05 नवंबर 2009
मिलों ने कॉटन निर्यात पर रोक की मांग उठाई
सदर्न इंडिया मिल एसोसिएशन (एसआईएमए) ने केंद्र सरकार से कॉटन के निर्यात पर तुरंत रोक लगाने की मांग की है। एसोसिएशन ने कपड़ा उद्योग की बदहाल स्थिति का हवाला देते हुए कॉटन का निर्यात रोकने की आवश्यकता बताई है।एसोसिएशन के चेयरमैन जे. तुलासीदारा ने कहा कि पहले तो मानसून की बेरुखी और बाद में कई कॉटन उत्पादक राज्यों में बाढ़ से कॉटन का उत्पादन प्रभावित हुआ है। इस बार कॉटन का उत्पादन गत वर्ष के 290 लाख गांठ (एक गांठ 170 किलो) के मुकाबले 260 लाख गांठ ही रह सकता है। इसमें से 150 से 160 लाख गांठ कॉटन ही अच्छी और औसत से बेहतर गुणवत्ता की होगी। उन्होंने कहा कि यदि अच्छी गुणवत्ता वाली कॉटन के निर्यात की इजाजत दी गई तो घरेलू कपड़ा उद्योग की जरूरत पूरी नहीं हो पाएगी। घरेलू उद्योग आयातित कॉटन पर निर्भर हो जाएगा। बाजार में कॉटन के मौजूदा भाव पर उन्होंने कहा कि दामों में कोई गिरावट आने की संभावना नहीं है। सितंबर के मुकाबले कॉटन के भाव में पहले ही 2,000 रुपये प्रति कैंडी तक की तेजी आ चुकी है। संकर-6 जैसी स्टैंडर्ड वैरायटी के भाव 25,000 रुपये प्रति कैंडी को पार कर चुके हैं जबकि सितंबर में यह 22,600 रुपये प्रति कैंडी था। ऐसे में इसके भावों में गिरावट की संभावना नहीं दिखाई देती। निर्यात पर रोक लगने पर ही कॉटन के मूल्य में कुछ नरमी की उम्मीद की जा सकती है। (बिज़नस भास्कर)
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