नई दिल्ली May 22, 2009
वाणिज्य मंत्रालय के अधिकारियों ने सभी कृषि जिंसों पर लगे निर्यात प्रतिबंध को हटाने की सिफारिश की है क्योंकि अतिरिक्त उत्पादन की वजह से घरेलू कीमतें कम हो गई हैं।
नए मंत्री के प्रभार संभालने से पहले ही वाणिज्य मंत्रालय के अधिकारियों ने ऐसी सिफारिश की है। मौजूदा समय में विदेश में गेहूं, गैर-बासमती चावल और सभी दालों (काबुली चना को छोड़कर) के निर्यात पर प्रतिबंध है।
वाणिज्य मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी का कहना है, 'कृषि जिंसों के निर्यात पर प्रतिबंध की समीक्षा की जानी चाहिए क्योंकि इस तरह के कदम से हमारे निर्यातकों को ही नुकसान होता है।' अधिकारियों का कहना है कि निर्यातकों को बहुत नुकसान झेलना पड़ता है क्योंकि प्रतिबंध लगने की वजह से नए विकासशील बाजार में निवेश करने का कोई फायदा नहीं है।
इसकी वजह से दूसरे देशों के प्रतियोगियों और घरेलू कंपनियों से वापस अपनी हिस्सेदारी कायम करने के लिए फिर से निवेश करना पड़ता है। पिछले हफ्ते वाणिज्य सचिव जी. के. पिल्लई का कहना था कि सरकार गेहूं के निर्यात से प्रतिबंध हटा सकती है क्योंकि मंत्री समूह (जीओएम) ने भी इसी मुद्दे पर अपनी सिफारिश दी है।
सरकार ने वर्ष 2007 के फरवरी महीने में गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था और पिछले साल अप्रैल में उत्पादन में कमी को रोकने के लिए और चावल की बढ़ती कीमतों पर नियंत्रण करने के लिए गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था। पिछले साल मार्च में बासमती चावल के निर्यात में 8,000 रुपये प्रति टन निर्यात शुल्क लगाया गया था।
जिंस के निर्यातक जो निर्यात पर प्रतिबंध खत्म करने की बात कर रहे थे उनका दावा है कि वे निर्यात प्रतिबंध खत्म होने के बाद भी अब मुनाफा कमाने की स्थिति में नहीं हैं। इसकी वजह यह है कि गेहूं की घरेलू कीमतें अंतरराष्ट्रीय कीमतों के मुकाबले ज्यादा हैं।
निर्यातकों का प्रतिनिधित्व करने वाले औद्योगिक समूह निर्यात को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार से सब्सिडी की मांग कर रहे हैं। लेकिन वाणिज्य मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि इस मांग को लेकर किसी प्रतिनिधि ने हमें जानकारी नहीं दी है।
कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ निर्यात विकास प्राधिकरण (अपीडा) के निदेशक एस. दवे का कहना है, 'कृषि निर्यात की नीति में निरंतरता की जरूरत है। निर्यात पर अचानक प्रतिबंध लगाए जाने की वजह से निर्यातकों को बहुत झटका लगा है क्योंकि उन्होंने पहले से ही विकसित बाजारों में अपनी पैठ बनाने की कवायद शुरू कर दी थी।'
अर्थशास्त्रियों की भी यही राय है कि निर्यात पर से प्रतिबंध हटा लिया जाना चाहिए क्योंकि अतिरिक्त उत्पादन की स्थिति बन रही है। एचडीएफसी बैंक के प्रमुख अर्थशास्त्री अभीक बरूआ का कहना है, 'हमारा भंडार कम हो रहा है और अब निर्यात शुरू करने की ही जरूरत है।'
क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के प्रमुख अर्थशास्त्री डी के जोशी का कहना है, ' जिन किसानों को अपने उत्पादन के लिए अंतरराष्ट्रीय कीमतों के मुकाबले भी कम कीमत मिलती थी, निर्यात पर प्रतिबंध हटाने से उन्हें मदद मिलेगी।' उनका कहना है कि मौजूदा समय में खाद्य आपूर्ति की स्थिति बेहतर है लेकिन यह भी बारिश पर निर्भर है।
वाणिज्य मंत्रालय की सिफारिश
सभी कृषि जिंसों पर लगे निर्यात प्रतिबंध को हटाया जाना चाहिए प्रतिबंध निर्यातकों के लिए नुकसानदेहबढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने के लिए सरकार ने लगाया था प्रतिबंधगेहूं, गैर बासमती चावल और सभी दालों के निर्यात पर है प्रतिबंध (BS Hindi)
23 मई 2009
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