03 जून 2009
कृषि ऋण का लक्ष्य 20 फीसदी ज्यादा रहने के आसार
इस साल कृषि ऋण का लक्ष्य बीते वित्त वर्ष की तुलना में 15 से 20 फीसदी ज्यादा रहने के आसार हैं। यह कहना है राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के चेयरमैन उमेश चंद सारंगी का। हालांकि, उनका कहना है कि कृषि ऋण का लक्ष्य केंद्र सरकार जुलाई में पेश होने वाले आम बजट में तय करगी, इसलिए वह केवल अनुमान ही व्यक्त कर सकते हैं। लेकिन नई सरकार की प्राथमिकताओं को देखते हुए कृषि ऋण के लक्ष्य में बढ़ोतरी जरूर होनी चाहिए।नाबार्ड के चेयरमैन ने त्नबिजनेस भास्करत्न को खास बातचीत में बताया कि 31 मार्च 2009 को समाप्त वित्त वर्ष के दौरान कृषि क्षेत्र को दिए गए ऋण का पूरा ब्योरा अभी तक नाबार्ड को नहीं मिला है। चालू माह के अंत तक सभी बैंकों के आंकड़े आ जाएंगे। वैसे, अभी तक मिले आंकड़ों से यही संकेत मिलता है कि बीते वित्त वर्ष में कृषि क्षेत्र को दिया गया कुल ऋण 2.80 लाख करोड़ रुपये के लक्ष्य के लगभग बराबर रहेगा। उन्होंने बताया कि अभी तक नाबार्ड के पास 2.65 लाख करोड़ रुपये के कृषि ऋण वितरण की जानकारी आई है। आंकड़े अभी तक आ रहे हैं। इसलिए यह कहना गलत होगा कि कृषि ऋण लक्ष्य से कम रहा है। उन्होंने बताया कि इस साल नाबार्ड ने 21,000 करोड़ रुपये के रीफाइनेंस का लक्ष्य रखा है। इसका एक हिस्सा आंतरिक संसाधनों से जुटाया जाएगा, जबकि बाकी हिस्सा बाजार से बांडों के जरिए जुटाया जाएगा। यह राशि कितनी होगी, इसका फैसला अभी तक नहीं किया गया है। बीते वित्त वर्ष में नाबार्ड ने बाजार से सात-आठ हजार करोड़ रुपये जुटाए।उनके मुताबिक ब्याज दरें ज्यादा होने का कोई खास असर नाबार्ड पर नहीं पड़ा है। सारंगी ने कहा कि पिछले साल बाजार से जो पैसे हमने जुटाए हैं और सरकार ने जिस ब्याज दर पर किसानों को कर्ज देने के लिए हमसे कहा है, उसमें 4.5 फीसदी का अंतर रहा है जो सरकार पूरा करती है। सारंगी ने कहा कि पांच साल पहले 86,000 करोड़ रुपये का कृषि कर्ज दिया गया था और उस समय सरकार ने तीन साल बाद इसे दोगुना करने का लक्ष्य रखा था। हालांकि, वास्तविक कृषि ऋण चार साल में ही बढ़कर तीन गुना हो गया है।उन्होंने बताया कि नाबार्ड ने सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को वर्ष 2008-09 के दौरान कुल 21,460 करोड़ रुपये का कर्ज दिया जो पिछले वित्त वर्ष के 16,640 करोड़ रुपये की तुलना में 29 फीसदी ज्यादा है। कृषि और संबंधित क्षेत्रों में पूंजी सृजन के लिए नाबार्ड ने रीफाइनेंस की सुविधा उपलब्ध कराई। वर्ष 2008-09 में यह राशि 10535 करोड़ रुपये रही जो वर्ष 2007-08 के 9046 करोड़ रुपये के मुकाबले 16 फीसदी अधिक है। (Business Bhaskar)
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