू सिंह का कहना है कि अगले महीने से नये सेब की आवक बाजार में होने लगेगी। उत्पादकों के अनुसार हिमाचल में अगेती किस्म के सेब की आवक शुरू होने लगी है। (बीएस हिंदी)
लागत बढ़ने और कर्ज में कटौती से चीनी कड़वी
कोलकाता/मुंबई।। इन दिनों चीनी मिलों के सितारे गर्दिश में हैं। चीनी के दाम घटने और लागत बढ़ने के बाद बैंकों की ओर से मिलने वाले कर्ज में भी कटौती होने लगी है। कुल मिलाकर ऐसे हालात से सेक्टर पर दोहरी मार पड़ रही है। फाइनेंसर उन्हीं मिलों को कर्ज दे रहे हैं जिनके पास को-जेनरेशन और डिस्टिलरी जैसे सहायक कारोबार हैं। मिल मालिकों को इस बात की चिंता सता रही है कि अगर चीनी की कीमतें और गिरीं तो बैंक उनके कर्ज की सीमा कम कर देंगे। बजाज हिंदुस्तान, बलरामपुर चीनी और रेणुका शुगर्स को कर्ज देने वाले सरकारी बैंक के एक अधिकारी ने बताया कि कैश फ्लो और पीक लेवल की जरूरतों को देखते हुए बैंक कर्ज मंजूर करते हैं। आमतौर पर एक कंपनी के कैश फ्लो का मूल्यांकन पीक लेवल की जरूरतों के मुताबिक उनके तैयार उत्पादों से होता है जबकि चीनी मिलों की वित्तीय जरूरतों का मूल्यांकन पीक समय में होने वाले गन्ने की पेराई से होता है। अधिकारी ने बताया, 'उत्पादन में बढ़ोतरी के बाद भी अगर चीनी की कीमतों में कमी की संभावना बनती है तो बैंक एथनॉल ब्लेंडिंग, शराब कंपनियों को शीरे की बिक्री और को-जेनरेशन जैसे सहायक कारोबार के आधार पर मिलों के फ्यूचर कैश फ्लो का मूल्यांकन करते हैं।' इलाहाबाद बैंक ने चीनी सेक्टर को 444 करोड़ रुपये का कर्ज दिया है। कीमतों में कमी के बाद चीनी उद्योग को लेकर बैंक ने मौजूदा वित्त वर्ष में सतर्कता बरतने का फैसला किया है। इलाहाबाद बैंक के एक अधिकारी ने बताया, 'सेक्टर को लेकर क्रिसिल के नजरिए को देखते हुए हमने फैसला किया कि कर्ज सिर्फ उन्हीं कंपनियों को मिलेगा, जिनके पास आमदनी के वैकल्पिक स्त्रोत मौजूद हैं।' देश की प्रमुख पीई फर्म राबो इक्विटी एडवाइजर्स के एमडी और चेयरमैन राजेश श्रीवास्तव ने बताया कि पीई निवेश सिर्फ उन्हीं चीनी कंपनियों में होगा, जो इंटीग्रेशन की राह पर चल रही हैं। बलरामपुर चीनी के डायरेक्टर और सीएफओ किशोर शाह ने बताया, 'बही-खातों को अनियमितता से बचाने के लिए मौजूदा कारोबारी साल में बैंक, चीनी उद्योग को लेकर सख्ती बरत सकते हैं।' चीनी की बिक्री के जरिए नकदी बढ़ने की उम्मीद करने वाली चीनी मिलें घटती कीमतों से परेशान हैं। कामकाजी पूंजी की जरूरतों को पूरा करने के लिए बैंकों से मिलने वाले कर्ज पर उनकी निर्भरता बढ़ गई है। उत्पादन लागत की तुलना में चीनी के दाम निचले स्तर जाने के बाद चीनी मिलों की कर्ज लेने की क्षमता पर बुरा असर पड़ा है। इन कारणों से महाराष्ट्र की चीनी मिलों की हालत बहुत खराब है। इन्हें 27 रुपए किलोग्राम की उत्पादन लागत से 3 रुपए पर कम पर चीनी की बिक्री करनी पड़ रही है। इससे मिलों के घाटे में जाने और इन्हें कर्ज देने वालों की रकम फंसने की आशंका पैदा हो गई है। महाराष्ट्र राज्य सहकारी चीनी मिल संघ ने भी इस बात की पुष्टि की है। उन्होंने बताया, 'चीनी के दाम घटने के बाद राज्य की मिलों पर दबाव काफी बढ़ गया है। उनके पास जल्द ही बैंक से मार्जिन कॉल आ सकती है।' महाराष्ट्र की कुल 165 मिलों में से आधी मिलें नकदी के लिए बैंकों पर निर्भर हैं। ठीकठाक नकदी रखने वाले मिलों को छोटी मिलों की तुलना में ज्यादा कर्ज मिलता है। (ई टी हिंदी)
फिर फुल क्रीम दूध की कीमत बढ़ाएगी अमूल
अहमदाबाद : देश के सबसे बड़े दूध उत्पादक अमूल ने एनसीआर में दूध की कीमत में दो रुपए वृद्धि करने का फैसला किया है। शुरुआती खबरों के मुताबिक अमूल के फुल क्रीम दूध की कीमत में दो रुपए की वृद्धि की जा सकती है। फिलहाल कंपनी ने टोन्ड और डबल टोन्ड दूध की कीमत में वृद्धि करने का फैसला नहीं किया है। गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) ने दिल्ली और गुजरात में दूध की कीमत बढ़ाने का फैसला किया है। फेडरेशन का तर्क है कि दूध के प्रोसेसिंग खर्च में वृद्धि की वजह से उसे दूध की कीमत बढ़ाने पर विचार करना पड़ रहा है। इस प्रक्रिया से जुड़े सूत्रों के मुताबिक 8,000 करोड़ रुपए की कंपनी जीसीएमएमएफ ने दिल्ली और आसपास अमूल के फुल क्रीम दूध की कीमत 30 रुपए प्रति लीटर से बढ़ाकर 32 रुपए प्रति लीटर करने का फैसला किया है। इससे पहले दिल्ली में कंपनी ने जुलाई 2009 में फुल क्रीम दूध की कीमत 26 रुपए से बढ़ाकर 28 रुपए प्रति लीटर और जनवरी 2010 में 28 रुपए से बढ़ाकर 30 रुपए प्रति लीटर कर दिया था। एनसीआर क्षेत्र के उपभोक्ता फुल क्रीम दूध अधिक खरीदते हैं, जबकि देश के पश्चिमी और पूर्वी हिस्से में टोन्ड और डबल टोन्ड दूध अधिक बिकता है। मुंबई, पुणे और कोलकाता जैसे प्रमुख बाजारों में जीसीएमएमएफ फुल क्रीम दूध के लिए ग्राहकों से 34 रुपए प्रति लीटर कीमत वसूलता है, जबकि गुजरात में इसके लिए सिर्फ 28 रुपए प्रति लीटर कीमत ली जाती है। फेडरेशन ने अब गुजरात के लिए भी दूध की कीमत बढ़ाने का फैसला किया है। दिल्ली में रोजाना 11 लाख लीटर दूध की बिक्री के साथ जीसीएमएमएफ का दावा है कि वह मार्केट लीडर है। बाजार के जानकारों के मुताबिक नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड की मदर डेयरी दिल्ली में रोजाना दस लाख लीटर से अधिक फुल क्रीम दूध बेचती है और वह दूसरे नंबर पर है। दिल्ली में रोजाना 40 लाख लीटर दूध की बिक्री होती है। अमूल के एक उच्चाधिकारी ने बताया, 'एक बार अमूल द्वारा दूध की कीमत बढ़ाए जाने के बाद मदर डेयरी और अन्य ब्रांड भी कीमत बढ़ा सकते हैं। सोमवार को इस मसले पर विचार करने के लिए जीसीएमएमएफ में शामिल 13 डेयरी के एमडी ने बैठक में हिस्सा लिया। दूधसागर डेयरी और साबर डेयरी के प्रतिनिधियों ने कहा कि वे देश के उत्तरी इलाके में दूध की आपूर्ति करते हैं और उन्हें जो नुकसान हो रहा है वह चिंता का विषय है।' सूत्रों ने जानकारी दी कि गुजरात में जीसीएमएमएफ दूध पर सबसे कम चार्ज वसूल करता है, लेकिन यहां भी कीमत बढ़ाने पर विचार हो रहा है। (ई टी हिंदी)
सोने की ऊंची कीमतों की वजह से पुरानी जेवरों की रीसाइक्लिंग बढ़ेगी: रिपोर्ट
