मुंबई November 04, 2009
विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) का कहना है कि कृषि तकनीक में सुधार लाने के साथ जमीनी स्तर पर किसानों के प्रशिक्षण की वजह से फसल की कटाई के बाद जो नुकसान होता है उसमें कमी आ सकती है।
फसल की कटाई के बाद होने वाले नुकसान में कमी से खाद्य पदार्थ की कीमतों में भी कमी आएगी। विकासशील देशों में फसलों के उत्पादन का एक खास हिस्सा फसल की कटाई के बाद बर्बाद हो जाता है क्योंकि कटाई के बाद फसलों का प्रबंधन बेहतर तरीके से नहीं होता और खेती की तकनीक भी बहुत बेहतर नहीं है।
अनुमान है कि फसल की कटाई के बाद जो नुकसान होता है, वह कई चरणों में कुल उत्पादन का 15 से 50 फीसदी हिस्सा होता है। इसमें भी फसल के पकने से पहले की कटाई, ज्यादा बारिश, सूखा या ज्यादा तापमान के साथ कीटाणुओं के लगने और फसलों की किसी और तरह की क्षति से उत्पाद की गुणवत्ता पर असर पड़ता है।
विश्लेषकों का ऐसा अनुमान है कि भारत में फसल के गिरने से करीब 20 फीसदी तक का नुकसान होता है जो लगभग 100,000 करोड़ रुपये तक की होगी। इसके अलावा खराब औजार, रसायन और कटाई, लदाई, पैकिंग और परिवहन के वक्त ठीक तरीके से रख-रखाव न करने की वजह से नुकसान होता है।
एफएओ को ऐसा यकीन है कि अनाज के नुकसान से कीमतों में तेजी आती है और बाजार में आपूर्ति कम होती है। इसका असर पर्यावरण के साथ-साथ मौसम में बदलाव के साथ भी दिखता है क्योंकि भूमि, जल, मानव श्रम और गैर नवीकरणीय संसाधनों मसलन खाद और ऊर्जा का इस्तेमाल उत्पादन, प्रसंस्करण और उसके परिवहन में इस्तेमाल किया जाता है जिसका उपभोग कोई भी नहीं करता।
अनाज के नुकसान से भुखमरी में इजाफा होता है। इसी वजह से यह एजेंसी इस बात पर जोर देती है कि पर्याप्त निवेश और प्रशिक्षण से खाद्य पदार्थ का नुकसान कम होगा। अगर किसानों को बेहतर प्रशिक्षण दिया जाता है तो कई तरह के नुकसान से बचाया जा सकता है क्योंकि परिवहन के साथ बेहतर पैकिंग न होने की वजह से भी अनाज की बर्बादी होती है।
एफएओ, विश्व बैंक और दूसरी एजेंसियों के साथ सहयोग करके तीन महादेशों में हजारों लोगों को प्रशिक्षण दे रही है ताकि फसलों की कटाई के बाद उसका बेहतर तरीके से संभाल कर भंडारण किया जा सके। दूसरी सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि वर्ष 2008 के खाद्य संकट के दौरान कई विकासशील देशों में अपर्याप्त और असुरक्षित भंडारण के इंतजाम देखने को मिले।
ऐसे में एफएओ को यह यकीन है कि हस्तक्षेप ओर दानदाता एजेंसियों के सहयोग से एक खास असर देखने को मिल सकता है। छोटे किसानों तक भी बेहतर तकनीक की पहुंच बनाने के लिए दूसरे क्षेत्रों में भी हस्तक्षेप बेहद जरूरी है। कई विकासशील देशों में किसानों के पास भंडारण के लिए चीजें नहीं होतीं।
एफएओ अब फंड जुटा रही है और किसानों को कर्ज दे रही है ताकि किसान भंडारण के लिए अच्छे कंटेनर का इंतजाम कर सकें। इसके अलावा एफएओ संस्थागत व्यवस्था बनाने पर भी जोर दे रही है। एफएओ का कहना है कि फसलों की कटाई के बाद अनाज की बर्बादी अब भी कई देशों में एक बड़ी मुसीबत है।
पश्चिम के बाजारों में फलों और सब्जियों की भी श्रेणियां बनाई जाती हैं, जहां आमतौर पर खाद्य पदार्थ के रख-रखाव के लिए एक मानक तय किया गया है। अगर यह उस मानक पर खरा नहीं उतरता तो उन फलों और सब्जियों को बेचने के लिए शेल्फ पर नहीं लगाया जाता है।
उम्मीद है कि जब वर्ष 2050 तक जनसंख्या में बढ़ोतरी होगी और कई विकासशील देशों में ज्यादा शहरीकरण होता तब गुणवत्ता वाले खाद्य पदार्थ की कमी हो सकती है। इस खाद्य श्रृंखला में खाद्य पदार्थ के नुकसान को कम किया जा सकता है। निश्चित तौर पर कोल्ड और ड्राइ स्टोरेज के बुनियादी ढांचे और प्रथम चरण के प्रसंस्करण उपकरणों के लिए ज्यादा निवेश की जरूरत महसूस हो रही है। (बीएसहिन्दी)
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