04 जून 2009
खाद्य तेल आयात में सरकार को 280 करोड़ का नुकसान
पिछले साल खाद्य तेलों के भाव में भारी तेजी के बाद गिरावट आने से सरकार को इसके आयात से करीब 280 करोड़ रुपये का घाटा उठाना पड़ा। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत बिक्री के लिए आयात किया गया खाद्य तेल खुले बाजार में सस्ते में बेचने के कारण सरकार को यह घाटा उठाना पड़ा। सरकार की एजेंसियों ने 88 हजार टन खाद्य तेल खुले बाजार में बेचा। सरकार ने खाद्य तेल की कीमतों में तेजी को थामने के लिए पिछले साल जुलाई में 15 रुपये प्रति किलो की सब्सिडी पर राज्य सरकारों को करीब दस लाख आयातित खाद्य तेल वितरित करने की स्कीम लांच की थी। उस समय खुदरा में खाद्य तेल के दाम 80 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गए थे। खाद्य तेल के दाम 50-60 रुपये प्रति किलो के स्तर पर आने के बाद राज्य सरकारों ने केंद्र सरकार की एजेंसियों से खाद्य तेल उठाने से इंकार कर दिया। उसके बाद केंद्र सरकार ने मार्च में यह स्कीम बंद कर दी। इसके बाद कंपनियों को आयातित खाद्य तेल को औने-पौने दाम पर बेचना पड़ा। यही कारण है कि केंद्र सरकार को आयातित खाद्य तेल पर भारी नुकसान सहना पड़ा।स्कीम के तहत सरकारी कंपनी एमएमटीसी, पीईसी, एसटीसी और कृषि सहकारी फर्म नैफेड ने 3.6 लाख टन खाद्य तेल का आयात किया था। जिसमें से 2.61 लाख टन राज्य और केंद्र शासित राज्यों ने 31 मार्च तक उठा लिया। सूत्रों के मुताबिक बाकी 88 हजार टन आयातित खाद्य तेल 280 करोड़ रुपये का घाटा उठाकर खुले बाजार में बेचना पड़ा। उनके अनुसार अभी भी इन कंपनियों के पास 12 हजार टन आयातित खाद्य तेल बचा हुआ है। ऐसे में आगे और घाटा हो सकता है। भारत ने घरेलू उत्पादन कम होने के कारण अपनी जरूरत का आधा खाद्य तेल आयात करता है। देश में करीब 120 लाख टन खाद्य तेल की खपत होती है। (Business Bhaskar)
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