30 सितंबर 2010
चीनी वायदा पर रोक नहीं बढ़ेगी : खटुआ
चीनी वायदा कारोबार पर लगी रोक को सरकार आगे नहीं बढ़ाएगी। इससे वायदा कारोबार पर लगी रोक 30 सितंबर के बाद स्वत: समाप्त हो जाएगी। वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) के चेयरमैन बी. सी. खटुआ ने यहां बताया कि अब एक्सचेंजों को देखना है कि वे किस महीने से वायदा कारोबार शुरू करते हैं। चीनी की कीमतों में भारी तेजी को देखते हुए मई 2009 में चीनी वायदा के कारोबार पर 30 सितंबर 2010 तक सरकार ने रोक लगा लगी दी थी। मई 2009 में घरेलू बाजार में चीनी के दाम बढ़कर 45 रुपये प्रति किलो से ऊपर चले गए थे जबकि इस समय दाम 30 रुपये प्रति किलो से नीचे चल रहे हैं। पहली अक्टूबर से चीनी पेराई का नया सीजन शुरू हो जाएगा। चालू सीजन में गन्ने के बुवाई क्षेत्रफल में बढ़ोतरी को देखते हुए चीनी का उत्पादन पिछले साल से बढ़ेगा। (Business Bhaskar)
लेवी चीनी की मात्रा घटकर 10 फीसदी : शरद पवार
उद्योग की मांग मानते हुए सरकार ने लेवी चीनी की मात्रा को 20 फीसदी से घटकर 10 फीसदी कर दिया है। केंद्रीय कृषि एंव खाद्य मंत्री शरद पवार ने दिल्ली में पत्रकारों को बताया कि नए पेराई सीजन अक्टूबर से मिलों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में वितरण के लिए लेवी चीनी 20 फीसदी के बजाय 10 फीसदी देनी होगी। चीनी उत्पादन में कमी की आशंका से अक्टूबर 2009 में सरकार ने लेवी चीनी की मात्रा को 10 फीसदी से बढ़ाकर 20 फीसदी कर दिया था। उन्होंने बताया कि नए पेराई सीजन में देश में चीनी का उत्पादन बढ़कर 245 लाख टन होने का अनुमान है। चीनी का उत्पादन बढऩे के बावजूद सरकार निर्यात पर फैसला दीपावली बाद लेगी। पेराई सीजन 2009-10 में देश में चीनी का उत्पादन 188 लाख टन ही हुआ है। उन्होंने कहा कि गेहूं और गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध जारी रहेगा। चावल की फसल आने और गेहूं की बुवाई होने के बाद स्थिति की समीक्षा की जाएगी। उसके बाद ही निर्यात खोलने पर फैसला लिया जा सकता है। नेशनल फैडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज के अध्यक्ष जयंती लाल पटेल ने कहा कि चीनी की उपलब्धता ज्यादा होने से नए सीजन में कीमतों में गिरावट आ सकती है। उन्होंने बताया कि नए पेराई सीजन 2010-11 में देश में चीनी का उत्पादन 250 लाख टन होने का अनुमान है जबकि 50 लाख टन चीनी का बकाया स्टॉक बचा हुआ है। ऐसे में कुल उपलब्धता 300 लाख टन की बैठेगी जबकि देश में चीनी की सालाना खपत 225-230 लाख टन की होती है। (Business Bhaskar...aar as raana)
एफसीआई का स्टॉक अब ऑनलाइन
मुंबई September 27, 2010
अनाज भंडारण करने वाली सरकारी एजेंसी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने काम में पारदर्शिता लाने के लिए अपनी समस्त गतिविधियों को ऑनलाइन करने की योजना बनाई है। एफसीआई ने टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) से संपूर्ण वित्तीय पैकेज की खातिर सॉफ्टवेयर हासिल किया है। अब एजेंसी खाद्यान्न की आवक और उसे आवंटित किए जाने की समूची जानकारी ऑनलाइन करेगी।उम्मीद की जा रही है कि विभाग 46 साल पुरानी व्यवस्था से निजात पाकर अब प्रक्रियागत कामों में होने वाली अनावश्यक देर से बचेगा और उसके काम में तेजी आएगी। अब तक एफसीआई के क्षेत्रीय कार्यालय ही खाद्यान्न की उपलब्धता और गोदामों में उनकी स्थिति के बारे में दैनिक, साप्ताहिक, मासिक, त्रैमासिक और सालाना आधार पर जारी की जाती थी। एफसीआई के चेयरमैन सिराज हुसैन ने बताया, 'टीसीएस ने हमें सॉफ्टवेयर उपलब्ध कराया है। देशभर में स्थित हमारे सभी गोदाम इससे जुड़े रहेंगे। पहली बार एफसीआई ने ऐसा कदम उठाया है। यह काम मेरी प्राथमिकता में था।इस योजना की शुरुआत महाराष्टï्र में इसी महीने की गई और राज्य के क्षेत्रीय कार्यालय अपने गोदामों में स्थित अनाज की स्थिति और तमाम वित्तीय जानकारियां ऑनलाइन प्रकाशित कर रहे हैं। महाराष्टï्र के आंकड़ों से पता चलता है कि राज्य सरकार को पिछले साल संरक्षित धान में से 1.21 लाख टन चावल की आपूर्ति करनी अभी शेष है।ऑनलाइन अकाउंटिंग के फायदों के बारे में बात करते हुए हुसैन ने कहा कि देश को इस बारे में ताजा जानकारी होनी चाहिए कि इस केंद्रीय संस्थान के पास जमा अनाज की क्या स्थिति है। हालांकि दैनिक, सप्ताहिक, मासिक और इसी क्रम में जानकारी देने का मौजूदा तरीका भी लागू रहेगा। हुसैन ने कहा कि इससे काम में तेजी आएगी और किफायत बढ़ेगी।उल्लेखनीय है कि इस वर्ष 31 अगस्त तक देश में 5.03 करोड़ टन अनाज का स्टॉक होने के बावजूद एफसीआई अक्टूबर में और चावल के भंडारण की योजना बना रहा है। अभी विभिन्न राज्यों में 2.99 करोड़ टन गेहूं और 2.05 करोड़ टन चावल का भंडारण है। उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों अनाज के सडऩे की घटनाएं सामने आई थीं। भंडारण की समस्या से निपटने के दो तरीके हैं। पहली बात तो यह कि अनाज के भंडारण की क्षमता बढ़ा दी जाए, दूसरे उनके आवंटन की गति को तेज किया जाए। माना जा रहा कि स्टॉक के आंकड़े ऑनलाइन उपलब्ध रहने की दशा में उसके आवंटन की गति भी तेज होगी। (BS Hindi)
अनाज भंडारण करने वाली सरकारी एजेंसी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने काम में पारदर्शिता लाने के लिए अपनी समस्त गतिविधियों को ऑनलाइन करने की योजना बनाई है। एफसीआई ने टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) से संपूर्ण वित्तीय पैकेज की खातिर सॉफ्टवेयर हासिल किया है। अब एजेंसी खाद्यान्न की आवक और उसे आवंटित किए जाने की समूची जानकारी ऑनलाइन करेगी।उम्मीद की जा रही है कि विभाग 46 साल पुरानी व्यवस्था से निजात पाकर अब प्रक्रियागत कामों में होने वाली अनावश्यक देर से बचेगा और उसके काम में तेजी आएगी। अब तक एफसीआई के क्षेत्रीय कार्यालय ही खाद्यान्न की उपलब्धता और गोदामों में उनकी स्थिति के बारे में दैनिक, साप्ताहिक, मासिक, त्रैमासिक और सालाना आधार पर जारी की जाती थी। एफसीआई के चेयरमैन सिराज हुसैन ने बताया, 'टीसीएस ने हमें सॉफ्टवेयर उपलब्ध कराया है। देशभर में स्थित हमारे सभी गोदाम इससे जुड़े रहेंगे। पहली बार एफसीआई ने ऐसा कदम उठाया है। यह काम मेरी प्राथमिकता में था।इस योजना की शुरुआत महाराष्टï्र में इसी महीने की गई और राज्य के क्षेत्रीय कार्यालय अपने गोदामों में स्थित अनाज की स्थिति और तमाम वित्तीय जानकारियां ऑनलाइन प्रकाशित कर रहे हैं। महाराष्टï्र के आंकड़ों से पता चलता है कि राज्य सरकार को पिछले साल संरक्षित धान में से 1.21 लाख टन चावल की आपूर्ति करनी अभी शेष है।ऑनलाइन अकाउंटिंग के फायदों के बारे में बात करते हुए हुसैन ने कहा कि देश को इस बारे में ताजा जानकारी होनी चाहिए कि इस केंद्रीय संस्थान के पास जमा अनाज की क्या स्थिति है। हालांकि दैनिक, सप्ताहिक, मासिक और इसी क्रम में जानकारी देने का मौजूदा तरीका भी लागू रहेगा। हुसैन ने कहा कि इससे काम में तेजी आएगी और किफायत बढ़ेगी।उल्लेखनीय है कि इस वर्ष 31 अगस्त तक देश में 5.03 करोड़ टन अनाज का स्टॉक होने के बावजूद एफसीआई अक्टूबर में और चावल के भंडारण की योजना बना रहा है। अभी विभिन्न राज्यों में 2.99 करोड़ टन गेहूं और 2.05 करोड़ टन चावल का भंडारण है। उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों अनाज के सडऩे की घटनाएं सामने आई थीं। भंडारण की समस्या से निपटने के दो तरीके हैं। पहली बात तो यह कि अनाज के भंडारण की क्षमता बढ़ा दी जाए, दूसरे उनके आवंटन की गति को तेज किया जाए। माना जा रहा कि स्टॉक के आंकड़े ऑनलाइन उपलब्ध रहने की दशा में उसके आवंटन की गति भी तेज होगी। (BS Hindi)
कृषि के लिए वरदान मॉनसून
September 27, 2010
असमानता के बावजूद सामान्य से 4 फीसदी अधिक बारिश देश के कृषि क्षेत्र के लिए वरदान साबित हुई है। इसके परिणाम स्वरूप देश में 10.06 करोड़ हेक्टेयर कृषि क्षेत्र में फसलें बोई जा सकीं। पिछले साल सूखा प्रभावित रहे खरीफ फसलों के क्षेत्र में 65 लाख हेक्टेयर जमीन पर भी बुआई संभव हो सकी। सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात यह रही कि वर्ष 2008 की तुलना में 2 लाख हेक्टेयर अधिक जमीन पर खरीफ फसल की बुआई हुई, जबकि तब मॉनसून काफी अच्छा रहा था। पिछले साल की तुलना में सभी फसलों के बुआई क्षेत्र में इजाफा दर्ज किया गया। सबसे अधिक वृद्धि धान की बुआई में रही। इसके बुआई क्षेत्र में 20 लाख हेक्टेयर का इजाफा दर्ज किया गया। वहीं दलहन फसलों में प्रत्येक दाल के बुआई क्षेत्र में लगभग 19.70 लाख हेक्टेयर की वृद्धि हुई। ऊंची कीमत की उम्मीद भी एक कारण रही कि किसानों ने अधिक मात्रा में दलहन फसलों की बुआई की। हालांकि, उत्तर भारत के बाढ़ प्रभावित कुछ क्षेत्र और पूरब के कुछ हिस्सों में मॉनसून की कमी ने बुआई को प्रभावित किया। इसके बावजूद देश भर में बुआई काफी अच्छी रही।कुछ हिस्सों में मॉनसून सौगात बनकर आया तो कहीं-कहीं पर इसने नुकसान भी पहुंचाया। सितंबर में 22 फीसदी अधिक बारिश होने से उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में बाढ़ आ गई तो इसी दौरान पूर्वोत्तर में बारिश की कमी से बाढ़ से कुछ राहत भी मिली। इससे दक्षिण-पश्चिम बंगाल के बड़े हिस्से में धान की बुआई संभव हो सकी।इसके अलावा मॉनसून की कमी वाले पूर्वी क्षेत्र में कई किसान दलहन या चारे या रबी की फसलों की बुआई की तैयारी में जुटे हुए हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने अब तक किसी फसल की बुआई नहीं करने वाले इस क्षेत्र के किसानों को रबी फसलों (सब्जियों) की बुआई करने की सलाह दी है। असम के कई किसानों ने इस सलाह पर अमल भी करना शुरू कर दिया है। पिछले कुछ दिनों के दौरान उत्तर भारत में बारिश में गिरावट से बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों से पानी निकलने लगा है। ऐसे क्षेत्रों के किसानों को मुरझाई फसल पुनर्जीवित करने के लिए नाइट्रोजन की अतिरिक्त खुराक (30 किग्रा प्रति हेक्टेयर) का इस्तेमाल करने की सलाह दी गई है। जहां बाढ़ के कारण फसल पूरी तरह बरबाद हो गई है, किसानों को तोरिया की बुआई करने की सलाह दी गई है। इससे रबी की बुआई के लिए जमीन जल्दी खाली हो जाएगी।भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने 2 दिन के भीतर पश्चिमी राजस्थान और पूरे उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र से मॉनसून की वापसी की संभावना जताई है। मध्य और पूर्वी भारत से 6 अक्टूबर तक बारिश खत्म हो सकती है।मौसम विभाग के मुताबिक, देश भर में 25 सितंबर तक अनुमानित 900.8 मिमी बारिश हुई, जो सामान्य 865 मिमी से 4 फीसदी अधिक रही। पूर्वी क्षेत्र को छोड़कर, जहां सामान्य से 30 फीसदी कम बारिश हुई, देश के 3 अन्य क्षेत्रों में सामान्य से अधिक बारिश हुई। दक्षिणी प्रायद्वीप में सामान्य से 21 फीसदी अधिक, उत्तर-पश्चिम में 15 फीसदी अधिक और मध्य भारत में 5 फीसदी अधिक बारिश हुई।देश के मौसम संबंधी 36 उपभागों में से इस साल सिर्फ 5 में सामान्य से कम बारिश हुई, जबकि पिछले साल 22 उपभागों में कम बारिश हुई थी। भौगोलिक स्तर पर देखें तो देश 85 फीसदी भूभाग पर सामान्य या उससे अधिक बारिश हुई। कृषि के परिप्रेक्ष्य में देखें तो फसलों के लिए मॉनसून निराशाजनक नहीं रहा। यह मॉनसून मुख्य रूप से जलाशयों के लिए काफी अच्छा रहा। 23 सितंबर को देश के 81 बड़े जलाशयों में 115 अरब घन मीटर जल का भंडार था, जो पिछले साल से 26 फीसदी अधिक था और दीर्घकालिक औसत से 17 फीसदी अधिक था। (BS Hindi)
असमानता के बावजूद सामान्य से 4 फीसदी अधिक बारिश देश के कृषि क्षेत्र के लिए वरदान साबित हुई है। इसके परिणाम स्वरूप देश में 10.06 करोड़ हेक्टेयर कृषि क्षेत्र में फसलें बोई जा सकीं। पिछले साल सूखा प्रभावित रहे खरीफ फसलों के क्षेत्र में 65 लाख हेक्टेयर जमीन पर भी बुआई संभव हो सकी। सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात यह रही कि वर्ष 2008 की तुलना में 2 लाख हेक्टेयर अधिक जमीन पर खरीफ फसल की बुआई हुई, जबकि तब मॉनसून काफी अच्छा रहा था। पिछले साल की तुलना में सभी फसलों के बुआई क्षेत्र में इजाफा दर्ज किया गया। सबसे अधिक वृद्धि धान की बुआई में रही। इसके बुआई क्षेत्र में 20 लाख हेक्टेयर का इजाफा दर्ज किया गया। वहीं दलहन फसलों में प्रत्येक दाल के बुआई क्षेत्र में लगभग 19.70 लाख हेक्टेयर की वृद्धि हुई। ऊंची कीमत की उम्मीद भी एक कारण रही कि किसानों ने अधिक मात्रा में दलहन फसलों की बुआई की। हालांकि, उत्तर भारत के बाढ़ प्रभावित कुछ क्षेत्र और पूरब के कुछ हिस्सों में मॉनसून की कमी ने बुआई को प्रभावित किया। इसके बावजूद देश भर में बुआई काफी अच्छी रही।कुछ हिस्सों में मॉनसून सौगात बनकर आया तो कहीं-कहीं पर इसने नुकसान भी पहुंचाया। सितंबर में 22 फीसदी अधिक बारिश होने से उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में बाढ़ आ गई तो इसी दौरान पूर्वोत्तर में बारिश की कमी से बाढ़ से कुछ राहत भी मिली। इससे दक्षिण-पश्चिम बंगाल के बड़े हिस्से में धान की बुआई संभव हो सकी।इसके अलावा मॉनसून की कमी वाले पूर्वी क्षेत्र में कई किसान दलहन या चारे या रबी की फसलों की बुआई की तैयारी में जुटे हुए हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने अब तक किसी फसल की बुआई नहीं करने वाले इस क्षेत्र के किसानों को रबी फसलों (सब्जियों) की बुआई करने की सलाह दी है। असम के कई किसानों ने इस सलाह पर अमल भी करना शुरू कर दिया है। पिछले कुछ दिनों के दौरान उत्तर भारत में बारिश में गिरावट से बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों से पानी निकलने लगा है। ऐसे क्षेत्रों के किसानों को मुरझाई फसल पुनर्जीवित करने के लिए नाइट्रोजन की अतिरिक्त खुराक (30 किग्रा प्रति हेक्टेयर) का इस्तेमाल करने की सलाह दी गई है। जहां बाढ़ के कारण फसल पूरी तरह बरबाद हो गई है, किसानों को तोरिया की बुआई करने की सलाह दी गई है। इससे रबी की बुआई के लिए जमीन जल्दी खाली हो जाएगी।भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने 2 दिन के भीतर पश्चिमी राजस्थान और पूरे उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र से मॉनसून की वापसी की संभावना जताई है। मध्य और पूर्वी भारत से 6 अक्टूबर तक बारिश खत्म हो सकती है।मौसम विभाग के मुताबिक, देश भर में 25 सितंबर तक अनुमानित 900.8 मिमी बारिश हुई, जो सामान्य 865 मिमी से 4 फीसदी अधिक रही। पूर्वी क्षेत्र को छोड़कर, जहां सामान्य से 30 फीसदी कम बारिश हुई, देश के 3 अन्य क्षेत्रों में सामान्य से अधिक बारिश हुई। दक्षिणी प्रायद्वीप में सामान्य से 21 फीसदी अधिक, उत्तर-पश्चिम में 15 फीसदी अधिक और मध्य भारत में 5 फीसदी अधिक बारिश हुई।देश के मौसम संबंधी 36 उपभागों में से इस साल सिर्फ 5 में सामान्य से कम बारिश हुई, जबकि पिछले साल 22 उपभागों में कम बारिश हुई थी। भौगोलिक स्तर पर देखें तो देश 85 फीसदी भूभाग पर सामान्य या उससे अधिक बारिश हुई। कृषि के परिप्रेक्ष्य में देखें तो फसलों के लिए मॉनसून निराशाजनक नहीं रहा। यह मॉनसून मुख्य रूप से जलाशयों के लिए काफी अच्छा रहा। 23 सितंबर को देश के 81 बड़े जलाशयों में 115 अरब घन मीटर जल का भंडार था, जो पिछले साल से 26 फीसदी अधिक था और दीर्घकालिक औसत से 17 फीसदी अधिक था। (BS Hindi)
बाढ़ से महंगी हो सकती है चीनी!
मुंबई September 28, 2010
घरेलू चीनी उद्योग में बदलाव की बयार बह रही है। देश के दूसरे सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में आई बाढ़ और इससे उत्पादन में कमी की आशंका से चीनी की कीमतें बढ़ सकती हैं।? पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर, मेरठ और बिजनौर जैसे जिलों में गन्ने के खेत पानी में डूबे हुए हैं। एशिया के सबसे बड़े गुड़ बाजार फेडरेशन ऑफ गुड़ ट्रेडर्स, मुजफ्फरनगर के अध्यक्ष अरुण खंडेलवाल ने कहा, 'हालांकि जल स्तर अब घटने लगा है, लेकिन प्रमुख गन्ना उत्पादक जिलों में गन्ने की उपज एवं रिकवरी प्रभावित होने की आशंका है। मेरी नजर में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ना उत्पादन पिछले साल की तुलना में इस बार गन्ने की अधिक खेती के बावजूद कम रह सकता है।इस उद्योग के जानकारों का मानना है कि गन्ना पर बाढ़ के असर का सही आकलन 8-10 दिन बाद ही संभव होगा। उत्तर प्रदेश में चार चीनी मिलें चलाने वाली कंपनी धामपुर शुगर के अध्यक्ष (फाइनैंस) अरिहंत जैन ने कहा, 'कुछ प्रभाव तो निश्चित ही पड़ेगा, लेकिन फिलहाल इसकी मात्रा का सही अंदाजा नहीं लगाया जा सकता।दुनिया के सबसे बड़े उत्पादक ब्राजील में कम फसल की आशंका से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीनी की कीमतों में तेजी आ गई है। चीनी की कीमतें सात महीने के ऊंचे स्तर पर पहुंच गई हैं जिससे भारत से निर्यात व्यवहार्य है। मवाना शुगर्स के प्रबंध निदेशक सुनील काकरिया ने कहा, 'ब्राजील में सूखे जैसे हालात की वजह से वैश्विक बाजार अगले साल अनुमान के मुताबिक नहीं रहेगा। विश्व अब भारतीय उत्पादन पर आंखे गड़ाए हुए है। अगर भारत 2.6-2.7 करोड़ टन का उत्पादन करता है तो वैश्विक कीमतों में नरमी आएगी। लेकिन अगर यह इसमें विफल रहता है और उत्पादन 2.5 करोड़ टन से नीचे रहता है तो वैश्विक तौर पर चीनी की कीमतें बढ़ जाएंगी।भारत से मजबूत निर्यात की संभावना बरकरार है। दुनिया की प्रमुख शुगर कंसल्टेंसी और ब्रोकरेज फर्म स्विटजरलैंड स्थित किंग्समैन के चेयरमैन जोनाथन किंग्समैन ने इस महीने के शुरू में कहा था कि अक्टूबर से शुरू हो रहे वर्ष में भारत 10 लाख टन चीनी का निर्यात कर सकता है। विश्लेषक उत्तर प्रदेश स्थित बजाज हिंदुस्तान और बलरामपुर चीनी जैसी कंपनियों के परिदृश्य पर सकारात्मक रुख देख रहे हैं, क्योंकि ये कंपनियां अक्टूबर में शुरू हो रहे नए सत्र में गन्ने के लिए कम कीमत चुका सकती हैं। (BS Hindi)
घरेलू चीनी उद्योग में बदलाव की बयार बह रही है। देश के दूसरे सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में आई बाढ़ और इससे उत्पादन में कमी की आशंका से चीनी की कीमतें बढ़ सकती हैं।? पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर, मेरठ और बिजनौर जैसे जिलों में गन्ने के खेत पानी में डूबे हुए हैं। एशिया के सबसे बड़े गुड़ बाजार फेडरेशन ऑफ गुड़ ट्रेडर्स, मुजफ्फरनगर के अध्यक्ष अरुण खंडेलवाल ने कहा, 'हालांकि जल स्तर अब घटने लगा है, लेकिन प्रमुख गन्ना उत्पादक जिलों में गन्ने की उपज एवं रिकवरी प्रभावित होने की आशंका है। मेरी नजर में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ना उत्पादन पिछले साल की तुलना में इस बार गन्ने की अधिक खेती के बावजूद कम रह सकता है।इस उद्योग के जानकारों का मानना है कि गन्ना पर बाढ़ के असर का सही आकलन 8-10 दिन बाद ही संभव होगा। उत्तर प्रदेश में चार चीनी मिलें चलाने वाली कंपनी धामपुर शुगर के अध्यक्ष (फाइनैंस) अरिहंत जैन ने कहा, 'कुछ प्रभाव तो निश्चित ही पड़ेगा, लेकिन फिलहाल इसकी मात्रा का सही अंदाजा नहीं लगाया जा सकता।दुनिया के सबसे बड़े उत्पादक ब्राजील में कम फसल की आशंका से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीनी की कीमतों में तेजी आ गई है। चीनी की कीमतें सात महीने के ऊंचे स्तर पर पहुंच गई हैं जिससे भारत से निर्यात व्यवहार्य है। मवाना शुगर्स के प्रबंध निदेशक सुनील काकरिया ने कहा, 'ब्राजील में सूखे जैसे हालात की वजह से वैश्विक बाजार अगले साल अनुमान के मुताबिक नहीं रहेगा। विश्व अब भारतीय उत्पादन पर आंखे गड़ाए हुए है। अगर भारत 2.6-2.7 करोड़ टन का उत्पादन करता है तो वैश्विक कीमतों में नरमी आएगी। लेकिन अगर यह इसमें विफल रहता है और उत्पादन 2.5 करोड़ टन से नीचे रहता है तो वैश्विक तौर पर चीनी की कीमतें बढ़ जाएंगी।भारत से मजबूत निर्यात की संभावना बरकरार है। दुनिया की प्रमुख शुगर कंसल्टेंसी और ब्रोकरेज फर्म स्विटजरलैंड स्थित किंग्समैन के चेयरमैन जोनाथन किंग्समैन ने इस महीने के शुरू में कहा था कि अक्टूबर से शुरू हो रहे वर्ष में भारत 10 लाख टन चीनी का निर्यात कर सकता है। विश्लेषक उत्तर प्रदेश स्थित बजाज हिंदुस्तान और बलरामपुर चीनी जैसी कंपनियों के परिदृश्य पर सकारात्मक रुख देख रहे हैं, क्योंकि ये कंपनियां अक्टूबर में शुरू हो रहे नए सत्र में गन्ने के लिए कम कीमत चुका सकती हैं। (BS Hindi)
'खराब चावल जल्द निकाले एफसीआई'
चंडीगढ़ September 28, 2010
सरकारी एजेंसियों और मिलों के बीच पीएयू 201 किस्म के धान की मिलिंग को लेकर पैदा हुआ गतिरोध अब जल्द ही समाप्त हो जाने की संभावना है। केंद्र सरकार ने एफसीआई को निर्देश दिया है कि वह चावल को हटाए और निविदाओं के जरिये बाकी चावल की खुले बाजार में बिक्री करे। एफसीआई पंजाब के अधिकारी भारत सरकार की सिफारिशों पर अमल के लिए रूपरेखाओं को अंतिम रूप देने में लगे हुए हैं। भारत सरकार के उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने संकेत दिया कि जो भंडार एफसीआई के विनिर्देशों के अनुकूल नहीं होगा, उसे खुली निविदाओं के जरिये बेचा जाएगा। खराब रंग, चावल टूटने और इस पर काला धब्बा पडऩे जैसी घटनाओं के बाद किसानों से पीएयू 201 किस्म की बुआई नहीं किए जाने को कहा गया था। धान की यह किस्म पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना द्वारा विकसित की गई थी। इस किस्म को कम पानी की खपत और संक्षिप्त कार्यकाल को ध्यान में रख कर विकसित किया गया। खरीद भाव और चावल की बिक्री कीमत के बीच अंतर को राज्य और केंद्र सरकार दोनों समान अनुपात में वहन करेंगी। पंजाब खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के सूत्रों का कहना है कि पंजाब की चावल मिलों में 20 लाख टन से अधिक पीएयू 201 चावल पड़ा हुआ है। खरीफ की कटाई सत्र नजदीक है और सरकारी एजेंसियां मौजूदा स्टॉक को जल्द से जल्द निपटाए जाने के लिए कोई असर नहीं छोड़ रही हैं। पंजाब राइस मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष तरसेम सैनी ने बताया कि मौजूदा गति से धान के 2009-10 के स्टॉक की प्रक्रिया को पूरा किए जाने में कम से कम पांच महीने का समय लगेगा। धान का स्टॉक पूरे राज्य में 3000 से अधिक मिलों में फैला हुआ है। इसलिए इस स्टॉक के आकललन के लिए रूपरेखा तैयार करना एफसीआई के लिए आसान काम नहीं होगा। दूसरी तरफ नए धान की खरीद की तारीख भी नजदीक आ रही है जिससे एफसीआई की चिंता और बढ़ गई है। 2010-11 की फसल के लिए नए धान की खरीद आधिकारिक रूप से 1 अक्टूबर से शुरू होनी है। (BS Hindi)
सरकारी एजेंसियों और मिलों के बीच पीएयू 201 किस्म के धान की मिलिंग को लेकर पैदा हुआ गतिरोध अब जल्द ही समाप्त हो जाने की संभावना है। केंद्र सरकार ने एफसीआई को निर्देश दिया है कि वह चावल को हटाए और निविदाओं के जरिये बाकी चावल की खुले बाजार में बिक्री करे। एफसीआई पंजाब के अधिकारी भारत सरकार की सिफारिशों पर अमल के लिए रूपरेखाओं को अंतिम रूप देने में लगे हुए हैं। भारत सरकार के उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने संकेत दिया कि जो भंडार एफसीआई के विनिर्देशों के अनुकूल नहीं होगा, उसे खुली निविदाओं के जरिये बेचा जाएगा। खराब रंग, चावल टूटने और इस पर काला धब्बा पडऩे जैसी घटनाओं के बाद किसानों से पीएयू 201 किस्म की बुआई नहीं किए जाने को कहा गया था। धान की यह किस्म पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना द्वारा विकसित की गई थी। इस किस्म को कम पानी की खपत और संक्षिप्त कार्यकाल को ध्यान में रख कर विकसित किया गया। खरीद भाव और चावल की बिक्री कीमत के बीच अंतर को राज्य और केंद्र सरकार दोनों समान अनुपात में वहन करेंगी। पंजाब खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के सूत्रों का कहना है कि पंजाब की चावल मिलों में 20 लाख टन से अधिक पीएयू 201 चावल पड़ा हुआ है। खरीफ की कटाई सत्र नजदीक है और सरकारी एजेंसियां मौजूदा स्टॉक को जल्द से जल्द निपटाए जाने के लिए कोई असर नहीं छोड़ रही हैं। पंजाब राइस मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष तरसेम सैनी ने बताया कि मौजूदा गति से धान के 2009-10 के स्टॉक की प्रक्रिया को पूरा किए जाने में कम से कम पांच महीने का समय लगेगा। धान का स्टॉक पूरे राज्य में 3000 से अधिक मिलों में फैला हुआ है। इसलिए इस स्टॉक के आकललन के लिए रूपरेखा तैयार करना एफसीआई के लिए आसान काम नहीं होगा। दूसरी तरफ नए धान की खरीद की तारीख भी नजदीक आ रही है जिससे एफसीआई की चिंता और बढ़ गई है। 2010-11 की फसल के लिए नए धान की खरीद आधिकारिक रूप से 1 अक्टूबर से शुरू होनी है। (BS Hindi)
वनस्पति तेल उद्योग बनाएगा रिकॉर्ड
मुंबई September 28, 2010
भारत में वनस्पति तेल उद्योग की ओर से इस साल दो रिकॉर्ड बनाए जाने की संभावना है। पहला, वर्ष 2010-11 (नवंबर-अक्टूबर) के दौरान तेल खपत 1.57 करोड़ टन की सर्वाधिक ऊंचाई बना सकती है जो पूर्ववर्ती वर्ष में 1.48 करोड़ टन थी। दूसरा, सोयामील निर्यात 34 लाख टन को पार कर सकता है जो आर्थिक संकट से पूर्व के वर्ष 2007-08 में 32 लाख टन की रिकॉर्ड ऊंचाई पर था। प्रति व्यक्ति खपत में तेज वृद्घि की वजह से वनस्पति तेल की कुल खपत में इस साल 4.4 फीसदी का इजाफा होने की संभावना है। यह वृद्घि पूर्ववर्ती वर्ष में 4 फीसदी थी। गोदरेज इंटरनैशनल के निदेशक दोराब मिस्त्री कहते हैं, 'तेजी से बदल रही खान-पान आदतों की वजह से खपत बढ़ेगी। मौजूदा समय में ज्यादातर लोग घर से बाहर किसी होटल, मोटल या अन्य भोजनालयों में जाना पसंद करते हैं जहां बड़ी मात्रा में वनस्पति तेल का इस्तेमाल किया जाता है। चूंकि देश की अर्थव्यवस्था में सुधार की वजह से औसतन आय में भी इजाफा हो रहा है। इसलिए खान-पान आदतों में बदलाव भी देखा जा रहा है। हमारा अनुमान है कि अगले साल भारत में वनस्पति तेल खपत 1.57 करोड़ टन के लक्ष्य को हासिल कर लेगी।गोबिंदभाई पटेल के नेतृत्व वाली जी जी पटेल ऐंड निखिल रिसर्च कंपनी के अनुमान के अनुसार घरेलू बीज की पेराई से उपलब्धता इस साल 6 लाख टन तक बढऩे की संभावना है। इसकी प्रमुख वजह यह भी है कि इस बार खरीफ फसल अच्छी रही है जिससे पेराई में इजाफा होगा।बुआई क्षेत्र में 3.40 लाख हेक्टेयर की गिरावट के बावजूद 2010-11 के खरीफ सत्र के दौरान कुल तिलहन उत्पादन बढ़ कर लगभग 1.4 करोड़ टन रहने का अनुमान है जो पूर्ववर्ती वर्ष में 1.22 करोड़ टन था। पटेल ने कहा कि अच्छे मॉनसून से भी इस बार उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलेगी।मिस्त्री को उम्मीद है कि बढ़ती रिटेल खपत की वजह से भारत का वनस्पति तेल आयात इस साल 90 लाख टन को पार कर जाएगा। इस साल अगस्त में वनस्पति तेल आयात 64 फीसदी की वृद्घि के साथ 10,65,641 टन था, जबकि पूर्ववर्ती वर्ष के समान महीने में यह महज 650,603 टन था। हालांकि तेल वर्ष (नवंबर 2009 से अक्टूबर 2010) के पहले 10 महीनों में वनस्पति तेल आयात महज 5 फीसदी की बढ़त के साथ 74,47,955 टन रहा जो पूर्ववर्ती वर्ष की समान अवधि में 70,70,491 टन था।तिलहनों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) फिलहाल बहुत कम है। भारतीय किसानों के लिए बड़ी मुश्किल स्थिति बनी हुई है। सोयाबीन की एमएसपी फिलहाल 8.20 डॉलर प्रति बुशल बैठती है, जो सोयाबीन के मौजूदा वैश्विक भाव से तकरीबन 25 फीसदी कम है।मंत्रालय का कहना है, 'यदि हम सोयाबीन की एमएसपी 11.50 डॉलर प्रति बुशल रखते हैं, तो यह करीब 2,000 रुपये प्रति क्विंटल पड़ेगा। मैं समझता हूं कि यह इस वर्ष किसानों के लिए उनकी फसल के वास्ते पर्याप्त भाव होगा। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने वर्ष 2010-11 के लिए पीले सोयाबीन की एमएसपी 1,440 रुपये प्रति क्विंटल रखी है, जो पिछले वर्ष 1,390 रुपये प्रति क्विंटल थी। (BS Hindi)
भारत में वनस्पति तेल उद्योग की ओर से इस साल दो रिकॉर्ड बनाए जाने की संभावना है। पहला, वर्ष 2010-11 (नवंबर-अक्टूबर) के दौरान तेल खपत 1.57 करोड़ टन की सर्वाधिक ऊंचाई बना सकती है जो पूर्ववर्ती वर्ष में 1.48 करोड़ टन थी। दूसरा, सोयामील निर्यात 34 लाख टन को पार कर सकता है जो आर्थिक संकट से पूर्व के वर्ष 2007-08 में 32 लाख टन की रिकॉर्ड ऊंचाई पर था। प्रति व्यक्ति खपत में तेज वृद्घि की वजह से वनस्पति तेल की कुल खपत में इस साल 4.4 फीसदी का इजाफा होने की संभावना है। यह वृद्घि पूर्ववर्ती वर्ष में 4 फीसदी थी। गोदरेज इंटरनैशनल के निदेशक दोराब मिस्त्री कहते हैं, 'तेजी से बदल रही खान-पान आदतों की वजह से खपत बढ़ेगी। मौजूदा समय में ज्यादातर लोग घर से बाहर किसी होटल, मोटल या अन्य भोजनालयों में जाना पसंद करते हैं जहां बड़ी मात्रा में वनस्पति तेल का इस्तेमाल किया जाता है। चूंकि देश की अर्थव्यवस्था में सुधार की वजह से औसतन आय में भी इजाफा हो रहा है। इसलिए खान-पान आदतों में बदलाव भी देखा जा रहा है। हमारा अनुमान है कि अगले साल भारत में वनस्पति तेल खपत 1.57 करोड़ टन के लक्ष्य को हासिल कर लेगी।गोबिंदभाई पटेल के नेतृत्व वाली जी जी पटेल ऐंड निखिल रिसर्च कंपनी के अनुमान के अनुसार घरेलू बीज की पेराई से उपलब्धता इस साल 6 लाख टन तक बढऩे की संभावना है। इसकी प्रमुख वजह यह भी है कि इस बार खरीफ फसल अच्छी रही है जिससे पेराई में इजाफा होगा।बुआई क्षेत्र में 3.40 लाख हेक्टेयर की गिरावट के बावजूद 2010-11 के खरीफ सत्र के दौरान कुल तिलहन उत्पादन बढ़ कर लगभग 1.4 करोड़ टन रहने का अनुमान है जो पूर्ववर्ती वर्ष में 1.22 करोड़ टन था। पटेल ने कहा कि अच्छे मॉनसून से भी इस बार उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलेगी।मिस्त्री को उम्मीद है कि बढ़ती रिटेल खपत की वजह से भारत का वनस्पति तेल आयात इस साल 90 लाख टन को पार कर जाएगा। इस साल अगस्त में वनस्पति तेल आयात 64 फीसदी की वृद्घि के साथ 10,65,641 टन था, जबकि पूर्ववर्ती वर्ष के समान महीने में यह महज 650,603 टन था। हालांकि तेल वर्ष (नवंबर 2009 से अक्टूबर 2010) के पहले 10 महीनों में वनस्पति तेल आयात महज 5 फीसदी की बढ़त के साथ 74,47,955 टन रहा जो पूर्ववर्ती वर्ष की समान अवधि में 70,70,491 टन था।तिलहनों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) फिलहाल बहुत कम है। भारतीय किसानों के लिए बड़ी मुश्किल स्थिति बनी हुई है। सोयाबीन की एमएसपी फिलहाल 8.20 डॉलर प्रति बुशल बैठती है, जो सोयाबीन के मौजूदा वैश्विक भाव से तकरीबन 25 फीसदी कम है।मंत्रालय का कहना है, 'यदि हम सोयाबीन की एमएसपी 11.50 डॉलर प्रति बुशल रखते हैं, तो यह करीब 2,000 रुपये प्रति क्विंटल पड़ेगा। मैं समझता हूं कि यह इस वर्ष किसानों के लिए उनकी फसल के वास्ते पर्याप्त भाव होगा। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने वर्ष 2010-11 के लिए पीले सोयाबीन की एमएसपी 1,440 रुपये प्रति क्विंटल रखी है, जो पिछले वर्ष 1,390 रुपये प्रति क्विंटल थी। (BS Hindi)
यूरो में मजबूती से तांबे में तेजी
नई दिल्ली September 28, 2010
अंतरराष्ट्रीय बाजार में तांबे की इनवेंट्री घटने और यूरो में आई मजबूती का असर इसकी कीमतों पर देखा जा रहा है। इस माह तांबे की कीमतों में 400 डॉलर प्रति टन की बढ़ोतरी हो चुकी है। धातु विश्लेषकों के अनुसार चीन में तांबे का आयात बढऩे और अमेरिका से भी मांग में सुधार के चलते इसकी कीमतों में तेजी का रुख है।लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) में इस माह तांबे के दाम करीब 400 डॉलर बढ़कर 7940 डॉलर प्रति टन हो गए। हालांकि मंगलवार को मुनाफावसूली के चलते तांबे की कीमतों में हल्की गिरावट जरूर दर्ज की गई। इस दौरान घरेलू वायदा बाजार मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में तांबा नवंबर वायदा के दाम 348.85 रुपये से बढ़कर 358.95 रुपये प्रति किलो हो गए।ऐंजल ब्रोकिंग के धातु विश्लेषक अनुज गुप्ता ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि तांबे की औद्योगिक मांग सुधरने लगी है। उनका कहना है चीन और अमेरिका की ओर से तांबे की खरीद बढऩे से इसकी मांग में इजाफा हुआ है। अगस्त महीने में चीन के तांबा आयात में 10.7 फीसदी का इजाफा हुआ है। अगस्त में करीब 3.79 लाख टन तांबे का आयात हुआ। गुप्ता ने कहा कि अमेरिका की ओर से भी तांबे की मांग पहले से सुधरी है। इस वजह से लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) में तांबे की इनवेंट्री में गिरावट दर्ज की गई है। इस माह तांबे की इनवेंट्री 3,98,775 टन से घटकर 3,78,125 टन रह गई है। यही कारण है कि तांबे की कीमतों में तेजी आई है। धातु विश्लेषक अभिषेक शर्मा इस बारे में बताते है कि डॉलर के मुकाबले यूरो मजबूत होने के कारण तांबे की कीमतें तेज हुई हैं। उनका कहना है कि धातु कंपनियां हर साल अंतिम तिमाही में धातुओं की अधिक खरीद करती है। इस वजह से भी तांबे की मांग अधिक है।आने वाले दिनों में तांबे की कीमतों के बारे में गुप्ता का कहना है कि आगे निर्माण क्षेत्र और बिजली क्षेत्र की ओर से मांग और बढऩे की उम्मीद है। इस वजह से तांबे की कीमतें तेज रहने की संभावना है, लेकिन अल्प अवधि के लिए मुनाफावसूली के चलते इसकी कीमतों में गिरावट जरूर आ सकती है। भारत में तांबे की मांग के बारे में दिल्ली के तांबा कारोबारी सुरेशचंद गुप्ता कहते है कि बारिश खत्म होने के बाद निर्माण क्षेत्र में काम जोर पकडऩे से इसकी मांग बढ़ सकती है। ऐसे में तांबे की कीमतों में गिरावट की संभावना नहीं है।गौरतलब है कि तांबे की सबसे अधिक खपत 42 फीसदी इलेक्ट्रिकल या इलेक्ट्रॉनिक में होती है। इसके अलावा करीब 28 निर्माण क्षेत्र, 12 फीसदी ट्रांसर्पोटेशन और 9-9 फीसदी खपत कंज्यूमर और औद्योगिक मशीनरी होती है। इसका सबसे अधिक उत्पादन 43 फीसदी एशिया में होता है। (BS Hindi)
अंतरराष्ट्रीय बाजार में तांबे की इनवेंट्री घटने और यूरो में आई मजबूती का असर इसकी कीमतों पर देखा जा रहा है। इस माह तांबे की कीमतों में 400 डॉलर प्रति टन की बढ़ोतरी हो चुकी है। धातु विश्लेषकों के अनुसार चीन में तांबे का आयात बढऩे और अमेरिका से भी मांग में सुधार के चलते इसकी कीमतों में तेजी का रुख है।लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) में इस माह तांबे के दाम करीब 400 डॉलर बढ़कर 7940 डॉलर प्रति टन हो गए। हालांकि मंगलवार को मुनाफावसूली के चलते तांबे की कीमतों में हल्की गिरावट जरूर दर्ज की गई। इस दौरान घरेलू वायदा बाजार मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में तांबा नवंबर वायदा के दाम 348.85 रुपये से बढ़कर 358.95 रुपये प्रति किलो हो गए।ऐंजल ब्रोकिंग के धातु विश्लेषक अनुज गुप्ता ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि तांबे की औद्योगिक मांग सुधरने लगी है। उनका कहना है चीन और अमेरिका की ओर से तांबे की खरीद बढऩे से इसकी मांग में इजाफा हुआ है। अगस्त महीने में चीन के तांबा आयात में 10.7 फीसदी का इजाफा हुआ है। अगस्त में करीब 3.79 लाख टन तांबे का आयात हुआ। गुप्ता ने कहा कि अमेरिका की ओर से भी तांबे की मांग पहले से सुधरी है। इस वजह से लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) में तांबे की इनवेंट्री में गिरावट दर्ज की गई है। इस माह तांबे की इनवेंट्री 3,98,775 टन से घटकर 3,78,125 टन रह गई है। यही कारण है कि तांबे की कीमतों में तेजी आई है। धातु विश्लेषक अभिषेक शर्मा इस बारे में बताते है कि डॉलर के मुकाबले यूरो मजबूत होने के कारण तांबे की कीमतें तेज हुई हैं। उनका कहना है कि धातु कंपनियां हर साल अंतिम तिमाही में धातुओं की अधिक खरीद करती है। इस वजह से भी तांबे की मांग अधिक है।आने वाले दिनों में तांबे की कीमतों के बारे में गुप्ता का कहना है कि आगे निर्माण क्षेत्र और बिजली क्षेत्र की ओर से मांग और बढऩे की उम्मीद है। इस वजह से तांबे की कीमतें तेज रहने की संभावना है, लेकिन अल्प अवधि के लिए मुनाफावसूली के चलते इसकी कीमतों में गिरावट जरूर आ सकती है। भारत में तांबे की मांग के बारे में दिल्ली के तांबा कारोबारी सुरेशचंद गुप्ता कहते है कि बारिश खत्म होने के बाद निर्माण क्षेत्र में काम जोर पकडऩे से इसकी मांग बढ़ सकती है। ऐसे में तांबे की कीमतों में गिरावट की संभावना नहीं है।गौरतलब है कि तांबे की सबसे अधिक खपत 42 फीसदी इलेक्ट्रिकल या इलेक्ट्रॉनिक में होती है। इसके अलावा करीब 28 निर्माण क्षेत्र, 12 फीसदी ट्रांसर्पोटेशन और 9-9 फीसदी खपत कंज्यूमर और औद्योगिक मशीनरी होती है। इसका सबसे अधिक उत्पादन 43 फीसदी एशिया में होता है। (BS Hindi)
कर्नाटक, आंध्र में मक्के की बहार
बेंगलुरु September 29, 2010
अनुकूल बारिश ने कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में मक्के की बंपर फसल की उम्मीद मजबूत कर दी है। इन दो दक्षिणी राज्यों का देश के कुल मक्का उत्पादन में लगभग 30 फीसदी का योगदान है। मौजूदा खरीफ फसल के लिए ये राज्य 46 लाख टन मक्के के उत्पादन में 25 फीसदी की शानदार वृद्घि की उम्मीद कर रहे हैं। आंध्र प्रदेश में कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार मक्का की खेती का एरिया पिछले खरीफ सत्र की तुलना में 17.5 फीसदी घट कर 438,000 हेक्टेयर रह गया था। मक्के के लिए रकबे में आई गिरावट का मुख्य कारण फसल पैटर्न में बदलाव था। अधिकारियों के अनुसार राज्य के किसानों ने इस साल अच्छी बारिश की वजह से बड़े पैमाने पर धान और कपास की खेती पर ध्यान दिया। उत्पादकता में वृद्घि की वजह से हालांकि यह उत्पादन 44 फीसदी की वृद्घि के साथ 14.2 लाख टन रहने की संभावना है। अधिकारियों के अनुसार किसानों को समय पर बुआई और अच्छी बारिश कीटों के हमलों से बचाव आदि की वजह से मक्के की अच्छी फसल उपजाने में मदद मिली है। चालू सत्र के लिए फसल की कटाई अक्टूबर के मध्य तक शुरू हो जाने की संभावना है और यह नई फसल अक्टूबर के अंत तक बाजार में आ जाएगी। आंध्र प्रदेश की तुलना में कर्नाटक में स्थिति ज्यादा अच्छी है। कर्नाटक में मक्के की बुआई 11.5 लाख हेक्टेयर में की गई जबकि पिछले साल यह रकबा 11.6 लाख हेक्टेयर था। इस बार मक्के का उत्पादन 18-19 फीसदी की वृद्घि के साथ लगभग 32 लाख टन रहने का अनुमान है। हालांकि राज्य में मॉनसून के विलंब की वजह से बुआई में भी विलंब हुआ था, लेकिन सभी इलाकों में अनुकूल बारिश की वजह से उत्पादन पिछले साल की तुलना में इस बार अच्छा रहने की संभावना है। राज्य के दावणगेरे जिले में 173,000 हेक्टेयर में मक्के की बुआई की गई थी और यहां उत्पादन लगभग 800,000 टन रहने का अनुमान है। कर्नाटक में इस फसल की कटाई नवंबर के अंत तक शुरू होने की संभावना है। कर्नाटक में कृषि विभाग ने इस नई खरीफ फसल के लिए 925 रुपये प्रति क्विंटल की सिफारिश की है जो केंद्र द्वारा घोषित 880 रुपये प्रति क्विंटल की तुलना में 5.1 फीसदी अधिक है। दूसरी तरफ दावणगेरे में किसान सरकार से 1500 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत घोषित किए जाने की मांग कर रहे हैं। इन किसानों ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार 2 अक्टूबर से पहले उनकी यह मांग नहीं मानती है तो वे आंदोलन करेंगे। पुराने मक्के का भाव फिलहाल 11,000 रुपये प्रति टन पर हैं। हालांकि नई फसल के लिए कीमतें इस स्तर पर नहीं रहेंगी। व्यापारी शुरू में लगभग 9500 रुपये प्रति टन भाव की उम्मीद कर रहे हैं, लेकिन बाद में यह 9,000 रुपये प्रति टन पर आ सकता है, जो 5.2 फीसदी की गिरावट दर्शाता है। (BS Hindi)
अनुकूल बारिश ने कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में मक्के की बंपर फसल की उम्मीद मजबूत कर दी है। इन दो दक्षिणी राज्यों का देश के कुल मक्का उत्पादन में लगभग 30 फीसदी का योगदान है। मौजूदा खरीफ फसल के लिए ये राज्य 46 लाख टन मक्के के उत्पादन में 25 फीसदी की शानदार वृद्घि की उम्मीद कर रहे हैं। आंध्र प्रदेश में कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार मक्का की खेती का एरिया पिछले खरीफ सत्र की तुलना में 17.5 फीसदी घट कर 438,000 हेक्टेयर रह गया था। मक्के के लिए रकबे में आई गिरावट का मुख्य कारण फसल पैटर्न में बदलाव था। अधिकारियों के अनुसार राज्य के किसानों ने इस साल अच्छी बारिश की वजह से बड़े पैमाने पर धान और कपास की खेती पर ध्यान दिया। उत्पादकता में वृद्घि की वजह से हालांकि यह उत्पादन 44 फीसदी की वृद्घि के साथ 14.2 लाख टन रहने की संभावना है। अधिकारियों के अनुसार किसानों को समय पर बुआई और अच्छी बारिश कीटों के हमलों से बचाव आदि की वजह से मक्के की अच्छी फसल उपजाने में मदद मिली है। चालू सत्र के लिए फसल की कटाई अक्टूबर के मध्य तक शुरू हो जाने की संभावना है और यह नई फसल अक्टूबर के अंत तक बाजार में आ जाएगी। आंध्र प्रदेश की तुलना में कर्नाटक में स्थिति ज्यादा अच्छी है। कर्नाटक में मक्के की बुआई 11.5 लाख हेक्टेयर में की गई जबकि पिछले साल यह रकबा 11.6 लाख हेक्टेयर था। इस बार मक्के का उत्पादन 18-19 फीसदी की वृद्घि के साथ लगभग 32 लाख टन रहने का अनुमान है। हालांकि राज्य में मॉनसून के विलंब की वजह से बुआई में भी विलंब हुआ था, लेकिन सभी इलाकों में अनुकूल बारिश की वजह से उत्पादन पिछले साल की तुलना में इस बार अच्छा रहने की संभावना है। राज्य के दावणगेरे जिले में 173,000 हेक्टेयर में मक्के की बुआई की गई थी और यहां उत्पादन लगभग 800,000 टन रहने का अनुमान है। कर्नाटक में इस फसल की कटाई नवंबर के अंत तक शुरू होने की संभावना है। कर्नाटक में कृषि विभाग ने इस नई खरीफ फसल के लिए 925 रुपये प्रति क्विंटल की सिफारिश की है जो केंद्र द्वारा घोषित 880 रुपये प्रति क्विंटल की तुलना में 5.1 फीसदी अधिक है। दूसरी तरफ दावणगेरे में किसान सरकार से 1500 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत घोषित किए जाने की मांग कर रहे हैं। इन किसानों ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार 2 अक्टूबर से पहले उनकी यह मांग नहीं मानती है तो वे आंदोलन करेंगे। पुराने मक्के का भाव फिलहाल 11,000 रुपये प्रति टन पर हैं। हालांकि नई फसल के लिए कीमतें इस स्तर पर नहीं रहेंगी। व्यापारी शुरू में लगभग 9500 रुपये प्रति टन भाव की उम्मीद कर रहे हैं, लेकिन बाद में यह 9,000 रुपये प्रति टन पर आ सकता है, जो 5.2 फीसदी की गिरावट दर्शाता है। (BS Hindi)
चांदी की खत्म पारी, अब सोने की बारी
मुंबई September 29, 2010
