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04 नवंबर 2009

कृषि व लघु क्षेत्र को कर्ज में गिरावट से सरकार चिंतित

सरकार कृषि और छोटे व मझोले उपक्रमों (एमएसएमई) द्वारा कर्ज लेने की मात्रा में आ रही गिरावट से बेहद चिंतित है। मंगलवार को यहां आर्थिक संपादकों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि कर्ज में आई इस कमी की वजहों पर बैंकों को गौर करना चाहिए और इसमें सुधार के लिए जरूरी उपाय भी तलाशने चाहिए। वित्त मंत्री के मुताबिक यह सुनिश्चित करने के पूर प्रयास किए जा रहे हैं कि रोजगार पैदा करने वाले इन क्षेत्रों में कर्ज लेने की मात्रा बढ़े।
वित्त मंत्री ने कहा कि तरलता की कोई कमी नहीं है। सरकार की उधारियों का बाजार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। भारतीय रिजर्व बैंक तरलता बढ़ाने के लिए कई कदम उठा चुका है। उन्होंने कहा कि यूरोप, उत्तरी अमेरिका और जापान जैसे भारत के परंपरागत निर्यात क्षेत्रों में पर्याप्त सुधार न आने से हमारा निर्यात अपेक्षा के मुताबिक नहीं सुधरा है। इसलिए सरकार इन क्षेत्रों को दिए गए राहत पैकेज में फिलहाल कटौती नहीं करना चाहती। इन देशों को निर्यात में एसएमई की बड़ी भागीदारी है। हालांकि उन्होंने कहा कि जरूरत पड़ने पर सरकार कोई अल्पकालिक कदम उठाने से नहीं हिचकेगी।
प्रणब के विपरीत अर्थशास्त्रियों का मानना है कि एसएमई की तरफ से कर्ज की मांग में कमी की मुख्य वजह ऊंची ब्याज दरें हैं। अर्थशास्त्री डी के जोशी के मुताबिक बैंक एसएमई को कर्ज देना जोखिम भरा समझते हैं। इसलिए उन्हें बड़े उद्योगों के मुकाबले ऊंची ब्याज दरों पर कर्ज मिलता है। फरीदाबाद चैंबर आफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष जे पी मलहोत्रा ने भी कहा कि एसएमई को बड़े उपक्रमों के मुकाबले 2.5 फीसदी तक महंगा कर्ज मिल रहा है। वैसे जोशी ने यह भी कहा कि मांग में कमी भी इसकी एक बड़ी वजह है। उनके अनुसार आने वाले समय में यूरोप और अमेरिका से मांग बढ़ेगी, तो कर्ज भी बढ़ेगा।
प्रणब ने कहा कि सरकार गैर-योजना व्यय में कमी लाना चाहती है ताकि राजकोषीय घाटा कम किया जा सके। इसके लिए खाद और पेट्रोलियम उत्पादों पर सब्सिडी घटाने पर विचार चल रहा है। उन्होंने उम्मीद जताई कि राजकोषीय घाटा अगले वित्त वर्ष 5.5 फीसदी तक आ जाएगा जो चालू वित्त वर्ष में 6.8 फीसदी तक पहुंच चुका है। वित्त वर्ष 2011-12 तक इसे चार फीसदी तक लाने का लक्ष्य है। वित्त मंत्री ने कहा कि 29 अक्टूबर 2009 को विभिन्न मंत्रालयों को गैर-योजना व्यय में कमी लाने को कहा गया, लेकिन उनसे यह भी आग्रह किया गया कि वे योजना व्यय का पूरा और पर्याप्त उपयोग सुनिश्चित करें।
कृषि पर उन्होंने कहा कि खराब मानसून का पूरा असर दिखने में अभी वक्त लगेगा। हालांकि खाद्यान्न उत्पादन में कमी के जो शुरूआती अनुमान लगाए गए थे, उम्मीद है कि वास्तविक हालत उससे बेहतर रहेगी। खाद्य वस्तुओं की कीमतों में तेजी के सवाल पर उन्होंने कहा कि इसके लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) को दुरुस्त करना जरूरी है। सब्सिडी प्राप्त वस्तुएं जरूरतमंद लोगों तक नहीं पहुंच पातीं। पीडीएस को सुधार कर ही इस समस्या पर काबू पाया जा सकता है। विनिवेश के बार में वित्त मंत्री की राय थी कि एनएचपीसी और ऑयल इंडिया को मिले बेहतरीन रिस्पांस के बाद विनिवेश के लिए कुछ और सार्वजनिक कंपनियों की पहचान की जा रही है। उन्होंने संभावना जताई कि एक अप्रैल, 2010 से गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) लागू हो जाएगा। (बिज़नस भास्कर)

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