मुंबई: सोने की ऊंची कीमतों की वजह से घरेलू मांग में गिरावट आएगी और पुराने जेवरों की रीसाइक्लिंग बढ़ेगी। सिटी इंडिया की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है। इसी महीने सोना 19,198 रुपए की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचा था। रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि सोने की कीमतों में तेजी जारी रहती है, तो घरेलू मांग की पूर्ति पुराने जेवरों को बदलने से होगी। रिपोर्ट में वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के हवाले से कहा गया है कि 2009 में सोने के खुदरा कारोबार में पुराने जेवरों अदला-बदली का योगदान 60 प्रतिशत का था। रिपोर्ट के अनुसार, लघु अवधि में सोने की कीमतों में तेजी की वजह यूरोपीय संघ का संकट तथा कागज की मुद्रा में भरोसा घटना रहेगा। सिटी इंडिया ने कहा है कि ऊंची कीमतों का असर सोने के आयात पर भी दिख रहा है। मई में सोने का आयात 16 से 17 टन रहने का अनुमान है, जबकि अप्रैल में सोने का आयात 34 टन रहा था। भारत सोने का सबसे बड़ा ग्राहक है। 2009 में भारत में सोने की मांग 480 टन रही थी। सोने की कुल मांग में जेवरात की हिस्सेदारी 75 फीसद रहती है। (ई टी हिंदी)
23 जून 2010
मई में सोने का आयात घटकर आधा रह गया
सोने के दाम जैसे-जैसे नई ऊंचाई छू रहे हैं, सोने की मांग घटती ही जा रही है। पिछले मई माह में सोने का आयात अप्रैल के मुकाबले घटकर आधा रह गया। मई के दौरान 17 टन सोने का आयात किया गया।बांबे बुलियन एसोसिएशन के आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल में 34.2 टन सोने का आयात किया गया था। मई के दौरान सोने के दाम बढ़कर करीब 18,629 रुपये प्रति दस ग्राम के स्तर पर पहुंच गया। इस दौरान विश्व बाजार में सोना बढ़कर 1248.55 डॉलर प्रति औंस (28.35 ग्राम) हो गया। ब्रोकरज फर्म एसएमसी ग्लोबल्स के एक विश्लेषक ने कहा कि सोने के आयात में गिरावट की वजह रुपये का अवमूल्यन और यूरो जोन संकट के चलते यूरो में कमजोरी रही है। इसी वजह से सोने के दाम बढ़ते चले गए। सोने का मूल्य बढ़ने से हाजिर बाजार में सोने की मांग घट गई। बुलियन एसोसिएशन के डायरक्टर सुरश हुंडिया ने कहा कि मई में डॉलर के मुकाबले रुपया 44 से घटकर 47.5 पर आ गया। अप्रैल में सोने की मांग स्टॉकिस्टों की ओर से निकली थी। उन्होंने मई में सहालगी सीजन को देखते हुए सोने की ज्यादा ख्ररीद की थी। मई के दौरान मूल्य बढ़ने के कारण खरीद कम हो गई। उन्होंने कहा कि बढ़ते मूल्य के कारण सोने का आयात निकट भविष्य में भी घट सकता है क्योंकि हाजिर बाजार में खरीद प्रभावित हो रही है। उधर सिटी इंडिया की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इस माह यानि जून में सोने के दाम बढ़कर 19,198 रुपये प्रति दस ग्राम के ऊपर निकल गया। इससे हाजिर बाजार में मांग और कम होगी। खरीदार पुराने सोने से ज्वैलरी बनवाने को ज्यादा प्राथमिकता देंगे। अगर दाम इसी तरह बढ़ते हैं तो पुराने सोने की बाजार में बिकवाली बढ़ जाएगी। इससे ज्वैलरी की मांग पूरी होने लगेगी और सोने का आयात और प्रभावित होगा। घरलू फ्यूचर एक्सचेंजों में भी सोना बढ़ता जा रहा है।कमजोर मांग से सोना व चांदी गिरीनई दिल्ली ऊंचे भावों में मांग कमजोर होने से सोने की कीमतों में 300 रुपये प्रति दस ग्राम और चांदी की कीमतों में 580 रुपये प्रति किलो की गिरावट दर्ज की गई। ऑल इंडिया सराफा एसोसिएशन के अध्यक्ष शील चंद जैन ने बताया कि दिल्ली में मंगलवार को सोने का भाव घटकर 18,850 रुपये प्रति रह गया। चांदी का भाव घटकर 29,600 रुपये प्रति किलो रह गया। उन्होंने बताया विदेशी बाजार में मुनाफावसूली आने से 21 जून को बाजार बंद होने के समय सोने का भाव घटकर 1,232 डॉलर प्रति औंस रह गया था। इसी का असर घरलू बाजार में सोने की कीमतों पर पड़ा है। चांदी का भाव भी विदेशी बाजार में 21 जून को बढ़कर 19.40 डॉलर प्रति औंस से ऊपर हो गया था जो मंगलवार को घटकर 18.85 डॉलर प्रति औंस पर कारोबार करते देखी गई। (ब्यूरो)
सस्ते अनाज से महंगाई पर लगेगी लगाम
दिनों-दिन बढ़ती महंगाई पर लगाम कसने के लिए सरकार बाजार में सस्ते भावों पर गेहूं व चावल मुहैया कराने की तैयारी कर रही है। इसके लिए चालू वित्त वर्ष की जुलाई के बाद की शेष अवधि के लिए खुले बाजार में बिक्री की नई स्कीम (ओएमएसएस) लाने पर विचार हो रहा है। स्कीम के तहत खुले बाजार में बिक्री के लिए केंद्रीय पूल से 50 लाख टन गेहूं व चावल बाजार भाव से काफी कम दाम पर उपलब्ध कराया जाएगा। योजना की सफलता सुनिश्चित करने के लिए बिक्री के नियमों को भी सरल बनाया जाएगा।खाद्य मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक नई ओएमएसएस योजना को अंतिम रूप खाद्यान्न स्टॉक और मानसून की स्थिति को ध्यान में रखते हुए दिया जाएगा। हालांकि मौजूदा ओएमएसएस योजना का लक्ष्य भी खाद्य क्षेत्र की महंगाई दर को नियंत्रण में रखने में मदद देना ही है, लेकिन नई स्कीम को ज्यादा प्रभावी नतीजे हासिल करने के उद्देश्य से तैयार किया जाएगा। इसके लिए नई स्कीम में गेहूं व चावल का दाम बाजार भाव से तो कम रखा ही जाएगा, यह मौजूदा ओएमएसएस की तुलना में भी कम होगा। साथ ही योजना को सफल बनाने के लिए बिक्री की प्रक्रिया को भी खासा सरल बनाया जाएगा। खुले बाजार में बिक्री की मौजूदा योजना के तहत केंद्र राज्य सरकारों को गेहूं व चावल उपलब्ध कराता है, जिसे बाद में खुदरा विक्रेताओं को बेचा जाता है। इसके अलावा आटा मिलों जैसे बड़े उपभोक्ताओं के लिए टेंडर जारी किए जाते हैं। लेकिन राज्य सरकारों ने अभी तक ज्यादा गेहूं व चावल नहीं लिया है। जबकि बड़े उपभोक्ताओं के लिए सरकार को दामों में 200 रुपये प्रति क्विंटल तक की कमी करनी पड़ी थी। इसके बावजूद मिलों ने अभी तक केवल 12 लाख टन गेहूं की ही खरीद की है।