देश में गन्ना किसानों के लिए एक समान मूल्य व्यवस्था की अव्यावहारिकता कई मायने में साबित होती है। इसके लिए गन्ने की उत्पादकता के साथ ही गन्ने में चीनी की मात्रा की अहम भूमिका है। इसके अलावा पहले से मौजूद भुगतान की प्रक्रिया और चीनी मिलों का मालिकाना हक मूल्य निर्धारण के बड़े कारक हैं। यही वजह है कि पिछले साल महाराष्ट्र की चीनी मिलों ने गन्ना किसानों को 175 रुपये प्रति क्विंटल का औसत मूल्य दिया था। चालू साल में यह 250 रुपये प्रति क्विंटल तक जा सकता है। उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों को 140 और 145 रुपये का राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) मिला था। हरियाणा में यह 170 रुपये प्रति क्विंटल था जो उत्तरी राज्यों में सबसे अधिक था। उत्तर भारत के किसानों के लिए गन्ने की प्रति हैक्टेयर उत्पादकता 43 से 57 टन है। तमिलनाडु के किसानों के लिए यह 110 टन प्रति हैक्टेयर और महाराष्ट्र के किसानों के लिए 90 टन प्रति हैक्टेयर है। ऐसे में हर जगह के किसानों के लिए समान मूल्य व्यवस्था (129.84 रुपये प्रति क्विंटल की एफआरपी) कैसे लागू की जा सकती है।
दूसरे 9.5 फीसदी से एक फीसदी ज्यादा चीनी रिकवरी की स्थिति में किसानों को करीब 13 रुपये प्रति क्विंटल का अतिरिक्त भुगतान मिलेगा। उत्तर प्रदेश में चीनी की रिकवरी 9.9 फीसदी पर जाकर अटक जाती है, जबकि महाराष्ट्र में यह 12 फीसदी तक जाती है। इसके चलते महाराष्ट्र के लिए चालू साल का एफआरपी 155.20 रुपये प्रति क्विंटल बन रहा है, जबकि उत्तर प्रदेश और दक्षिणी राज्यों के लिए यह 135 रुपये पर बैठता है। दक्षिण की दो गुनी और महाराष्ट्र की डेढ़ गुनी उत्पादकता व ऊंची रिकवरी उत्तर भारत के गन्ना किसानों को आय के मामले में काफी पीछे छोड़ जाती है।
बात यहीं नहीं अटकती है। उत्तर प्रदेश में चालू सीजन में गन्ने का एसएपी 162.50 रुपये से 170 रुपये प्रति क्विंटल है तो हरियाणा में उत्तरी राज्यों का सबसे अधिक, 185 रुपये प्रति क्विंटल है। तमिलनाडु सरकार ने 9.5 फीसदी रिकवरी पर चालू साल के लिए गन्ने का एसएपी 143.74 रुपये प्रति क्ंिवटल तय किया है। उत्तरी राज्यों के मुकाबले दोगुना गन्ना उत्पादकता के चलते वहां के किसानों की आय इन राज्यों के किसानों से करीब दो गुना रहना तय है।
दूसरी ओर एफआरपी का फामरूला लाने वाले शरद पवार के राज्य महाराष्ट्र का फामरूला इस बार वहां के किसानों के लिए सोने पर सुहागे की तरह आया है। महाराष्ट्र स्टेट कोआपरेटिव शुगर फैक्टरीज लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर प्रकाश नायकनवरे ने बिजनेस भास्कर को बताया कि चालू सीजन के लिए राज्य की सहकारी चीनी मिलों द्वारा गन्ना किसानों को दिये गये पहले एडवांस भुगतान का औसत 175 रुपये प्रति क्विंटल है। कुछ मिलों ने पहला एडवांस 210 रुपये प्रति क्विंटल तक दिया है। नायकनवरे का कहना है कि किसानों को मिलने वाला अंतिम भुगतान 230 से 250 रुपये प्रति क्विंटल के बीच रहने का अनुमान है। महाराष्ट्र के मामले में एक अहम बात यह है कि वहां गन्ने की कटाई और चीनी मिलों तक ढुलाई का 25 रुपये प्रति क्विंटल का खर्च चीनी मिलें वहन करती हैं। नायकनवरे के मुताबिक किसानों को मिलने वाली संभावित 250 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत में यह खर्च शामिल नहीं है। दूसरी ओर उत्तर भारत के राज्यों में यह खर्च किसानों को खुद वहन करना होता है। ऐसी स्थिति में किसानों को एफआरपी से होने वाली आय घटकर 110 रुपये प्रति क्ंिवटल रह जाती है। यही नहीं राज्य सरकारों द्वारा घोषित एसएपी से भी किसानों को होने वाली आय दक्षिणी राज्यों और महाराष्ट्र के किसानों से करीब आधी हर जाती है।
उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों के आंदोलन का नेतृत्व कर रहे किसान मजदूर संगठन के संयोजक वी।एम. सिंह का कहना है कि ऐसे में अगर निजी चीनी मिलें केवल एफआरपी देने की बात करें और केंद्र सरकार अधिक दाम से इनको छूट देने का कानून बनाती है तो किसानों का सड़क पर आना स्वाभाविक है। गन्ना मूल्य के मामले में चीनी मिलों के मालिकाना हक का भी एक बड़ा अंतर है। महाराष्ट्र, कर्नाटक और गुजरात में अधिकांश चीनी मिलें किसान सहकारी समितियों की हैं। ऐसे में मिल को होने वाले मुनाफे में उन्हें हिस्सेदारी मिलती है और यह कीमत किसानों को फाइनल पेमेंट के रूप में मिलती है। उत्तर भारत में अधिकांश चीनी मिलें निजी हैं। इन मिलों को मुनाफे में बंटवारे के लिए मजबूर करने वाला गन्ना नियंत्रण आदेश, 1966 का क्लॉज पांच (ए) का फॉमरूला भी 22 अक्टूबर के संशोधन में समाप्त कर दिया गया है। इसके चलते इन राज्यों के किसानों की मिलों के साथ मोलभाव की ताकत भी छिन गई है। (बिज़नस भास्कर)
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