नई दिल्ली May 25, 2009
मंदी ने आम निर्यात को भी कम कर दिया। भारतीय आम के निर्यात में इस साल पिछले साल के मुकाबले 30-40 फीसदी की कमी बतायी जा रही है।
इसके अलावा आम उत्पादकों के पास गुड एग्रीकल्चर प्रैक्टिस (गैप) सर्टिफिकेट नहीं होने के कारण भी आम के निर्यात को धक्का पहुंच रहा है। भारत से अल्फांसो व केसर आम का निर्यात किया जाता है। अल्फांसो के उत्पादन में 30 फीसदी तो केसर के उत्पादन में पिछले साल के मुकाबले 60 फीसदी तक की गिरावट बतायी जा रही है।
केसर उत्पादकों को घरेलू बाजार में ही 100 फीसदी की बढ़ी हुई दर से आम की कीमत मिल रही है। वहीं अल्फांसों के भाव में 60-80 फीसदी तक की बढ़ोतरी दर्ज की गयी है। वर्ष 2007-08 के दौरान कुल 12,741 लाख रुपये का निर्यात किया गया था और वर्ष 2008-09 के दौरान इसके मुकाबले लगभग 20 फीसदी की तेजी दर्ज की गयी थी।
महज पांच साल पहले अल्फांसो व केसर आम का निर्यात शुरू किया गया है। तमिलनाडु आम उत्पादक संघ के पदाधिकारी डा. प्रबरम कहते हैं, 'मंदी व ग्लोबल वार्मिंग के कारण आम के निर्यात में गिरावट आयी है। भारत से खाड़ी देश व ब्रिटेन में सबसे अधिक अल्फांसो आम का निर्यात किया जाता है। पिछले साल तो इंटरनेट पर आमों की बुकिंग हो रही थी।'
दक्षिण भारत के धर्मापुरी, कृष्णागिरी, वेल्लुर डिनडीकिलेनी टेरी,सेले व त्रिची जैसे इलाके अलफांसो आम के लिए मशहूर है। इन इलाकों में लगभग 12 हजार एकड़ में अलफांसो की खेती की जाती है। अमूमन एक एकड़ में 4 टन आम का उत्पादन होता है।
वेल्लुर आम उत्पादक संघ के पदाधिकारी जय गोबी कहते हैं, 'पिछले साल तो अलफांसो की निर्यात कीमत 35-40 रुपये प्रति किलोग्राम थी जबकि इस साल तमिलनाडु में इसकी कीमत 60 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गयी है। अन्य राज्यों में इसके दाम 100 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच चुके हैं।'
अल्फांसो आम की उपज दक्षिण गुजरात में भी भारी मात्रा में की जाती है, लेकिन इस साल इन इलाकों में अलफांसो के उत्पादन में 60 फीसदी से अधिक की कमी आयी है। गुजरात के उत्पादकों के मुताबिक केसर आम के उत्पादन में पिछले साल के मुकाबले 70 फीसदी की गिरावट है और इसकी कीमत गुजरात में 50 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गयी है। पिछले साल केसर आम की अधिकतम कीमत 20 रुपये प्रति किलोग्राम तक गयी थी।
दक्षिण भारत के उत्पादकों की यह भी शिकायत है कि उनके आम की गुणवत्ता निर्यात के लायक है, लेकिन गैप सर्टिफिकेट नहीं होने के कारण उन्हें निर्यात की इजाजत नहीं मिल पाती है। इस सर्टिफिकेट को लेने में 50,000 रुपये का खर्च आता है और इसकी प्रक्रिया लंबी है। वे कहते हैं कि सरकार इस दिशा में उत्पादकों की मदद करे तो अलफांसो का निर्यात दोगुना हो सकता है। (BS Hindi)
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