मुंबई May 26, 2009
इस साल वैश्विक खाद्य तेल के बाजार पर भारत की निर्भरता 20 फीसदी तक बढ़ेगी। इसकी वजह यह है कि घरेलू उत्पादन में कमी आ रही है और कीमतों में भी गिरावट आ रही है।
वर्ष 2007-08 के तेल वर्ष (नवंबर-अक्टूबर) में 1.35 करोड़ टन उपभोग का अनुमान लगाया गया है। देश में 46 फीसदी या 63 लाख टन खाद्य तेल की जरूरत की पूर्ति आयात के जरिए हुई। घरेलू बाजार का प्रदर्शन बेहतर नहीं रहा और आपूर्ति 54 फीसदी या 63 लाख टन तक ही सिमट गई।
वर्ष 2008-09 भी तिलहन फसलों के लिए बेहतर साल नहीं रहा नतीजतन तेल का अनुमानित उत्पादन 66 लाख टन रहा। दूसरी ओर दुनिया भर में खाद्य तेल की कम कीमतों की वजह से उपभोक्ताओं की ओर से बेहतर प्रतिक्रिया आई है।
ऐसे में उम्मीद है कि घरेलू खपत इस तेल वर्ष में 1.5 लाख टन से ज्यादा हो सकता है। नतीजतन संभावना है कि आयात में बढ़ोतरी होगी और यह 85 टन तक हो जाएगा। इस तरह 56 फीसदी से ज्यादा आयात पर हमारी निर्भरता बढ़ जाएगी।
सेंट्रल ऑर्गनाइजेशन फॉर ऑयल इंडस्ट्री ऐंड ट्रेड (सीओओआईटी) के निदेशक डी एन पाठक का कहना है, 'खरीफ फसल मुख्य रूप से मानसून की बारिश पर ही निर्भर होगी। खरीफ तिलहन सीजन की मुख्य फसल सोयाबीन का उत्पादन भी बंपर तभी होगा जब खेती के इलाकों में समान रूप से बारिश होगी।'
उनका कहना है कि किसान सोया बीजों की बुआई के लिए बारिश का इंतजार कर रहे हैं। मौजूदा धारणाओं का यह संकेत है कि किसानों में अगले सोयाबीन फसल को लेकर उत्साह है। इस बीच गोदरेज इंटरनेशनल के निदेशक दोराब मिस्त्री के हाल में पेश किए गए परिपत्र का अनुमान है कि भारत में प्रति व्यक्ति खाद्य तेल की खपत में 12 फीसदी का इजाफा हुआ है और यह 12.78 किलोग्राम हो गया है जो पिछले साल 11.40 किलोग्राम था।
भारतीय आयातकों ने पहले से ही खाद्य तेल (कच्चे और संशोधित)की जरूरत भर मात्रा का भंडार तैयार किया है। इसकी वजह यह आशंका है कि इंडोनेशिया की सरकार और हाल ही में सत्ता में आई कांग्रेस की सरकार निर्यात और आयात पर शुल्क लगा सकती है। एक विशेषज्ञ का यह कहना है कि अगर यह कर लगा दिया जाए तो शुल्क की तुलना में जिंस की कीमतें ज्यादा बढ़ जाएंगी।
इंडोनेशिया की सरकार ने कच्चे पाम तेल पर 3 फीसदी कर निर्यात शुल्क लगाने का प्रस्ताव रखा है जिसका भारत बहुत बड़ी मात्रा में निर्यात करती है। इंडोनेशिया ने पिछले नवंबर में 7.5 फीसदी कर लगाया था उसके बाद आर्थिक मंदी के दौरान ही कीमतों में बढ़ोतरी हुई।
आशंका है कि भारत भी प्रत्यक्ष करों की वसूली के लिए जल्द ही आयात पर 10-20 फ ीसदी तक शुल्क लगा सकता है। रॉटरडम में पाम तेल की कीमतें इस साल बढ़कर 43 फीसदी तक हो गई जबकि वर्ष 2008 में इसमें 46 फीसदी तक की गिरावट आई।
उम्मीद यह की जा रही है कि मांग में बढ़ोतरी से वैश्विक अर्थव्यवस्था की रिकवरी के संकेत मिलते हैं। इंडोनेशिया ने जो नई शुल्क लगाई वह 20 अप्रैल और 19 मई के बीच रॉटरडम की औसत कीमत 774.93 डॉलर प्रति टन पर आधारित है।
भारत में पांच महीने की अवधि जो इस साल मार्च में खत्म हुई उसमें वनस्पति तेल के आयात में 59 फीसदी तक बढ़ोतरी हुई और यह 36 लाख टन हो गया। पिछले साल इसी समान अवधि में आयात 23 लाख टन था। इसी अवधि में परिष्कृत सोयातेल में भी मामूली गिरावट का रुख रहा और यह 463 रुपये प्रति 10 ग्राम के मुकाबले 450 रुपये हो गई।
वहीं परिष्कृत सूरजूखी तेल और मूंगफली तेल की कीमतें कम होकर 640 रुपये प्रति 10 किलोग्राम और 610 रुपये प्रति 10 किलोग्राम से क्रमश: 475 रुपये प्रति 10 किलोग्राम और 558 रुपये प्रति 10 किलोग्राम हो गई। इसके विपरीत आरबीडी पामोलीन की कीमतें 328 रुपये प्रति 10 किलोग्राम से बढ़कर 410 रुपये प्रति 10 किलोग्राम हो गईं। (BS Hindi)
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