नई दिल्ली May 11, 2009
राहत की आस लगाए बैठीं इस्पात कंपनियों को झटका देते हुए सरकार ने महत्वपूर्ण इस्पात उत्पादों पर डंपिंग रोधी शुल्क लगाने से फिलहाल इनकार कर दिया है।
इस प्रस्ताव पर फैसला दो महीने के लिए टाल दिया गया है। सरकार के मुताबिक इस मसले पर अभी जांच बाकी है और उद्योग जगत से भी इस बारे में रायशुमारी करनी होगी।
वाणिज्य सचिव जी के पिल्लै ने सेफगाड्र्स पर स्थायी बोर्ड की बैठक के बाद कहा, 'हमारा मानना है कि इस मसले पर काम अभी पूरा नहीं हुआ है। इस पर घरेलू उद्योगों के अलावा अन्य संबंधित पक्षों से भी विचार विमर्श की जरूरत है।'
उन्होंने कहा कि सेफगाड्र्स महानिदेशालय (डीजीएस) को इस बारे में निर्देश दिया गया है। उन्होंने कहा कि महानिदेशालय घरेलू उद्योगों से सलाह मशविरा करेगा और 60 दिन बाद अपनी सिफारिशें बोर्ड के सामने पेश करेगा।
डंपिंग रोधी शुल्क का इस्तेमाल घरेलू उद्योगों को आयात से राहत देने के लिए किया जाता है। बोर्ड के सदस्य इस्पात सचिव पी के रस्तोगी ने कहा कि डंपिंग रोधी शुल्क लगाने की अभी कोई जल्दबाजी नहीं है। उन्होंने कहा कि डीजीएस ने जो अंतरिम प्रस्ताव दिया था और जिसमें यह शुल्क लागू करने की सिफारिश की गई थी, उसमें हरेक पहलू शामिल नहीं था।
जब पिल्लै से पूछा गया कि डंपिंग रोधी शुल्क नहीं लगाने से घरेलू उद्योग को चोट पहुंचेगी, उन्होंने साफ इनकार कर दिया। पिल्लै ने कहा कि सरकार के पास जो प्रमाण मौजूद हैं, उनके मुताबिक घरेलू उद्योग पर इससे कोई असर पड़ने की संभावना नहीं है।
इससे पहले एस्सार स्टील और इस्पात इंडस्ट्रीज की अगुआई में इस्पात कंपनियों ने इस्पात उत्पादों पर डंपिंग रोधी शुल्क लगाने की गुहार सरकार से की थी। स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) और जेएसडब्ल्यू स्टील ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया था।
उनका कहना था कि पिछले साल हर माह तकरीबन 80,000 टन हॉट रोल्ड कॉयल का आयात होता था, जो इस साल जनवरी-फरवरी के दौरान 200 फीसदी बढ़कर लगभग 2.5 लाख टन हो गया।
दिलचस्प है कि भारतीय इस्पात निर्माताओं को अमेरिका, कनाडा, इंडोनेशिया और थाईलैंड में निर्यात पर डंपिंग रोधी शुल्क देना पड़ता है। मलेशिया में वहां के इस्पात निर्माताओं से उन्हें अनापत्ति प्रमाणपत्र लेना पड़ता है। यूरोप, पश्चिम एशिया और ईरान में ऐसी समस्या नहीं है, लेकिन यूरोप में मांग बेहद कम हो गई है। (BS Hindi)
12 मई 2009
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