केंद्र सरकार द्वारा लागू गन्ने की फेयर एंड रिम्यूनरेटिव प्राइस (एफआरपी) प्रणाली को लेकर उभरा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। ताजा घटनाक्रम पंजाब से जुड़ा हुआ है। पंजाब सरकार ने कहा है कि वह खुद के द्वारा तय मूल्य से कम दाम पर गन्ने की खरीद की कतई इजाजत नहीं देगी। इस तरह पंजाब सरकार का यह निर्णय केंद्र सरकार के उस निर्देश के ठीक विपरीत है जिसमें कहा गया है कि गन्ने की एफआरपी और राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) में अंतर का भुगतान राज्य सरकारों को ही करना होगा। इसी महीने राज्य की चीनी मिलों में गन्ने का पिराई सीजन शुरू होने वाला है और प्रदेश एवं केंद्र सरकार अब इस निर्देश को लेकर उलझते जा रही हैं कि एफआरपी तथा एसएपी में अंतर का भुगतान किसानांे को कौन करगा।
पंजाब के कृषि मंत्री सुच्चा सिंह लगांह इस मसले पर पहले ही साफ कर चुके हैं कि केंद्र किसानांे को एसएपी का भुगतान करे। इस बीच, पंजाब के कृषि विभाग के निदेशक बी.एस.सिद्द्धू ने भी यहां कहा, त्नगन्ने की कीमत की अदायगी के मामले में हम अपने राज्य के कानून का पालन करेंगे।
इस तरह पंजाब सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि गन्ने की एफआरपी और एसएपी में अंतर का भुगतान राज्य सरकार द्वारा करने का सवाल ही पैदा नहीं होता। पंजाब गन्ना (खरीद व सप्लाई नियमन) नियम 1958 का जिक्र करते हुए सिद्द्धू ने कहा, त्नइसमें स्पष्ट किया गया है कि खरीद एजेंट समेत कोई भी व्यक्ति सरकारी स्वामित्व वाले गन्ना नियंत्रण बोर्ड द्वारा किसी वर्ष के लिए तय मूल्य से कम कीमत पर किसी मिल या फैक्टरी के लिए इसकी खरीदारी नहीं करेगा।त्न इस बार मंे राणा शुगर्स के एमडी राणा इंद्रप्रताप सिंह का कहना है कि पंजाब सरकार की खस्ता आर्थिक हालत को देखते हुए प्रदेश की सात प्राइवेट चीनी मिलों ने निर्णय लिया है कि वे एसएपी के अनुसार ही किसानों को गन्ने का भुगतान करेंगी। (बिज़नस भास्कर)
05 नवंबर 2009
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