नई दिल्ली 05 24, 2009
रियायती दर पर कपास बेचने के सरकार के फैसले का फायदा कपड़ा मिलें नहीं थोक खरीदार उठा रहे हैं।
भारतीय कपास निगम (सीसीआई) जैसी सरकारी कंपनियों ने 2,200 करोड़ रुपये की सरकारी सब्सिडी के साथ जो कपास बेचा, उसमें ज्यादातर मिलों के पास न जाकर इन्हीं थोक कारोबारियों के गोदामों में चला गया है।
सरकार ने पिछले वित्त वर्ष में कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य तकरीबन 40 फीसदी बढ़ा दिया था। इसके बाद ज्यादातर किसानों ने अपनी फसल सीसीआई और राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (नेफेड) को बेची थी। लेकिन दोनों एजेंसियां इसे तय कीमत पर नहीं बचे पाईं क्योंकि यह कीमत बाजार मूल्य से काफी ज्यादा था।
इससे मजबूर होकर सरकार को देसी बाजार में छूट के साथ कपास बेचना पड़ा। वह मिलों का फायदा चाहती थी, लेकिन उसने ज्यादा खरीद पर ज्यादा छूट की व्यवस्था रखी। ऐसे में फायदा थोक कारोबारी उठा ले गए, जो कपास को लंबे समय तक गोदामों में रख सकते हैं। मिलें इन्हीं कारोबारियों से बाजार मूल्य पर कपास ले रही हैं, जिसकी वजह से फायदा मिलों को न होकर कारोबारियों को ही मिल रहा है।
सीसीआई के एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया, 'कपास का ज्यादातर हिस्सा कारोबारियों को बेचा गया है। एक तिहाई कपास मिलों ने खरीदा है।' रियायत से पहले सीसीआई 89.4 लाख बेल्स में से 13 फीसदी बेच पाई थी। अब केवल 10 लाख बेल्स बची हैं। इसका सबसे बड़ा नुकसान छोटी मिलों को है। उन्हें बमुश्किल10,000 बेल्स की जरूरत होती है, जिन्हें वे थोक कारोबारियों से अधिक दाम में खरीद रही हैं। इसलिए फायदा तो कारोबारियों को ही मिल रहा है।'
थोक कारोबारियों की खिलीं बांछें
मिलों के लिए सरकार ने दी कपास मूल्य में छूटलेकिन मुनाफा कमा रहे हैं थोक कारोबारी (BS Hindi)
26 मई 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें