मुंबई May 19, 2009
सरकार स्टील के आयात पर संरक्षण शुल्क लगाने के मूड में नहीं है। उद्योग जगत के प्रतिनिधियों ने सरकार से संरक्षण शुल्क लगाए जाने की मांग की थी।
स्टील मंत्रालय के सचिव पीके रस्तोगी ने मुंबई में आयोजित एक स्टील सेमीनार के दौरान अलग से बातचीत में कहा कि सरकार इसकी कोई जरूरत नहीं महसूस कर रही है।
हाल ही में स्टील की दो बड़ी कंपनियां टाटा स्टील और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी स्टील अथॉरिटी आफ इंडिया ने सरकार से चीन से आने वाले सस्ते स्टील से संरक्षण दिए जाने की गुहार की थी। उन्होंने चीन से आयातित स्टील पर 25 प्रतिशत संरक्षण शुल्क लगाए जाने की मांग की थी। इस प्रस्ताव को सरकार की स्टैंडिंग बोर्ड के सदस्यों, स्टील, वाणिज्य और राजस्व विभाग के सचिवों ने खारिज कर दिया था।
रस्तोगी ने कहा कि स्टैंडिंग बोर्ड को संरक्षण शुल्क लगाए जाने का कोई खास आधार नहीं मिला, जिसके चलते इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया। बहरहाल, उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि चीन से भारत में स्टील की डंपिंग के मामले सामने आए हैं।
कंपनियों ने अपने मामले को दृढ़ता से सरकार के सामने रखने की तैयारी नहीं की थी। यह पूछे जाने पर कि स्टील कंपनियां क्या इस सिलसिले में कोई नया प्रस्ताव लाने पर विचार कर रही हैं, रस्तोगी ने कहा, 'कुल मिलाकर, हम अपने उपभोक्ताओं के हितों का संरक्षण करना चाहते हैं। यह सरकार की प्राथमिकता में है और इस तरह से हमें संरक्षण शुल्क, एंटी डंपिंग शुल्क या अन्य किसी तरह के कर लगाए जाने की कोई जरूरत महसूस नहीं हुई।'
उधर जेएसडब्ल्यू स्टील के संयुक्त प्रबंध निदेशक और ग्रुप सीएफओ शेषगिरि राव ने कहा कि हमारे सामने डंपिंग के बहुत मजबूत मामले हैं, जो अपने आप सरकार के संरक्षण की जरूरत पर जोर देते हैं। राव के मुताबिक चीन में स्टील उद्योग को सरकार की तरफ से सब्सिडी मिलती है और इसलिए वहां पर बिक्री मूल्य भारत की अपेक्षा कम है।
स्टील की कीमतें यूरोपीय देशों में कीमतों के बहुत ही नजदीक हैं। बहरहाल, रस्तोगी का कहना है कि भारत में स्टील की मांग वर्तमान वित्त वर्ष में 5 प्रतिशत बढ़ेगी, लेकिन अगर अर्थव्यवस्था में सुधार आता है, जैसा कि संकेत मिल रहे हैं, तो मांग एक अंकों के सर्वोच्च स्तर तक पहुंच सकती है। (BS Hindi)
20 मई 2009
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