20 मई 2009
कच्चा माल महंगा होने से सिंथेटिक यार्न के भाव आठ फीसदी बढ़े
सिंथेटिक यार्न के दाम पिछले पांच माह के दौरान आठ फीसदी तक बढ़ चुके हैं। इसकी वजह सिंथेटिक यार्न बनाने के लिए कच्चे माल का महंगा होना है। हालांकि मांग में सुस्ती के कारण सिंथेटिक यार्न की मांग में कमी आई है। पिछले पांच माह के दौरान बाजार में सिंथेटिक यार्न में पीपी यार्न-800 डेनियर के दाम 110 रुपये से बढ़कर 122 रुपये और 1200 डेनियर के दाम 115 रुपये से बढ़कर 125 रुपये प्रति किलो हो गए हैं। वही पॉलिस्टर यार्न 2/R*42 के दाम 120-135 रुपये से बढ़कर 130-145 रुपये, 3*52 के दाम 150-162 रुपये से बढ़कर 160-175 रुपये और 3*62 के दाम 155- 180 रुपये से बढ़कर 165- 187 रुपये प्रति किलो हो चुके हैं। रुई मंडी ट्रेडर एसोसिएशन के चैयरमेन और मैसर्स गर्ग ब्रदर्स के मालिक केवल कुमार गर्ग ने बिजनेस भास्कर को बताया कि आर्थिक सुस्ती की वजह से सिंथेटिक यार्न की घरेलू और निर्यात में भारी कमी आई है।वहीं सिंथेटिक यार्न बनाने में उपयोग होने वाले कच्चे माल की कीमतें बढ़ने की वजह से इसके मूल्यों में करीब आठ फीसदी का इजाफा हुआ है। इजाफा हुआ है। उनका कहना है कि पॉलिएस्टर यार्न बनाने के बनाने के लिए फाइबर की आवश्यकता होती है। इस दौरान इसके मूल्य बढ़ने के कारण पॉलिस्टर यार्न की कीमतों में इजाफा हुआ है। फाइबर के मूल्य इस दौरान 60 रुपये से बढ़कर 68 रुपये हो गए हैं। पीपी यार्न के कारोबारी संजय जैन ने बताया कि पिछले पांच माह के दौरान क्रूड ऑयल के महंगे होने से इसकी कीमतों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। पिछले पांच माह के दौरान क्रूड ऑयल के दाम 38 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर करीब 60 डॉलर तक पहुंच चुके हैं।इन दिनों बाजार से स्टॉकिस्ट लगभग गायब दिखाई दे रहे हैं। अग्रवाल थ्रेड कंपनी के विपिन बंसल का कहना है कि कि इन दिनों कारोबारी यार्न की खरीदारी जरूरत के हिसाब से ही कर रहे है। उनका कहना है कि आर्थिक संकट के चलते कारोबारियों के पास धन की तंगी भी चल रही है। ऐसे में कारोबारी यार्न का स्टॉक करके जोखिम उठाना नहीं चाहते है। कारोबारियों के मुताबिक बिजली कटौती होने से सिंथेटिक यार्न के उत्पादन में कमी आई है। इस वजह से भी इसके भाव बढ़ने को बल मिला है। भारत में सिंथेटिक यार्न बनाने वाली कंपनियों में बांबे डाइंग और इंडोरामा सिंथेटिक इंडिया लिमिटेड प्रमुख कंपनी हैं।कपास निर्यात 39 फीसदी कम मुंबई। चालू सीजन में कपास का निर्यात करीब 39 फीसदी कम रह सकता है। सरकार ने 50 लाख कपास के गांठ निर्यात करने का लक्ष्य रखा था। कॉटन कारपोरेशन ऑफ इंडिया के सीएमडी सुभाष ग्रोवर के अनुसार घरलू मांग बढ़ने और उत्पादन में कमी से निर्यात घट रहा है। इस दौरान निर्यात का स्तर 35-40 लाख गांठ (एक गांठ 170 किलो) रह सकता है। पिछले साल 85 लाख गांठ निर्यात हुआ था। जून के बाद कपास का निर्यात और मुश्किल हो जाएगा क्योंकि निर्यात पर दी जा रही कर छूट जून के बाद नहीं मिलेगी। सरकार कच्चे कपास के निर्यात में पांच फीसदी तक कर छूट दे रही है। कारपोरेशन ने 89.4 लाख कपास गांठ खरीदी है। इसमें से 78.4 लाख कपास गांठ बेची जा चुकी हैं। (Busienss Bhaskar)
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