द केंद्रीय पूल में 1 अप्रैल, 2010 को 428 लाख टन गेहूं व चावल था। जबकि बफर के लिए सिर्फ 212 लाख टन की जरूरत होती है। मौजूदा ओएमएसएस के तहत केंद्र ने 20 लाख टन गेहूं व 10 लाख टन चावल राज्यों को अक्तूबर, 2009 से मार्च, 2010 के बीच बिक्री के लिए जारी किया था। बाद में गेहूं का उत्पादन न करने वाले राज्यों, जम्मू एवं कश्मीर व दिल्ली के लिए गेहूं बिक्री योजना को जून तक बढ़ा दिया गया था। जबकि चावल के आवंटन की योजना को सभी राज्यों के लिए 30 जून तक बढ़ा दिया गया था। इसके अलावा केंद्र ने बड़े उपभोक्ताओं के लिए 208 लाख टन के गेहूं के टेंडर जारी किए थे। लेकिन उन्होंने केवल 12 लाख टन की खरीद की, इसलिए इसकी अवधि को भी सितंबर, 2010 तक बढ़ा दिया गया है। मौजूदा समय में खुदरा विक्रेताओं को सरकार लुधियाना से किराया व न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बिक्री करती है। जबकि बड़े उपभोक्ताओं को किराए में खरीद की पूरी लागत मिलाकर बिक्री की जाती है। गेहूं का एमएसपी फिलहाल 1100 रुपये व धान की सामान्य प्रजाति का खरीद मूल्य 1,000 रुपये प्रति क्विंटल है।क्या है तैयारीनई स्कीम को ज्यादा प्रभावी नतीजे हासिल करने के उद्देश्य से तैयार किया जाएगा। इसके लिए नई स्कीम में गेहूं व चावल का दाम बाजार भाव से तो कम रखा ही जाएगा, यह मौजूदा ओएमएसएस की तुलना में भी कम होगा। साथ ही योजना को सफल बनाने के लिए बिक्री की प्रक्रिया को भी खासा सरल बनाया जाएगा। (बिज़नस भास्कर)
22 जून 2010
विदेश में सोना तो घरेलू बाजार में चांदी रिकॉर्ड लेवल पर
अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने और घरलू बाजार में चांदी के भाव बढ़कर नए शिखर पर पहुंच गए। सोमवार को अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने ने उच्चतम स्तर 1,265 डॉलर प्रति औंस का स्तर छू लिया, तो दिल्ली में चांदी का भाव बढ़कर 30,180 रुपये प्रति किलो के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। डॉलर कमजोर होने और यूरो जोन के कर्ज संकट के कारण निवेशकों की सोने में खरीद बढ़ती ही जा रही है। खास बात यह भी रही है कि सोने के दाम घरेलू बाजार में सिर्फ 3।5 फीसदी बढ़े हैं जबकि विदेशी बाजार में छह फीसदी से ज्यादा। ऑल इंडिया सराफा एसोसिएशन के अध्यक्ष शील चंद जैन ने बताया कि यूरोप में सरकारी प्रतिभूतियों की साख घट रही है। इसीलिए निवेशक सोने की खरीद को तरजीह दे रहे हैं। यही कारण है कि सोने की कीमतें बढ़कर नए शिखर पर पहुंच गई हैं। पिछले एक महीने में विदेशी बाजार में सोने का भाव 75 डॉलर प्रति औंस बढ़ा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में 19 मई को सोने का भाव 1,190 डॉलर प्रति औंस था जो सोमवार को बढ़कर 1,265 डॉलर प्रति औंस हो गया। हालांकि ऊंचे दाम पर मुनाफावसूली आने से 1,257 डॉलर प्रति औंस पर कारोबार करते देखा गया। उन्होंने बताया कि भाव ऊंचे होने के कारण घरलू बाजार में सोने के गहनों की मांग घटकर महज 25 फीसदी रह गई है। ग्राहक सोने की कीमतें नीचे आने का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन जिस तरह से यूरोप की आर्थिक स्थिति में अपेक्षित सुधार नहीं आ पा रही है। उसे देखते हुए अभी घरलू बाजार में सोने की कीमतों में गिरावट की संभावना कम ही है। एंजिल कमोडिटी के बुलियन विशेषज्ञ अनुज गुप्ता ने बताया कि पिछले पंद्रह दिनों में डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत होने से घरलू बाजार में सोने के दाम अंतरराष्ट्रीय बाजार के मुकाबले कम बढ़े हैं। डॉलर के मुकाबले रुपया पिछले दो सप्ताह में करीब दो रुपये मजबूत हुआ है। सोमवार को यह 45.74 रुपये के स्तर पर गया। घरलू बाजार में 19 मई को सोने का भाव 18,450 रुपये प्रति दस ग्राम था जो सोमवार को बढ़कर 19,150 रुपये प्रति दस ग्राम हो गया। इस तरह घरलू बाजार में भाव बमुश्किल 3.5 फीसदी बढ़े हैं जबकि विदेशी बाजार में भाव छह फीसदी से ज्यादा बढ़ चुके हैं।दिल्ली बुलियन वैलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष वी. के. गोयल ने बताया कि घरलू बाजार में चांदी के भाव बढ़कर सोमवार को नए रिकार्ड स्तर 30,180 रुपये प्रति किलो पर पहुंच गए। हालांकि इन भावों में औद्योगिक मांग कमजोर देखी गई। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी चांदी का भाव बढ़कर 19.29 डॉलर प्रति औंस हो गया। जबकि 18 जून को इसका भाव 19.17 डॉलर प्रति औंस पर बंद हुआ था।बात पते कीग्राहक सोने की कीमतें नीचे आने का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन जिस तरह से यूरोप की आर्थिक स्थिति में अपेक्षित सुधार नहीं आ रही है। उसे देखते हुए अभी घरलू बाजार में सोने की कीमतों में गिरावट की संभावना कम ही है। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
मजबूत वैश्विक रुझान से एल्युमिनियम में आई तेजी
मुंबई 06 21, 2010
वैश्विक बाजारों के मजबूत रुझान को देखते हुए घरेलू स्तर पर वायदा सौदों में एल्युमिनियम के भाव में 2।25-2.48 फीसदी की उछाल आई। सोमवार को एक किलोग्राम एल्युमिनियम का वायदा भाव 93 रुपये रहा। एल्युमीनियम वायदा के अगस्त अनुबंध में 2.25 से 2.48 फीसदी बढ़त दर्ज की गई। सोमवार को इस धातु का कारोबार 40 लॉट में इसी भाव पर हुए। इसके साथ ही मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) में एल्युमिनियम काजून अनुबंध का 2529 वायदा सौदे 2.20 से 2.48 फीसदी बढ़त के साथ 91 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर किए गये।विश्लेषकों के अनुसार लंदन मेटल एक्सचेंज में फ्रेश धातु की मांग बढऩे के कारण एल्युमिनियम के वायदा भाव में उछाल आई है। (बीएस हिंदी)
वैश्विक बाजारों के मजबूत रुझान को देखते हुए घरेलू स्तर पर वायदा सौदों में एल्युमिनियम के भाव में 2।25-2.48 फीसदी की उछाल आई। सोमवार को एक किलोग्राम एल्युमिनियम का वायदा भाव 93 रुपये रहा। एल्युमीनियम वायदा के अगस्त अनुबंध में 2.25 से 2.48 फीसदी बढ़त दर्ज की गई। सोमवार को इस धातु का कारोबार 40 लॉट में इसी भाव पर हुए। इसके साथ ही मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) में एल्युमिनियम काजून अनुबंध का 2529 वायदा सौदे 2.20 से 2.48 फीसदी बढ़त के साथ 91 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर किए गये।विश्लेषकों के अनुसार लंदन मेटल एक्सचेंज में फ्रेश धातु की मांग बढऩे के कारण एल्युमिनियम के वायदा भाव में उछाल आई है। (बीएस हिंदी)
खरीद बढ़ने से जौ तेज
नई दिल्ली June 21, 2010