चांदी की कीमतों में अचानक आई उछाल से सोने के साथ इसके अनुपात को 60 के सामान्य स्तर से नीचे ला दिया है जिससे संकेत मिलता है कि इस धातु ने शानदार प्रदर्शन किया है और इसमें अब निवेशकों के लिए कम ही गुंजाइश बची है। चांदी के संदर्भ में सोना फिलहाल तब तक निवेश के लिए आकर्षक बना हुआ है जब कि यह अनुपात स्तर 70 तक नहीं चला जाता है। इन कीमती धातुओं के निवेशक निवेश से पहले चांदी और सोने के बीच इस अनुपात को देखते हैं, क्योंकि दोनों ही धातुओं को एक सुरक्षित निवेश विकल्प माना जाता है। सोने के साथ चांदी का अनुपात पिछले साल अक्टूबर के बाद पहली बार 60 से नीचे आया है जिससे संकेत मिलता है कि निवेश सोने की तरफ मुड़ रहा है। यह कहा जा सकता है कि सोने में बढ़त की क्षमता बरकरार है। जब सोना 500 डॉलर प्रति औंस पर कारोबार कर रहा था और चांदी 5 डॉलर प्रति औंस पर तो कारोबारी सोने-चांदी का अनुपात 100 पर जाने का अनुमान लगा रहे थे। ऐतिहासिक रूप से इस अनुपात में 100 की सर्वाधिक ऊंचाई 90 के दशक के शुरू में दर्ज की गई थी जब चांदी 3 डॉलर से बढ़ कर 8 डॉलर पर पहुंच गई थी। उस दौरान इस धातु की कीमतों में लगभग 200 फीसदी का इजाफा हुआ था। इसी तरह 2003 में जब यह अनुपात 80 के आसपास था तो कीमतें 100 फीसदी उछल कर 4 डॉलर से 8 डॉलर प्रति औंस हो गई थीं। 2009 में यह अनुपात 79 के आसपास आया और चांदी 10 डॉलर से बढ़ कर 16 डॉलर पर पहुंच गई। इस साल जून के पहले पखवाड़े तक यह अनुपात 71 पर था और चांदी की कीमतें बढ़ कर 21.9 डॉलर के मौजूदा स्तर पर पहुंच गई हैं। इन सभी अवसरों पर चांदी की चमक, सोने के अनुपात में धीरे धीरे फीकी पड़ी है। लेकिन इस बार हालात सोने के लिए ज्यादा अनुकूल हैं। (BS Hindi)
चांदी की कीमतों में अचानक आई उछाल से सोने के साथ इसके अनुपात को 60 के सामान्य स्तर से नीचे ला दिया है जिससे संकेत मिलता है कि इस धातु ने शानदार प्रदर्शन किया है और इसमें अब निवेशकों के लिए कम ही गुंजाइश बची है। चांदी के संदर्भ में सोना फिलहाल तब तक निवेश के लिए आकर्षक बना हुआ है जब कि यह अनुपात स्तर 70 तक नहीं चला जाता है। इन कीमती धातुओं के निवेशक निवेश से पहले चांदी और सोने के बीच इस अनुपात को देखते हैं, क्योंकि दोनों ही धातुओं को एक सुरक्षित निवेश विकल्प माना जाता है। सोने के साथ चांदी का अनुपात पिछले साल अक्टूबर के बाद पहली बार 60 से नीचे आया है जिससे संकेत मिलता है कि निवेश सोने की तरफ मुड़ रहा है। यह कहा जा सकता है कि सोने में बढ़त की क्षमता बरकरार है। जब सोना 500 डॉलर प्रति औंस पर कारोबार कर रहा था और चांदी 5 डॉलर प्रति औंस पर तो कारोबारी सोने-चांदी का अनुपात 100 पर जाने का अनुमान लगा रहे थे। ऐतिहासिक रूप से इस अनुपात में 100 की सर्वाधिक ऊंचाई 90 के दशक के शुरू में दर्ज की गई थी जब चांदी 3 डॉलर से बढ़ कर 8 डॉलर पर पहुंच गई थी। उस दौरान इस धातु की कीमतों में लगभग 200 फीसदी का इजाफा हुआ था। इसी तरह 2003 में जब यह अनुपात 80 के आसपास था तो कीमतें 100 फीसदी उछल कर 4 डॉलर से 8 डॉलर प्रति औंस हो गई थीं। 2009 में यह अनुपात 79 के आसपास आया और चांदी 10 डॉलर से बढ़ कर 16 डॉलर पर पहुंच गई। इस साल जून के पहले पखवाड़े तक यह अनुपात 71 पर था और चांदी की कीमतें बढ़ कर 21.9 डॉलर के मौजूदा स्तर पर पहुंच गई हैं। इन सभी अवसरों पर चांदी की चमक, सोने के अनुपात में धीरे धीरे फीकी पड़ी है। लेकिन इस बार हालात सोने के लिए ज्यादा अनुकूल हैं। (BS Hindi)
कल से लेवी चीनी का कोटा 10 फीसदी
September 29, 2010
सरकार ने 1 अक्टूबर 2010 से शुरू हो रहे नए सत्र के लिए चीनी की बिक्री के लिए लेवी कोटे में 10 फीसदी की कटौती कर दी है। आधिकारिक सूत्रों ने कहा है कि इस संबंध में जल्द ही एक अधिसूचना जारी कर दी जाएगी। इससे त्योहारी सत्र के दौरान खुले बाजार में चीनी की अधिक बिक्री किए जाने में मदद मिलेगी। विश्लेषकों का कहना है कि लेवी कोटे में 10 फीसदी की कमी से खुले बाजार में 19 लाख टन अतिरिक्त चीनी उपलब्ध होगी। यह कोटा पिछले साल मिलों द्वारा उत्पादित चीनी का 10 फीसदी था जिसे उत्पादन में कमी की आशंका से बाद में बढ़ा कर 20 फीसदी कर दिया गया था। अभी लेवी चीनी की कीमतें उत्तर प्रदेश में 1275 से 1383 रुपये प्रति क्विंटल के बीच हैं जबकि महाराष्ट्र में 1318 रुपये से 1344 के बीच। खुले बाजार में कीमतें 2900 से 3100 के बीच में हैं। (BS Hindi)
सरकार ने 1 अक्टूबर 2010 से शुरू हो रहे नए सत्र के लिए चीनी की बिक्री के लिए लेवी कोटे में 10 फीसदी की कटौती कर दी है। आधिकारिक सूत्रों ने कहा है कि इस संबंध में जल्द ही एक अधिसूचना जारी कर दी जाएगी। इससे त्योहारी सत्र के दौरान खुले बाजार में चीनी की अधिक बिक्री किए जाने में मदद मिलेगी। विश्लेषकों का कहना है कि लेवी कोटे में 10 फीसदी की कमी से खुले बाजार में 19 लाख टन अतिरिक्त चीनी उपलब्ध होगी। यह कोटा पिछले साल मिलों द्वारा उत्पादित चीनी का 10 फीसदी था जिसे उत्पादन में कमी की आशंका से बाद में बढ़ा कर 20 फीसदी कर दिया गया था। अभी लेवी चीनी की कीमतें उत्तर प्रदेश में 1275 से 1383 रुपये प्रति क्विंटल के बीच हैं जबकि महाराष्ट्र में 1318 रुपये से 1344 के बीच। खुले बाजार में कीमतें 2900 से 3100 के बीच में हैं। (BS Hindi)
29 सितंबर 2010
तिलहनों पर स्टॉक लिमिट हटेगी
किसानों को तिलहनों का उचित मूल्य मिलें तथा उपभोक्ताओं को भी खाद्य तेल की ज्यादा कीमत न चुकानी पड़े। इसको ध्यान में रखते हुए खाद्य मंत्रालय ने तिलहनों से स्टॉक लिमिट हटाने और खाद्य तेलों पर लिमिट की अवधि को एक साल के लिए बढ़ाने का प्रस्ताव किया है। मंगलवार को केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में खाद्यान्न मामलों पर गठित अधिकार प्राप्त मंत्रियों के समूह (ईजीओएम) की बैठक में खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत गेहूं का आवंटन बढ़ाए जाने और दालों पर लिमिट की अवधि को बढ़ाए जाने का भी प्रस्ताव पेश किया जाएगा। खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि चालू सीजन में मौसम अनुकूल होने से तिलहनों का उत्पादन बढऩे की संभावना है इसीलिए तिलहनों पर लगी स्टॉक लिमिट की अवधि को आगे नहीं बढ़ाया जाएगा। ऐसे में 30 सितंबर के बाद लिमिट स्वत: समाप्त हो जायेगी। हालांकि खाद्य तेलों की कीमतों में स्थिरता बनी हुई है लेकिन सरकार कोई जोखिम नहीं लेना चाहती इसीलिए खाद्य तेलों पर लगी स्टॉक लिमिट की अवधि को बढ़ाए जाने का प्रस्ताव किया गया है। उन्होंने बताया कि खरीफ में दलहनों का उत्पादन बढऩे की संभावना से थोक में कीमतें जरूर घटी है लेकिन फुटकर में कीमतों में ज्यादा गिरावट नहीं आई है इसलिए दालों पर स्टॉक लिमिट की अवधि को बढ़ाए जाने का प्रस्ताव है। साथ ही सार्वजनिक कंपनियों द्वारा आयात की जा रही दालों पर 10 रुपये प्रति किलो और 15 फीसदी तक दी जा रही सब्सिडी को अगले छह महीने के लिए बढ़ाए जाने का प्रस्ताव भी किया गया है। दालों पर स्टॉक लिमिट की अवधि 30 सितंबर को समाप्त हो रही है। ओएमएसएस के तहत पहले से आवंटित गेहूं का अभी पूरा उठान नहीं हो पाया है लेकिन मंगलवार को ईजीओएम में इसका आवंटन बढ़ाए जाने की संभावना है। खाद्य मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार ओएमएसएस के तहत 21.81 लाख टन गेहूं का आवंटन (अक्टूबर-09 से सितंबर-10 ) के लिए किया गया था। इसमें से अभी करीब आठ लाख टन गेहूं का उठान नहीं हो पाया है। इसके अलावा चावल पर स्टॉक लिमिट की अवधि को बढ़ाने का प्रस्ताव है। सूत्रों के अनुसार लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) के तहत आवंटित खाद्यान्न की कीमतों पर भी इस बैठक में चर्चा होने की संभावना है। लेकिन महंगाई को देखते हुए इनकी कीमतों में बढ़ोतरी की संभावना नहीं है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत आवंटित खाद्यान्न की कीमतों में वर्ष 2002 के बाद से कोई फेरबदल नहीं किया गया है। बात पते कीईजीओएम की बैठक में खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत गेहूं का आवंटन बढ़ाए जाने और दालों पर लिमिट की अवधि को बढ़ाए जाने का भी प्रस्ताव पेश किया जाएगा। (business Bhaskar...aar as rana)
गेहूं की स्थिरता पड़ी भारी
चाहे किसान हो या फिर स्टॉकिस्ट, इस साल किसी के लिए गेहूं का स्टॉक करना फायदे का सौदा नहीं रहा है। पिछले छह महीने में प्रमुख उत्पादक राज्यों उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में गेहूं की कीमत सीमित दायरे में ही बनी हुई है। स्टॉकिस्टों का कहना है कि मौजूदा बाजार भाव पर तो उन्हें नुकसान हो रहा है। गेहूं के मूल्य स्थिर रहने के पीछे कई कारण हैं। केंद्रीय पूल में गेहूं का भारी स्टॉक बचा है। इसके अलावा पिछले महीनों में अच्छी बारिश होने के कारण अगले साल के रबी सीजन में भी गेहूं की पैदावार बेहतर रहने का अनुमान है। ऐसे में मौजूदा कीमतों में ज्यादा तेजी की संभावना भी नहीं है। दिल्ली में गेहूं का दाम 1,240 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत गेहूं का बिक्री भाव 1,252 रुपये प्रति क्विंटल है। मथुरा स्थित श्री बालाजी फूड प्रॉडेक्ट के डायरेक्टर आर. पी. बंसल ने बताया कि अप्रैल-मई में स्टॉकिस्टों ने 1,100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गेहूं की खरीद की थी तथा वैट, मंडी टैक्स, बोरी और परिवहन लागत मिलाकर स्टॉकिस्ट को गेहूं का गोदाम पहुंच भाव 1,170 से 1,180 रुपये प्रति क्विंटल रहा था। छह महीने का गोदाम का किराया और ब्याज भाड़ा जोड़ दिया जाए तो यह लागत 1,220 से 1,240 रुपये प्रति क्विंटल के करीब बैठती है। जबकि उत्तर प्रदेश की मंडियों में टैक्स पेड़ गेहूं का भाव 1,240 रुपये प्रति क्विंटल और लूज में 1,100 से 1,110 रुपये प्रति क्विंटल है। लुधियाना स्थित गिल फ्लोर मिल के डायरेक्टर धमेंद्र गिल ने बताया कि अप्रैल में गेहूं का दाम 1,100 रुपये प्रति क्विंटल था इसमें 11 फीसदी के खर्च और बैग तथा परिवहन लागत, वेयरहाऊस का छह महीने का भाड़ा और पूंजी का ब्याज जोड़ा जाए तो लागत 1,250 से 1,270 रुपये प्रति क्विंटल बैठ रही है। इस समय गेहूं का भाव मिल पहुंच 1,220 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है। ऐसे में स्टॉकिस्टों को नुकसान में गेहूं बेचना पड़ रहा है। हरियाणा रोलर फ्लोर मिल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष पी. सी. गुप्ता ने बताया कि स्टॉकिस्टों को उम्मीद थी कि सरकार गेहूं के निर्यात को खोल देगी। इसीलिए स्टॉकिस्टों ने स्टॉक किया था। लेकिन सरकार ने गेहूं निर्यात नहीं खोला इसलिए स्टॉकिस्टों ने बिकवाली बढ़ा दी। स्टॉकिस्ट को मौजूदा कीमतों पर भारी नुकसान हो रहा है। अलवर व्यापार मंडल के अध्यक्ष सुरेश अग्रवाल ने बताया कि अप्रैल में गेहूं का भाव 1,100 रुपये प्रति क्विंटल था जबकि इस समय भाव 1,140 रुपये प्रति क्विंटल है। राजस्थान में गेहूं की खरीद पर 7.6 फीसदी का खर्चा आता है लेकिन बिकवाली के समय चार फीसदी वैट वापस मिल जाता है। मौजूदा कीमतों में गेहूं बेचने पर स्टॉकिस्टों को ब्याज भाड़े का नुकसान उठाना पड़ रहा है। उधर किसानों को भी गेहूं रोकने का कोई लाभ नहीं मिल रहा है। हालांकि उनकी भंडारण लागत थोड़ी कम पड़ती है लेकिन फायदा उन्हें भी नहीं रहा है।बात पते कीपिछले महीनों में अच्छी बारिश होने के कारण अगले साल के रबी सीजन में भी गेहूं की पैदावार बेहतर रहने का अनुमान है। ऐसे में मौजूदा कीमतों में ज्यादा तेजी की संभावना भी नहीं है। (Business Bhaskar.....aar as raana)
27 सितंबर 2010
कमोडिटी ट्रैकर - सस्ती हो सकती है मूंगफली
चालू खरीफ सीजन में मूंगफली की पैदावार 54 फीसदी बढऩे का अनुमान है। गुजरात की उत्पादक मंडियों में नई फसल की छिटपुट आवक शुरू हो गई है तथा अक्टूबर के मध्य बाद आवक बढऩी शुरू हो जाएगी। दीपावली तक आंध्र प्रदेश और राजस्थान में नई फसल की आवक बढ़ जाएगी। इससे मूंगफली तेल और सीड की मौजूदा कीमतों में गिरावट आने की संभावना है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू खरीफ में मूंगफली का उत्पादन बढ़कर 56.6 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 36.6 लाख टन का उत्पादन हुआ था। हालांकि उद्योग सूत्रों के अनुसार उत्पादन सरकारी अनुमान से काफी कम रहेगा। उद्योग ने चालू खरीफ में 39 लाख टन मूंगफली के उत्पादन का अनुमान लगाया है जबकि पिछले साल 32 लाख टन का उत्पादन हुआ था। गुजरात की उत्पादक मंडियों में नई मूंगफली की छिटपुट आवक शुरू हो गई है तथा अगले पंद्रह-बीस दिनों में आवक बढऩे की संभावना है। उधर आंध्र प्रदेश और राजस्थान में नई फसल की आवक का दबाव दीपावली के आसपास बनेगा। इस समय उत्पादक मंडियों में मूंगफली का बकाया स्टॉक न के बराबर है जबकि घरेलू मांग अच्छी बनी हुई है। गुजरात की मंडियों में मूंगफली का भाव 3,750 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है जबकि तेल का भाव 900 रुपये प्रति 10 किलो है।मूंगफली की मौजूदा कीमतों में आवक का दबाव बनने पर करीब 250 रुपये प्रति क्विंटल का मंदा आने की संभावना है। हालांकि सरकार ने कंज्यूमर पैक में पांच किलो तक की पैकिंग में 10,000 टन खाद्य तेलों के निर्यात की मंजूरी तो दे रखी है लेकिन निर्यात न के बराबर ही हो रहा है। सरकार कंज्यूमर पैक की अनिवायर्ता हटा दे, तो मूंगफली तेल के निर्यात में बढ़ोतरी हो सकती है। उत्पादक मंडियों में स्टॉक कम है लेकिन आवक का दबाव बनने पर मूंगफली तेल की मौजूदा कीमतों में करीब 100-150 रुपये प्रति 10 किलो की गिरावट आने की संभावना है। पिछले साल देश के कई राज्यों में सूखे जैसे हालात बन गए थे, जिससे मूंगफली के उत्पादन पर ज्यादा असर पड़ा था। मूंगफली का उत्पादन खरीफ और रबी दोनों सीजनों में होता है लेकिन प्रमुख फसल खरीफ में ही आती है। कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ में मूंगफली की बुवाई बढ़कर 49.37 लाख हैक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी बुवाई 43.66 लाख हैक्टेयर में ही बुवाई हुई थी। प्रमुख उत्पादक राज्य गुजरात में चालू खरीफ में मूंगफली की बुवाई 16.73 लाख हैक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 16.58 लाख हैक्टेयर में हुई थी। आंध्र प्रदेश में चालू खरीफ में बुवाई 10.11 लाख हैक्टेयर से बढ़कर 13.50 लाख हैक्टेयर में, कर्नाटक में 5.62 लाख हैक्टेयर से बढ़कर 6.46 लाख हैक्टेयर में और राजस्थान में 3.15 लाख हैक्टेयर से बढ़कर 3.33 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है।- आर.एस. राणा rana@businessbhaskar.netबात पते की - कंज्यूमर पैक में मूंगफली तेल का निर्यात नगण्य है। उत्पादक मंडियों में स्टॉक कम है लेकिन आवक का दबाव बनने पर मूंगफली तेल की मौजूदा कीमतों में करीब 100-150 रुपये प्रति 10 किलो की गिरावट आने की संभावना है। मूंगफली 250 रुपये प्रति क्विंटल तक सस्ती हो सकती है। (Business Bhaskar.....aar as rana)
चावल की 9 नई किस्में जारी
केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (सीआरआरआई) ने अधिक पैदावार देने वाली चावल की नौ नई किस्में जारी की हैं। इसमें दो संकर किस्में है। इसके अलावा एक किस्म सिंचित क्षेत्र के किसानों के लिए, दो तराई क्षेत्रों के लिए, एक किस्म कम पानी वाले क्षेत्रों के लिए, दो किस्में तटीय लवणीय क्षेत्रों के लिए तथा एक किस्म बोरो धान की है। इनके काफी अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं। सीआरआरआई के निदेशक डॉ. टी. के. आध्या ने बिजनेस भास्कर को बताया कि नई किस्मों से चावल के प्रति हैक्टेयर उत्पादन में बढ़ोतरी होगी। सिंचित क्षेत्रों के लिए सीआर धान-801 किस्म से पांच टन प्रति हैक्टेयर की पैदावार हासिल की जा सकती है। यह किस्म तैयार होने में 117 दिनों का समय लेती है और इसके चावल के दानों का आकार लंबा और मोटा होता है। सिंचित क्षेत्रों के किसान इसे अपनाकर अधिक पैदावार ले सकते हैं। डॉ. आध्या ने बताया कि संकर किस्म की राजालक्ष्मी और सीआर धान-701 चावल से किसान सात टन प्रति हैक्टेयर तक पैदावार ले सकते हैं। इसमें राजालक्ष्मी तैयार होने में 135 दिन का समय लेती है जबकि सीआर धान-701 किस्म को पकने के लिए 140 दिन का समय लगता है। संकर किस्में पकने में तो कम अवधि लेती ही है, साथ में प्रति हैक्टेयर पैदावार भी ज्यादा होती है। तराई इलाकों के किसानों के लिए भी दो किस्में सीआर धान-401 और सीआर धान-901 किस्में विकसित की गई है। इसमें सीआर धान-401 से किसान पांच टन प्रति हैक्टेयर तक पैदावार ली जा सकती है तथा यह किस्म तैयार होने में 150 दिन का समय लेती है। सीआर धान-901 किस्म से 3.5 टन प्रति हैक्टेयर की पैदावार ली जा सकती है तथा यह 150 दिनों से ज्यादा का समय लेती है। डॉ. आध्या के अनुसार कम पानी वाले क्षेत्रों के लिए सीआर धान-501 किस्म से चार टन प्रति हैक्टेयर की पैदावार ली जा सकती है। यह किस्म तैयार होने में 160 दिनों का समय लेती है और इसके चावल के दानों का आकार लंबा और मोटा होता है। तटीय लवणीय क्षेत्रों कि किसानों के लिए सीआर धान-402 और सीआर धान-403 किस्में विकसित की गई हैं। इसमें सीआर धान-402 किस्म से चार टन प्रति हैक्टेयर की पैदावार ली जा सकती है तथा यह पकने में 150 दिन से ज्यादा का समय लेती है।जबकि सीआर धान-403 किस्म से चार टन की पैदावार होती है तथा यह पकने के लिए 140 दिन का समय लेती है। उन्होंने बताया कि सीआर धान-601 बोरो किस्म से किसान छह टन प्रति हैक्टेयर की पैदावार ले सकते हैं तथा इसकी पकाई के लिए 160 दिन का समय लगता है। (Business Bhaskar....aar as raana)
कॉटन निर्यात पर टैक्स का प्रस्ताव किया
वस्त्र मंत्रालय ने देश से कॉटन के निर्यात पर 2500 रुपये प्रति टन टैक्स लगाने का प्रस्ताव किया है ताकि घरेलू उद्योग के लिए कॉटन की सप्लाई सुनिश्चित की जा सके। कपड़ा उद्योग कॉटन के निर्यात पर पाबंदियां लगवाने के लिए जोरदार लॉबिंग कर रहा है। उद्योग की कोशिश है कि कॉटन की सस्ते दामों पर सुलभता सुनिश्चित हो।सूत्रों के अनुसार उद्योग को फायदा पहुंचाने के लिए एक कदम उठाया जा सकता है। कॉटन निर्यात के लिए सौदों का पंजीयन शुरू करने में देरी हो सकती है। पहले तय किया गया था कि एक अक्टूबर से निर्यात सौदे पंजीकृत होने वाले थे। कॉटन निर्यात के लिए सौदों को पहले टैक्सटाइल कमिश्नर के ऑफिस में पंजीकृत कराना अनिवार्य है। एक अधिकारी ने बताया कि कॉटन के निर्यात पर कम से कम 2500 रुपये प्रति टन टैक्स लगाने का प्रस्ताव रखा गया है। दूसरी ओर उद्योग कम से कम 10000 रुपये प्रति टन प्रतिबंधात्मक शुल्क लगाने की जोरदार मांग उठा रहा है।सूत्रों ने कहना है कि कॉटन निर्यात पर शुल्क और निर्यात का कोटा तय करने के मसले पर फैसला वरिष्ठ मंत्रियों द्वारा लिया जाएगा। इस प्रक्रिया में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी, कृषि मंत्री शरद पवार, वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा और वस्त्र मंत्री दयानिधि मारन शामिल होंगे। इस मुद्दे पर फैसला 28 सितंबर को होने वाली बैठक में हो सकता है।कॉटन की घरेलू मंडियों में सप्लाई अक्टूबर से शुरू होने वाली है। इस साल रिकॉर्ड उत्पादन होने की संभावना व्यक्त की जा रही है। चालू वर्ष 2010-11 के दौरान 335 लाख गांठ (प्रति गांठ 170 किलो) कॉटन का उत्पादन होने की संभावना है। पिछले साल 295 लाख गांठ कॉटन का उत्पादन हुआ था। एक ओर जहां वस्त्र मंत्रालय सीजन की शुरूआत से ही 2500 रुपये प्रति टन शुल्क लगाने के पक्ष में है जबकि वाणिज्य सचिव ने इस माह के शुरू में कहा था कि शुल्क अभी नहीं बल्कि 55 लाख गांठ निर्यात होने के बाद लगाया जाएगा। अंतरमंत्रालयीय समिति में 55 लाख गांठ कॉटन निर्यात का कोटा तय किया गया था। बीते सीजन में चालू सितंबर माह तक देश से करीब 83 लाख गांठ कॉटन का निर्यात होने का अनुमान है। चीन में कॉटन का उत्पादन घटने के कारण भारत से निर्यात जोरों पर रहा। इसके कारण घरेलू बाजार में कॉटन के दाम तेजी से बढ़ते गए। इसी वजह से घरेलू उद्योग इसके निर्यात पर पाबंदियां लगाने के लिए लगातार दबाव बना रहा है। इस समय कॉटन का घरेलू बाजार में मूल्य 39000 रुपये प्रति कैंडी (प्रति कैंडी 376 किलो) चल रहा है। जबकि पिछले साल इन दिनों भाव 23000 रुपये प्रति कैंडी थे।कॉटन के मूल्य की सही दिशा का अनुमान अक्टूबर में नया सीजन शुरू होने के बाद लग पाएगा। अक्टूबर के पहले सप्ताह में मंडियों में कॉटन की सप्लाई पूरे जोरों पर शुरू हो जाएगी। अभी पंजाब की मंडियों में थोड़ी आवक शुरू हो चुकी है। पिछले मई में सरकार ने कॉटन के मूल्यों पर अंकुश लगाने के लिए पाबंदियां लगा दी थीं। लेकिन प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार समिति ने इस फैसले की कड़ी आलोचना की। उसका कहना था कि कॉटन निर्यात के लिए कोटा सही समय पर तय किया जाना चाहिए।बात पते कीइस समय कॉटन का घरेलू बाजार में मूल्य 39000 रुपये प्रति कैंडी (प्रति कैंडी 376 किलो) चल रहा है। जबकि पिछले साल इन दिनों भाव 23000 रुपये प्रति कैंडी था। (Business Bhaskar)
चावल के शुल्क मुक्त आयात की अवधि अगले साल सितंबर तक
नई दिल्ली खाद्य वस्तुओं की बढ़ती महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए सरकार चावल के शुल्क मुक्त आयात की अवधि अगले साल सितंबर तक के लिए बढ़ा सकती है। चावल के आयात पर सीमा शुल्क से रियायत की अवधि 30 सितंबर को समाप्त हो रही है। खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति मौजूदा समय में 15 प्रतिशत के आसपास मंडरा रही है। सूत्रों ने बताया कि खाद्य वस्तुओं की ऊंची कीमतों के मद्देनजर खाद्य मंत्रालय चावल के शुल्क मुक्त आयात की अवधि को बढ़ाने की तैयारी कर रहा है। इस बारे में प्रस्ताव खाद्य मामलों पर मंत्रियों के अधिकारप्राप्त समूह के समक्ष इस सप्ताह आने की संभावना है। इसकी अगुवाई वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी कर रहे हैं। सरकार ने चावल की घरेलू आपूर्ति बढ़ाने के लिए अक्टूबर 2009 में चावल पर लगने वाले आयात शुल्क को (Pressnote)
महंगा हुआ काबुली चना
नई दिल्ली September 27, 2010
