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16 मई 2009

कीमतें ऊपर मगर महंगाई दर नीचे

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। महंगाई दर का भी जवाब नहीं है। बाजार में चीजों के दाम बढ़ रहे हैं। खुद सरकार का थोक मूल्य सूचकांक भी बढ़त दिखा रहा है, लेकिन महंगाई की दर नीचे खिसककर 0.48 प्रतिशत पर आ गई है। पिछले सप्ताह यह दर 0.70 प्रतिशत थी।
इस हफ्ते थोक मूल्य सूचकांक के तकरीबन सभी उत्पाद समूहों में बढ़ोतरी हुई है। प्रमुख वस्तुओं का सूचकांक 0.4 प्रतिशत बढ़ा। खाद्य उत्पादों के सूचकांक में 0.3 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। गैर खाद्य पदार्थो का सूचकांक तो 0.8 प्रतिशत तक बढ़ गया। अगर अलग-अलग वस्तुओं की बात करें तो मोटे अनाज, चाय, फल और सब्जियां, दालें सभी के दाम बढ़े हैं। इसके बावजूद महंगाई की दर 2 मई को खत्म हुए हफ्ते में गिर गई है।
महंगाई की दर में गिरावट की मुख्य वजह पिछले साल इसी दौरान तेजी से बढ़े हुए दाम रहे। क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री डा. डीके जोशी का कहना है कि पिछले साल इसी समय कीमतें तेजी से बढ़ रही थीं। महंगाई की दर 3 मई 2008 को 8.73 प्रतिशत तक पहुंच गई थी, लेकिन अभी दाम उतनी तेजी से नहीं बढ़ रहे हैं। इसलिए महंगाई की दर की रफ्तार भी पिछले साल के मुकाबले धीमी हो गई है। डा. जोशी मानते हैं कि महंगाई की दर ऊपर का रुख तभी करेगी, जब दाम पिछले साल की रफ्तार से बढ़ेंगे। इसलिए अभी आने वाले समय में महंगाई की दर और कम होकर शून्य को भी छू सकती है। महंगाई की दर को नीचे लाने में इस बार कुछ ही चीजों का हाथ रहा है। इस हफ्ते खाने के तेल, नान फैरस मेटल, एविएशन टरबाइन फ्यूल, मोटर साइकिल समेत अन्य दो पहिया वाहनों के दामों में गिरावट दर्ज की गई है। (Dainik Jagran)

1 टिप्पणी:

Pradeep Kumar ने कहा…

ये कैसी विडंबना है कि जो सरकार ये दिखा रही है कि आम आदमी की ज़रुरत की हर चीज़ के भाव बढ़ने के बावजूद महंगाई दर घट रही है आम चुनाव में उसकी सीट बढ़ रही हैं या यूं कहें तो उचित होगा कि वह अल्पमत से बहुमत में आ गई है . लेकिन इसमें न तो दिखावा करने वाली इस सरकार का कुछ दोष है और न उन अर्थशास्त्रियों का जो सरकार का खाकर ये आँखों देखे और भुक्त भोगी को झूठ और झूठ को सच साबित कर रहे हैं . वरना क्या गरीब आदमी को कोई ये समझा सकता है कि जब महंगाई घट रही है तो दाम आसमान में क्यों जा रहे हैं ? दुर्भाग्य की बात ये है कि जो लोग सरकार का ये ढोंग समझते हैं वो वोट नहीं करते . और जो इसे नहीं समझते(ये अलग बात है कि सबसे ज्यादा त्रस्त भी वही हैं ) वो वोट करते हैं. वोट देने में मुद्दे तो कहीं हैं ही नहीं . कहीं जाति , कहीं धर्म , कहीं व्यक्तिगत उम्मीदवार की छवि देखी जाती है तो उसमें सरकार का काम कौन देखता है ?
ये सब देखकर तो यही लगता है कि ये सब नियति है और इसे कोई नहीं बदल सकता ...............कोई नहीं .........सब कुछ यूं ही चलता रहेगा . अब एक दो साल खूब महंगाई बढेगी और महंगाई दर शून्य से भी नीचे चली जायेगी . इस चुनाव का सारा खर्चा जनता की जेब से निकाला जाएगा और जब विधान सभा के चुनाव आयेंगे सब कुछ नोर्मल हो जाएगा उसके बाद फिर नए कर .... और यही सिलसिला अनवरत चलता रहेगा .......................