स्टॉकिस्टों की खरीदारी बढ़ने से जौ के दाम 5 फीसदी से अधिक बढ़ चुके हैं। कारोबारियों का कहना है कि आने वाले समय में निर्यात मांग को देखेते हुए स्टॉकिस्ट जौ की अधिक खरीदारी कर रहे हैं।
बीते तीन सप्ताह के दौरान प्रमुख उत्पादक राज्य राजस्थान की जयपुर मंडी में जौ के दाम 50 रुपये बढ़कर 970-980 रुपये प्रति क्विंटल , दिल्ली में 60 रुपये बढ़कर 1050 रुपये प्रति क्विंटल हो चुके हैं।
जयपुर मंडी के जौ कारोबारी के.जी. झालानी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि इन दिनों स्टॉकिस्टों ने जौ की खरीदारी तेज कर दी है। इससे जौ की कीमतों में तेजी आई है। उनका कहना है कि आगे निर्यात मांग को देखते हुए जौ की मांग में इजाफा हुआ है।
गुजरात की जौ निर्यातक और घरेलू कारोबार करने वाली कंपनी बिश्नोई ट्रेडिंग कॉरपोरेशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ)संजय बिश्नोई का कहना है कि जल्द की प्रमुख जौ उत्पादक देश यूक्रेन में इसकी नई फसल खत्म होने वाली है। ऐसे में आगे भारतीय जौ की निर्यात मांग बढ़ने की उम्मीद है।
उनके मुताबिक यूक्रेन में भी जौ के दाम करीब 10 डॉलर बढ़कर 200-210 डॉलर प्रति टन हो गए है। आगे वहां इसकी कीमतें और बढ़ने की संभावना है । इसलिए भारतीय जौ के आयातक देश खासतौर पर सऊदी अरब से निर्यात मांग बढ़ने के आसार है।
बिश्नोई के अनुसार इन दिनों देश में माल्ट उद्योग की मांग भी ठीक चल रही है। इस वजह से भी कीमतों में तेजी को बल मिला है। गुजरात में जौ के दाम 50-60 रुपये बढ़कर 1060 रुपये प्रति क्विंटल हो गए हैं।
झालानी का कहना है कि आने वाले दिनों में जौ की कीमतों में 50-100 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी हो सकती है। इसकी वजह कम उत्पादन के बीच निर्यात और घरेलू मांग बढ़ना है। इसके अलावा उत्पादन में कमी से इस बार पिछले साल से जौ का स्टॉक भी कम है।
बिश्नोई ने कहा कि देश में इस समय 80-90 हजार टन जौ का स्टॉक बचा हुआ है। भारतीय कृषि मंत्रालय के तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार वर्ष 2009-10 में 12.60 लाख टन जौ का उत्पादन होने का अनुमान है, वर्ष 2008-2009 में 16.90 लाख टन जौ का उत्पादन हुआ था।
सरकार ने वर्ष 2009-10 के लिए 16 लाख टन जौ उत्पादन का लक्ष्य रखा था। सरकार ने जौ उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए इसके न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को 70 रुपये बढ़ाकर वर्ष 2009-10 के लिए 750 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया था। (बीएस हिंदी)
स्टॉकिस्टों की खरीदारी बढ़ने से जौ के दाम 5 फीसदी से अधिक बढ़ चुके हैं। कारोबारियों का कहना है कि आने वाले समय में निर्यात मांग को देखेते हुए स्टॉकिस्ट जौ की अधिक खरीदारी कर रहे हैं।
बीते तीन सप्ताह के दौरान प्रमुख उत्पादक राज्य राजस्थान की जयपुर मंडी में जौ के दाम 50 रुपये बढ़कर 970-980 रुपये प्रति क्विंटल , दिल्ली में 60 रुपये बढ़कर 1050 रुपये प्रति क्विंटल हो चुके हैं।
जयपुर मंडी के जौ कारोबारी के.जी. झालानी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि इन दिनों स्टॉकिस्टों ने जौ की खरीदारी तेज कर दी है। इससे जौ की कीमतों में तेजी आई है। उनका कहना है कि आगे निर्यात मांग को देखते हुए जौ की मांग में इजाफा हुआ है।
गुजरात की जौ निर्यातक और घरेलू कारोबार करने वाली कंपनी बिश्नोई ट्रेडिंग कॉरपोरेशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ)संजय बिश्नोई का कहना है कि जल्द की प्रमुख जौ उत्पादक देश यूक्रेन में इसकी नई फसल खत्म होने वाली है। ऐसे में आगे भारतीय जौ की निर्यात मांग बढ़ने की उम्मीद है।
उनके मुताबिक यूक्रेन में भी जौ के दाम करीब 10 डॉलर बढ़कर 200-210 डॉलर प्रति टन हो गए है। आगे वहां इसकी कीमतें और बढ़ने की संभावना है । इसलिए भारतीय जौ के आयातक देश खासतौर पर सऊदी अरब से निर्यात मांग बढ़ने के आसार है।
बिश्नोई के अनुसार इन दिनों देश में माल्ट उद्योग की मांग भी ठीक चल रही है। इस वजह से भी कीमतों में तेजी को बल मिला है। गुजरात में जौ के दाम 50-60 रुपये बढ़कर 1060 रुपये प्रति क्विंटल हो गए हैं।
झालानी का कहना है कि आने वाले दिनों में जौ की कीमतों में 50-100 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी हो सकती है। इसकी वजह कम उत्पादन के बीच निर्यात और घरेलू मांग बढ़ना है। इसके अलावा उत्पादन में कमी से इस बार पिछले साल से जौ का स्टॉक भी कम है।
बिश्नोई ने कहा कि देश में इस समय 80-90 हजार टन जौ का स्टॉक बचा हुआ है। भारतीय कृषि मंत्रालय के तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार वर्ष 2009-10 में 12.60 लाख टन जौ का उत्पादन होने का अनुमान है, वर्ष 2008-2009 में 16.90 लाख टन जौ का उत्पादन हुआ था।
सरकार ने वर्ष 2009-10 के लिए 16 लाख टन जौ उत्पादन का लक्ष्य रखा था। सरकार ने जौ उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए इसके न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को 70 रुपये बढ़ाकर वर्ष 2009-10 के लिए 750 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया था। (बीएस हिंदी)
गुजरात में बुआई तेज
अहमदाबाद June 21, 2010
मॉनसून के पहले की फुहारों के बाद गुजरात में खरीफ की फसलों की बुआई शुरू हो गई है। राज्य के कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक खरीफ सत्र में राज्य में करीब 2.81 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त जमीन पर इस सत्र में बुआई होगी।
राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा- पिछले 2-3 दिनों में राज्य में बारिश हुई है और बुआई का काम प्रगति पर है। खासकर कपास और मूंगफली की बुआई शुरू हो चुकी है। उन्होंने कहा कि राज्य में मॉनसून की प्रगति के साथ ही अन्य फसलों की बुआई भी रफ्तार पकड़ लेगी।
सरकार के आंकड़ों के मुताबिक 2009 में खरीफ सत्र में बुआई का कुल क्षेत्रफल 85-86 लाख हेक्टेयर था। इसके चलते कृषि के जानकार बुआई के आंकड़ों पर कोई संदेह नहीं जता रहे हैं। उनका कहना है कि निश्चित रूप से इस साल कपास के रकबे में बढ़ोतरी होगी, क्योंकि पिछले सत्र में कपास किसानों को बेहतर मुनाफा हुआ था। (बीएस हिंदी)
