गन्ना मूल्य भुगतान के लिए लागू की गई उचित एवं लाभकारी मूल्य (फेयर एंड रिम्यूनेरेटिव प्राइस- एफआरपी) प्रणाली पर केंद्र सरकार खुद उलझन में फंस गई है। केंद्रीय कृषि एवं खाद्य मंत्री शरद पवार के उस बयान से उलझन और बढ़ गई है जिसमें उन्होंने कहा कि राज्य सरकारों को केवल 20 फीसदी लेवी चीनी के लिए एफआरपी से अधिक गन्ना मूल्य का बोझ उठाना है। लेकिन उनके विभाग में संयुक्त सचिव (चीनी) एन. सान्याल ने पवार के बयान को खारिज करते हुए कहा कि राज्यों को एफआरपी से अधिक राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) तय करने पर सारे गन्ने के लिए अंतर का भुगतान करना होगा। वहीं पवार ने स्वीकार किया कि चीनी की ऊंची कीमतों को देखते हुए चीनी मिलों को किसानों को गन्ने का दाम एफआरपी से अधिक देना चाहिए और एफआरपी को केवल रेफरेंस प्राइस की तरह लिया जाना चाहिए।
बुधवार को आर्थिक संपादकों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए पवार ने कहा कि महाराष्ट्र और कर्नाटक में चीनी मिलों ने किसानों को 185 से 200 रुपये प्रति क्विंटल का पहला एडवांस दिया है। उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों के आंदोलन का दबाव पवार पर साफ दिख रहा था। इसके चलते ही एफआरपी पर अपना रुख लचीला करते हुए उन्होंने कहा कि चीनी मिलें अगर किसानों को एफआरपी से अधिक दाम नहीं चुकाएंगी तो उनको गन्ना नहीं मिलेगा। उन्होंने इस मसले पर उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों के संगठन के साथ बैठक करने की बात भी कही। कार्यक्रम के बाद संवाददाताओं के साथ बातचीत के दौरान पवार के पास इस बात कोई जवाब नहीं था कि केंद्र द्वारा एसएपी को परोक्ष रूप से समाप्त करने की स्थिति में चीनी मिलों के साथ गन्ने का अधिक दाम कैसे तय होगा। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि राज्यों को एफआरपी और एसएपी का अंतर केवल 20 फीसदी लेवी चीनी के मामले में ही चुकाना होगा। बाकी उत्पादन के लिए नहीं।
लेकिन इस बारे में जब सान्याल से पूछा गया तो उन्होंने साफ कहा कि आवश्यक वस्तु अधिनियम में अध्यादेश के जरिये किये गये संशोधन और गन्ना नियंत्रण आदेश, 1966 में किये गये संशोधन में साफ है कि राज्यों को पूरे चीनी उत्पादन के लिए खरीदे गये गन्ने पर इस अंतर का भुगतान करना होगा। उन्होंने कहा कि चालू साल में करीब 160 लाख टन चीनी का उत्पादन अनुमानित है। इसके अलावा करीब 40 लाख टन रॉ शुगर के सौदे हो चुके हैं और इसमें से आधे से अधिक रॉ शुगर देश में आ चुकी है।
एफआरपी के तहत गन्ने का समर्थन मूल्य 129.84 रुपये प्रति क्विंटल (9.5 रिकवरी के आधार पर) तय किया गया है। जबकि चालू खरीद सीजन के लिए उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार ने गन्ने का राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) 162.50 रुपये से 170 रुपये और पंजाब और हरियाणा में राज्य सरकारों ने 170-180 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। पिछले साल राज्य सरकारों ने गन्ने का एसएपी 140 रुपये से 165 रुपये प्रति क्विंटल तक तय किया था। तब गन्ने की कमी के कारण मिलों ने किसानों को 170-180 रुपये प्रति क्विंटल तक का भुगतान किया था। महाराष्ट्र की चीनी मिलों ने किसानों को 180-200 रुपये प्रति क्विंटल की दर से भुगतान शुरू कर दिया है।
उत्तर प्रदेश और पंजाब में राज्य सरकारें एफआरपी और एसएपी की कीमतों के अंतर के भुगतान के लिए मना कर चुकी हैं। चीनी मिलें भी किसानों को एफआरपी से ज्यादा दाम नहीं देना चाहतीं। ऐसे में उत्तर भारत के किसानों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसी के विरोधस्वरूप उत्तर प्रदेश में किसानों ने आंदोलन शुरू कर दिया है। वैसे भी चालू पेराई सीजन वर्ष 2009-10 में देश में चीनी का उत्पादन 160 लाख टन ही होने की संभावना है। बकाया 22 लाख टन को मिलाकर कुल उपलब्धता 182 लाख टन बैठती है। देश में चीनी की सालाना खपत 225-230 लाख टन की है। ऐसे में घरेलू आवश्कताओं की पूर्ति के लिए भारत को 43 से 48 लाख टन चीनी का आयात करना ही पड़ेगा। (बिज़नस भास्कर...आर अस राणा)
05 नवंबर 2009
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