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30 मई 2009

लौह अयस्क के नए चीनी फार्मूले से लाभ

मुंबई May 29, 2009
चीन के लौह अयस्क के कीमतों में समानता का फायदा, भारत के स्टील निर्माण के लिए कच्चे माल मुहैया कराने वाले निर्यातकों को अपने प्रतिद्वंद्वियों के मुकाबले ज्यादा मिलेगा।
मौजूदा समय में तीन शेयरधारक जिसमें विदेशी खदान के मालिक, चीन के स्टील मिलों और स्थानीय खदान मालिक एक ऐसा सूत्र खोजने में जुटे हैं जिससे लंबे समय तक के लिए चीन के बंदरगाह पर लौह अयस्क की कीमतें घोषित की जा सकें।
इसका मतलब यह है कि अगर यह सूत्र बना लिया जाता है और इस पर अमल किया जाता है तो चीन के बंदरगाह पर कीमतें समान ही रहेंगी और वह कहां से लाई जा रही हैं और उसका मालभाड़ा क्या है इसका भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
भारत के निगाह से यह विकास बेहद महत्वपूर्ण होगा क्योंकि भारतीय निर्यातकों को कम मालभाड़े की वजह से चीन से अतिरिक्त ऑर्डर मिल सकते हैं। आज चीन को निर्यात करने वाले लौह अयस्क निर्यातकों को कीमतों में एकरूपता के लिए कोशिश करनी पड़ रही है क्योंकि चीन के आयातक अनुबंधित माल को लेने में हिचकते हैं जब हाजिर कीमत, द्विपक्षीय बातचीत से निर्धारित कीमत के मुकाबले कम हो जाती है।
इसके बदले आयातक कीमतों पर फिर से बातचीत करना पसंद करते हैं या फिर हाजिर बाजार से लौह अयस्क को खरीदना पसंद करते हैं। गोवा के निर्यातक और लौह अयस्क खदार्नकत्ता एच एल नाथुरामल ऐंड कंपनी के सीईओ हरीश मेलवानी का कहना है, 'ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया की तुलना में भारत के भौगोलिक स्थिति का फायदा निश्चित तौर पर है क्योंकि इसी वजह से मालभाड़ा कम हो जाता है। ऐसे में भारत के लौह अयस्क की मांग निश्चित तौर पर बढ़ेगी।'
कारोबारियों सूत्रों के मुताबिक बाजार की तीन शक्तियां मौजूदा समय में एक सूत्र बनाने के लिए कोशिश कर रही हैं ताकि स्टील मिलों का परिचालन बेहतर तरीके से हो सके । अगले महीने के अंत तक यह फै सला किया जा सकता है। मौजूदा वक्त में सभी भारतीय बंदरगाहों से मालभाड़ा 11-13 डॉलर के बीच में है जबकि ब्राजील से 26 डॉलर और ऑस्ट्रेलिया से 18-20 डॉलर है।
लेकिन दुनिया के दो बड़े लौह अयस्क खदार्नकत्ता ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया के पक्ष में कुछ सकारात्मक भी है क्योंकि ये देश इनके पास 3 लाख टन क्षमता वाले जहाज भी हैं, जो क्षमता भारत के पास नहीं है। भारत के पास 40,000-125,000 टन क्षमता वाले छोटे जहाज हैं।
गोवा खनिज अयस्क निर्यातक संघ के सचिव ग्लेन कालावांपरा का कहना है कि अगर भारत इसका पूरा फायदा लेना चाहता है तो इसे बुनियादी ढांचे में सुधार करना होगा ताकि बड़े जहाज का बेहतर प्रबंधन किया जा सके। हालांकि चीन के छोटे स्टील मिलों को भारत से लौह अयस्क का आयात करना होगा क्योंकि वे स्टील के कच्चे माल की अतिरिक्त मात्रा की जरूरत नहीं समझते।
फेडरेशन ऑफ इंडियन मिनिरल इंडस्ट्रीज (एफआईएमआई) के महासचिव आर के शर्मा का कहना है, 'मौजूदा समय में यहीं चीजें हो रही हैं कीमतों में समानता के सूत्र में कोई बदलाव नजर नहीं आ रहा है क्योंकि निर्यातकों को माल लदाई की लागत का बोझ भी उठाना है। सभी कीमतें फ्री ऑन बोर्ड (एफओबी)के आधार पर ही निर्धारित की जाती है जो चीन के बंदरगाह की कीमतें ही होती हैं।'
तीन बड़े खदानों की कंपनी कॉमपैनियां वाले डो रियो डोसे, बीएचपी बिलिटॉन और रियो टिंटो के बेंचमार्क कीमतों का अनुसरण सबके द्वारा किया जाता है। लेकिन एक कारोबारी का कहना है कि चीन के बंदरगाह की कीमतों की घोषणा से फिर से बातचीत के द्वारा निर्धारित कीमतें कम हो जाएंगी। (BS Hindi)

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