मॉनसून के पहले की फुहारों के बाद गुजरात में खरीफ की फसलों की बुआई शुरू हो गई है। राज्य के कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक खरीफ सत्र में राज्य में करीब 2.81 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त जमीन पर इस सत्र में बुआई होगी।
राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा- पिछले 2-3 दिनों में राज्य में बारिश हुई है और बुआई का काम प्रगति पर है। खासकर कपास और मूंगफली की बुआई शुरू हो चुकी है। उन्होंने कहा कि राज्य में मॉनसून की प्रगति के साथ ही अन्य फसलों की बुआई भी रफ्तार पकड़ लेगी।
सरकार के आंकड़ों के मुताबिक 2009 में खरीफ सत्र में बुआई का कुल क्षेत्रफल 85-86 लाख हेक्टेयर था। इसके चलते कृषि के जानकार बुआई के आंकड़ों पर कोई संदेह नहीं जता रहे हैं। उनका कहना है कि निश्चित रूप से इस साल कपास के रकबे में बढ़ोतरी होगी, क्योंकि पिछले सत्र में कपास किसानों को बेहतर मुनाफा हुआ था। (बीएस हिंदी)
21 जून 2010
रुपये में तेजी की वजह से गिरे सोने के भाव
मुंबई June 21, 2010
रुपये में आई तेजी के कारण देश में सोने के वायदा भाव में गिरावट आई है। रुपया मजबूत होने की वजह से सोना पिछले एक महीने में एक फीसदी से भी अधिक फिसला है। पिछले एक महीने से भी अधिक समय से रुपये में लगातार तेजी का रूख बना हुआ है और सोमवार को यह एक महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। सोने का अगस्त वायदा अनुबंध में सबसे अधिक गिरावट आई है। अगस्त के अनुबंधों में आधा फीसदी की कमी के साथ सोने का वायदा भाव 18,741 रुपये प्रति दस ग्राम के निन्यूनतम स्तर पर आ गया। इस वर्ष 8 जून को सोने का भाव 19,198 रुपये प्रति दस ग्राम के उच्चतम स्तर पर जा पहुंचा था। चीन के केंद्रीय बैंक ने इस सप्ताहांत युआन के विनिमय दरों का लचीलापन बढ़ाने की संभावना जताई है। (बीएस हिंदी)
रुपये में आई तेजी के कारण देश में सोने के वायदा भाव में गिरावट आई है। रुपया मजबूत होने की वजह से सोना पिछले एक महीने में एक फीसदी से भी अधिक फिसला है। पिछले एक महीने से भी अधिक समय से रुपये में लगातार तेजी का रूख बना हुआ है और सोमवार को यह एक महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। सोने का अगस्त वायदा अनुबंध में सबसे अधिक गिरावट आई है। अगस्त के अनुबंधों में आधा फीसदी की कमी के साथ सोने का वायदा भाव 18,741 रुपये प्रति दस ग्राम के निन्यूनतम स्तर पर आ गया। इस वर्ष 8 जून को सोने का भाव 19,198 रुपये प्रति दस ग्राम के उच्चतम स्तर पर जा पहुंचा था। चीन के केंद्रीय बैंक ने इस सप्ताहांत युआन के विनिमय दरों का लचीलापन बढ़ाने की संभावना जताई है। (बीएस हिंदी)
मजबूत वैश्विक रुझान से एल्युमिनियम में आई तेजी
मुंबई June 21, 2010
वैश्विक बाजारों के मजबूत रुझान को देखते हुए घरेलू स्तर पर वायदा सौदों में एल्युमिनियम के भाव में 2।25-2.48 फीसदी की उछाल आई। सोमवार को एक किलोग्राम एल्युमिनियम का वायदा भाव 93 रुपये रहा। एल्युमीनियम वायदा के अगस्त अनुबंध में 2.25 से 2.48 फीसदी बढ़त दर्ज की गई। सोमवार को इस धातु का कारोबार 40 लॉट में इसी भाव पर हुए। इसके साथ ही मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) में एल्युमिनियम काजून अनुबंध का 2529 वायदा सौदे 2.20 से 2.48 फीसदी बढ़त के साथ 91 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर किए गये।विश्लेषकों के अनुसार लंदन मेटल एक्सचेंज में फ्रेश धातु की मांग बढऩे के कारण एल्युमिनियम के वायदा भाव में उछाल आई है। (बीएस हिंदी)
वैश्विक बाजारों के मजबूत रुझान को देखते हुए घरेलू स्तर पर वायदा सौदों में एल्युमिनियम के भाव में 2।25-2.48 फीसदी की उछाल आई। सोमवार को एक किलोग्राम एल्युमिनियम का वायदा भाव 93 रुपये रहा। एल्युमीनियम वायदा के अगस्त अनुबंध में 2.25 से 2.48 फीसदी बढ़त दर्ज की गई। सोमवार को इस धातु का कारोबार 40 लॉट में इसी भाव पर हुए। इसके साथ ही मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) में एल्युमिनियम काजून अनुबंध का 2529 वायदा सौदे 2.20 से 2.48 फीसदी बढ़त के साथ 91 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर किए गये।विश्लेषकों के अनुसार लंदन मेटल एक्सचेंज में फ्रेश धातु की मांग बढऩे के कारण एल्युमिनियम के वायदा भाव में उछाल आई है। (बीएस हिंदी)
कपास निर्यात के लिए लाइसेंस हटाने की मांग
कपास निर्यात के लिए सरकार लाइसेंस की अनिवार्यता को समाप्त करें। कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएआई) के अध्यक्ष डीएन सेठ ने बताया कि आगामी नए सीजन की आवक के समय देश में कपास की करीब 55 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलो) की उपलब्धता रहेगी। वैसे भी चालू बुवाई सीजन में कपास की बुवाई पिछले साल से ज्यादा होने से उत्पादन भी बढ़ने की संभावना है। सीएआई के मुताबिक वर्ष 2009-10 में देश में कपास का उत्पादन बढ़कर 305।50 लाख गांठ का होने का अनुमान है जोकि पिछले साल की तुलना में पांच फीसदी ज्यादा है। पिछले साल कुल उत्पादन 290.75 लाख गांठ का हुआ था। सरकार निर्यात को नियंत्रण मुक्त करेगी तो चालू सीजन में कुल निर्यात 82 लाख गांठ का ही हो पायेगा। डीएन सेठ ने बताया कि चालू सीजन में नई आवक के समय 71.50 लाख गांठ कपास का बकाया स्टॉक बचा हुआ था, जोकि पिछले साल के 43 लाख गांठ से ज्यादा है। इसमें चालू साल का उत्पादन 305.50 लाख गांठ और 10 लाख गांठ आयात को मिलाकर कुल उपलब्धता 387 लाख गांठ की बैठेगी। जबकि पिछले साल देश में कुल उपलब्धता 343.75 लाख गांठ की ही थी। देश में कपास की घरलू खपत 250 लाख गांठ की होती है, इसमें 82 लाख गांठ निर्यात को मिला दे तो भी कुल खपत 332 लाख गांठ की ही बैठेगी। उन्होंने बताया कि अभी तक मंडियों में 293.75 लाख गांठ कपास की आवक हो चुकी है जोकि पिछले साल की समान अवधि के 284.50 लाख गांठ से 9.25 लाख गांठ ज्यादा है। नार्थ इंडिया कॉटन एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश राठी ने बताया कि चालू सीजन में कपास की बुवाई पिछले साल की तुलना में आठ से दस फीसदी ज्यादा क्षेत्रफल में हुई है। मानूसन अनुकूल रहा तो चालू सीजन में कपास का उत्पादन ज्यादा होगा। उधर, गुजरात की मंडियों कपास की दैनिक आवक करीब छह हजार गांठ और महाराष्ट्र की मंडियों में तीन हजार गांठ की हो रही है। अहमदाबाद में शंकर-6 किस्म की कपास का भाव 29,200 से 29,500 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी-356 किलो) चल रहा है। (बिज़नस भास्कर.....आर अस राणा)