काबुली चने की मांग बढऩे का असर इसकी कीमतों पर दिखने लगा है। कारोबारियों के मुताबिक काबुली की निर्यात और घरेलू मांग बढऩे से इसके दाम 300-350 रुपये प्रति क्विंटल तक बढ़ चुके हैं। उनके मुताबिक आगे भी इसकी कीमतों में तेजी बरकरार रह सकती है।मुख्य उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश की सतना मंडी में पिछले एक माह के दौरान काबुली चने के दाम करीब 300-350 रुपये बढ़कर 4700-4800 रुपये प्रति क्विंटल हो गए है। दिल्ली में मध्य प्रदेश लाइन काबुली चने के दाम बढ़कर 5400-5500 रुपये प्रति क्विंटल है।सतना मंडी के काबुली चना कारोबारी और निर्यातक कमलेश पटेल ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि अंतरराष्टï्रीय बाजार में काबुली चने की मांग अच्छी चल रही है। पटेल ने कहा कि इन दिनों पाकिस्तान, अल्जीरिया, दुबई और श्रीलंका को 1000-1200 डॉलर प्रति टन के भाव पर काबुली चने का निर्यात हो रहा है। निर्यात मांग बढऩे के कारण घरेलू बाजार में काबुली चने की कीमतों में तेजी का रुख है। मालूम हो कि भारत से दालों के निर्यात पर पाबंदी है, लेकिन काबुली के निर्यात पर यह पाबंदी लागू नहीं है। दिल्ली के काबुली चना कारोबारी डी.सी. गुप्ता ने कहा कि काबुली चने की घरेलू मांग भी मजबूत है। इससे दिल्ली में महीने भर में काबुली चने के दाम 300 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ गए हैं और तीन माह के दौरान कीमतों में 1000 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी दर्ज की गई है।आज दिल्ली के थोक बाजार में काबुली चना छोटा के भाव 50 रुपये की तेजी के साथ 4250-5450 रुपये प्रति क्विंटल बंद हुए। गुप्ता का कहना है कि बीते दिनों में सब्जियों की कीमतों में भारी बढ़ोतरी के कारण भी काबुली चने के मूल्यों में इजाफा हुआ है। साथ ही बारिश के चलते मंडियों में आवक भी कम हो रही है। पटेल के मुताबिक आने वाले दिनों में घरेलू और निर्यात मांग को देखते हुए काबुली चने की कीमतों में और तेजी के आसार है। गुप्ता का आगे कीमतों के बारे में कहना है कि काबुली चने की नई फसल फरवरी में आएगी, जिसमें अभी करीब पांच माह का समय है। ऐसे में आगे कीमतों में तेजी के आसार है। देश में काबुली चने का सबसे अधिक उत्पादन मध्य प्रदेश में कि या जाता है। इसके बाद कर्नाटक और महाराष्टï्र मेें इसका उत्पादन होता है। इसका निर्यात तुर्की, अल्जीरिया, मैक्सिको, सऊदी अरब सहित अन्य देशों को किया जाता है। (BS Hindi)
काबुली चने की मांग बढऩे का असर इसकी कीमतों पर दिखने लगा है। कारोबारियों के मुताबिक काबुली की निर्यात और घरेलू मांग बढऩे से इसके दाम 300-350 रुपये प्रति क्विंटल तक बढ़ चुके हैं। उनके मुताबिक आगे भी इसकी कीमतों में तेजी बरकरार रह सकती है।मुख्य उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश की सतना मंडी में पिछले एक माह के दौरान काबुली चने के दाम करीब 300-350 रुपये बढ़कर 4700-4800 रुपये प्रति क्विंटल हो गए है। दिल्ली में मध्य प्रदेश लाइन काबुली चने के दाम बढ़कर 5400-5500 रुपये प्रति क्विंटल है।सतना मंडी के काबुली चना कारोबारी और निर्यातक कमलेश पटेल ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि अंतरराष्टï्रीय बाजार में काबुली चने की मांग अच्छी चल रही है। पटेल ने कहा कि इन दिनों पाकिस्तान, अल्जीरिया, दुबई और श्रीलंका को 1000-1200 डॉलर प्रति टन के भाव पर काबुली चने का निर्यात हो रहा है। निर्यात मांग बढऩे के कारण घरेलू बाजार में काबुली चने की कीमतों में तेजी का रुख है। मालूम हो कि भारत से दालों के निर्यात पर पाबंदी है, लेकिन काबुली के निर्यात पर यह पाबंदी लागू नहीं है। दिल्ली के काबुली चना कारोबारी डी.सी. गुप्ता ने कहा कि काबुली चने की घरेलू मांग भी मजबूत है। इससे दिल्ली में महीने भर में काबुली चने के दाम 300 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ गए हैं और तीन माह के दौरान कीमतों में 1000 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी दर्ज की गई है।आज दिल्ली के थोक बाजार में काबुली चना छोटा के भाव 50 रुपये की तेजी के साथ 4250-5450 रुपये प्रति क्विंटल बंद हुए। गुप्ता का कहना है कि बीते दिनों में सब्जियों की कीमतों में भारी बढ़ोतरी के कारण भी काबुली चने के मूल्यों में इजाफा हुआ है। साथ ही बारिश के चलते मंडियों में आवक भी कम हो रही है। पटेल के मुताबिक आने वाले दिनों में घरेलू और निर्यात मांग को देखते हुए काबुली चने की कीमतों में और तेजी के आसार है। गुप्ता का आगे कीमतों के बारे में कहना है कि काबुली चने की नई फसल फरवरी में आएगी, जिसमें अभी करीब पांच माह का समय है। ऐसे में आगे कीमतों में तेजी के आसार है। देश में काबुली चने का सबसे अधिक उत्पादन मध्य प्रदेश में कि या जाता है। इसके बाद कर्नाटक और महाराष्टï्र मेें इसका उत्पादन होता है। इसका निर्यात तुर्की, अल्जीरिया, मैक्सिको, सऊदी अरब सहित अन्य देशों को किया जाता है। (BS Hindi)
कपास निर्यात पर रोक चाहता है वस्त्र उद्योग
September 26, 2010
भारतीय कपास उद्योग यह सुनिश्चित करने का पूरा प्रयास कर रहा है कि पिछले वर्ष वाली स्थिति मौजूदा वित्त वर्ष के दौरान न बन पाए। पिछले साल कपास का भाव 27 फीसदी बढ़ जाने की वजह से वस्त्र उद्योग के मुनाफे में भारी गिरावट आई थी।इस क्षेत्र की कंपनियां मांग कर रही हैं कि कच्चे कपास के निर्यात पर तैयार परिधान निर्यात को तरजीह दी जानी चाहिए। उनका कहना है कि यदि कपास का निर्यात किया भी जाता है, तो इसकी मात्रा पर नियंत्रण होना चाहिए और आने वाले सीजन के दौरान निर्यात के बजाए इसकी घरेलू मांग को प्राथमिकता मिलनी चाहिए।घरेलू वस्त्र उद्योग ने यह मांग भी रखी है कि कपास निर्यात के लिए लाइसेंस व्यवस्था होनी चाहिए। उत्तर भारत परिधान मिल संघ (निटमा) के अध्यक्ष आशीष बगरोडिया ने कहा कि परिधान उद्योग के नजरिए में सबसे बढिय़ा तरीका यह है कि कपास निर्यात पर लाइसेंस व्यवस्था फिर से लागू कर दी जाए, जैसा कि इस वर्ष की शुरुआत में किया गया था। आगामी सीजन में फरवरी से पहले निर्यात की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। कपास सीजन अगस्त में शुरू होता है और अप्रैल में खत्म हो जाता है। प्रौद्योगिकी उन्नयन निधि योजना (टफ्स) को विस्तार दिए जाने की भी मांग की जा रही है। बगरोडिाया के मुताबिक इस योजना से कई बाधाएं दूर हुईं हैं, लेकिन अब तक इसकी जरूरत खत्म नहीं हुई है। परिधान उद्योग कर वापसी और शुल्क रियायत जैसे निर्यात प्रोत्साहन के लिए भी खेमेबंदी कर रहा है। तिरुपुर निर्यातक संघ (टी) के अध्यक्ष अरुमुगम शक्तिवेल ने केंद्रीय वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा को भेजे परिपत्र में कहा, 'अमेरिका को भेजे जाने वाले तैयार परिधान को मार्केट लिंक्ड प्रोडक्ट स्कीम (एमएलएफपीएस) के तहत सालाना मदद वाली सूची में शामिल नहीं किया जा रहा है। अमेरिका अभी भी पूरी तरह खतरे से बाहर नहीं है इसलिए निर्यात को प्रतिस्पर्धी बनाए रखने के लिए 2 फीसदी छूट दिए जाने की जरूरत है।कपास उत्पादन के मामले में विश्व में भारत का दूसरा स्थान है और अपने घरेलू मांग से कहीं ज्यादा यहां कपास का उत्पादन होता है। इसके बावजूद पिछले साल भारत में कपास के दाम बढ़ गए थे। इसके लिए कपास के असमान निर्यात को जिम्मेदार माना गया और हालत यह हो गई कि घरेलू टेक्सटाइल उद्योग के लिए कपास मिलना मुश्किल हो गया। ऐसा अनुमान है कि 2009-10 के दौरान भारत में 2.9 करोड़ गांठ कपास का उत्पादन हुआ था। (BS Hindi)
भारतीय कपास उद्योग यह सुनिश्चित करने का पूरा प्रयास कर रहा है कि पिछले वर्ष वाली स्थिति मौजूदा वित्त वर्ष के दौरान न बन पाए। पिछले साल कपास का भाव 27 फीसदी बढ़ जाने की वजह से वस्त्र उद्योग के मुनाफे में भारी गिरावट आई थी।इस क्षेत्र की कंपनियां मांग कर रही हैं कि कच्चे कपास के निर्यात पर तैयार परिधान निर्यात को तरजीह दी जानी चाहिए। उनका कहना है कि यदि कपास का निर्यात किया भी जाता है, तो इसकी मात्रा पर नियंत्रण होना चाहिए और आने वाले सीजन के दौरान निर्यात के बजाए इसकी घरेलू मांग को प्राथमिकता मिलनी चाहिए।घरेलू वस्त्र उद्योग ने यह मांग भी रखी है कि कपास निर्यात के लिए लाइसेंस व्यवस्था होनी चाहिए। उत्तर भारत परिधान मिल संघ (निटमा) के अध्यक्ष आशीष बगरोडिया ने कहा कि परिधान उद्योग के नजरिए में सबसे बढिय़ा तरीका यह है कि कपास निर्यात पर लाइसेंस व्यवस्था फिर से लागू कर दी जाए, जैसा कि इस वर्ष की शुरुआत में किया गया था। आगामी सीजन में फरवरी से पहले निर्यात की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। कपास सीजन अगस्त में शुरू होता है और अप्रैल में खत्म हो जाता है। प्रौद्योगिकी उन्नयन निधि योजना (टफ्स) को विस्तार दिए जाने की भी मांग की जा रही है। बगरोडिाया के मुताबिक इस योजना से कई बाधाएं दूर हुईं हैं, लेकिन अब तक इसकी जरूरत खत्म नहीं हुई है। परिधान उद्योग कर वापसी और शुल्क रियायत जैसे निर्यात प्रोत्साहन के लिए भी खेमेबंदी कर रहा है। तिरुपुर निर्यातक संघ (टी) के अध्यक्ष अरुमुगम शक्तिवेल ने केंद्रीय वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा को भेजे परिपत्र में कहा, 'अमेरिका को भेजे जाने वाले तैयार परिधान को मार्केट लिंक्ड प्रोडक्ट स्कीम (एमएलएफपीएस) के तहत सालाना मदद वाली सूची में शामिल नहीं किया जा रहा है। अमेरिका अभी भी पूरी तरह खतरे से बाहर नहीं है इसलिए निर्यात को प्रतिस्पर्धी बनाए रखने के लिए 2 फीसदी छूट दिए जाने की जरूरत है।कपास उत्पादन के मामले में विश्व में भारत का दूसरा स्थान है और अपने घरेलू मांग से कहीं ज्यादा यहां कपास का उत्पादन होता है। इसके बावजूद पिछले साल भारत में कपास के दाम बढ़ गए थे। इसके लिए कपास के असमान निर्यात को जिम्मेदार माना गया और हालत यह हो गई कि घरेलू टेक्सटाइल उद्योग के लिए कपास मिलना मुश्किल हो गया। ऐसा अनुमान है कि 2009-10 के दौरान भारत में 2.9 करोड़ गांठ कपास का उत्पादन हुआ था। (BS Hindi)
25 सितंबर 2010
उत्पादक राज्यों में सेब सस्ता जबकि दिल्ली में महंगा
हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर में अत्यधिक बारिश का असर है कि वहां ट्रकों की किल्लत से सेब सस्ता होने से उत्पादकों को नुकसान हो रहा है जबकि दिल्ली और दूसरी खपत मंडियों में सप्लाई कम होने से सेब के दाम बढ़ गए हैं। सेब उत्पादकों को प्रयाप्त मात्रा में गाडिय़ां नहीं मिल रही हैं। ज्यादा बारिश होने से सेब की क्वालिटी भी प्रभावित हो रही है। इससे उत्पादकों को तो आर्थिक नुकसान हो ही रहा है, साथ में सप्लाई रुकने से सेब महंगा हो गया है। दिल्ली की आजादपुर फल एवं सब्जी मंडी में पिछले सप्ताह भर में ही सेब की कीमतें करीब 200 रुपये प्रति पेटी (एक पेटी 20 किलो) तक बढ़ चुकी हैं। एग्रीकल्चर प्रोडयूस मार्केटिंग कमेटी (एपीएमसी) के महासचिव राजकुमार भाटिया ने बताया कि जम्मू-कश्मीर में हालाता सामान्य न होने के कारण उत्पादकों को प्रयाप्त मात्रा में ट्रक नहीं मिल पा रहे हैं। जबकि हिमाचल में खराब मौसम के कारण सेब की क्वालिटी प्रभावित हो रही है। इससे उत्पादकों को तो नुकसान हो ही रहा है, साथ ही उपभोक्ताओं को भी ज्यादा दाम चुकाने पड़ रहे हैं। आजादपुर मंडी में पिछले एक सप्ताह में सेब की कीमतों में करीब 200 रुपये प्रति पेटी की तेजी आ चुकी है। शुक्रवार को मंडी में सेब के भाव बढ़कर 600 से 1,200 रुपये प्रति पेटी हो गए। एप्पल ग्रोवर एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रविंदर सिंह चौहान ने बताया कि जम्मू-कश्मीर में सेब पक चुकी है लेकिन घाटी में तनाव का असर सेब की आवाजाही पर पड़ रहा है। इससे सेबों की समय पर तुड़ाई न होने से पकाई ज्यादा हो जाती हैं। जबकि पके हुए सेब जल्दी खराब होते हैं। उधर हिमाचल में लगातार बारिश से सेब का रंग काला पड़ जाता है। इससे उत्पादकों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। कुल्लू फ्रूट मर्चेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रेम चंद शर्मा ने बताया कि चालू सीजन में राज्य में सेब का उत्पादन बढ़कर तीन करोड़ पेटी होने का अनुमान है। लगातार बारिश से सेब की क्वालिटी तो प्रभावित हो ही रही है, साथ में ट्रकों की कमी भी बनी हुई है। इससे पिछले आठ-दस दिनों में उत्पादक केंद्रों पर सेब की कीमतों में करीब 100 से 150 रुपये की गिरावट आकर भाव 400 से 600 रुपये प्रति पेटी रह गए हैं। कश्मीर एप्पल मर्चेंट एसोसिएशन के महासचिव मीठाराम करपलानी ने बताया कि चालू सीजन में जम्मू-कश्मीर में सेब का उत्पादन बढ़कर 10 करोड़ पेटी से ज्यादा होने की संभावना है। उन्होंने बताया कि शुक्रवार को कश्मीर से आजादपुर मंडी में 350 ट्रक सेब की आवक हुई। माहौल सामान्य रहे तो दैनिक आवक बढ़कर 500-600 ट्रकों की हो जाए। घाटी में पिछले तीन महीनों से हिंसा चल रही है।उलटबासीदिल्ली में पिछले सप्ताह भर में ही कीमत 200 रुपये बढ़कर 600-1200 रुपये प्रति पेटी हुईहिमाचल में दस दिनों में भाव 100-150 रुपये गिरकर 400-600 रुपये प्रति पेटी रह गया (Business Bhaskar.....aar as raana)
15 प्रतिशत बढ़ सकती है तांबे की खपत
मुंबई September 24, 2010
इस साल भारत में तांबे की खपत 15 प्रतिशत बढऩे का अनुमान लगाया जा रहा है, जो दशक में सर्वाधिक होगा। इसकी वजह यह है कि बिजली, कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स , औद्योगिक मशीनरी, संयंत्र और निर्माण क्षेत्र में तांबे की मांग बढ़ी है। वहीं 2011 में खपत में बढ़ोतरी का अनुमान है।क्रेडिट रेटिंग एजेंसी आईसीआरए की हाल की रिपोर्ट के मुताबिक देश में तांबे की खपत इस साल के अंत तक बढ़कर 6,50,000 टन हो जाएगी, जबकि पिछले कैलेंडर वर्ष में खपत 5,65,000 टन थी। वर्ष 2011 में तांबे की कुल खपत 7,20,000 टन रहने का अनुमान है। वर्ष 2000 से 2009 के बीच तांबे की खपत में औसतन सालाना 9.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। वहीं 2008 में खपत में 0.1 प्रतिशत की कमी आई थी। खपत की दर में कमी आने की प्राथमिक वजह घरेलू क्षमता और आपूर्ति में कमी, ज्यादा आयात शुल्क रहा। साथ ही टेलीकॉम, और पॉवर इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में निवेश भी कम हुआ। खपत में वृद्धि दर 2007 तक ज्यादा थी। 2008 और 2009 में मंदी आई क्योंकि तांबे की कीमतें बढ़ गईं और साथ ही औद्योगिक उत्पादन निर्माण गतिविधियों में मंदी का भी असर रहा। यहां तक कि 2009 में जब मंदी चरम पर थी तो भारत में तांबेे की खपत में 9.5 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज की गई। बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर खर्च और विनिर्माण क्षेत्र में तेजी की वजह से तांबे की मांग बनी रही। भारत में प्रति व्यक्ति तांबे की वार्षिक खपत 0.47 किलो है, जो चीन में 5.4 किलो प्रति व्यकि खपत से बहुत कम है। वहीं तांबे की प्रति व्यक्ति वैश्विक खपत का औसत 2.7 किलोग्राम है। टेलीकॉम सेक्टर में मांग में स्थिरता आने के बाद इलेक्ट्रिकल सेक्टर तांबे का सबसे बड़ा उपभोक्ता बनकर उभरा है। सरकार द्वारा हाल में उठाए गए कदमों (एसईबी पुनर्गठन, 2003 का इलेक्ट्रिसिटी एक्ट, पारेषण और वितरण बढऩे) से पॉवर सेक्टर में निवेश बढ़ा है। 11वीं पंचवर्षीय योजना (2008-12) में बिजली उत्पादन क्षमता करीब 78,700 मेगावाट होगी। वितरण और पारेषण पर निवेश, विद्युत उत्पादन क्षमता में विस्तार को देखते हुए उम्मीद की जा रही है कि 11वीं योजना के दौरान 2008-12 के बीच कुल 8 लाख टन और 2013—17 के बीच 8.1 लाख टन तांबे की जरूरत होगी। विद्युत चालन क्षमता बहुत ज्यादा होने की वजह से तांबे के तार और केबल का प्रयोग बिजली के पारेषण व वितरण तथा टेलीफोन के सिगनल भेजने में होता है। तांबे की खपत में बढ़ोतरी में प्रमुख भूमिका ऑटोमोटिव सेक्टर की भी है। वाहन और उसके कल पुर्जों के निर्माण के क्षेत्र में इस समय तेज बढ़ोतरी हो रही है। (BS Hindi)
इस साल भारत में तांबे की खपत 15 प्रतिशत बढऩे का अनुमान लगाया जा रहा है, जो दशक में सर्वाधिक होगा। इसकी वजह यह है कि बिजली, कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स , औद्योगिक मशीनरी, संयंत्र और निर्माण क्षेत्र में तांबे की मांग बढ़ी है। वहीं 2011 में खपत में बढ़ोतरी का अनुमान है।क्रेडिट रेटिंग एजेंसी आईसीआरए की हाल की रिपोर्ट के मुताबिक देश में तांबे की खपत इस साल के अंत तक बढ़कर 6,50,000 टन हो जाएगी, जबकि पिछले कैलेंडर वर्ष में खपत 5,65,000 टन थी। वर्ष 2011 में तांबे की कुल खपत 7,20,000 टन रहने का अनुमान है। वर्ष 2000 से 2009 के बीच तांबे की खपत में औसतन सालाना 9.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। वहीं 2008 में खपत में 0.1 प्रतिशत की कमी आई थी। खपत की दर में कमी आने की प्राथमिक वजह घरेलू क्षमता और आपूर्ति में कमी, ज्यादा आयात शुल्क रहा। साथ ही टेलीकॉम, और पॉवर इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में निवेश भी कम हुआ। खपत में वृद्धि दर 2007 तक ज्यादा थी। 2008 और 2009 में मंदी आई क्योंकि तांबे की कीमतें बढ़ गईं और साथ ही औद्योगिक उत्पादन निर्माण गतिविधियों में मंदी का भी असर रहा। यहां तक कि 2009 में जब मंदी चरम पर थी तो भारत में तांबेे की खपत में 9.5 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज की गई। बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर खर्च और विनिर्माण क्षेत्र में तेजी की वजह से तांबे की मांग बनी रही। भारत में प्रति व्यक्ति तांबे की वार्षिक खपत 0.47 किलो है, जो चीन में 5.4 किलो प्रति व्यकि खपत से बहुत कम है। वहीं तांबे की प्रति व्यक्ति वैश्विक खपत का औसत 2.7 किलोग्राम है। टेलीकॉम सेक्टर में मांग में स्थिरता आने के बाद इलेक्ट्रिकल सेक्टर तांबे का सबसे बड़ा उपभोक्ता बनकर उभरा है। सरकार द्वारा हाल में उठाए गए कदमों (एसईबी पुनर्गठन, 2003 का इलेक्ट्रिसिटी एक्ट, पारेषण और वितरण बढऩे) से पॉवर सेक्टर में निवेश बढ़ा है। 11वीं पंचवर्षीय योजना (2008-12) में बिजली उत्पादन क्षमता करीब 78,700 मेगावाट होगी। वितरण और पारेषण पर निवेश, विद्युत उत्पादन क्षमता में विस्तार को देखते हुए उम्मीद की जा रही है कि 11वीं योजना के दौरान 2008-12 के बीच कुल 8 लाख टन और 2013—17 के बीच 8.1 लाख टन तांबे की जरूरत होगी। विद्युत चालन क्षमता बहुत ज्यादा होने की वजह से तांबे के तार और केबल का प्रयोग बिजली के पारेषण व वितरण तथा टेलीफोन के सिगनल भेजने में होता है। तांबे की खपत में बढ़ोतरी में प्रमुख भूमिका ऑटोमोटिव सेक्टर की भी है। वाहन और उसके कल पुर्जों के निर्माण के क्षेत्र में इस समय तेज बढ़ोतरी हो रही है। (BS Hindi)
रिकॉर्ड पैदावार, करेगी महंगाई वार
मुंबई 09 24, 2010
बुनियादी चीजें (फंडामेंटल्स) मजबूत बने रहने की वजह से आगामी महीनों के दौरान वैश्विक स्तर पर खाद्यान्न के भाव ऊंचे बने रहने के आसार हैं, हालांकि इस सीजन में रिकॉर्ड उत्पादन का अनुमान है।ब्राजील और रूस में मौसम आधारित उत्पादन को तगड़ा झटका लगने और दुनिया भर के तमाम देशों में जबरदस्त तरीके से बढ़ती हुई मांग की वजह से खाद्यान्न का वैश्विक बाजार संवेदनशील हो गया है।दरअसल रूस, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया एवं दक्षिण अमेरिका जैसे देशों में प्रतिकूल मॉनसून और भारत, चीन एवं पाकिस्तान में बाढ़ की वजह से फसल की बर्बादी का वास्तविक अंदाजा लगाया जाना फिलहाल बाकी है और इस वजह से अनिश्चितता वाली स्थिति बनी हुई है। यही कारण है कि सट्टा बाजार को बेहतर मौके मिल रहे हैं और वायदा बाजार में खाद्यान्न व्यापारी इसका पूरा फायदा उठा रहे हैं। नतीजतन खाद्यान्न भाव में तेजी शुरू हो गई है। मसलन न्यूयॉर्क में मक्के का भाव 5.2375 डॉलर प्रति बुशल के स्तर पर जाकर 5.0825 डॉलर प्रति बुशल पर बंद हुआ। अन्य कमोडिटी के भाव में भी इसी तरह के रुझान बने हुए हैं। मंगलवार को सीबीओटी सोयाबीन की नवंबर डिलिवरी 5-1/2 सेंट यानी 0.5 फीसदी तेजी के साथ 10.90 डॉलर प्रति बुशल रही। सोयाबीन के भाव में यह तेजी कनाडा में फसल पर पाले का असर, दक्षिणी अमेरिका में सूखे की स्थिति और मक्के के भाव में हालिया वृद्घि की वजह से आई है।उधर राबोबैंक ने इसी महीने की 16 तारीख को जारी अपनी रिपोर्ट में खाद्यान्न के वायदा भाव में आई तेजी के प्रति चिंता जताई है। इसके अलावा अमेरिका में मक्के की अनुमानित उत्पादकता में संशोधन करके 162.5 बुशल प्रति एकड़ कर दिया गया है, जो एक महीना पहले तक 165 बुशल प्रति एकड़ था। इससे भी चिंता बढ़ी है।चीन ने मौजूदा सीजन के दौरान 16.6 करोड़ टन मक्का उत्पादन का अनुमान लगाया है। लेकिन बाढ़ की वजह से वहां के कई हिस्सों में फसल बर्बाद हो चुकी है, इस चलते उत्पादन उम्मीद से कम रहने की आशंका जताई जा रही है।यही नहीं, रूस में भी हालात बहुत अच्छे नहीं हैं। खराब मौसम की वजह से वहां जाड़े में बोई जाने वाली फसलों का रकबा घटने का अंदेशा है। इसके अलावा जिन खेतों में गेहूं नहीं बोई जा सकी थी और उनकी जगह वसंत ऋतु वाली फसलें बोई गई हैं, उनकी उत्पादन दर भी कम रहने की आशंका जताई जा रही है। ये तमाम चीजें आगामी महीनों में गेहूं के बाजार पर जबरदस्त असर डाल सकती हैं।दूसरी ओर ये हालात किसानों के लिए बहुत बुरे नहीं हैं क्योंकि पिछले 12 महीनों के दौरान उन्हें फसलों का बढिय़ा भाव मिला है। अनाज, तिलहन और कपास के भाव फिलहाल काफी ऊंचे स्तर पर हैं। लेकिन बाजार के लिए दूसरी चुनौती है। वर्ष 2011 के दौरान मांग के मुताबिक आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए किसानों को भरोसा दिलाना होगा कि भविष्य में भी उनकी फसलों के लिए उन्हें उम्मीद के मुताबिक भाव मिलेगा, लिहाजा वे फसलों का रकबा अधिक-से-अधिक बढ़ाएं। (BS Hindi)
