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12 मई 2009

वाइन इंडस्ट्री ने तोड़ी किसान की कमर

पुणे- मंदी के कारण राज्य की वाइन इंडस्ट्री पर बुरा असर पड़ा है, जिससे वाइनरीज द्वारा अच्छी श्रेणी के अंगूरों के लिए किसानों के साथ किए गए कॉन्ट्रैक्ट भी अटक गए हैं। अब राज्य सरकार ने एक कमेटी गठित करने का निश्चय किया है। यह कमेटी अगले तीन महीनों के लिए किए गए कॉन्ट्रैक्ट को लागू करने के बारे में अध्ययन करेगी। अप्रैल 2008 में वाइन की बिक्री में 44 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी, लेकिन जनवरी 2009 में वृद्धि नकारात्मक श्रेणी में चली गई। इस संकट का सबसे ज्यादा असर नासिक के किसानों पर पड़ा है। राज्य की 58 वाइनरीज में से 30 इसी जिले में हैं। वाइन में इस्तेमाल होने वाला अंगूर की बागवानी एक लंबी अवधि की प्रक्रिया होती है, इसलिए अगर एक सीजन में कीमतों में गिरावट आ जाए तो किसान इसका उत्पादन नहीं रोक सकते हैं। इस श्रेणी के अंगूर शराब बनाने के अलावा और किसी काम में इस्तेमाल नहीं किए जा सकते हैं। इससे वास्तव में कुछ किसानों को अपनी फसल को नष्ट करना पड़ा, क्योंकि वाइनरीज उनके साथ किए कॉन्ट्रैक्ट को पूरा करने के लिए इच्छुक नहीं थीं। नासिक के जिलाधिकारी एम पी वेलरासु का कहना है, 'हमने हाल ही में किसानों और दूसरे हिस्सेदारों के साथ बैठक की है। वाइन ब्रुइंग अभी नया उद्योग है और अंगूर भंडारण के बारे में तौर तरीके अभी तय नहीं हुए हैं। हाल में लॉन्च इंडियन ग्रेप प्रोसेसिंग बोर्ड को भी अभी ठीक ढंग से आकार लेना बाकी है।' वाइनरीज का दावा है कि जब समय अच्छा था और खुले बाजार में वाइन अंगूर की कीमतें कॉन्ट्रैक्ट की दरों से ज्यादा थी तो किसानों ने कॉन्ट्रैक्ट का उल्लंघन किया था। उन्होंने अपने उत्पाद को खुले बाजार में बेच दिया था। किसान इस बात का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि उन्होंने कॉन्ट्रैक्ट का पूरा सम्मान किया और बाजार दरों के ऊंचा होने के बावजूद अंगूर कॉन्ट्रैक्ट में तय कीमतों पर ही बेचे। जिलाधिकारी के एक साथ बैठक में किसानों ने अपनी असहाय स्थिति के बारे में बताया क्योंकि कॉन्ट्रैक्ट सिर्फ एक पक्ष के लिए फायदेमंद है। वेलरासु ने बताया, 'कुछ किसानों ने हमें बताया कि उन्हें वाइनरीज को अंगूर कॉन्ट्रैक्ट के हिसाब से बेचने पड़े जबकि वाइनरीज के मामले में ऐसा करना जरूरी नही है। उनका यह भी दावा है कि कॉन्ट्रैक्ट अंग्रेजी में होने के कारण वे उसे ठीक ढंग से समझ नहीं पाए।' हालांकि दोनों पक्षों द्वारा कॉन्ट्रैक्ट का उल्लंघन करने के कारण सरकार भी कुछ कर पाने में असहाय है। राज्य के कृषि मंत्री बालासाहेब थोराट का कहना है कि वैश्विक मंदी इस समस्या की जड़ है और अंगूर किसानों की समस्या को बातचीत के द्वारा हल कर लिया जाएगा। उन्होंने बताया, 'हम दोनों पार्टियों के साथ बैठक कर चुके हैं और मामले को सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं। समस्या को हल करने के लिए हम दोबारा बैठक करेंगे।' राज्य के कृषि आयुक्त प्रभाकर देशमुख ने बताया कि अंगूर उत्पादकों का मामला कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग के तहत नहीं आता है। देशमुख ने कहा, 'यह केवल उत्पादकों और वाइनरीज के बीच कॉन्ट्रैक्ट का मामला है। इसमें कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग की कोई भूमिका नहीं है।' वेलरासु ने बताया कि कोई आधिकारिक व्यवस्था न होने के कारण गठित कमेटी भविष्य में भंडारण व्यवस्था, सरकारी हस्तक्षेप और संभावित भंडारण क्षमता स्थापित करने के बारे में सुझाव देगी। (ET Hindi)

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