सस्ता खाद्यान्न उठाने में भी राज्यों की रुचि नहीं
सस्ता खाद्यान्न उठाने में भी राज्य सरकारें रुचि नहीं ले रही हैं। केंद्र सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत उपभोक्ताओं को 845 रुपये प्रति `िंटल की दर से गेहूं और 1,185 रुपये प्रति `िंटल की दर से चावल आवंटित करने के लिए 30 लाख टन खाद्यान्न का अतिरिक्त आवंटन किया था। लेकिन चालू महीने में इसमें से अभी तक मात्र सात लाख टन चावल और तीन लाख टन गेहूं का ही उठाव हो पाया है। खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि राज्य सरकारें फंड और मशीनरी की कमी का हवाला दे रही है। अभी तक केरल, कर्नाटक और नागालैंड राज्यों ने उठाव में कुछ दिलचस्पी दिखाई है। उन्होंने बताया कि अगस्त के बाद गेहूं और चावल के उठाव में तेजी आने की संभावना है। क्योंकि गेहूं और चावल की बिक्री का भाव खुले बाजार के भाव से काफी कम है। इसलिए राज्यों द्वारा गेहूं और चावल का उठाव ज्यादा मात्रा में किए जाने की संभावना है। अधिकार प्राप्त मंत्रियों के समूह (ईजीओएम) की बैठक में 30 लाख टन अतिरिक्त खाद्यान्न आवंटन करने का निर्णय लिया गया था। उक्त खाद्यान्न का उठाव राज्यों को जून से नवंबर के दौरान करना है। इसमें 16।86 लाख टन गेहूं और 13.79 लाख टन चावल है, जोकि राज्य सरकारों द्वारा पीडीएस के तहत रार्शन कार्ड धारकों को एक जून से 30 नवंबर तक दिया जाना है। उधर खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत बड़े उपभोक्ताओं के लिए केंद्र सरकार ने (अक्टूबर-09 से जून-10) के दौरान राज्यों को 20.81 लाख टन गेहूं का आवंटन किया था। इसमें से अभी तक 12.26 लाख टन गेहूं की उठाव हो पाया है। इस समय फ्लोर मिलर के साथ ही स्टॉकिस्टों के पास भी गेहूं का स्टॉक है इसलिए इस समय उठाव कम हो रहा है। आगामी महीनों में इसके उठाव में भी तेजी आने की संभावना है। केंद्र सरकार ने ओएमएसएस के तहत बेचे जाने वाले गेहूं की समयअवधि को जून से बढ़ाकर 30 सितंबर-10 करने का फैसला कर लिया है। आगामी सप्ताह में इसकी अधिकारिक घोषणा होने की संभावना है। पहली जून को केंद्र सरकार ने पास 351.62 लाख टन गेहूं का भारी-भरकम स्टॉक बचा हुआ है।बात पते कीमहंगाई आसमान छू रही है, लेकिन आम लोगों को राहत पहुंचाने मंे राज्यों की कितनी दिलचस्पी है इसका पता उनके इस रुख से ही चल जाता है। (बिज़नस भास्कर.....आर अस राणा)
कमोडिटी ट्रैकर
नीचे भाव में मांग निकलने से सरसों और सरसों तेल की कीमतों में हल्का सुधार आया है। जयपुर में 42 प्रतिशत कंडीशन की सरसों का भाव बढ़कर 2,560 रुपये और सरसों तेल का भाव 470 रुपये प्रति दस किलो हो गया है। चालू सीजन में सरसों के उत्पादन में 8.4 फीसदी की कमी आने का अनुमान है। लेकिन घरलू बाजार में खाद्य तेलों की उपलब्धता ज्यादा होने से सरसों की क्रेसिंग अभी तक मात्र 18-20 फीसदी की हो पाई है। मानसून शुरू होने के बाद सरसों तेल में उठाव बढ़ जाता है। वैसे भी आगामी दिनों में त्यौहारी सीजन शुरू हो जाएगा। ऐसे में आगामी दिनों में सरसों तेल की कीमतों में एक-डेढ़ रुपये प्रति किलो का सुधार आ सकता है।कृषि मंत्रालय के तीसर अग्रिम अनुमान के अनुसार वर्ष 2009-10 में देश में सरसों का उत्पादन 65.90 लाख टन होने का अनुमान है, जोकि वर्ष 2008-09 के 72.01 लाख टन से 6.11 लाख टन कम है। उधर सैंट्रल आर्गेनाईजर फार ऑयल इंडस्ट्रीज एंड ट्रेड (कोएट) के अनुसार सरसों का उत्पादन चालू सीजन में 63.2 लाख टन होने की संभावना है जोकि पिछले साल के 62 लाख टन से ज्यादा है। आयातित खाद्य तेल की उपलब्धता ज्यादा होने से चालू पेराई सीजन में सरसों की क्रेसिंग अभी तक मात्र 18-20 फीसदी ही हो पाई है। इसलिए अभी भी घरलू बाजार में सरसों का करीब 50-55 लाख टन का भारी स्टॉक बचा हुआ है। ऐसे में आगामी दिनों में खपत राज्यों पश्चिम बंगाल, बिहार और असम की मांग बढ़ने से सरसों तेल की कीमतों में एक-डेढ़ रुपये प्रति किलो का सुधार तो आ सकता है लेकिन भारी तेजी की संभावना नहीं है। साल्वेंट एक्सट्रेक्टसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के मुताबिक चालू तेल वर्ष के पहले सात महीनों (नवंबर-09 से मई-10) के दौरान भारत से सरसों खली का निर्यात 413,927 टन का ही हुआ है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस दौरान सरसों खली की कीमतों में भी करीब 21 डॉलर प्रति टन की गिरावट आई है। नवंबर-09 के में सरसों खली का भाव 261 डॉलर प्रति टन था जोकि जून के पहले सप्ताह में घटकर 240 डॉलर प्रति टन रह गया। घरलू बाजार में भी सरसों खली का भाव एक अप्रैल को 11,000 रुपये प्रति टन था जबकि इस समय भाव 9,500 रुपये प्रति टन चल रहा है। मौसम विभाग चालू सीजन में अच्छे मानसून की भवष्यिवाणी कर रहा है। अगर मानसून सामान्य रहा तो आगामी दिनों में सरसों तेल में घरलू मांग तो बढ़ेगी। लेकिन सरसों का भरपूर स्टॉक होने से लंबी तेजी की संभावना नहीं है। मालूम हो कि सीजन के शुरू में एक मार्च को कंडीशन की सरसों का भाव 2,530 रुपये प्रति `िंटल था जबकि इस समय भाव 2,560 रुपये प्रति `िंटल है। ऐसे में स्टॉकिस्टों को भी नुकसान उठाना पड़ रहा है। हाजिर बाजार में कीमतों में आये सुधार से वायदा में भी सरसों की कीमतों में हल्की बढ़त आई है। जुलाई महीने के वायदा अनुबंध सरसों का भाव 12 जून को 518 रुपये प्रति 20 किलो था, जोकि शनिवार को बढ़कर 524 रुपये प्रति 20 किलो हो गया। rana@businessbhaskar.netबात पते कीमौसम विभाग चालू सीजन में अच्छे मानसून की भवष्यिवाणी कर रहा है। अगर मानसून सामान्य रहा तो आगामी दिनों में सरसों तेल में घरलू मांग तो बढ़ेगी। लेकिन सरसों का भरपूर स्टॉक होने से लंबी तेजी की संभावना नहीं है। (बिज़नस भास्कर...आर अस राणा)
निर्यातकों की मांग से केस्टर सीड में तेजी