बुनियादी चीजें (फंडामेंटल्स) मजबूत बने रहने की वजह से आगामी महीनों के दौरान वैश्विक स्तर पर खाद्यान्न के भाव ऊंचे बने रहने के आसार हैं, हालांकि इस सीजन में रिकॉर्ड उत्पादन का अनुमान है।ब्राजील और रूस में मौसम आधारित उत्पादन को तगड़ा झटका लगने और दुनिया भर के तमाम देशों में जबरदस्त तरीके से बढ़ती हुई मांग की वजह से खाद्यान्न का वैश्विक बाजार संवेदनशील हो गया है।दरअसल रूस, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया एवं दक्षिण अमेरिका जैसे देशों में प्रतिकूल मॉनसून और भारत, चीन एवं पाकिस्तान में बाढ़ की वजह से फसल की बर्बादी का वास्तविक अंदाजा लगाया जाना फिलहाल बाकी है और इस वजह से अनिश्चितता वाली स्थिति बनी हुई है। यही कारण है कि सट्टा बाजार को बेहतर मौके मिल रहे हैं और वायदा बाजार में खाद्यान्न व्यापारी इसका पूरा फायदा उठा रहे हैं। नतीजतन खाद्यान्न भाव में तेजी शुरू हो गई है। मसलन न्यूयॉर्क में मक्के का भाव 5.2375 डॉलर प्रति बुशल के स्तर पर जाकर 5.0825 डॉलर प्रति बुशल पर बंद हुआ। अन्य कमोडिटी के भाव में भी इसी तरह के रुझान बने हुए हैं। मंगलवार को सीबीओटी सोयाबीन की नवंबर डिलिवरी 5-1/2 सेंट यानी 0.5 फीसदी तेजी के साथ 10.90 डॉलर प्रति बुशल रही। सोयाबीन के भाव में यह तेजी कनाडा में फसल पर पाले का असर, दक्षिणी अमेरिका में सूखे की स्थिति और मक्के के भाव में हालिया वृद्घि की वजह से आई है।उधर राबोबैंक ने इसी महीने की 16 तारीख को जारी अपनी रिपोर्ट में खाद्यान्न के वायदा भाव में आई तेजी के प्रति चिंता जताई है। इसके अलावा अमेरिका में मक्के की अनुमानित उत्पादकता में संशोधन करके 162.5 बुशल प्रति एकड़ कर दिया गया है, जो एक महीना पहले तक 165 बुशल प्रति एकड़ था। इससे भी चिंता बढ़ी है।चीन ने मौजूदा सीजन के दौरान 16.6 करोड़ टन मक्का उत्पादन का अनुमान लगाया है। लेकिन बाढ़ की वजह से वहां के कई हिस्सों में फसल बर्बाद हो चुकी है, इस चलते उत्पादन उम्मीद से कम रहने की आशंका जताई जा रही है।यही नहीं, रूस में भी हालात बहुत अच्छे नहीं हैं। खराब मौसम की वजह से वहां जाड़े में बोई जाने वाली फसलों का रकबा घटने का अंदेशा है। इसके अलावा जिन खेतों में गेहूं नहीं बोई जा सकी थी और उनकी जगह वसंत ऋतु वाली फसलें बोई गई हैं, उनकी उत्पादन दर भी कम रहने की आशंका जताई जा रही है। ये तमाम चीजें आगामी महीनों में गेहूं के बाजार पर जबरदस्त असर डाल सकती हैं।दूसरी ओर ये हालात किसानों के लिए बहुत बुरे नहीं हैं क्योंकि पिछले 12 महीनों के दौरान उन्हें फसलों का बढिय़ा भाव मिला है। अनाज, तिलहन और कपास के भाव फिलहाल काफी ऊंचे स्तर पर हैं। लेकिन बाजार के लिए दूसरी चुनौती है। वर्ष 2011 के दौरान मांग के मुताबिक आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए किसानों को भरोसा दिलाना होगा कि भविष्य में भी उनकी फसलों के लिए उन्हें उम्मीद के मुताबिक भाव मिलेगा, लिहाजा वे फसलों का रकबा अधिक-से-अधिक बढ़ाएं। (BS Hindi)
24 सितंबर 2010
बढ़ रही है लाल मिर्च की मांग
भारी स्टॉक के बावजूद निर्यातकों की मांग बढऩे से लाल मिर्च की कीमतों में तेजी बनी हुई है। चालू महीने में वायदा बाजार में लाल मिर्च की कीमतें 10.8 फीसदी और हाजिर में करीब 12' बढ़ चुकी है। गुंटूर में लाल मिर्च का स्टॉक 23 फीसदी ज्यादा है तथा नवंबर महीने में मध्य प्रदेश की नई फसल आ जाएगी। इसीलिए मौजूदा कीमतों में 300-400 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी तो और भी आ सकती है लेकिन भारी तेजी की संभावना कम है। मुंबई स्थित अशोक एंड कंपनी के डायरेक्टर अशोक दत्तानी ने बताया कि लाल मिर्च में बंाग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, इंडोनेशिया और मलेशिया की अच्छी मांग बनी हुई है। इस समय आयातकों की ज्यादा मांग तेजा और 334 क्वालिटी की लाल मिर्च में है। जिससे इनकी कीमतों में चालू महीने में ज्यादा तेजी आई है। गुंटूर के थोक व्यापारी विनय बुबना ने बताया कि हाजिर बाजार में चालू महीने में लाल मिर्च की कीमतें 500 रुपये प्रति क्विंटल तक बढ़ चुकी है। बुधवार को मंडी में तेजा क्वालिटी की लाल मिर्च के भाव बढ़कर 6600-6800 रुपये, 334 क्वालिटी की लाल मिर्च के भाव 4600-4700 रुपये, ब्याडगी क्वालिटी के भाव 6200-6500 रुपये, सनम क्वालिटी की लाल मिर्च के भाव 4600-4800 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। इस दौरान फटकी क्वालिटी के भाव बढ़कर 2400-2700 रुपये प्रति क्विंटल बोले गए। भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2010-11 के पहले चार महीनों (अप्रैल से जुलाई) के दौरान लाल मिर्च के निर्यात में 24 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। अप्रैल से जुलाई के दौरान कुल निर्यात 77,750 टन का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 62,800 टन लाल मिर्च का निर्यात हुआ था।गुंटूर चिली मर्चेंटस एसोसिएशन के सदस्य कमलेश जैन ने बताया गुंटूर में लाल मिर्च का 35-37 लाख बोरी (एक बोरी-40 किलो) का बचा हुआ है जो पिछले साल की समान अवधि के 29-30 लाख बोरी से ज्यादा है। नवरात्रों के बाद नई फसल की बुवाई का कार्य शुरू हो जाएगा। लेकिन चालू सीजन में कपास और हल्दी का बुवाई क्षेत्रफल बढ़ा है। इसीलिए लाल मिर्च की बुवाई में कमी आने की आशंका है। लेकिन बकाया स्टॉक ज्यादा होने और मध्य प्रदेश की नई फसल को देखते हुए मौजूदा कीमतों में भारी तेजी की संभावना नहीं है। इंदौर के लाल मिर्च व्यापारी खोजरमल प्रजापति ने बताया कि मध्य प्रदेश में लाल मिर्च की नई फसल की आवक नवंबर महीने में शुरू हो जाएगी तथा दिसंबर में आवक का दबाव बन जाएगा। पिछले साल मध्य प्रदेश में लाल मिर्च का उत्पादन 32.5 लाख बोरी का हुआ था। चालू सीजन में भी उत्पादन अच्छा होने की संभावना है। (Business Bhaskar....aar as raana)
चार लाख टन दालें आयात करेगी पीईसी
घरेलू बाजार में दालों की सप्लाई सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक कंपनी पीईसी लिमिटेड चालू वित्त वर्ष में दालों का आयात बढ़ाएगी। कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि वित्त वर्ष 2009-10 में कपंनी ने 3.11 लाख टन दालों का आयात किया था जबकि चालू वित्त वर्ष में चार लाख टन से ज्यादा आयात करने की योजना है। उन्होंने बताया कि चालू वित्त वर्ष 2010-11 के पहले छह महीनों (अप्रैल से सितंबर) के दौरान कंपनी 2.48 लाख टन दालों के आयात सौदे कर चुकी है जो सार्वजनिक कंपनियों द्वारा अभी तक किए गए कुल आयात सौदों का 66.5 फीसदी है।सार्वजनिक कंपनियों ने अभी तक कुल 4.13 लाख टन दालों के आयात सौदे किए हैं। पीईसी द्वारा अभी तक किए गए कुल आयात सौदों में से 1.56 लाख टन दालें भारतीय बंदरगाहों पर पहुंच चुकी है। उन्होंने बताया कि चालू वित्त वर्ष में कंपनी ने 1.25 लाख टन दलहन सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के लिए राज्यों को वितरित कर दी है। पिछले साल कंपनी ने राज्यों को पीडीएस के लिए 1.96 लाख टन दालों की सप्लाई की थी। पिछले साल कंपनी ने पीली मटर का आयात नहीं किया था जबकि चालू वित्त वर्ष में अभी तक एक लाख टन पीली मटर का आयात किया जा चुकी है। अभी तक हुए आयात सौदों में 60 हजार टन लेमन अरहर, 50 हजार टन मूंग, 24 हजार टन उड़द, 32 हजार टन चना और करीब 14 हजार टन मसूर है। घरेलू बाजार में खरीफ में दालों का उत्पादन बढऩे की संभावना है इसीलिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में दालों की कीमतों में गिरावट आई है। म्यांमार के पास उड़द का दो लाख टन, मूंग का 1.5 लाख टन और लेमन अरहर का 60 हजार टन का स्टॉक बचा है। म्यंमार की लेमन अरहर के मुंबई पहुंच भाव घटकर 790-800 डॉलर, उड़द के भाव घटकर 1,000 डॉलर और मूंग के 950 डॉलर तथा मसूर के भाव घटकर 680 डॉलर प्रति टन रह गए हैं। (Business Bhaskar.....aar as raana)
एमसीएक्स-एसएक्स को शेयर कारोबार की इजाजत नहीं
सेबी का झटका - प्रमोटरों की शेयरहोल्डिंग नियम के मुताबिक नहीं, आवेदन खारिजशेयर बाजार के नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने एमसीएक्स-एसएक्स की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए इस एक्सचेंज को इक्विटी, इक्विटी डेरिवेटिव, ब्याज दर और डेट में ट्रेडिंग की इजाजत देने से इनकार कर दिया है। सेबी ने कहा है कि ऐसा करना न तो बाजार के हित में होगा और न ही जनहित में। इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए एमसीएक्स-एसएक्स ने कहा है कि सेबी का यह फैसला अन्याय और भेदभावपूर्ण है। एक्सचेंज ने कहा है कि वह फैसले का अध्ययन कर रहा है और सभी पहलुओं पर विचार के बाद आगे का कदम उठाएगा। माना जा रहा है कि सेबी के इस फैसले के खिलाफ एक्सचेंज सिक्युरिटीज अपीलेट ट्रिब्यूनल (सैट) जा सकता है।एमसीएक्स स्टॉक एक्सचेंज लिमिटेड (एमसीएक्स-एसएक्स) को अभी सिर्फ करेंसी डेरिवेटिव में ट्रेडिंग की इजाजत है। इसने बाकी श्रेणी में कारोबार शुरू करने के लिए 7 अप्रैल 2010 को आवेदन किया था। इस आवेदन में मझोले और छोटे उपक्रमों (एसएमई) के लिए एक्सचेंज शुरू करने की भी इजाजत मांगी गई थी। आवेदन को खारिज करते हुए सेबी ने कहा, वह इस बात से सहमत नहीं है कि आवेदन को मंजूरी देना ट्रेड और जनहित में होगा। एक्सचेंज को अभी करेंसी डेरिवेटिव के लिए 15 सितंबर 2011 तक मान्यता मिली हुई है। इस मान्यता को विस्तार देते समय सेबी ने प्रमोटर एवं अन्य की शेयरहोल्डिंग के संबंध में नियमों के पालन का निर्देश भी दिया था। 7 अप्रैल को भेजे अपने आवेदन में एक्सचेंज ने कहा था कि उसने सभी नियमों का पालन कर लिया है और अब वह नई सिक्युरिटीज में ट्रेडिंग करवाने के योग्य है।आवेदन पर सेबी की तरफ से कोई जवाब न मिलने पर एक्सचेंज ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की। कोर्ट ने 10 अगस्त को सेबी को 30 सितंबर तक फैसला लेने का निर्देश दिया। कोर्ट ने नियामक को एमसीएक्स-एसएक्स के शेयरधारकों से सभी संबंधित सूचनाएं लेने का भी निर्देश दिया था। कोर्ट ने एक्सचेंज को भी निर्देश दिया था कि वह शेयरहोल्डिंग नियमों पर बोर्ड द्वारा पारित प्रस्ताव से सेबी को अवगत कराए। लेकिन सेबी शेयरहोल्डिंग नियमों के पालन के एक्सचेंज के दावे से सहमत नहीं हुआ और 30 अगस्त 2010 को एक नोटिस भेजकर उससे पूछा कि उसे दूसरे सेगमेंट में ट्रेडिंग करवाने की इजाजत क्यों दी जाए। सेबी ने 6 सितंबर को एमसीएक्स-एसएक्स की सुनवाई की। एक्सचेंज की तरफ से 16 सितंबर को लिखित जवाब भी दिया गया। गुरुवार को जारी सेबी ने अपने 68 पेज के आदेश में कहा है, 'मामला स्टॉक एक्सचेंज के रूप में मान्यता देने का नहीं है, क्योंकि एमसीएक्स-एसएक्स पहले ही एक स्टॉक एक्सचेंज है। बल्कि मामला किसी दूसरे स्टॉक एक्सचेंज की तरह अन्य श्रेणी की सिक्युरिटीज में ट्रेडिंग की इजाजत का है।सेबी के पूर्णकालिक निदेशक के.एम. अब्राहम की तरफ से जारी आदेश में नियामक ने आवेदन रद्द करने के पांच कारण बताए हैं। इन कारणों में एक है- दो प्रमोटरों मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) और फाइनेंशियल टेक्नोलॉजीज इंडिया लिमिटेड (एफटीआईएल) के हाथों में एक्सचेंज का इकोनॉमिक इंटरेस्ट होना। सेबी ने कहा है कि इस मामले में शेयरहोल्डिंग नियमों का पूरी तरह पालन नहीं किया गया है। सेबी ने कहा है कि आवेदक (एमसीएक्स-एसएक्स) और इसके प्रमोटरों का व्यवहार ईमानदारी भरा नहीं है इसलिए उनका आवेदन स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है। सेबी ने तीन शेयरहोल्डरों आईएफसीआई, पीएनबी और आईएलएंडएफएस के साथ प्रमोटरों के बायबैक सौदे पर भी सवाल उठाए हैं और इसे गैर-कानूनी बताया है। नियामक ने कहा है कि एमसीएक्स-एसएक्स के दो प्रमोटर मिलकर काम कर रहे हैं, इसलिए दोनों मिलकर एक्सचेंज में अधिकतम पांच फीसदी इक्विटी रख सकते हैं। इस समय दोनों की पांच-पांच फीसदी इक्विटी है। सेबी ने कहा है, एमसीएक्स-एसएक्स ने बताया था कि दोनों प्रमोटरों का प्रबंधन एक नहीं है, जबकि जांच में यह पाया गया कि दोनों इकाइयां जिग्नेश शाह के नेतृत्व वाली एक ही प्रबंधन के अधीन काम कर रही हैं। नियामक के अनुसार एफटीआईएल की वेबसाइट पर एमसीएक्स को ग्रुप कंपनी और जिग्नेश शाह को ग्रुप सीईओ बताया गया है। सेबी ने कहा है कि जिग्नेश शाह दोनों प्रमोटर कंपनियों एफटीआईएल और एमसीएक्स को चला रहे हैं, यह जानने के लिए ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है। कंपनी एक्ट के तहत यह निष्कर्ष आसानी से निकाला जा सकता है कि दोनों प्रमोटर एक ही मैनेजमेंट के तहत काम कर रहे हैं। गौरतलब है कि एमसीएक्स में एफटीआईएल की 30 फीसदी हिस्सेदारी है। जिग्नेश शाह एफटीआईएल के चेयरमैन हैं और एमसीएक्स में उनका पद वाइस प्रेसिडेंट का है। सेबी ने कहा है कि एमसीएक्स-एसएक्स में सिर्फ एफटीआईएल की हिस्सेदारी ही प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से पांच फीसदी की सीमा से ज्यादा है। दूसरा तथ्य यह है कि दो प्रमोटर मिलकर काम कर रहे हैं। सेबी के अनुसार स्टॉक एक्सचेंज भी एक तरह से नियामक संस्था है इसलिए उसके प्रमोटरों के हाथों में ज्यादा आर्थिक हित नहीं होने चाहिए।सेबी बनाम एमसीएक्स-एसएक्स : घटनाक्रम16 सितंबर 2008 : एमसीएक्स-एसएक्स को सेबी से एक साल के लिए एक्सचेंज चलाने की मंजूरी मिली।18 सितंबर 2008 : सेबी ने स्पष्ट किया कि यह मंजूरी सिर्फ करेंसी डेरिवेटिव के लिए है।15 जनवरी 2009 : एमसीएक्स-एसएक्स ने सेबी के पास रिन्यूअल के लिए आवेदन किया। सेबी ने एक साल का विस्तार दिया।31 अक्टूबर 2009 : एमसीएक्स-एसएक्स बोर्ड ने मालिकाना नियमों के तहत रिस्ट्रक्चरिंग को स्वीकृति दी।21 दिसंबर 2009 : एमसीएक्स-एसएक्स ने रिस्ट्रक्चरिंग पर सेबी को पत्र भेजा।19 मार्च 2010 : बॉम्बे हाईकोर्ट से एमसीएक्स-एसएक्स की कैपिटल रिस्ट्रक्चरिंग को स्वीकृति मिली।7 अप्रैल 2010 : एमसीएक्स-एसएक्स ने सेबी को हाईकोर्ट के फैसले से अवगत कराया। इंटरेस्ट रेट डेरिवेटिव, इक्विटी, फ्यूचर-ऑप्शन, डेट में ट्रेडिंग की अनुमति मांगी। साथ मेंं एक एसएमई एक्सचेंज शुरू करने की भी इजाजत मांगी।4 जून 2010 : एमसीएक्स-एसएक्स ने अपनी मान्यता के रिन्यूअल के लिए सेबी को पत्र लिखा। (सेबी ने इसकी मान्यता सितंबर 2011 तक बढ़ा दी है)16 जुलाई 2010 : कोई जवाब न मिलने की स्थिति में एमसीएक्स-एसएक्स ने सेबी की चुप्पी पर मीडिया कैंपेन शुरू किया। मुंबई हाईकोर्ट में रिट याचिका दाखिल की।10 अगस्त 2010 : हाईकोर्ट ने सेबी को 30 सितंबर तक फैसला लेने का निर्देश दिया।23 सितंबर 2010 : सेबी ने एमसीएक्स-एसएक्स का आवेदन रद्द किया। (Business Bhaskar)
शुगर फ्यूचर्स पर दीवाली के बाद भी रोक संभव
नई दिल्ली : चीनी का वायदा कारोबार शुरू करने का फैसला अक्टूबर के त्योहारों के सीजन के बाद तक टाला जा सकता है। ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि फॉरवर्ड मार्केट्स कमीशन (एफएमसी) चीनी का वायदा कारोबार शुरू करने के कमोडिटी एक्सचेंजों के आवेदन को नवंबर-दिसंबर तक मंजूरी नहीं देगा। इसकी वजह यह आशंका है कि वायदा कारोबार शुरू होने से चीनी की मांग बढ़ने के समय एक्सचेंजों पर इसकी कीमतों में हेराफेरी हो सकती है। चीनी के वायदा कारोबार पर पिछले साल मई में रोक लगा दी गई थी। साल 2009-10 में गन्ने का कम उत्पादन देखते हुए यह फैसला लिया गया था। हालांकि इसके बाद भी चीनी की कीमतों में बढ़ोतरी जारी रही और इस साल जनवरी में चीनी का खुदरा भाव 50 रुपए प्रति किलो के नजदीक तक पहुंच गया था। यह प्रतिबंध 30 सितंबर को समाप्त हो रहा है। एफएमसी के प्रमुख बी सी खटुआ ने कहा था कि वायदा कारोबार शुरू करने की इजाजत उत्पादन के आंकड़ों, आपूर्ति, कीमतों और अन्य बातों को ध्यान में रखकर दी जाएगी। खटुआ ने वायदा कारोबार शुरू करने के लिए अक्टूबर में हरी झंडी देने का संकेत दिया था। चीनी का सीजन गन्ने की पेराई के साथ अक्टूबर में ही शुरू होता है। कारोबारी इस बात पर चिंता जाहिर कर चुके हैं कि चीनी के वायदा कारोबार को मंजूरी देने से इसकी कीमतों में फिर से उछाल आ सकता है। कारोबारियों का कहना है कि दिवाली के दौरान चीनी जैसी जरूरी कमोडिटी की मांग अपने चरम पर होती है, ऐसे में अगर इस दौरान इसके वायदा कॉन्ट्रैक्ट शुरू किए जाते हैं तो यह सीधे तौर पर खुदरा बाजार में चीनी की कीमतों को बढ़ाएगा। इस वर्ष गन्ने की बंपर पैदावार होने की उम्मीद है। इसकी वजह से चीनी के ज्यादा उत्पादन के अनुमान की वजह से बाजार में इसकी कीमतों में पिछले कुछ वक्त में गिरावट आई है। इस वक्त बाजार में चीनी का भाव 30 रुपए के करीब चल रहा है। (ET Hindi)
सेबी ने खारिज किया MCX-SX का आवेदन
मुंबई : बाजार नियामक सेबी ने एमसीएक्स-एसएक्स का वह आवेदन खारिज कर दिया है, जिसमें उसने स्टॉक और डेट ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म शुरू करने की अनुमति मांगी थी। सेबी ने शेयरहोल्डिंग नियमों का पालन न करने, महत्वपूर्ण जानकारी छिपाने, 'आर्थिक हितों' के केंद्रीकरण और निवेशकों के साथ 'अवैध' बायबैक सौदों जैसे कारणों का हवाला देते हुए एमसीएक्स-एसएक्स का यह आवेदन खारिज किया। एक्सचेंज ने सितंबर 2008 में करेंसी डेरिवेटिव कारोबार शुरू किया था और शेयरों, इंटरेस्ट रेट डेरिवेटिव और बॉन्ड में ट्रेडिंग शुरू करने के लिए सेबी से अनुमति मांग रहा था। एक प्रेस रिलीज में एमसीएक्स-एसएक्स ने कहा, 'हम इसे लंबे-चौड़े आदेश का हर पहलू से अध्ययन कर रहे हैं और अपने कानूनी सलाहकारों से मशविरा करने के बाद इस पर उचित कदम उठाएंगे। तब तक, हम अपने करेंसी डेरिवेटिव सेगमेंट पर काम जारी रखेंगे।' इस एक्सचेंज को फाइनेंशियल टेक्नोलॉजीज ग्रुप ने प्रमोट किया है, जिसके पास कमोडिटी स्टाक एक्सचेंज एमसीएक्स का भी मालिकाना हक है। एमसीएक्स-एसएक्स ने इस साल जुलाई में सेबी के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। एक्सचेंज की शिकायत थी कि नियमन संबंधी सभी जरूरतें पूरी करने के बाद भी सेबी उसे शेयर, डेरिवेटिव और बॉन्ड में ट्रेडिंग की इजाजत देने में देरी कर रहा है। अदालत ने सेबी को एमसीएक्स-एसएक्स के आवेदन पर फैसला लेने के लिए 30 सितंबर तक का वक्त दिया था। सार्वजनिक तौर पर एमसीएक्स-एसएक्स और सेबी के बीच चल रही जंग की जड़ में सार्वजनिक हिस्सेदारी बढ़ाने और उसे बनाए रखने के तरीके से जुड़े नियम (एमआईएमपीएस रूल्स) हैं। इस मामले में एक्सचेंज का दावा है कि उसने नियमों का पालन किया है, जबकि सेबी का कहना है कि एक्सचेंज ने नियमों का पालन नहीं किया है। अगस्त के अंत में सेबी के कारण बताओ नोटिस के जवाब में एमसीएक्स-एसएक्स ने कहा था कि एमआईएमपीएस रूल्स का पालन करने के लिए उसने जिस कैपिटल रिडक्शन स्कीम (जिसमें शेयरधारकों को पूंजी लौटाई जाती है) के जरिए प्रमोटरों की हिस्सेदारी घटाई, उसका सुझाव सेबी के ही एक एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर ने दिया था और उसने इसकी जानकारी सेबी चेयरमैन सी बी भावे को भी दी थी। हालांकि सेबी ने एक्सचेंज का यह दावा खारिज कर दिया। सेबी के पूर्णकालिक सदस्य के एम अब्राहम ने अपने आदेश में कहा, 'एमसीएक्स-एसएक्स के मैनेजिंग डायरेक्टर जोसेफ मैसी ने अपने हलफनामे में कहा है कि उन्होंने मौखिक तौर पर सेबी में अधिकारियों को सूचना दी थी। हालांकि, इस बैठक में क्या हुआ, उसका कोई रिकॉर्ड नहीं है। रिकॉर्ड के अभाव में मुझे इस बहस पर और विचार करना जरूरी नहीं लगता।' एमआईएमपीएस नियमों के तहत प्रमोटर सहित कोई भी व्यक्ति किसी स्टॉक एक्सचेंज में अधिकतम 5 फीसदी हिस्सेदारी रख सकता है। हालांकि, कुछ वित्तीय संस्थानों को अधिकतम 15 फीसदी हिस्सेदारी रखने की अनुमति हो सकती है। (BS Hindi)
सब्जि़यों के दाम में बाढ़
नई दिल्ली September 22, 2010
गंगा और यमुना में आई बाढ़ ने पहले से ही महंगाई की मार झेल रहे आम आदमी की मुश्किलों में और भी इजाफा कर दिया है। बाढ़ के कारण सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं। इन दोनों नदियों के किनारे के ज्यादातर सब्जी उत्पादक इलाके जलमग्न हो गए हैं। बाढ़ के कारण हरी सब्जियों के मुख्य उत्पादक हिमाचल प्रदेश में बाढ़ के कारण सब्जियों को काफी नुकसान हुआ है। हिमाचल से सड़क मार्ग खराब होने के कारण दूसरे राज्यों और राज्य के भीतर सब्जियों की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्टï्र, पंजाब और हरियाणा में भी कुछ ऐसा ही हाल है। इस कारण सब्जी मंडी में सब्जियों की आवक कम हो गई है और इनके दाम में काफी इजाफा हुआ है।अखिल भारतीय सब्जी उत्पादक संघ के अध्यक्ष श्रीराम गधावे ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि देश के कई राज्यों में लगातार बारिश और बाढ़ के कारण सब्जियों में रोग लग गया है। इस कारण सब्जी उत्पादन में 50 फीसदी तक की गिरावट आई है। दिल्ली की फल एवं सब्जी मंडी आजादपुर के सब्जी कारोबारी बलबीर सिंह भल्ला ने बताया कि दिल्ली में हरी सब्जियों की आवक यमुना किनारे के इलाकों और हिमाचल से होती है। लेकिन बाढ़ के कारण इन इलाकों में सब्जी की फसल बरबाद हो गई है। मध्य प्रदेश, महाराष्टï्र और राजस्थान से आवक हो रही है लेकिन लगातार बारिश के कारण इन राज्यों में भी सब्जी उत्पादन घटा है। दिल्ली में सब्जियों की आवक 60-70 फीसदी कम हो गई है।हिमाचल प्रदेश के सब्जी उत्पादक रविंदर चौहान बताते हैं कि राज्य में सब्जियों को बाढ़ के कारण काफी नुकसान हुआ है। इसके अलावा दूसरे राज्यों से संपर्क टूटने से भी आपूर्ति पर असर पड़ रहा है। सब्जी उत्पादकों को काफी नुकसान हो रहा है। बाढ़ और लगातार बारिश के कारण मंडी में सब्जियों की आवक घटने से इनके दाम आसमान पर होने की बात से सब्जी कारोबारी सुभाष चुघ भी इत्तेफाक रखते हैं। उन्होंने बताया कि टमाटर को छोड़कर सभी सब्जियों के दाम में काफी इजाफा हुआ है। प्याज कारोबारी पीएम शर्मा ने बताया कि बारिश के कारण मंडी में इसकी आवक 120-130 ट्रक से घटकर 70-80 ट्रक रह गई है। आलू की आवक 110-120 ट्रक से घटकर 80-90 ट्रक रह गई है। मंडी हरी सब्जियों में गोभी, मटर, लौकी, तोरई की आवक महज 30 फीसदी है। (BS Hindi)
