मुंबई May 25, 2009
मानसून के सामान्य रहने की उम्मीद से ज्यादातर कृषि जिंसों के वायदा कारोबार में मंदी का रुख रहा।
कारोबारियों और जिंस विश्लेषकों का कहना है कि दक्षिणी तटीय इलाकों में मानसून समय से पहले आ गया। इसकी वजह से फसल बेहतर होने के आसार हैं।
उदाहरण के रूप में देखें तो जौ, हल्दी, कालीमिर्च, मिर्च, ग्वारसीड, जीरा, मक्का और सोयाबीन की कीमतों में पिछले एक सप्ताह के दौरान गिरावट दर्ज की गई है। पिछले सप्ताह गेहूं का वायदा कारोबार भी शुरू किया गया, इसमें भी शुरुआती दिनों की तुलना में गिरावट दर्ज की गई है।
एंजेल कमोडिटीज के एसोसिएट डायरेक्टर (कमोडिटीज ऐंड करेंसीज) नवीन माथुर ने कहा, 'दक्षिणी तट पर 2 सप्ताह पहले मानसून का आना, जिंसों की कीमतों में गिरावट की पहली वजह है। मेरा मानना है कि मानसून के सामान्य रहने पर फसलों की आपूर्ति बेहतर रहेगी।'
मानसून पर अधिक निर्भरता वाले ग्वारसीड में कमजोर रुख रहा और इसके वायदा कारोबार में 4.5 प्रतिशत की गिरावट देखी गई। इसी तरह से जौ, हल्दी और जीरे में भी 4-10 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। बाजार के जानकारों का मानना है कि पिछले दो साल मानसून के लिहाज से या तो औसत रहे या खराब ही रहे, जिससे फसलों की उत्पादकता पर बुरा प्रभाव पड़ा।
हालांकि बाजार विश्लेषकों ने यह भी कहा कि मानसून ही एकमात्र वजह नहीं है, जिसके चलते कृषि जिंसों के वायदा कारोबार में गिरावट आई है। एग्रीवाच कमोडिटीज की रिसर्च एनलिस्ट सुधा आचार्य का कहना है, 'सभी जिंसों की धारणाओं के अलग अलग सिध्दांत हैं। इनके साथ सकारात्मक मानसून जुड़ा, जिससे बाजार में सुधार आया। केवल मानसून का प्रभाव मंदी या तेजी लाने में सक्षम नहीं है।'
हाल के महीनों के गेहूं के वायदा पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा कि घरेलू बाजार में सस्ती दरों पर गेहूं की उपलब्धता को सुनिश्चित करने के लिए हम गेहूं का निर्यात नहीं करेंगे। सोमवार को गेहूं का जून माह का वायदा कारोबार 1106.20 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ, जबकि पिछले सप्ताह इसके वायदा कारोबार की शुरुआत के समय वायदा भाव 1136 रुपये प्रति क्विंटल था।
मिर्च का स्टॉक आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में पर्याप्त है। भौतिक बाजार में आंध्र में मिर्च की कीमतें स्थिर रहीं। इसी तरह से हल्दी, जीरा और कालीमिर्च की कीमतें भी ज्यादा नहीं हैं। माथुर के मुताबिक मानसून के साथ साथ कीमतों में कमी की एक वजह रुपये की मजबूती भी है।
उन्होंने कहा, 'कुछ कृषि जिंसों का आयात किया जाता है, जिसकी वजह से रुपये की मजबूती से खरीद खर्च कम लगा और घरेलू बाजार की कीमतों में कमी आई।' दाल के मामले में कारोबारी घरेलू कीमतों में गिरावट की उम्मीद कर रहे हैं। उनके मुताबिक दाल का आयात मूल्य 200-300 रुपये प्रति क्विंटल कम लगेगा। (BS Hindi)
26 मई 2009
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