निर्यातकों की मांग बढ़ने से केस्टर सीड की कीमतों में तेजी का रुख बना हुआ है। पिछले एक महीने में घरलू और वायदा बाजार में केस्टर सीड के दाम क्रमश: 4।5 और 7 फीसदी बढ़ चुके हैं। चालू वर्ष में केस्टर तेल के निर्यात में 9 फीसदी की बढ़ोतरी होने का अनुमान है। जबकि केस्टर सीड की पैदावार में करीब चार फीसदी की कमी आई है। ऐसे में आगामी दिनों में केस्टर सीड और तेल की मौजूदा कीमतों में और भी तेजी की संभावना है। गांधीधाम स्थित मैसर्स एस एस कैमिकल के मैनेजिंग डायरक्टर कुशल राज पारिख ने बताया कि चालू वर्ष में केस्टर तेल का निर्यात बढ़कर तीन लाख टन होने का अनुमान है जोकि पिछले साल के 2.75 लाख टन से ज्यादा है।इस समय केस्टर तेल में अमेरिका, यूरोप और चीन की अच्छी मांग बनी हुई है। पिछले पंद्रह-बीस दिनों में ही इन देशों से करीब 15-17 हजार टन केस्टर तेल के आयात सौदे 1460-1560 डॉलर प्रति टन की दर से हुए हैं। आगामी दिनों में इन देशों की आयात मांग में और भी बढ़ोतरी होने की संभावना है। नमेस्ट ट्रेड प्राइवेट लिमिटेड के डायरक्टर प्रकाश भाई ने बताया कि गुजरात की मंडियों में केस्टर सीड की दैनिक आवक घटकर 15-20 हजार बोरी की रह गई है। जबकि निर्यातकों के साथ ही घरलू मांग बढ़ने से केस्टर सीड और तेल की कीमतों में तेजी बनी हुई है। उत्पादक मंडियों में चालू महीने में इसकी कीमतों में करीब 140 रुपये की तेजी आकर शुक्रवार को भाव 3,240 रुपये प्रति `िंटल हो गए। केस्टर तेल की कीमतों में इस दौरान 20 रुपये की तेजी आकर भाव 680-690 रुपये प्रति दस किलो हो गए। नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज लिमिटेड (एनसीडीईएक्स) पर निवेशकों की खरीद बढ़ने से केस्टर सीड की कीमतों में तेजी बनी हुई है। पिछले एक महीने में वायदा बाजार में इसके दाम करीब सात फीसदी बढ़े हैं। 19 मई को जुलाई महीने के वायदा अनुबंध में केस्टर सीड का भाव 3,142 रुपये प्रति `िंटल था जोकि शुक्रवार को बढ़कर 3,365 रुपये प्रति `िंटल हो गया। साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार वर्ष 2009-10 में देश में केस्टर सीड की बुवाई में 10 फीसदी की कमी आकर कुल बुवाई 7.40 लाख हैक्टेयर में ही हुई थी।हालांकि प्रति हैक्टयर उत्पादन पिछले साल के 1,180 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर से बढ़कर 1,261 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर हुआ है। ऐसे में वर्ष 2009-10 में पैदावार में चार फीसदी की कमी आकर कुल उत्पादन 9.34 लाख टन होने का अनुमान है। उधर उद्योग सूत्रों का मानना है कि पैदावार नौ लाख टन से भी कम होने की आशंका है। पैदावार में सबसे ज्यादा कमी आंध्रप्रदेश और राजस्थान में क्रमश: 38 और 30 फीसदी की आने का अनुमान है। (बिज़नस भास्कर...आर अस राणा)
विदेशों के अच्छे उत्पादन से खाद्य तेल हो सकता है सस्ता
अर्जेटीना और ब्राजील में सोयाबीन का बंपर उत्पादन हुआ है। अमेरिका में भी सोयाबीन के बुवाई क्षेत्रफल में बढ़ोतरी हुई है। मलेशिया और इंडोनेशिया में लीन सीजन समाप्त हो गया है। इस मौसम फसल के अनुकूल बना हुआ है। इसीलिए आगामी महीनों में इन देशों में पॉम तेल का उत्पादन बढ़ना शुरू हो जाएगा। वैसे भी घरलू बाजार में तिलहनों के साथ ही खाद्य तेलों की उपलब्धता अच्छी है। ऐसे में आगामी दिनों में घरलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों पर दबाव बने रहने की संभावना है। दिल्ली वैजिटेबल ऑयल ट्रेडर्स एसोसिएशन के सचिव हेंमत गुप्ता ने बताया कि आयातित खाद्य तेलों का भाव कम होने से घरलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में दबाव बना हुआ है। सरसों तेल का भाव जयपुर में 470 रुपये, सोयाबीन का भाव इंदौर में 445 रुपये, मूंगफली का राजकोट में भाव 725 रुपये, क्रूड पॉम तेल का भाव कांडला बंदरगाह पर 365 रुपये और आरबीडी पामोलीन का भाव 388 रुपये प्रति 10 किलो है। हालांकि पिछले दो महीने में खाद्य तेलों के आयात में क्रमश: 22 और 26 फीसदी की कमी आई है, लेकिन घरलू बाजार में स्टॉक ज्यादा है। अमेरिकी कृषि विभाग (यूएसडीए) के अनुसार अर्जेटीना में सोयाबीन काबढ़कर 540 लाख टन और ब्राजील में 680 लाख टन होने का अनुमान है। अमेरिका में भी सोयाबीन की बुवाई बढ़ी है। इसीलिए विव्श्र बाजार में खाद्य तेलों की कीमतें घट रही हैं। एनएनएस के रिसर्च एनॉलिस्ट टी के सिंह ने बताया कि मलेशिया और इंडोनेशिया में लीन सीजन समाप्त हो गया है। तथा मौसम फसल के अनुकूल बना हुआ है। इसीलिए आगामी महीनों से वहां पॉम तेल का उत्पादन बढ़ना शुरू हो जाएगा। इसी के कारण पिछले पंद्रह-बीस दिनों में ही क्वालालांपुर कमोडिटी एक्सचेंज (केएलईसी) में करीब 100 रिंगिट की गिरावट आकर भाव 2400 रिंगिट पर आ गए हैं। आगामी दिनों में इसमें करीब 100 रिंगिट की और गिरावट आने की संभावना है। इसीलिए मानसून सामान्य रहा तो घरलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों पर दबाव ही बना रहने का अनुमान है। क्रुड पॉम तेल का भाव मुंबई में मई के शुरू में 820 डॉलर प्रति टन (सीएंडएफ) था जोकि चालू महीने में घटकर 790 डॉलर प्रति टन रह गया। इस दौरान आरबीडी पॉमोलीन का भाव 842 डॉलर से घटकर 792 डॉलर प्रति टन रह गया। साल्वेंट एक्सट्रेक्टसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार चालू तेल वर्ष के पहले सात महीनों (नवंबर-09 से मई-10) के दौरान कुल 48।49 लाख टन खाद्य तेलों का आयात हो चुका है। जबकि इस समय घरलू बाजार में सरसों और सोयाबीन का ही करीब 85-90 लाख टन का स्टॉक बचा हुआ है। खाद्य तेलों में तो उठाव कमजोर है ही साथ ही खली का निर्यात भी घट रहा है। इसीलिए मिलों द्वारा तिलहनों की क्रेसिंग भी सीमित मात्रा में ही की जा रही है। कृषि मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2009-10 में देश में तिलहन उत्पादन 254 लाख टन होने का अनुमान है जबकि उद्योग का अनुमान 242 लाख टन का है।बात पते कीघरेलू बाजार में तिलहनों के साथ ही खाद्य तेलों की उपलब्धता अच्छी है। ऐसे में आगामी दिनों में घरलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों पर दबाव बने रहने की संभावना है। (बिज़नस भास्कर.....आर अस राणा)
18 जून 2010
घरेलू कीमतों से घटेगा कॉफी निर्यात!
