11 मई 2009
अनाज से छलकेगा शराब उद्योग का जाम
नई दिल्ली : व्हिस्की , जिन और वोदका के शौकीनों के लिए एक खुशखबरी है। भारत अंतत : अब ऐसे उत्पादों के नक्शे में एक महत्वपूर्ण ठिकाने के तौर पर उभर रहा है। दुनिया भर में आपके पसंदीदा पेय को तैयार करने के लिए आधार वस्तु के रूप में इस्तेमाल किए जाने वाले ग्रेन अल्कोहल में निवेश में अचानक तेजी आ गई है। कंपनियां ब्रुवरीज स्थापित कर रही हैं , जिससे चावल , गेहूं और मक्के से अल्कोहल को आसवित किया जा सके। अकेले महाराष्ट्र में ही करीब 40 ब्रुवरीज लगने की संभावना है। उपकरण निर्माता प्राज इंडस्ट्रीज का कहना है कि उसके ऑर्डर बुक में 200 करोड़ रुपए के ऑर्डर हैं। निवेशकों को आकर्षित करने के लिए पंजाब , हरियाणा और महाराष्ट्र की राज्य सरकारें छूट दे रही हैं। दूसरे राज्य भी इन राज्यों का अनुकरण कर सकते हैं। भारत अब सालाना 20 करोड़ लीटर ग्रेन अल्कोहल का उत्पादन कर सकता है और अभी तो यह शुरुआत ही है। अब से दो साल बाद यह आंकड़ा बहुत ऊपर जा सकता है। इन सब कारणों के पीछे कुछ सवाल भी खड़े होते हैं। उदाहरण के लिए , सीग्राम भारत में अपने सभी अल्कोहल के लिए 1994 से अनाजों का इस्तेमाल कर रही है और दूसरी कंपनियों के पास भी इसके लिए लाइसेंस है। जब ग्रेन अल्कोहल दशकों से मौजूद है तो इसमें अचानक से क्यों सरगर्मी बढ़ी है ? इसका जवाब बेहद सीधा है - अब इसमें काफी पैसा है। सबसे पहले इसे ब्रुवर के नजरिए से देखते हैं। पहले अल्कोहल कंपनियां कच्चे माल के तौर पर मुख्य रूप से मोलैसेज का इस्तेमाल कर रही थी। यह एक तरह का गाढ़ा भूरे रंग का पदार्थ होता है जो गन्ने के रस से चीनी बनाते समय बच जाता है। इस साल गन्ने की आपूर्ति घटने पर मोलैसेज की भी कमी हो गई। इस कारण ब्रुवरीज कंपनियों को इस कच्चे माल की कमी हो गई। सावधान होने के लिए इतना संकेत किसी के लिए भी काफी है। इस कारण कंपनियों ने एक अच्छा कदम उठाते हुए मोलैसेज का विकल्प तलाशना शुरू कर दिया और उन्हें हल अनाज के रूप में मिला। हालांकि इसमें इतना दिमाग की भी जरूरत नहीं थी , क्योंकि मोलैसेज किसी भी ऐसी चीज से बनाया जा सकता है जिसमें शुगर हो। मोलैसेज में सुक्रोज होता है , लेकिन अनाजों में स्टार्च होता है ( मक्के में 64 फीसदी स्टार्च होता है ) और स्टार्च में ग्लूकोज होता है। एक बार आप स्टार्च को शुगर में बदल लेते हैं तो आप अल्कोहल बनाने का रास्ता तैयार कर लेते हैं। स्टार्च से ग्लूकोज बनाने में कई चरण होते हैं और इससे लागत बढ़ जाती है , इस कारण कंपनियों ने इस पर अधिक ध्यान नहीं दिया था। अब मोलैसेज की कीमत 7,000 रुपए प्रति टन पर पहुंच गई है तो कंपनियों को मक्के से बनी अल्कोहल 25 फीसदी सस्ती पड़ रही है। (ET Hindi)
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