गंगा और यमुना में आई बाढ़ ने पहले से ही महंगाई की मार झेल रहे आम आदमी की मुश्किलों में और भी इजाफा कर दिया है। बाढ़ के कारण सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं। इन दोनों नदियों के किनारे के ज्यादातर सब्जी उत्पादक इलाके जलमग्न हो गए हैं। बाढ़ के कारण हरी सब्जियों के मुख्य उत्पादक हिमाचल प्रदेश में बाढ़ के कारण सब्जियों को काफी नुकसान हुआ है। हिमाचल से सड़क मार्ग खराब होने के कारण दूसरे राज्यों और राज्य के भीतर सब्जियों की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्टï्र, पंजाब और हरियाणा में भी कुछ ऐसा ही हाल है। इस कारण सब्जी मंडी में सब्जियों की आवक कम हो गई है और इनके दाम में काफी इजाफा हुआ है।अखिल भारतीय सब्जी उत्पादक संघ के अध्यक्ष श्रीराम गधावे ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि देश के कई राज्यों में लगातार बारिश और बाढ़ के कारण सब्जियों में रोग लग गया है। इस कारण सब्जी उत्पादन में 50 फीसदी तक की गिरावट आई है। दिल्ली की फल एवं सब्जी मंडी आजादपुर के सब्जी कारोबारी बलबीर सिंह भल्ला ने बताया कि दिल्ली में हरी सब्जियों की आवक यमुना किनारे के इलाकों और हिमाचल से होती है। लेकिन बाढ़ के कारण इन इलाकों में सब्जी की फसल बरबाद हो गई है। मध्य प्रदेश, महाराष्टï्र और राजस्थान से आवक हो रही है लेकिन लगातार बारिश के कारण इन राज्यों में भी सब्जी उत्पादन घटा है। दिल्ली में सब्जियों की आवक 60-70 फीसदी कम हो गई है।हिमाचल प्रदेश के सब्जी उत्पादक रविंदर चौहान बताते हैं कि राज्य में सब्जियों को बाढ़ के कारण काफी नुकसान हुआ है। इसके अलावा दूसरे राज्यों से संपर्क टूटने से भी आपूर्ति पर असर पड़ रहा है। सब्जी उत्पादकों को काफी नुकसान हो रहा है। बाढ़ और लगातार बारिश के कारण मंडी में सब्जियों की आवक घटने से इनके दाम आसमान पर होने की बात से सब्जी कारोबारी सुभाष चुघ भी इत्तेफाक रखते हैं। उन्होंने बताया कि टमाटर को छोड़कर सभी सब्जियों के दाम में काफी इजाफा हुआ है। प्याज कारोबारी पीएम शर्मा ने बताया कि बारिश के कारण मंडी में इसकी आवक 120-130 ट्रक से घटकर 70-80 ट्रक रह गई है। आलू की आवक 110-120 ट्रक से घटकर 80-90 ट्रक रह गई है। मंडी हरी सब्जियों में गोभी, मटर, लौकी, तोरई की आवक महज 30 फीसदी है। (BS Hindi)
ठसाठस हैं गोदाम, कहां रखेंगे इतना धान
नई दिल्ली September 23, 2010
केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने हाल ही में उम्मीद जताई थी कि वर्ष 2010-11 के दौरान देश में फसल उत्पादन की स्थिति शानदार रहेगी। लेकिन एक तरफ उत्पादन में जबरदस्त बढ़ोतरी की उम्मीद है और दूसरी तरफ गोदामों की भारी कमी है। मौजूदा गोदाम अनाज से अटे पड़े हैं और सरकार के पास नई फसल के भंडारण की कोई ठोस योजना नहीं है, जबकि सरकारी खरीदारी तो होनी ही है।वर्ष 2010 के दौरान केेंद्रीय पूल में सरकारी स्टॉक के मामले में तकरीबन 120 फीसदी बढ़ोतरी दर्ज की गई और यह 4.77 करोड़ टन के स्तर पर जा पहुंचा। वर्ष 2005 में यह स्टॉक 2.502 करोड़ टन था। सरकार की भंडारण क्षमता फिलहाल तकरीबन 5.69 करोड़ टन है, जिसमें खुली जगह और तमाम राज्यों की एजेंसियों की स्वामित्व वाली भंडारण क्षमता एवं किराए पर ली गई भंडारण सुविधाएं शामिल हैं।कृषि मंत्रालय के शुरुआती अनुमान के मुताबिक वर्ष 2010-11 के दौरान तकरीबन 8.041 करोड़ टन चावल का उत्पादन होगा। यह पिछले साल हुए कुल चावल उत्पादन से 6 फीसदी अधिक है। यदि सरकार इसमें से 20 फीसदी भी खरीदारी करती है, तो भंडारण की तगड़ी किल्लत हो सकती है।वर्ष 2010-11 में रबी सीजन के दौरान सरकारी एजेंसियों ने 2.25 करोड़ टन गेहूं की खरीदारी की थी। यह कुल आवक का तकरीबन 87 फीसदी है। तकरीबन ये तमाम स्टॉक फिलहाल पड़े हैं। अब मॉनसून की विदाई में देरी की वजह से रवि फसलों से बेहतर उत्पादन के आसार बढ़े हैं और यदि सरकार तगड़ी खरीदारी की रणनीति पर कायम रहती है, तो स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाएगी।पिछले 5 वर्षों के भंडारण आंकड़ों पर नजर डालने से पता चलता है कि इस क्षेत्र में उचित योजना और सही दृष्टिïकोण का नितांत अभाव रहा है। यह स्थिति तब है, जब देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए योजनाएं चल रही हैं और पिछले 3-4 वर्षों से सरकार ने खाद्यान्न खरीदारी के मामले में सक्रिया बढ़ाई है।गौरतलब है कि मार्च 2007 से लेकर मार्च 2010 की अवधि में किराए पर ली गई भंडारण सुविधाएं समेत सरकार की कुल भंडारण क्षमता में तकरीबन 10 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इस 10 फीसदी बढ़ोतरी में ज्यादातर योगदान किराए पर ली गई सुविधाओं की है। नए भंडारण सुविधाओं की निर्माण गति काफी धीमी रही है।देश में तीन ऐसी सरकारी एजेंसियां हैं जो बड़े स्तर पर भंडारण क्षमता और गोदामों का निर्माण करती हैं- भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई), केंद्रीय भंडारण निगम (सीडब्ल्यूसी) और राज्य स्तरीय 17 भंडारण निगम। एफसीआई के गोदामों का इस्तेमाल खाद्यान्न भंडारण के लिए किया जाता है, जबकि सीडब्ल्यूसी और एसडब्ल्यूसी के गोदामों में खाद्यान्न एवं अन्य अधिसूचित कमोडिटी रखे जाते हैं।वर्ष 2007-08 से लेकर अब तक सार्वजनिक क्षेत्र की इन तीन एजेंसियों ने 7.7 लाख टन भंडारण क्षमता का निर्माण किया है और सीडब्ल्यूसी ने मौजूदा वित्त वर्ष के दौरान 2 लाख टन अतिरिक्त भंडारण क्षमता निर्माण की योजना बनाई है। एफसीआई फिलहाल नए गोदामों का निर्माण नहीं कर रही है, लेकिन इसने निजी-सार्वजनिक भागीदारी के तहत क्षमता विस्तार के लिए 10 साल की गारंटी स्कीम बनाई है।एफसीआई की उच्च स्तरीय समिति ने हाल ही में लगभग 1.49 करोड़ टन क्षमता वाले गोदामों के निर्माण की योजना को मंजूरी दी है। लेकिन फिलहाल इसके लिए निविदा की शुरुआती प्रक्रिया ही चल रही है। नए गोदामों के निर्माण में कम-से-कम 2-3 वर्ष लगेंगे। पहचान गुप्त रखने की गुजारिश के साथ एक सरकारी अधिकारी ने बताया, 'यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में भंडारण क्षमता बढ़ाने की दिशा में ज्यादा कुछ नहीं किया गया है। पिछले 5 वर्षों के दौरान जो क्षमता विस्तार के आंकड़े आ रहे हैं, वे केवल किराए पर लिए गए गोदामों की वजह हैं। विभिन्न एजेंसियों ने गोदामों का निर्माण नहीं किया है। यह कोई छुपी हुई बात नहीं है। (BS Hindi)
केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने हाल ही में उम्मीद जताई थी कि वर्ष 2010-11 के दौरान देश में फसल उत्पादन की स्थिति शानदार रहेगी। लेकिन एक तरफ उत्पादन में जबरदस्त बढ़ोतरी की उम्मीद है और दूसरी तरफ गोदामों की भारी कमी है। मौजूदा गोदाम अनाज से अटे पड़े हैं और सरकार के पास नई फसल के भंडारण की कोई ठोस योजना नहीं है, जबकि सरकारी खरीदारी तो होनी ही है।वर्ष 2010 के दौरान केेंद्रीय पूल में सरकारी स्टॉक के मामले में तकरीबन 120 फीसदी बढ़ोतरी दर्ज की गई और यह 4.77 करोड़ टन के स्तर पर जा पहुंचा। वर्ष 2005 में यह स्टॉक 2.502 करोड़ टन था। सरकार की भंडारण क्षमता फिलहाल तकरीबन 5.69 करोड़ टन है, जिसमें खुली जगह और तमाम राज्यों की एजेंसियों की स्वामित्व वाली भंडारण क्षमता एवं किराए पर ली गई भंडारण सुविधाएं शामिल हैं।कृषि मंत्रालय के शुरुआती अनुमान के मुताबिक वर्ष 2010-11 के दौरान तकरीबन 8.041 करोड़ टन चावल का उत्पादन होगा। यह पिछले साल हुए कुल चावल उत्पादन से 6 फीसदी अधिक है। यदि सरकार इसमें से 20 फीसदी भी खरीदारी करती है, तो भंडारण की तगड़ी किल्लत हो सकती है।वर्ष 2010-11 में रबी सीजन के दौरान सरकारी एजेंसियों ने 2.25 करोड़ टन गेहूं की खरीदारी की थी। यह कुल आवक का तकरीबन 87 फीसदी है। तकरीबन ये तमाम स्टॉक फिलहाल पड़े हैं। अब मॉनसून की विदाई में देरी की वजह से रवि फसलों से बेहतर उत्पादन के आसार बढ़े हैं और यदि सरकार तगड़ी खरीदारी की रणनीति पर कायम रहती है, तो स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाएगी।पिछले 5 वर्षों के भंडारण आंकड़ों पर नजर डालने से पता चलता है कि इस क्षेत्र में उचित योजना और सही दृष्टिïकोण का नितांत अभाव रहा है। यह स्थिति तब है, जब देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए योजनाएं चल रही हैं और पिछले 3-4 वर्षों से सरकार ने खाद्यान्न खरीदारी के मामले में सक्रिया बढ़ाई है।गौरतलब है कि मार्च 2007 से लेकर मार्च 2010 की अवधि में किराए पर ली गई भंडारण सुविधाएं समेत सरकार की कुल भंडारण क्षमता में तकरीबन 10 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इस 10 फीसदी बढ़ोतरी में ज्यादातर योगदान किराए पर ली गई सुविधाओं की है। नए भंडारण सुविधाओं की निर्माण गति काफी धीमी रही है।देश में तीन ऐसी सरकारी एजेंसियां हैं जो बड़े स्तर पर भंडारण क्षमता और गोदामों का निर्माण करती हैं- भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई), केंद्रीय भंडारण निगम (सीडब्ल्यूसी) और राज्य स्तरीय 17 भंडारण निगम। एफसीआई के गोदामों का इस्तेमाल खाद्यान्न भंडारण के लिए किया जाता है, जबकि सीडब्ल्यूसी और एसडब्ल्यूसी के गोदामों में खाद्यान्न एवं अन्य अधिसूचित कमोडिटी रखे जाते हैं।वर्ष 2007-08 से लेकर अब तक सार्वजनिक क्षेत्र की इन तीन एजेंसियों ने 7.7 लाख टन भंडारण क्षमता का निर्माण किया है और सीडब्ल्यूसी ने मौजूदा वित्त वर्ष के दौरान 2 लाख टन अतिरिक्त भंडारण क्षमता निर्माण की योजना बनाई है। एफसीआई फिलहाल नए गोदामों का निर्माण नहीं कर रही है, लेकिन इसने निजी-सार्वजनिक भागीदारी के तहत क्षमता विस्तार के लिए 10 साल की गारंटी स्कीम बनाई है।एफसीआई की उच्च स्तरीय समिति ने हाल ही में लगभग 1.49 करोड़ टन क्षमता वाले गोदामों के निर्माण की योजना को मंजूरी दी है। लेकिन फिलहाल इसके लिए निविदा की शुरुआती प्रक्रिया ही चल रही है। नए गोदामों के निर्माण में कम-से-कम 2-3 वर्ष लगेंगे। पहचान गुप्त रखने की गुजारिश के साथ एक सरकारी अधिकारी ने बताया, 'यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में भंडारण क्षमता बढ़ाने की दिशा में ज्यादा कुछ नहीं किया गया है। पिछले 5 वर्षों के दौरान जो क्षमता विस्तार के आंकड़े आ रहे हैं, वे केवल किराए पर लिए गए गोदामों की वजह हैं। विभिन्न एजेंसियों ने गोदामों का निर्माण नहीं किया है। यह कोई छुपी हुई बात नहीं है। (BS Hindi)
नए जिंस एक्सचेंजों से बेहतर उत्पाद चाहते हैं ब्रोकर
मुंबई September 21, 2010
देश के अग्रणी कमोडिटी ब्रोकर अभिनव उत्पादों और सेवाओं के अभाव में नए डेरिवेटिव एक्सचेंजों से दूरी बनाए हुए हैं।दो अलग-अलग ब्रोकिंग फर्मों के प्रमुखों ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि उन्होंने नए कमोडिटी एक्सचेंजों से बिल्कुल नए उत्पाद एवं सेवाएं शुरू करने के साथ-साथ कुछ रियायतें देने की मांग की है, ताकि मौजूदा एक्सचेंजों और नए एक्सचेंजों में अंतर किया जा सके। ब्रोकरों का कहना है कि इसके बाद ही वे नए एक्सचेंजों की सदस्यता लेने के बारे में कोई अंतिम निर्णय ले सकेंगे।हालांकि कुछ ब्रोकरों ने नए एक्सचेंजों में खुद को यह सोचकर सूचीबद्घ कराया है कि इनके माध्यम से आने वाले वर्षों के दौरान उन्हें कारोबार के नए तरीके और अभिनव उत्पाद मुहैया होंगे, जिससे भविष्य के कारोबारी मौके भुनाने में मदद मिलेगी। मुंबई की ब्रोकिंग फर्म के एक वरिष्ठï अधिकारी ने कहा, 'नए कमोडिटी एक्सचेंजों की सदस्यता लेना बिल्कुल मुफ्त है। इसके लिए केवल एक फॉर्म भरने की जरूरत होती है और ऐसा करने में हमें कोई हिचकिचाहट नहीं है। लेकिन, गौर करने वाली बात यह है कि नए एक्सचेंजों की सदस्यता लेने वाले कितने ब्रोकरों ने ट्रेडिंग शुरू की है।Ó ऐंजल ब्रोकिंग में कमोडिटीज ऐंड करेंसीज के निदेशक नवीन माथुर का कहना है कि नए एक्सचेंजों के ज्यादातर अनुबंध विनिर्देश पुराने एक्सचेंजों की नकल-मात्र हैं। जाहिर है, नए एक्सचेंजों में कुछ अलग नहीं है। यही वजह है कि हम इनसे दूर ही रहना बेहतर समझ रहे हैं। माथुर ने कहा, 'ग्राहक अपने पैसे की अहमियत चाहते हैं। नए एक्सचेंजों की दहलीज पर जाने से पहले हमें इस कदम का औचित्य साबित करना होगा।Ó एसीई डेरिवेटिव्स ऐंड कमोडिटीज के मुख्य कार्यकारी अधिकारी दिलीप भाटिया ने बताया कि दो ब्रोकरों ने नए एक्सचेंजों से यह स्पष्टï करने की मांग कर रखी है कि इन एक्सचेंजों में ऐसी क्या बात है, जो मौजूदा एक्सचेंजों से अलग है। एसीई 200 अन्य नए सदस्यों के साथ फिलहाल इस बात की पड़ताल करने में लगा है कि नए कमोडिटी एक्सचेंजों में लॉट की साइज क्या है, गोदाम की सुविधा कैसी है और डिलिवरी केंद्रों की हालत कैसी है। इन्हीं चीजों के आधार पर नए एक्सचेंजों और मौजूदा एक्सचेंजों में अंतर किया जा सकता है। भाटिया ने कृषि उत्पाद, बहुमूल्य धातु, ऊर्जा एवं बेस मेटल की ट्रेडिंग इस वर्ष अक्टूबर में किसी भी समय शुरू करने की योजना बनाई है। ट्रेडरों को लगता है कि नए कमोडिटी एक्सचेंजों में अंतर-विनिमय आर्बिट्रेज के अलावा कुछ भी नया नहीं है। मसलन सोने का दिसंबर अनुबंध फिलहाल 19,102 रुपये प्रति 10 ग्राम है। नए एक्सचेंजों में भी सोने का दिसंबर अनुबंध 19,104 रुपये या 19,100 रुपये प्रति 10 ग्राम है। इसका मतलब यह हुआ कि ब्रोकर एक एक्सचेंज से कम भाव पर खरीदारी करके दूसरे एक्सचेंज में थोड़े अधिक भाव पर बिक्री से हल्का मुनाफा काट सकते हैं। माथुर कहते हैं, 'इसके अलावा नए एक्सचेंजों में अन्य तमाम चीजें पुराने एक्सचेंजों के समान ही हैं। (BS Hindi)
देश के अग्रणी कमोडिटी ब्रोकर अभिनव उत्पादों और सेवाओं के अभाव में नए डेरिवेटिव एक्सचेंजों से दूरी बनाए हुए हैं।दो अलग-अलग ब्रोकिंग फर्मों के प्रमुखों ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि उन्होंने नए कमोडिटी एक्सचेंजों से बिल्कुल नए उत्पाद एवं सेवाएं शुरू करने के साथ-साथ कुछ रियायतें देने की मांग की है, ताकि मौजूदा एक्सचेंजों और नए एक्सचेंजों में अंतर किया जा सके। ब्रोकरों का कहना है कि इसके बाद ही वे नए एक्सचेंजों की सदस्यता लेने के बारे में कोई अंतिम निर्णय ले सकेंगे।हालांकि कुछ ब्रोकरों ने नए एक्सचेंजों में खुद को यह सोचकर सूचीबद्घ कराया है कि इनके माध्यम से आने वाले वर्षों के दौरान उन्हें कारोबार के नए तरीके और अभिनव उत्पाद मुहैया होंगे, जिससे भविष्य के कारोबारी मौके भुनाने में मदद मिलेगी। मुंबई की ब्रोकिंग फर्म के एक वरिष्ठï अधिकारी ने कहा, 'नए कमोडिटी एक्सचेंजों की सदस्यता लेना बिल्कुल मुफ्त है। इसके लिए केवल एक फॉर्म भरने की जरूरत होती है और ऐसा करने में हमें कोई हिचकिचाहट नहीं है। लेकिन, गौर करने वाली बात यह है कि नए एक्सचेंजों की सदस्यता लेने वाले कितने ब्रोकरों ने ट्रेडिंग शुरू की है।Ó ऐंजल ब्रोकिंग में कमोडिटीज ऐंड करेंसीज के निदेशक नवीन माथुर का कहना है कि नए एक्सचेंजों के ज्यादातर अनुबंध विनिर्देश पुराने एक्सचेंजों की नकल-मात्र हैं। जाहिर है, नए एक्सचेंजों में कुछ अलग नहीं है। यही वजह है कि हम इनसे दूर ही रहना बेहतर समझ रहे हैं। माथुर ने कहा, 'ग्राहक अपने पैसे की अहमियत चाहते हैं। नए एक्सचेंजों की दहलीज पर जाने से पहले हमें इस कदम का औचित्य साबित करना होगा।Ó एसीई डेरिवेटिव्स ऐंड कमोडिटीज के मुख्य कार्यकारी अधिकारी दिलीप भाटिया ने बताया कि दो ब्रोकरों ने नए एक्सचेंजों से यह स्पष्टï करने की मांग कर रखी है कि इन एक्सचेंजों में ऐसी क्या बात है, जो मौजूदा एक्सचेंजों से अलग है। एसीई 200 अन्य नए सदस्यों के साथ फिलहाल इस बात की पड़ताल करने में लगा है कि नए कमोडिटी एक्सचेंजों में लॉट की साइज क्या है, गोदाम की सुविधा कैसी है और डिलिवरी केंद्रों की हालत कैसी है। इन्हीं चीजों के आधार पर नए एक्सचेंजों और मौजूदा एक्सचेंजों में अंतर किया जा सकता है। भाटिया ने कृषि उत्पाद, बहुमूल्य धातु, ऊर्जा एवं बेस मेटल की ट्रेडिंग इस वर्ष अक्टूबर में किसी भी समय शुरू करने की योजना बनाई है। ट्रेडरों को लगता है कि नए कमोडिटी एक्सचेंजों में अंतर-विनिमय आर्बिट्रेज के अलावा कुछ भी नया नहीं है। मसलन सोने का दिसंबर अनुबंध फिलहाल 19,102 रुपये प्रति 10 ग्राम है। नए एक्सचेंजों में भी सोने का दिसंबर अनुबंध 19,104 रुपये या 19,100 रुपये प्रति 10 ग्राम है। इसका मतलब यह हुआ कि ब्रोकर एक एक्सचेंज से कम भाव पर खरीदारी करके दूसरे एक्सचेंज में थोड़े अधिक भाव पर बिक्री से हल्का मुनाफा काट सकते हैं। माथुर कहते हैं, 'इसके अलावा नए एक्सचेंजों में अन्य तमाम चीजें पुराने एक्सचेंजों के समान ही हैं। (BS Hindi)
एनसीडीईएक्स में बढ़ेगा जेपी कैपिटल का हिस्सा
मुंबई September 19, 2010
बाजार में हिस्सेदारी और कारोबार की मात्रा के हिसाब से देश के दूसरे बड़े जिंस एक्सचेंज, नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) ने नए मुख्य निवेशक की तलाश की है। इसका उद्देश्य आने वाले महीनों में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के दौर में कारोबारी क्षमता का विस्तार है। एक्सचेंज ने अपनी 26 प्रतिशत इक्विटी नई दिल्ली के शेयरधारक जेपी कैपिटल को आवंटित करने का फैसला किया है। सूत्रों ने कहा कि शेयर की कीमतों के बारे में कोई फैसला नहीं हुआ है, लेकिन यह एक्सचेंज की इक्विटी के पिछले सौदे से काफी कम होगी।माना जा रहा है कि इन 26 प्रतिशत नए शेयरों में करीब 3 प्रतिशत शेयर श्री रेणुका शुगर्स को जाएंगे जिससे उसकी हिस्सेदारी करीब 15 प्रतिशत हो जाएगी। माना जा रहा है कि जेपी और श्री रेणुका दोनों की इसमें अहम भूमिका होगी। इस सिलसिले में पूछे जाने पर एनसीडीईएक्स के प्रवक्ता ने कुछ भी कहने से इनकार किया है।हाल ही में श्री रेणुका शुगर्स ने क्रिसिल से 145 रुपये प्रति शेयर की दर से 7 प्रतिशत इक्विटी हासिल की है। एनसीडीईएक्स का चुकता पूंजी आधार 37.5 करोड़ रुपये है और 13 करोड़ रुपये की नई पूंजी (10 रुपये मूल्य के 1.30 करोड़ शेयर) लगाने का फैसला किया है जिससे कि वायदा बाजार आयोग के नियमों के मुताबिक 50 करोड़ रुपये के पूंजी आधार की शर्त पूरी हो सके। ये नए शेयर जेपी कैपिटल को जारी किए जाएंगे, जिसने यूनाइटेड एक्सचेंज आफ इंडिया के नाम से करेंसी एक्सचेंज शुरू करने का फैसला किया है। यह एक्सचेंज सोमवार से काम शुरू कर देगा।नए शेयरों के भाव इस साल की शुरुआत में एक्सचेंज द्वारा जारी राइट इश्यू से कम होंगे। राइट इश्यू के भाव 110 रुपये प्रति शेयर थे। सस्ते शेयरों की एवज में नया निवेशक यह वादा करेगा कि एक्सचेंज के विकास में वह भूमिका निभाएगा। यह इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि एक तरफ इस कारोबार में नए कारोबारी प्रवेश कर रहे हैं, वहीं कैबिनेट के एफसीआर अधिनियम में संशोधन की स्वीकृति देने से कई नई संभावनाएं भी पैदा होंगी। डेरिवेटिव्स कारोबार में जेपी कैपिटल की बड़ी हिस्सेदारी है। बहरहाल, एफएमसी के नियमों के मुताबिक शेयरधारक को उस एक्सचेंज में कारोबार या हेजिंग की अनुमति नहीं है, जिस एक्सचेंज में उसकी हिस्सेदारी है। माना जा रहा है कि जेपी यह मानदंड पूरा करने के लिए अपनी सदस्यता छोड़ेगी। सूत्रों ने कहा कि सिर्फ जेपी ही एक्सचेंज में एंकर निवेशक की भूमिका नहीं निभाएगी, बल्कि इस श्रृंखला में श्री रेणुका भी है, जिसकी पहले से ही 12 प्रतिशत हिस्सेदारी है।एनसीडीईएक्स की शुरुआत आईसीआईसीआई बैंक की अगुआई में कुछ संस्थागत निवेशकों के एक समूह ने 2003 में की थी। बाद में आईसीआईसीआई एक्सचेंज से बाहर हो गया और उसके बाद एनएसई ने एक्सचेंज में प्रमुख भूमिका हासिल कर ली। एनएसई की एक्सचेंज में 15 प्रतिशत हिस्सेदारी है। बहरहाल एफएमसी ने नए नियमों में किसी स्टॉक एक्सचेंज की जिंस एक्सचेंज में हिस्सेदारी 5 प्रतिशत तक सीमित कर दी है। इसके चलते उम्मीद की जा रही है कि एनएसई अपनी हिस्सेदारी घटाएगा। बहरहाल इसके बारे में ज्यादा सूचना उपलब्ध नहीं है। (BS hindi)