बेंगलुरु June 17, 2010
देश में कॉफी की हाजिर कीमतों में तेजी के चलते कॉफी निर्यात निकट समय में प्रभावित हो सकता है।
कॉफी के अंतरराष्ट्रीय वायदा भाव में पिछले एक हफ्ते में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिला है और आपूर्ति में कमी के चलते अब तक के सर्वोच्च स्तर पर कारोबार हो रहा है। ब्राजील और वियतनाम जैसे बड़े उत्पादक देशों से आपूर्ति कम है। साथ ही बाजार में हेज फंड सट्टेबाजी भी कर रहे हैं जिससे कीमतों में अस्थिरता देखी जा रही है।
आईसीई वायदा में जुलाई डिलिवरी के लिए कॉफी के भाव हाल ही में 4 फीसदी चढ़कर 1.5095 डॉलर प्रति पौंड बंद हुए। पिछले एक हफ्ते में लीफ जुलाई रोबस्टा के भाव 18.2 फीसदी तक चढ़े हैं। लीफ जुलाई अरेबिका में भी 11 फीसदी की उछाल आ चुकी है।
भारतीय कॉफी बोर्ड के उपाध्यक्ष जबीर असगर का कहना है, 'दिसंबर-जून के दौरान आमतौर पर भारत से कॉफी का निर्यात शीर्ष पर होता है जिसके बाद इसमें कमी आने लगती है। जून के बाद निर्यात की मौजूदा धीमी गति के साथ बाजार में चल रही ऊंची कीमतों से आगे निर्यात में और कमी आ सकती है।'
हालांकि, उन्होंने कहा कि ब्राजील और वियतनाम से नई फसल के बाजार में आने से अंतरराष्ट्रीय वायदा भाव में निकट समय में कुछ गिरावट की गुंजाइश है। जनवरी से जून 2010 के दौरान भारत का कॉफी निर्यात पिछले साल के मुकाबले 48 फीसदी ज्यादा है। इस दौरान निर्यात 1,41,695 टन रहा है जबकि पिछले साल समान अवधि में निर्यात 95,662 टन रहा था।
देश का कॉफी निर्यात 2008 के 2,17,993 टन के मुकाबले 2009 में 13 फीसदी गिरकर 1,889,399 टन रह गया था। इस साल ज्यादा मांग के चलते कॉफी निर्यात में जोरदार वापसी की उम्मीद की जा रही है। हालांकि, कीमतों में अंतर निर्यात लक्ष्य को बिगाड़ सकता है।
जबीर असगर ने कहा, 'फिलहाल मुख्य रूप से फंडों की खरीद के चलते बाजार में उतार-चढ़ाव है। ऊंची कीमतों की वजह से ज्यादातर कारोबारी फिलहाल सौदे करने से बच रहे हैं। किसी भी तरह का समझौता करने से पहले वे कीमतों में स्थिरता चाहते हैं।'
कुछ बाजार विश्लेषकों और कारोबारियों का कहना है कि कॉफी की घरेलू कीमतों में भी हाल फिलहाल में कमी देखी जा सकती है। हैदराबाद के एक कारोबारी सुरेश बाबू का कहना है, 'फिलहाल घरेलू बाजार में कॉफी की कीमतें वियतनाम और कोलंबिया जैसे दूसरे उत्पादक देशों के मुकाबले ज्यादा हैं। अंतरराष्ट्रीय वायदा भाव में 8 से 10 फीसदी गिरावट की उम्मीद की जा रही है, लिहाजा घरेलू बाजार में भी कीमतों में नरमी आनी चाहिए।'
कॉफी की अरेबिका किस्म का निर्यात आमतौर पर जनवरी से जून के बीच किया जाता है, ऐसे में इस तरह की कीमतों का असर रोबस्टा किस्म के निर्यात पर होने की आशंका है। जेआरजी वेल्थ मैनेजमेंट के विश्लेषक चौवड़ा रेड्डी ने बताया कि ऊंची कीमतों के चलते निर्यात में कमी आ सकती है क्योंकि विदेशी कारोबारी इस कीमत स्तर पर बाजार में उतरने से कतरा रहे हैं।
हालांकि रेड्डी ने कहा कि खुदरा बाजार में अभी भी असर नहीं हुआ है। लेकिन, कीमतों के निर्यात पर असर को लेकर कुछ कॉफी उत्पादकों का नजरिया थोड़ा अलग है। कर्नाटक के एक कॉफी उत्पादन अजय तिपैया का कहना है, 'फरवरी के मुकाबले कॉफी की घरेलू कीमतों में गिरावट आई है। साथ ही मौजूदा बढ़ोतरी और निर्यात पर इसके असर को लेकर कुछ कहना फिलहाल जल्दबाजी होगी।'
उन्होंने यह भी कहा कि आपूर्ति में कमी होने से कीमतें मौजूदा स्तरों पर ही रह सकती हैं। अंतरराष्ट्रीय कॉफी संघ के संशोधित उत्पादन अनुमानों में वैश्विक आपूर्ति में पहले के मुकाबले कमी का अनुमान है। अफ्रीका, केंद्रीय अमेरिका और मैक्सिको में फसल अच्छी न रहने से 2009-10 सत्र में कॉफी का उत्पादन 1।1 फीसदी घटकर 1206 लाख बोरी रहने का अनुमान है। एक बोरी का वजन 60 किलो होता है। (बीएस हिंदी)
देश में कॉफी की हाजिर कीमतों में तेजी के चलते कॉफी निर्यात निकट समय में प्रभावित हो सकता है।
कॉफी के अंतरराष्ट्रीय वायदा भाव में पिछले एक हफ्ते में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिला है और आपूर्ति में कमी के चलते अब तक के सर्वोच्च स्तर पर कारोबार हो रहा है। ब्राजील और वियतनाम जैसे बड़े उत्पादक देशों से आपूर्ति कम है। साथ ही बाजार में हेज फंड सट्टेबाजी भी कर रहे हैं जिससे कीमतों में अस्थिरता देखी जा रही है।
आईसीई वायदा में जुलाई डिलिवरी के लिए कॉफी के भाव हाल ही में 4 फीसदी चढ़कर 1.5095 डॉलर प्रति पौंड बंद हुए। पिछले एक हफ्ते में लीफ जुलाई रोबस्टा के भाव 18.2 फीसदी तक चढ़े हैं। लीफ जुलाई अरेबिका में भी 11 फीसदी की उछाल आ चुकी है।
भारतीय कॉफी बोर्ड के उपाध्यक्ष जबीर असगर का कहना है, 'दिसंबर-जून के दौरान आमतौर पर भारत से कॉफी का निर्यात शीर्ष पर होता है जिसके बाद इसमें कमी आने लगती है। जून के बाद निर्यात की मौजूदा धीमी गति के साथ बाजार में चल रही ऊंची कीमतों से आगे निर्यात में और कमी आ सकती है।'
हालांकि, उन्होंने कहा कि ब्राजील और वियतनाम से नई फसल के बाजार में आने से अंतरराष्ट्रीय वायदा भाव में निकट समय में कुछ गिरावट की गुंजाइश है। जनवरी से जून 2010 के दौरान भारत का कॉफी निर्यात पिछले साल के मुकाबले 48 फीसदी ज्यादा है। इस दौरान निर्यात 1,41,695 टन रहा है जबकि पिछले साल समान अवधि में निर्यात 95,662 टन रहा था।
देश का कॉफी निर्यात 2008 के 2,17,993 टन के मुकाबले 2009 में 13 फीसदी गिरकर 1,889,399 टन रह गया था। इस साल ज्यादा मांग के चलते कॉफी निर्यात में जोरदार वापसी की उम्मीद की जा रही है। हालांकि, कीमतों में अंतर निर्यात लक्ष्य को बिगाड़ सकता है।
जबीर असगर ने कहा, 'फिलहाल मुख्य रूप से फंडों की खरीद के चलते बाजार में उतार-चढ़ाव है। ऊंची कीमतों की वजह से ज्यादातर कारोबारी फिलहाल सौदे करने से बच रहे हैं। किसी भी तरह का समझौता करने से पहले वे कीमतों में स्थिरता चाहते हैं।'
कुछ बाजार विश्लेषकों और कारोबारियों का कहना है कि कॉफी की घरेलू कीमतों में भी हाल फिलहाल में कमी देखी जा सकती है। हैदराबाद के एक कारोबारी सुरेश बाबू का कहना है, 'फिलहाल घरेलू बाजार में कॉफी की कीमतें वियतनाम और कोलंबिया जैसे दूसरे उत्पादक देशों के मुकाबले ज्यादा हैं। अंतरराष्ट्रीय वायदा भाव में 8 से 10 फीसदी गिरावट की उम्मीद की जा रही है, लिहाजा घरेलू बाजार में भी कीमतों में नरमी आनी चाहिए।'
कॉफी की अरेबिका किस्म का निर्यात आमतौर पर जनवरी से जून के बीच किया जाता है, ऐसे में इस तरह की कीमतों का असर रोबस्टा किस्म के निर्यात पर होने की आशंका है। जेआरजी वेल्थ मैनेजमेंट के विश्लेषक चौवड़ा रेड्डी ने बताया कि ऊंची कीमतों के चलते निर्यात में कमी आ सकती है क्योंकि विदेशी कारोबारी इस कीमत स्तर पर बाजार में उतरने से कतरा रहे हैं।
हालांकि रेड्डी ने कहा कि खुदरा बाजार में अभी भी असर नहीं हुआ है। लेकिन, कीमतों के निर्यात पर असर को लेकर कुछ कॉफी उत्पादकों का नजरिया थोड़ा अलग है। कर्नाटक के एक कॉफी उत्पादन अजय तिपैया का कहना है, 'फरवरी के मुकाबले कॉफी की घरेलू कीमतों में गिरावट आई है। साथ ही मौजूदा बढ़ोतरी और निर्यात पर इसके असर को लेकर कुछ कहना फिलहाल जल्दबाजी होगी।'
उन्होंने यह भी कहा कि आपूर्ति में कमी होने से कीमतें मौजूदा स्तरों पर ही रह सकती हैं। अंतरराष्ट्रीय कॉफी संघ के संशोधित उत्पादन अनुमानों में वैश्विक आपूर्ति में पहले के मुकाबले कमी का अनुमान है। अफ्रीका, केंद्रीय अमेरिका और मैक्सिको में फसल अच्छी न रहने से 2009-10 सत्र में कॉफी का उत्पादन 1।1 फीसदी घटकर 1206 लाख बोरी रहने का अनुमान है। एक बोरी का वजन 60 किलो होता है। (बीएस हिंदी)
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