बाजार में हिस्सेदारी और कारोबार की मात्रा के हिसाब से देश के दूसरे बड़े जिंस एक्सचेंज, नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) ने नए मुख्य निवेशक की तलाश की है। इसका उद्देश्य आने वाले महीनों में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के दौर में कारोबारी क्षमता का विस्तार है। एक्सचेंज ने अपनी 26 प्रतिशत इक्विटी नई दिल्ली के शेयरधारक जेपी कैपिटल को आवंटित करने का फैसला किया है। सूत्रों ने कहा कि शेयर की कीमतों के बारे में कोई फैसला नहीं हुआ है, लेकिन यह एक्सचेंज की इक्विटी के पिछले सौदे से काफी कम होगी।माना जा रहा है कि इन 26 प्रतिशत नए शेयरों में करीब 3 प्रतिशत शेयर श्री रेणुका शुगर्स को जाएंगे जिससे उसकी हिस्सेदारी करीब 15 प्रतिशत हो जाएगी। माना जा रहा है कि जेपी और श्री रेणुका दोनों की इसमें अहम भूमिका होगी। इस सिलसिले में पूछे जाने पर एनसीडीईएक्स के प्रवक्ता ने कुछ भी कहने से इनकार किया है।हाल ही में श्री रेणुका शुगर्स ने क्रिसिल से 145 रुपये प्रति शेयर की दर से 7 प्रतिशत इक्विटी हासिल की है। एनसीडीईएक्स का चुकता पूंजी आधार 37.5 करोड़ रुपये है और 13 करोड़ रुपये की नई पूंजी (10 रुपये मूल्य के 1.30 करोड़ शेयर) लगाने का फैसला किया है जिससे कि वायदा बाजार आयोग के नियमों के मुताबिक 50 करोड़ रुपये के पूंजी आधार की शर्त पूरी हो सके। ये नए शेयर जेपी कैपिटल को जारी किए जाएंगे, जिसने यूनाइटेड एक्सचेंज आफ इंडिया के नाम से करेंसी एक्सचेंज शुरू करने का फैसला किया है। यह एक्सचेंज सोमवार से काम शुरू कर देगा।नए शेयरों के भाव इस साल की शुरुआत में एक्सचेंज द्वारा जारी राइट इश्यू से कम होंगे। राइट इश्यू के भाव 110 रुपये प्रति शेयर थे। सस्ते शेयरों की एवज में नया निवेशक यह वादा करेगा कि एक्सचेंज के विकास में वह भूमिका निभाएगा। यह इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि एक तरफ इस कारोबार में नए कारोबारी प्रवेश कर रहे हैं, वहीं कैबिनेट के एफसीआर अधिनियम में संशोधन की स्वीकृति देने से कई नई संभावनाएं भी पैदा होंगी। डेरिवेटिव्स कारोबार में जेपी कैपिटल की बड़ी हिस्सेदारी है। बहरहाल, एफएमसी के नियमों के मुताबिक शेयरधारक को उस एक्सचेंज में कारोबार या हेजिंग की अनुमति नहीं है, जिस एक्सचेंज में उसकी हिस्सेदारी है। माना जा रहा है कि जेपी यह मानदंड पूरा करने के लिए अपनी सदस्यता छोड़ेगी। सूत्रों ने कहा कि सिर्फ जेपी ही एक्सचेंज में एंकर निवेशक की भूमिका नहीं निभाएगी, बल्कि इस श्रृंखला में श्री रेणुका भी है, जिसकी पहले से ही 12 प्रतिशत हिस्सेदारी है।एनसीडीईएक्स की शुरुआत आईसीआईसीआई बैंक की अगुआई में कुछ संस्थागत निवेशकों के एक समूह ने 2003 में की थी। बाद में आईसीआईसीआई एक्सचेंज से बाहर हो गया और उसके बाद एनएसई ने एक्सचेंज में प्रमुख भूमिका हासिल कर ली। एनएसई की एक्सचेंज में 15 प्रतिशत हिस्सेदारी है। बहरहाल एफएमसी ने नए नियमों में किसी स्टॉक एक्सचेंज की जिंस एक्सचेंज में हिस्सेदारी 5 प्रतिशत तक सीमित कर दी है। इसके चलते उम्मीद की जा रही है कि एनएसई अपनी हिस्सेदारी घटाएगा। बहरहाल इसके बारे में ज्यादा सूचना उपलब्ध नहीं है। (BS hindi)
23 सितंबर 2010
गरीबों के लिए सस्ते हुए गेहूं, चावल
मुंबई September 22, 2010
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा खाद्यान्न के मुफ्त वितरण का आदेश दिए जाने के बाद खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने गरीबी रेखा के नीचे रह रहे परिवारों को 2 एवं 3 रुपये प्रति किलो गेहूं और चावल दिए जाने का फैसला किया है। राज्य सरकारों को लिखे गए एक पत्र में केंद्र सरकार ने राज्यों से अनुरोध किया है कि वे राज्य की सार्वजनिक वितरण प्रणाली को पूरी तरह चुस्त-दुरुस्त करें, जिससे कि 17.10 लाख टन चावल और 7.90 लाख टन गेहूं का वितरण हो सके। यह काम मार्च 2011 से पहले पूरा किया जाना है। एक अधिकारी ने कहा, 'गेहूं का उठान पहले ही शुरू हो चुका है। यह वह खाद्यान्न नहीं है, जो गोदामों में खराब हो गया। वितरित किए जाने वाले अनाज का प्रयोगशाला में परीक्षण हो चुका है और यह मनुष्यों को खाने के लिए पूरी तरह सुरक्षित है।Ó वर्तमान में देश भर में 6.52 करोड़ परिवारों को गरीबी रेखा के नीचे पंजीकृत किया गया है, जिन्हें हर साल 35 किलो खाद्यान्न दिया जाता है। बीपीएल परिवारों को चावल की बिक्री 5.65 रुपये प्रति किलो और गेहूं की बिक्री 4.15 रुपये प्रति किलो के भाव की जाती है। उम्मीद की जा रही है कि सरकार सर्वोच्च न्यायालय को ब्योरा देगी, जिसमें गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे लोगों को खाद्यान्न दिए जाने की व्यवस्था की गई है। इस सप्ताह न्यायालय में लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) के बारे में18 राज्यों के सुझावों पर सुनवाई होगी। खाद्यान्न के भंडारण के लिए भी मंत्रालय ने कोशिशें तेज कर दी हैं। एक नई योजना शुरू की गई है, जिसमें सरकारी गोदामों के साथ निजी क्षेत्र के गोदामों को किराए पर लेने की व्यवस्था है। इस योजना के तहत मंत्रालय ने कहा है कि वह निजी क्षेत्र के गोदाम मालिकों से 10 साल के लिए गोदाम किराए पर लेगा। हाल ही में न्यायालय को दिए गए जवाब में मंत्रालय ने कहा था कि खाद्यान्न के मुफ्त वितरण से सरकार पर सब्सिडी का बोझ बढ़ेगा और सब्सिडी उम्मीद से बहुत ज्यादा हो जाएगी। इसमें कहा गया कि बीपीएल परिवारों को खाद्यान्न पहले ही बाजार भाव से बहुत कम दाम पर दिया जा रहा है। भंडारण क्षमता के मुताबिक खरीदारी करने के बारे में न्यायालय द्वारा उठाए गए सवाल पर मंत्रालय ने कहा कि पीडीएस प्रणाली के तहत खाद्यान्न की बिक्री के लिए गेहूं, चावल, चीनी की खरीदारी होती है, लेकिन इसमेंं यह भी लक्ष्य होता है कि किसानों को उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। अगर सरकार खरीदारी रोक देती है तो किसान इन फसलों की जगह नकदी फसल की ओर आकर्षित हो जाएंगे। लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) के तहत पहले ही टास्क फोर्स का गठन हो चुका है और पीडीएस प्रणाली के तहत प्रति यूनिट के आधार पर खाद्यान्न के वितरण की नीति बनाई गई है। एक अधिकारी ने स्पष्ट किया, 'इस समय हम कमोबेश परिवार के आधार पर प्रति परिवार प्रति माह खाद्यान्न का वितरण पीडीएस के तहत करते हैं। इसमें परिवार के सदस्यों का ध्यान नहीं रखा जाता है। अब नई व्यवस्था में यूनिट के आधार पर खाद्यान्न वितरण करने की व्यवस्था की गई है और यूनिटों की संख्या परिवार के सदस्यों के आधार पर तय की जाएगी। आदर्श रूप से प्रति यूनिट प्रति माह 5-6 किलो खाद्यान्न का वितरण सब्सिडी दरों पर किया जाएगा। (BS Hindi)
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा खाद्यान्न के मुफ्त वितरण का आदेश दिए जाने के बाद खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने गरीबी रेखा के नीचे रह रहे परिवारों को 2 एवं 3 रुपये प्रति किलो गेहूं और चावल दिए जाने का फैसला किया है। राज्य सरकारों को लिखे गए एक पत्र में केंद्र सरकार ने राज्यों से अनुरोध किया है कि वे राज्य की सार्वजनिक वितरण प्रणाली को पूरी तरह चुस्त-दुरुस्त करें, जिससे कि 17.10 लाख टन चावल और 7.90 लाख टन गेहूं का वितरण हो सके। यह काम मार्च 2011 से पहले पूरा किया जाना है। एक अधिकारी ने कहा, 'गेहूं का उठान पहले ही शुरू हो चुका है। यह वह खाद्यान्न नहीं है, जो गोदामों में खराब हो गया। वितरित किए जाने वाले अनाज का प्रयोगशाला में परीक्षण हो चुका है और यह मनुष्यों को खाने के लिए पूरी तरह सुरक्षित है।Ó वर्तमान में देश भर में 6.52 करोड़ परिवारों को गरीबी रेखा के नीचे पंजीकृत किया गया है, जिन्हें हर साल 35 किलो खाद्यान्न दिया जाता है। बीपीएल परिवारों को चावल की बिक्री 5.65 रुपये प्रति किलो और गेहूं की बिक्री 4.15 रुपये प्रति किलो के भाव की जाती है। उम्मीद की जा रही है कि सरकार सर्वोच्च न्यायालय को ब्योरा देगी, जिसमें गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे लोगों को खाद्यान्न दिए जाने की व्यवस्था की गई है। इस सप्ताह न्यायालय में लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) के बारे में18 राज्यों के सुझावों पर सुनवाई होगी। खाद्यान्न के भंडारण के लिए भी मंत्रालय ने कोशिशें तेज कर दी हैं। एक नई योजना शुरू की गई है, जिसमें सरकारी गोदामों के साथ निजी क्षेत्र के गोदामों को किराए पर लेने की व्यवस्था है। इस योजना के तहत मंत्रालय ने कहा है कि वह निजी क्षेत्र के गोदाम मालिकों से 10 साल के लिए गोदाम किराए पर लेगा। हाल ही में न्यायालय को दिए गए जवाब में मंत्रालय ने कहा था कि खाद्यान्न के मुफ्त वितरण से सरकार पर सब्सिडी का बोझ बढ़ेगा और सब्सिडी उम्मीद से बहुत ज्यादा हो जाएगी। इसमें कहा गया कि बीपीएल परिवारों को खाद्यान्न पहले ही बाजार भाव से बहुत कम दाम पर दिया जा रहा है। भंडारण क्षमता के मुताबिक खरीदारी करने के बारे में न्यायालय द्वारा उठाए गए सवाल पर मंत्रालय ने कहा कि पीडीएस प्रणाली के तहत खाद्यान्न की बिक्री के लिए गेहूं, चावल, चीनी की खरीदारी होती है, लेकिन इसमेंं यह भी लक्ष्य होता है कि किसानों को उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। अगर सरकार खरीदारी रोक देती है तो किसान इन फसलों की जगह नकदी फसल की ओर आकर्षित हो जाएंगे। लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) के तहत पहले ही टास्क फोर्स का गठन हो चुका है और पीडीएस प्रणाली के तहत प्रति यूनिट के आधार पर खाद्यान्न के वितरण की नीति बनाई गई है। एक अधिकारी ने स्पष्ट किया, 'इस समय हम कमोबेश परिवार के आधार पर प्रति परिवार प्रति माह खाद्यान्न का वितरण पीडीएस के तहत करते हैं। इसमें परिवार के सदस्यों का ध्यान नहीं रखा जाता है। अब नई व्यवस्था में यूनिट के आधार पर खाद्यान्न वितरण करने की व्यवस्था की गई है और यूनिटों की संख्या परिवार के सदस्यों के आधार पर तय की जाएगी। आदर्श रूप से प्रति यूनिट प्रति माह 5-6 किलो खाद्यान्न का वितरण सब्सिडी दरों पर किया जाएगा। (BS Hindi)
तीन माह में जिंसों के दाम 50 प्रतिशत तक बढ़े
मुंबई September 22, 2010
पिछले 3 महीनों के दौरान कमोडिटी की कीमतों में 30 से 50 फीसदी तक की वृद्घि दर्ज की जा चुकी है, जिसमें कृषि कमोडिटी का सबसे ज्यादा योगदान रहा है। कमोडिटी की कीमतों में इस तेजी की प्रमुख वजह वैश्विक अर्थव्यवस्था में मजबूत नकदी प्रवाह और इस वर्ष जून की शुरुआत से निवेशकों में जोखिम उठाने की हिम्मत बढऩा रहा है। यह स्थिति इसलिए बनी क्योंकि अब बाजार में यह आम धारणा है कि यूरोप का संकट तकरीबन खत्म हो चुका है।लेकिन, अब एक दूसरी वजह भी सामने आ रही है, जिसके चलते कमोडिटी के भाव में आगे और तेजी आ सकती है। बार्कलेज कैपिटल के कमोडिटी अनुसंधान विश्लेषक केविन नॉरिश के मुताबिक, 'चीन के आयात संबंधी आंकड़ों से पता चलता है कि नीति प्रेरित मंदी का दौर अब अंतिम चरण में है। चीन में कमोडिटी की मांग में सुधार आने लगा है और पिछले कुछ महीनों के दौरान मांग तेजी से बढ़ी है, जो अगस्त के कमोडिटी कारोबार आंकड़ों में साफ झलक रही है। इन आंकड़ों के मुताबिक चीन में बेस मेटल एवं तेल आयात बढ़ा है और मक्के के आयात में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है।Óअगस्त के जो आंकड़े आए हैं, उनसे एक रोचक तथ्य सामने आया है। दरअसल, चीन में कमोडिटी का आयात बढ़ा और निर्यात घटा है। पिछले 6 महीनों के दौरान वहां सस्ता ऋण सुनिश्चित करने के उपाय अपनाने और स्थानीय उद्योगों की मदद के लिए निर्यात रियायतें कम करने की वजह से निर्यात में कमी आई है। लेकिन, हालात में वास्तविक सुधार पिछले 2 महीनों के दौरान आए हैं। चीन में कमोडिटी की मांग बढऩे और बेहतर नकदी प्रवाह की बदौलत जून से लेकर अब तक कमोडिटी की कीमतों में 30से 50 फीसदी तक की बढ़ोतरी दर्ज की जा चुकी है। इस वर्ष जून में कमोडिटी के भाव न्यूनतम स्तर पर थे।हो सकता है कि गेहूं, मक्का, चीनी और कपास जैसे कृषि कमोडिटी के भाव में वृद्घि फसल उत्पादकता में कमी और इनका रकबा घटने की वजह से भी हुई हो, लेकिन मांग में बढ़ोतरी महत्वपूर्ण कारक रही है।मक्के की उत्पादकता और रकबे में सबसे ज्यादा कमी आई है। यही वजह है कि अमेरिका और चीन में इसका आयात बढऩे के कयास लगाए जा रहे हैं। बार्कलेज के विश्लेषक का कहना है, 'मक्के के आयात में जबरदस्त वृद्घि हुई है। अगस्त में इसका आयात बढ़कर 4,32,000 टन के स्तर पर जा पहुंचा, जो कुल मिलाकर पिछले महीने हुए आयात के दोगुने से भी अधिक है।Óचीन में मक्का आयात की जो रणनीति अपनाई गई है, उसका लक्ष्य पिछले 15 वर्षों का रिकॉर्ड तोडऩा है। इस वजह से यह सवाल उठने लगा है कि क्या चीन बढ़ती घरेलू मांग पूरी करने के लिए संरचनात्मक रूप से मक्के के मुख्य आयातक देश में तब्दील होने की राह पर चल रहा है? यह सवाल उठने की एक ठोस वजह भी है। इस वर्ष जून की शुरुआत में एस ऐंड पी जीएससीआई कृषि सूचकांक 43 फीसदी चढ़ गया। (BS Hindi)
पिछले 3 महीनों के दौरान कमोडिटी की कीमतों में 30 से 50 फीसदी तक की वृद्घि दर्ज की जा चुकी है, जिसमें कृषि कमोडिटी का सबसे ज्यादा योगदान रहा है। कमोडिटी की कीमतों में इस तेजी की प्रमुख वजह वैश्विक अर्थव्यवस्था में मजबूत नकदी प्रवाह और इस वर्ष जून की शुरुआत से निवेशकों में जोखिम उठाने की हिम्मत बढऩा रहा है। यह स्थिति इसलिए बनी क्योंकि अब बाजार में यह आम धारणा है कि यूरोप का संकट तकरीबन खत्म हो चुका है।लेकिन, अब एक दूसरी वजह भी सामने आ रही है, जिसके चलते कमोडिटी के भाव में आगे और तेजी आ सकती है। बार्कलेज कैपिटल के कमोडिटी अनुसंधान विश्लेषक केविन नॉरिश के मुताबिक, 'चीन के आयात संबंधी आंकड़ों से पता चलता है कि नीति प्रेरित मंदी का दौर अब अंतिम चरण में है। चीन में कमोडिटी की मांग में सुधार आने लगा है और पिछले कुछ महीनों के दौरान मांग तेजी से बढ़ी है, जो अगस्त के कमोडिटी कारोबार आंकड़ों में साफ झलक रही है। इन आंकड़ों के मुताबिक चीन में बेस मेटल एवं तेल आयात बढ़ा है और मक्के के आयात में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है।Óअगस्त के जो आंकड़े आए हैं, उनसे एक रोचक तथ्य सामने आया है। दरअसल, चीन में कमोडिटी का आयात बढ़ा और निर्यात घटा है। पिछले 6 महीनों के दौरान वहां सस्ता ऋण सुनिश्चित करने के उपाय अपनाने और स्थानीय उद्योगों की मदद के लिए निर्यात रियायतें कम करने की वजह से निर्यात में कमी आई है। लेकिन, हालात में वास्तविक सुधार पिछले 2 महीनों के दौरान आए हैं। चीन में कमोडिटी की मांग बढऩे और बेहतर नकदी प्रवाह की बदौलत जून से लेकर अब तक कमोडिटी की कीमतों में 30से 50 फीसदी तक की बढ़ोतरी दर्ज की जा चुकी है। इस वर्ष जून में कमोडिटी के भाव न्यूनतम स्तर पर थे।हो सकता है कि गेहूं, मक्का, चीनी और कपास जैसे कृषि कमोडिटी के भाव में वृद्घि फसल उत्पादकता में कमी और इनका रकबा घटने की वजह से भी हुई हो, लेकिन मांग में बढ़ोतरी महत्वपूर्ण कारक रही है।मक्के की उत्पादकता और रकबे में सबसे ज्यादा कमी आई है। यही वजह है कि अमेरिका और चीन में इसका आयात बढऩे के कयास लगाए जा रहे हैं। बार्कलेज के विश्लेषक का कहना है, 'मक्के के आयात में जबरदस्त वृद्घि हुई है। अगस्त में इसका आयात बढ़कर 4,32,000 टन के स्तर पर जा पहुंचा, जो कुल मिलाकर पिछले महीने हुए आयात के दोगुने से भी अधिक है।Óचीन में मक्का आयात की जो रणनीति अपनाई गई है, उसका लक्ष्य पिछले 15 वर्षों का रिकॉर्ड तोडऩा है। इस वजह से यह सवाल उठने लगा है कि क्या चीन बढ़ती घरेलू मांग पूरी करने के लिए संरचनात्मक रूप से मक्के के मुख्य आयातक देश में तब्दील होने की राह पर चल रहा है? यह सवाल उठने की एक ठोस वजह भी है। इस वर्ष जून की शुरुआत में एस ऐंड पी जीएससीआई कृषि सूचकांक 43 फीसदी चढ़ गया। (BS Hindi)
बारिश ने उड़ाई कपड़ा निर्माताओं की नींद
चंडीगढ़ September 22, 2010
इस मॉनसून में कपास उत्पादन पट्टी में होने वाली भारी बारिश ने देश के टेक्सटाइल हाउसों की नींद उड़ा दी है। पंजाब, हरियाणा, महाराष्टï्र, सौराष्टï्र के तटीय इलाके और आंध्र प्रदेश में पिछले कुछ दिनों से हो रही लगातार बारिश ने कपास मिलों को मुश्किल में डाल दिया है। इन मिलों के पास कपास का बेहद कम भंडार बचा हुआ है और मिलों को ऐसे में परिचालन जारी रखने की चिंता सता रही है।पाकिस्तान में बाढ़ और चीन में कपास के माकूल मौसम नहीं होने के कारण अंतरराष्टï्रीय बाजार में कपास के दाम 1 डॉलर प्रति पौंड हो गए हैं। जाहिर है अंतरराष्टï्रीय बाजार में इसकी बढ़ती कीमतों का असर घरेलू बाजार पर भी पडऩे के आसार हैं। हालांकि घरेलू कपड़ा मिलों ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। देश में कपास का भाव फिलहाल 4,000 रुपये प्रति मन चल रहा है, यह पिछले साल के भाव के मुकाबले 20 फीसदी अधिक है।दक्षिण भारतीय कपास संगठन के मानद सचिव आर एन विश्वनाथन का कहना है, 'मॉनसून अब तक जारी रहने के कारण इस बार कपास उत्पादन अनुमानित 325 लाख बेल से कम रह सकता है।Ó उन्होंने कहा कि मॉनसून समाप्ति के बाद फसल में कीड़ा लगने की भी आशंका है। टेक्सटाइल की दिग्गज कंपनी वर्धमान के लिए अपने संयंत्रों की न्यूनतम क्षमता का इस्तेमाल करना भी मुश्किल हो रहा है। कंपनी के एक अधिकारी ने कहा, 'कपास के फूल पूरी तरह खिल चुके हैं, ऐसे में नमी कपास की फसल के लिए खराब साबित हो सकती है (BS Hindi)
इस मॉनसून में कपास उत्पादन पट्टी में होने वाली भारी बारिश ने देश के टेक्सटाइल हाउसों की नींद उड़ा दी है। पंजाब, हरियाणा, महाराष्टï्र, सौराष्टï्र के तटीय इलाके और आंध्र प्रदेश में पिछले कुछ दिनों से हो रही लगातार बारिश ने कपास मिलों को मुश्किल में डाल दिया है। इन मिलों के पास कपास का बेहद कम भंडार बचा हुआ है और मिलों को ऐसे में परिचालन जारी रखने की चिंता सता रही है।पाकिस्तान में बाढ़ और चीन में कपास के माकूल मौसम नहीं होने के कारण अंतरराष्टï्रीय बाजार में कपास के दाम 1 डॉलर प्रति पौंड हो गए हैं। जाहिर है अंतरराष्टï्रीय बाजार में इसकी बढ़ती कीमतों का असर घरेलू बाजार पर भी पडऩे के आसार हैं। हालांकि घरेलू कपड़ा मिलों ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। देश में कपास का भाव फिलहाल 4,000 रुपये प्रति मन चल रहा है, यह पिछले साल के भाव के मुकाबले 20 फीसदी अधिक है।दक्षिण भारतीय कपास संगठन के मानद सचिव आर एन विश्वनाथन का कहना है, 'मॉनसून अब तक जारी रहने के कारण इस बार कपास उत्पादन अनुमानित 325 लाख बेल से कम रह सकता है।Ó उन्होंने कहा कि मॉनसून समाप्ति के बाद फसल में कीड़ा लगने की भी आशंका है। टेक्सटाइल की दिग्गज कंपनी वर्धमान के लिए अपने संयंत्रों की न्यूनतम क्षमता का इस्तेमाल करना भी मुश्किल हो रहा है। कंपनी के एक अधिकारी ने कहा, 'कपास के फूल पूरी तरह खिल चुके हैं, ऐसे में नमी कपास की फसल के लिए खराब साबित हो सकती है (BS Hindi)
सब्जि़यों के दाम में बाढ़
नई दिल्ली September 22, 2010
गंगा और यमुना में आई बाढ़ ने पहले से ही महंगाई की मार झेल रहे आम आदमी की मुश्किलों में और भी इजाफा कर दिया है। बाढ़ के कारण सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं। इन दोनों नदियों के किनारे के ज्यादातर सब्जी उत्पादक इलाके जलमग्न हो गए हैं। बाढ़ के कारण हरी सब्जियों के मुख्य उत्पादक हिमाचल प्रदेश में बाढ़ के कारण सब्जियों को काफी नुकसान हुआ है। हिमाचल से सड़क मार्ग खराब होने के कारण दूसरे राज्यों और राज्य के भीतर सब्जियों की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्टï्र, पंजाब और हरियाणा में भी कुछ ऐसा ही हाल है। इस कारण सब्जी मंडी में सब्जियों की आवक कम हो गई है और इनके दाम में काफी इजाफा हुआ है।अखिल भारतीय सब्जी उत्पादक संघ के अध्यक्ष श्रीराम गधावे ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि देश के कई राज्यों में लगातार बारिश और बाढ़ के कारण सब्जियों में रोग लग गया है। इस कारण सब्जी उत्पादन में 50 फीसदी तक की गिरावट आई है। दिल्ली की फल एवं सब्जी मंडी आजादपुर के सब्जी कारोबारी बलबीर सिंह भल्ला ने बताया कि दिल्ली में हरी सब्जियों की आवक यमुना किनारे के इलाकों और हिमाचल से होती है। लेकिन बाढ़ के कारण इन इलाकों में सब्जी की फसल बरबाद हो गई है। मध्य प्रदेश, महाराष्टï्र और राजस्थान से आवक हो रही है लेकिन लगातार बारिश के कारण इन राज्यों में भी सब्जी उत्पादन घटा है। दिल्ली में सब्जियों की आवक 60-70 फीसदी कम हो गई है।हिमाचल प्रदेश के सब्जी उत्पादक रविंदर चौहान बताते हैं कि राज्य में सब्जियों को बाढ़ के कारण काफी नुकसान हुआ है। इसके अलावा दूसरे राज्यों से संपर्क टूटने से भी आपूर्ति पर असर पड़ रहा है। सब्जी उत्पादकों को काफी नुकसान हो रहा है। बाढ़ और लगातार बारिश के कारण मंडी में सब्जियों की आवक घटने से इनके दाम आसमान पर होने की बात से सब्जी कारोबारी सुभाष चुघ भी इत्तेफाक रखते हैं। उन्होंने बताया कि टमाटर को छोड़कर सभी सब्जियों के दाम में काफी इजाफा हुआ है। प्याज कारोबारी पीएम शर्मा ने बताया कि बारिश के कारण मंडी में इसकी आवक 120-130 ट्रक से घटकर 70-80 ट्रक रह गई है। आलू की आवक 110-120 ट्रक से घटकर 80-90 ट्रक रह गई है। मंडी हरी सब्जियों में गोभी, मटर, लौकी, तोरई की आवक महज 30 फीसदी है। (BS Hindi)
गंगा और यमुना में आई बाढ़ ने पहले से ही महंगाई की मार झेल रहे आम आदमी की मुश्किलों में और भी इजाफा कर दिया है। बाढ़ के कारण सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं। इन दोनों नदियों के किनारे के ज्यादातर सब्जी उत्पादक इलाके जलमग्न हो गए हैं। बाढ़ के कारण हरी सब्जियों के मुख्य उत्पादक हिमाचल प्रदेश में बाढ़ के कारण सब्जियों को काफी नुकसान हुआ है। हिमाचल से सड़क मार्ग खराब होने के कारण दूसरे राज्यों और राज्य के भीतर सब्जियों की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्टï्र, पंजाब और हरियाणा में भी कुछ ऐसा ही हाल है। इस कारण सब्जी मंडी में सब्जियों की आवक कम हो गई है और इनके दाम में काफी इजाफा हुआ है।अखिल भारतीय सब्जी उत्पादक संघ के अध्यक्ष श्रीराम गधावे ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि देश के कई राज्यों में लगातार बारिश और बाढ़ के कारण सब्जियों में रोग लग गया है। इस कारण सब्जी उत्पादन में 50 फीसदी तक की गिरावट आई है। दिल्ली की फल एवं सब्जी मंडी आजादपुर के सब्जी कारोबारी बलबीर सिंह भल्ला ने बताया कि दिल्ली में हरी सब्जियों की आवक यमुना किनारे के इलाकों और हिमाचल से होती है। लेकिन बाढ़ के कारण इन इलाकों में सब्जी की फसल बरबाद हो गई है। मध्य प्रदेश, महाराष्टï्र और राजस्थान से आवक हो रही है लेकिन लगातार बारिश के कारण इन राज्यों में भी सब्जी उत्पादन घटा है। दिल्ली में सब्जियों की आवक 60-70 फीसदी कम हो गई है।हिमाचल प्रदेश के सब्जी उत्पादक रविंदर चौहान बताते हैं कि राज्य में सब्जियों को बाढ़ के कारण काफी नुकसान हुआ है। इसके अलावा दूसरे राज्यों से संपर्क टूटने से भी आपूर्ति पर असर पड़ रहा है। सब्जी उत्पादकों को काफी नुकसान हो रहा है। बाढ़ और लगातार बारिश के कारण मंडी में सब्जियों की आवक घटने से इनके दाम आसमान पर होने की बात से सब्जी कारोबारी सुभाष चुघ भी इत्तेफाक रखते हैं। उन्होंने बताया कि टमाटर को छोड़कर सभी सब्जियों के दाम में काफी इजाफा हुआ है। प्याज कारोबारी पीएम शर्मा ने बताया कि बारिश के कारण मंडी में इसकी आवक 120-130 ट्रक से घटकर 70-80 ट्रक रह गई है। आलू की आवक 110-120 ट्रक से घटकर 80-90 ट्रक रह गई है। मंडी हरी सब्जियों में गोभी, मटर, लौकी, तोरई की आवक महज 30 फीसदी है। (BS Hindi)
22 सितंबर 2010
यमुना के रौद्र रूप से चिंतित हुए लोग
समालखा. कई दिनों तक सामान्य धारा में बहने के बाद हथनीकुंड बैराज से छोड़े गए पानी के कारण यमुना फिर से उफान पर है। बढ़ते जल स्तर के कारण जहां यमुना किनारे बसे गांव के लोग भयभीत हंै वहीं प्रशासन ने भी यमुना पर पहरा बढ़ा दिया है। तेज बहाव के कारण बिलासपुर के पास तटबंध में आई दरार को देखते हुए नहरी विभाग के अधिकारी वहां से पानी के बहाव को दूर रखने के लिए मिट्टी के कट्टों से बांध बनाने में जुटे हैं। पानी बढ़ने पर राक्सेडा के पास बसे गांव घोड़ीवाला में पानी एक बार फिर घुस गया है। इसके अलावा खोजकीपुर, बिलासपुर, राक्सेडा, सिम्भलगढ़, कारकौली के किसानों की हजारों एकड़ फसलें एक बार फिर बाढ़ के पानी में समा गई हैं। सोमवार को पानी के लगातार बढ़ने के कारण हालात का जायजा लेने के लिए नहरी विभाग के एसई केके गुप्ता ने भी अधिकारियों के साथ बिलासपुर सहित कई गांवों का दौरा किया। यमुना में लगातार बढ़ते पानी के कारण पहले बाढ़ का मंजर देख चुके लोगों के माथे पर फिर से चिंता की लकीरें खिंच गई हैं। प्रशासन ने भी यमुना पर पहरा बढ़ा दिया है। यमुना में जल स्तर बढ़ते देख तमाशबीनों को भी यमुना से दूर ही रोकने के लिए पुलिस को तैनात किया गया है। बिलासपुर में बढ़ा दबावयमुना का जल स्तर बढ़ने के कारण बिलासपुर के पास नीचे ही नीचे कटाव शुरू हो गया है, जिसके चलते तटबंध में दरार आई गई है। इसे गंभीरता से लेते हुए नहरी विभाग के अधिकारियों ने बिलासपुर में डेरा डाल दिया है। तटबंध से पानी के बहाव को दूर रखने के लिए पत्थर की बनाई गई ठोकरों के ऊपर व साथ में मिट्टी के कट्टे लगाने का काम जोरो पर चल रहा है, ताकि बांध को नुकसान से बचाया जा सके। इससे पहले भी यमुना में पानी के बहाव ने बिलासपुर में ही पत्थरों की बनाई गई ठोकरों को पूरी तरह से धवस्त कर दिया था। नहरी विभाग के एक्सईन अनिल रामदेव, एसडीओ जोगीराम कर्मचारियों के साथ बांध पर तैनात है। यमुना में बढ़ते पानी के कारण सोनीपत जिले के उपायुक्त अजीत बालाजी जोशी, गन्नौर के एसडीएम, तहसीलदार ज्ञानी राम ने बिलासपुर का दौरा किया। बीडीपीओ हुकमचंद ने सिम्भलगढ़ में बांध का निरीक्षण किया। बांध को ही काटने में लगे बिलासपुर तटबंध में नीचे से हो रहे कटाव ने संबंधित विभाग की नींद उड़ा दी है। आनन फानन में अधिकारी एक जगह से तटबंध को टूटने से बचाने के लिए दूसरी जगह उसी तटबंध से ही मिट्टी उठाकर कट्टो में भरते हुए मिट्टी के कट्टों का बांध बांधने में लगे हैं। लेकिन उनको इतना होश नहीं है कि जहां से वे मिट्टी उठा रहे हैं वहीं से कटाव हो सकता है। ग्रामीणों का कहना है कि अधिकारी साल भर तो आकर देखते तक नहीं, जब लोग बर्बाद हो जाते हैं तब भागे चले आते हैं। हथवाला वासी अशोक कुमार, कुलदीप, रवींद्र, ओमप्रकाश त्यागी, रमेश, रामकुमार, आट्टा वासी विकास, सुनील का कहना है कि जब से यमुना पर क्षेत्र में बांध बना है उस दिन से लेकर आज तक बांध की मरम्मत तक नहीं की गई है। जबकि प्रदेश व केंद्र सरकार की तरफ से हर साल इनकी मरम्मत के लिए लाखों रुपए पास किए जाते हंै। बाढ़ ने फिर बढ़ाई किसानों की परेशानीसनौली. दस दिन तक सरकार और प्रशासन द्वारा गांव पत्थरगढ़ में टूटे यमुना के तटबंध को भरने के दावों पर उस मसय पानी फिर गया, जब सोमवार को यमुना का जल स्तर एक बार फिर खतरे के निशान से ऊपर पहुंच गया और पानी इस तटबंध में डाली गई मिट्टी को धता बताते हुए दोबारा हजारों एकड़ फसल में पहुंच गया। इससे एक बार फिर किसान दुविधा में फंस गए हैं। उन्हें डर सता रहा है कि सरकार और प्रशासन सिर्फ उन्हें ढांढस बंधाने के सिवाय कुछ नहीं कर रही। इसका जीता जागता प्रमाण दस दिनों में भी टूटे तटबंध को बंद न किया जाना है। सीएम और डीसी भले टीम को तटबंध जल्द बंद करने की आदेश देकर गए हों, लेकिन आदेश पर कितना अमल किया गया इसका प्रमाण सबके सामने है।फिर टूटा कई गांवों से संपर्कटूटे तटबंध से बाढ़ का पानी साथ लगते गांव पत्थरगढ़, नवादा-आर, नवादा-पार, गढी जलालापुर, गढ़ी बैसक, राणा माजरा, सनौली खुर्द, सनौली कलां, झांबा, धनसौली, कुराड़, नगला-आर, नगला-पार आदि गांवों के खेतों में पानी पूरी तरह से भर गया है। ऐसे में सड़कों पर बाढ़ का पानी भरने से दर्जनों गांवों का रास्ता बंद होने से अन्य गांवों का उनसे संपर्क टूट गया है। गांव नवाद-आर से गढ़ी जलालपुर जाने वाली सड़क पर पांच फुट से ज्यादा तक पानी का बहाव चल रहा है। यही नहीं सनौली खुर्द स्थित गोशाला भी एक बार फिर बाढ़ की चपेट में आ गई है।डीसी ने की जेसीबी की सवारी उपायुक्त जेएस अहलावत सोमवार को यमुना क्षेत्र में पत्थरगढ़ गांव के पास कटे तटबंध से आए पानी का जायजा लेने के लिए जेसीबी का सहारा लेना पड़ा। उपायुक्त अपने कार्यालय से सनौली तक कार से, तामशाबाद तक जीप से और उसके बाद जेसीबी में सवार होकर तटबंध तक गए। उपायुक्त के साथ अतिरिक्त उपायुक्त एके बिश्नोई और उपमंडलाधीश समालखा एमआर ढुल भी थे। उपायुक्त के अनुसार यमुना के साथ लगते गांव में चौकसी बढ़ा दी गई है। पुलिस और सिंचाई विभाग के अधिकारी व कर्मचारी पैट्रोल ड्यूटी पर रहेंगे। कल हथनीकुंड बैराज से करीब 7 लाख क्यूसिक पानी छोड़ा गया है, जिसके आज सोमवार रात तक पानीपत में पहुंचने की उम्मीद थी। हालांकि पानी तेजी से आगे की ओर निकल रहा है। उनका कहना है कि पानी से फसलों में कितना नुकसान हुआ है इसका आंकलन पानी उतरने के बाद ही हो पाएगा। (Dainik Bhaskar)
पत्ता लपेट ने मचाई तबाही
भास्कर न्यूज & इस्माइलाबादप्रकृति का कहर इस वर्ष किसानों की फसल पर बुरी तरह से बरस रहा है। पहले फसल दो बार बाढ़ की चपेट में आ चुकी है। अब रही सही कसर बासमती धान पत्ता लपेट की बीमारी पूरी कर रही है। धगडौली के किसान धर्मसिंह, नैसी के सोनू शर्मा, जंधेड़ी के शीशपाल पाली, प्रेमचंद, राजेश कुमार, महिंद्र सिंह थांदड़ा, धर्मवीर दानीपुर, जलवेहड़ा के अनवर खान आदि ने बताया कि पहले तो बाढ़ के कारण उनकी फसलें नष्ट हो चुकी थी। दोबारा खर्च करके बासमती धान लगा दी थी। अब यह फसल पत्ता लपेट व तेले जैसी बीमारी की चपेट में आ चुकी है। अधिक पानी से धान की जड़ नरम हो जाने से तेले जैसी बीमारीने धान की फसल को अपनी पकड़ में ले लिया है। तेला नामक यह कीड़ा फसल की जड़ों का रस चूसकर उसे कमजोर कर देता है। जिससे पौधा सूखकर नीचे गिर जाता है। कीटनाशक दवा का भी लाभ नहीं हो रहा है। किसानों ने कृषि अधिकारियों से मांग की कि वे क्षेत्र का दौरा कर बीमारी का पता लगा उपचार बताएं। किसानों में इस बीमारी को लेकर फसल खराब होने की आशंका से निराश हैं । (Dainik Bhaskar)
हर तरफ बाढ़ का पानी
यमुना से गांवों को खतरा टल नहीं रहा है। 38 दिन में 5वीं बार यमुना ने उफान लिया है। इससे एक बार फिर करीब दस गांवों को लोगों की मुसीबत बढ़ गई है। खेत व सड़क सब पानी में एक से दिख रहे हैैं। रविवार को करीब 7.44 लाख क्यूसिक पानी हथनी कुंड से छोड़े जाने के बाद हर कोई डरा हुआ है।यमुना नदी के साथ लगते गांव हंसू माजरा, चौगावां, चंद्राव, गढ़पुर टापू, नबीवाद, जपती छप्परा, सैय्यद छप्परा, कमालपुर, गढ़रियान, नागल माडल व डबकौली खुर्द आदि गांव बरसात के पानी के घिरे हैैं। इन गांवों के निचले इलाके में बनी कालोनियों में पानी भर गया है। सड़के पानी बह जाने व डूबी होने से यातायात व्यवस्था ठप है। भूखे मवेशी मरने की कगार पर हैैं। इन गांवों के लोगों व पशुओं की बीमारी की मार झेलनी पड़ रही है। वैसे कुछ स्वास्थ्य टीमें बनाई गई हैं पर बाढ़ और मरीजों की जरूरत के हिसाब से पर्याप्त नहीं हैैं। हालात ये हैैं कि मौके पर किश्तियां तो पड़ी हैैं पर इन्हें चलाने वाला कोई नहीं है।वैसे प्रशासन पूरे इंतजाम होने का दावा कर रहा है। एसडीएम दिनेश यादव का दावा है कि पूरे क्षेत्र को चार जोनों में बांटकर तहसीलदार, कानूनगो, बीडीपीओ, एससीपीओ, एसएचओ की ड्यूटी लगाई गई है। आपात स्थित से निपटने के लिए करीब दस हजार मिïट्टी के कट्टे, जेसीबी व नहरी विभाग को तैयार रहने को कहा गया है।मेहनत पर फिर गया पानीयमुनी नदी के किनारे बसे गांवों के किसान कृपाल सिंह, राजकुमार, अमरीक सिंह, मोहनलाल, हरभजन सिंह, राजपाल, बलविंद्र, संजीव, राजपाल, संजय कुमार, गुरदयाल, दर्शन सिंह आद ने आरोप है कि प्रशान उनकी जान-माल की रक्षा करने के स्थान पर तटबंध की सुरक्षा में लगा है। उनकी कोई सुध नहीं ली जा रही। आदमी व पशु सब बेहाल हैैं। बार-बार की बाढ़ में उनकी फसल चौपट हो गई है। उनकी सारी मेहनत बर्बाद हो गई है। डीसी ने लिया बाढ़ प्रबंधन का जायजा : करनाल & डीसी नीलम प्रदीप कासनी ने जिला के बाढग़्रस्त गांवों का दौरा किया और लोगों को आश्वस्त किया कि घबराने की कोई जरूरत नहीं है। प्रशासन हर मुश्किल में आपके साथ है। डीसी ने मुस्तफाबाद, नबीयाबाद सहित अन्य गांवों का दौरा कर बाढ़ प्रबंधन का जायजा लिया। उन्होंने अधिकारियों को कुछ जरूरी दिशा-निर्देश भी दिए। उन्होंने ग्रामीणों से बातचीत की और कहा कि वे संयम रखें। (Dainik Bhaskar)
मुजफ्फरनगर में बाढ़, खाने के लाले प़डे
मुजफ्फरनगर। मुजफ्फरनगर में गंगा और सलोनी नदियों ने खादर इलाके के कई गांवों में बाढ़ ला दी है। हालात इतने बिग़ड चुके हैं कि लोगों को खाने के लाले प़ड गए हैं। खेती चौपट हो गई है और भारी संख्या में लोग गांवों से पलायन कर रहे हैं लेकिन प्रशासन का कोई अधिकारी उनकी सुध लेने नहीं पहुंचा है। यहां से गुजरने वालीं गंगा और सलोनी नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं।
नदियों के आस-पास के कई गांव पानी में डूब चुके हैं। इन गांवों से बाहर का जीवन कट गया है। ग्रामीण किसी तरह से पलायन कर रहे हैं। ग्रामीणों को खाने के भी लाले हैं। खाना पकाने के लिए ईंधन तक नहीं है। ग्रामीणों का कहना है कि उनकी सुध लेने के लिए अभी तक प्रशासन से भी कोई नहीं आया है। वहीं, गांव मोल्हुवाला के जंगल में मकान बनाकर रहने वाला एक परिवार चार दिनों से पानी कम होने का इंतजार कर रहा है। ग्रामीण कर्ण सिंह का कहना है कि उत्तराखंड से गंगा नहर में छो़डे गए पानी और भारी बारिश से शुक्रताल और खादर के कई गांवों में बाढ़ आ गई है। ग्रामीण सरकार से राहत की उम्मीद लगाए बैठे हैं, लेकिन अभी तक सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिली है। बाढ़ से हजारों बीघा फसल नष्ट हो चुकी है। पशुओं के लिए चारा नहीं है। उत्तराखंड से आ रहे पानी ने तबाही ला दी है। गंगा और सलोनी नदियों के आस-पास कई किलोमीटर तक का जंगल जलमग्न हो गया है। गंगा से सलोनी नदी में पानी का आना बरकरार है। जीवन की बुनियादी जरूरतें पूरी न होने पर ग्रामीण अब गांव से पलायन करने लगे हैं। कुछ ग्रामीण ट्यूब की मदद से बाढ़ के पानी से निकलने की कोशिश करते दिखाई दिए, तो कुछ लोग भैंसा बुग्गी से परिवार को सुरक्षित स्थानों की ओर जाते दिखे। इतना ही नहीं गंगा और सलोनी नदी के बीच हजारों बीघा धान, गन्ने व चारे की फसलें जलमग्न हो चुकी हैं। तीर्थ नगरी शुक्रताल से कुछ दूरी पर बसे इन्चावाला, जोगेवाला, सतपाल का ठिया, सरदार का फार्म, और नया गांव पूरी तरह से जलमग्न हो गए हैं। (khas khabar)
नदियों के आस-पास के कई गांव पानी में डूब चुके हैं। इन गांवों से बाहर का जीवन कट गया है। ग्रामीण किसी तरह से पलायन कर रहे हैं। ग्रामीणों को खाने के भी लाले हैं। खाना पकाने के लिए ईंधन तक नहीं है। ग्रामीणों का कहना है कि उनकी सुध लेने के लिए अभी तक प्रशासन से भी कोई नहीं आया है। वहीं, गांव मोल्हुवाला के जंगल में मकान बनाकर रहने वाला एक परिवार चार दिनों से पानी कम होने का इंतजार कर रहा है। ग्रामीण कर्ण सिंह का कहना है कि उत्तराखंड से गंगा नहर में छो़डे गए पानी और भारी बारिश से शुक्रताल और खादर के कई गांवों में बाढ़ आ गई है। ग्रामीण सरकार से राहत की उम्मीद लगाए बैठे हैं, लेकिन अभी तक सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिली है। बाढ़ से हजारों बीघा फसल नष्ट हो चुकी है। पशुओं के लिए चारा नहीं है। उत्तराखंड से आ रहे पानी ने तबाही ला दी है। गंगा और सलोनी नदियों के आस-पास कई किलोमीटर तक का जंगल जलमग्न हो गया है। गंगा से सलोनी नदी में पानी का आना बरकरार है। जीवन की बुनियादी जरूरतें पूरी न होने पर ग्रामीण अब गांव से पलायन करने लगे हैं। कुछ ग्रामीण ट्यूब की मदद से बाढ़ के पानी से निकलने की कोशिश करते दिखाई दिए, तो कुछ लोग भैंसा बुग्गी से परिवार को सुरक्षित स्थानों की ओर जाते दिखे। इतना ही नहीं गंगा और सलोनी नदी के बीच हजारों बीघा धान, गन्ने व चारे की फसलें जलमग्न हो चुकी हैं। तीर्थ नगरी शुक्रताल से कुछ दूरी पर बसे इन्चावाला, जोगेवाला, सतपाल का ठिया, सरदार का फार्म, और नया गांव पूरी तरह से जलमग्न हो गए हैं। (khas khabar)
बाढ़ डाइन खा गई हजारों एकड़ धान
बरेली, जागरण संवाददाता : कुछ दिनों पहले तक जहां खेतों में धान की फसल लहलहाकर आने वाली खुशहाली का संदेश दे रही थी, वहां आज चारों तरफ फैला पानी ही पानी तबाही की कहानी कह रहा है। रामगंगा की तबाही, जिसने घर-बार ही नहीं, फसल को भी नष्ट कर किसानों को बर्बादी के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। करीब पांच दिनों से हो रही बारिश ने धान की आधी फसल को नष्ट कर दिया है। खेतों में पानी भरने से गन्ने की फसल भी चौपट हुई है। किसान के पास अपनी बदहाली पर आंसू बहाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है।
बता दें कि मीरगंज, बहेड़ी, नवाबगंज और फरीदपुर की नदियों किनारे के धान और गन्ने की अच्छी पैदावार होती है। वक्त पर मानसून आया तो किसानों के भी चेहरे खिल उठे। कम लागत में अधिक पैदावार किसानों के लिये खुशहाली लाती, लेकिन सब-कुछ चौपट हो गया। यहां धान की फसल लगभग तैयार होने को थी। धान में बाल आ गई थी और अक्टूबर में इसकी कटाई होती लेकिन उससे पहले दैवीय आपदा ने सब तहस नहस कर दिया। रामगंगा और उसकी सहायक नदियां देवरनिया, किला, किच्छा, शंखा, भाखड़ा, पीलाखार, बहगुल आदि नदियों ने ऐसा तांडव मचाया कि कि हजारों एकड़ धान डूब गया है। कटरी के जिन क्षेत्रों में धान की अधिक पैदावार थी, वहां पौधे से एक मीटर ऊपर तक पानी भर गया है। संयुक्त कृषि निदेशक ऋषिराज सिंह ने बताया कि इन इलाकों में करीब तीस हजार हेक्टेयर धान की फसल है। चूंकि बाढ़ ने विकराल रूप धारण कर लिया है इसलिए आसार है कि 40 फीसदी धान की पैदावार को नुकसान हो सकता है। वैसे इसका आंकलन तो राजस्व विभाग करेगा और फिर किसानों को मुआवजा भी देगा। इन्हीं तहसीलों में गन्ने की फसल अच्छी होती है। गन्ने की फसलों में पानी भरने से उसमें बीमारियां लगने लगी हैं। अब गन्ने की बढ़वार कम होगी और उसमें रस कम निकलेगा, इससे किसानों को भारी नुकसान होगा। कटरी में लगी गन्ने की फसल नदी की तेज धारा में उखड़कर बह चुकी होगी। (Dainik Jagarn)
बता दें कि मीरगंज, बहेड़ी, नवाबगंज और फरीदपुर की नदियों किनारे के धान और गन्ने की अच्छी पैदावार होती है। वक्त पर मानसून आया तो किसानों के भी चेहरे खिल उठे। कम लागत में अधिक पैदावार किसानों के लिये खुशहाली लाती, लेकिन सब-कुछ चौपट हो गया। यहां धान की फसल लगभग तैयार होने को थी। धान में बाल आ गई थी और अक्टूबर में इसकी कटाई होती लेकिन उससे पहले दैवीय आपदा ने सब तहस नहस कर दिया। रामगंगा और उसकी सहायक नदियां देवरनिया, किला, किच्छा, शंखा, भाखड़ा, पीलाखार, बहगुल आदि नदियों ने ऐसा तांडव मचाया कि कि हजारों एकड़ धान डूब गया है। कटरी के जिन क्षेत्रों में धान की अधिक पैदावार थी, वहां पौधे से एक मीटर ऊपर तक पानी भर गया है। संयुक्त कृषि निदेशक ऋषिराज सिंह ने बताया कि इन इलाकों में करीब तीस हजार हेक्टेयर धान की फसल है। चूंकि बाढ़ ने विकराल रूप धारण कर लिया है इसलिए आसार है कि 40 फीसदी धान की पैदावार को नुकसान हो सकता है। वैसे इसका आंकलन तो राजस्व विभाग करेगा और फिर किसानों को मुआवजा भी देगा। इन्हीं तहसीलों में गन्ने की फसल अच्छी होती है। गन्ने की फसलों में पानी भरने से उसमें बीमारियां लगने लगी हैं। अब गन्ने की बढ़वार कम होगी और उसमें रस कम निकलेगा, इससे किसानों को भारी नुकसान होगा। कटरी में लगी गन्ने की फसल नदी की तेज धारा में उखड़कर बह चुकी होगी। (Dainik Jagarn)
यहां करें निवेश मिलेगा मोटा मुनाफा
मुनाफे का गुरचांदी बनें रहेंएमसीएक्स पर 2 अगस्त को चांदी 29,197 रुपये थी जो 17 सितंबर को 32,478 रुपये प्रति किलो हो गई। दाम अभी और बढऩे के आसार-निकिल बनें रहेंनिकिल का भाव डेढ़ महीने में 1011 रुपये प्रति किलो से बढ़कर 1082 रुपये प्रति किलो, उद्योगों की मांग से आगे और बढ़ोतरी के आसार-ग्वार करें बिकवालीबंपर उत्पादन का अनुमान। दो महीने में दाम 16.2प्रतिशत घटे। एनसीडीईएक्स पर 2 अगस्त को भाव 2,395 रुपये प्रति क्विंटल, 17 सितंबर को घटकर 2006 रुपये -कॉपर मुनाफावसूली करेंकॉपर का भाव वायदा में 2 अगस्त को 344 रुपये था जो बढ़कर 359 रुपये प्रति किलो हो गया। भाव घटने पर 335-338 रुपये के स्तर पर खरीद करना बेहतरगेहूं बढ़ेंगे दामखुले बाजार में स्टॉक कम तथा सरकार का बिक्री भाव ज्यादा, दाम बढ़ सकते हैं। वायदा में दो महीने में 3.8प्रतिशत गिरावट से भाव 1,226 रुपये प्रति क्विंटल। इन भावों पर खरीद करना बेहतर -सोना बनें रहेंएमसीएक्स पर सोना 2 अगस्त के 17,816 रुपये से बढ़कर 17 सितंबर को 19,214 रुपये प्रति दस ग्राम हो गया। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसके 1300 डॉलर से ऊपर जाने की संभावनामेंथा बनें रहें-पैदावार पिछले साल की तुलना में कम, निर्यात मांग बढ़ रही है। एमसीएक्स पर 2 अगस्त को दाम 739 रुपये था, 17 सितंबर को 817 रुपये हो गयारबर निकलना बेहतरमुनाफावसूली से शनिवार को एनएमसीई पर भाव घटकर 167 रुपये प्रति किलो। अगस्त में उत्पादन बढ़ा, चालू महीने में भी उत्पादन बढऩे की संभावना। इसीलिए दाम और गिरेंगे।बिड़ला मनी के कमोडिटी प्रमुख अमर सिंह की सलाह है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में अभी अनिश्चितता है और भारतीय बाजार स्थिर हैं लेकिन क्रूड के भाव गिरे हैं। बेस मेटल्स पर इसका नकारात्मक असर हो सकता है। इसलिए निवेशक सोना-चांदी में अपनी आधी पोजीशन काट सकते हैं।अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने और चांदी में तेजी का असर घरेलू और वायदा बाजार में इनकी कीमतों पर दिख रहा है। कमोडिटी विशेषज्ञों का मानना है कि सोने-चांदी के साथ-साथ निकिल में और कुछ समय तक तेजी बनी रहेगी। इसलिए निवेशक अभी इन जिंसों में अपना निवेश बरकरार रख सकते हैं। लेकिन एक और नॉन-एग्रो कमोडिटी कॉपर के बारे में उनकी राय है कि निवेशकों को इसमें मुनाफावसूली कर लेनी चाहिए। जहां तक एग्रो कमोडिटी का सवाल है, मेंथा ऑयल और गेहूं में खरीद करना बेहतर होगा लेकिन ग्वार और रबर में अभी और तेजी के आसार नहीं होने से बिकवाली उचित रहेगी। कासा कमोडिटी के सीनियर रिसर्च एनॉलिस्ट मुन्ना महतो ने बताया कि एमसीएक्स पर पिछले दो महीने में चांदी ने 11.6 फीसदी, सोने ने 8.5 फीसदी, निकिल ने 6.2 फीसदी और कॉपर ने 3.75 फीसदी का रिटर्न दिया है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता और डॉलर की कमजोरी से अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोना और चांदी में अभी तेजी बनी रहने की संभावना है। महतो ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने का भाव 1300 डॉलर से ऊपर जाने की संभावना है। हालांकि बांबे बुलियन एसोसिएशन के निदेशक भार्गव वैद्य उनसे पूरी तरह इत्तेफाक नहीं रखते। उनकी राय है कि कम से कम नए निवेशक इस समय सोना और चांदी फ्यूचर में प्रवेश न करें। उन्होंने इन कमोडिटी में मुनाफावसूली की सलाह दी है। एमसीएक्स पर 2 अगस्त 2010 को चांदी का भाव 29,197 रुपये प्रति किलो था जो 17 सितंबर को बढ़कर 32,478 रुपये प्रति किलो हो गया। सोने का भाव भी इस दौरान 17,816 रुपये प्रति दस ग्राम से बढ़कर 19,214 रुपये प्रति दस ग्राम हो गया। निकिल का भाव 1011 रुपये प्रति किलो से बढ़कर 1082 रुपये प्रति किलो हो गया। विशेषज्ञों का कहना है कि निवेशक चाहें तो सोने, चांदी और निकिल में अपनी 50 फीसदी पोजीशन काट सकते हैं। आगे दाम और बढऩे के आसार हैं इसलिए बाकी बिकवाली तब कर सकते हैं। कॉपर के बारे में उनका कहना है कि अभी इसमें मुनाफावसूली बेहतर होगी। कॉपर का भाव वायदा में 2 अगस्त को 344 रुपये था जो बढ़कर 359 रुपये प्रति किलो हो गया है। भाव घटने पर 335-338 रुपये के स्तर पर खरीद करनी चाहिए। बिड़ला मनी के कमोडिटी प्रमुख अमर सिंह ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में अभी तक अनिश्चितता है और भारतीय बाजार स्थिर हैं लेकिन क्रूड ऑयल के भाव गिरे हैं। बेस मेटल्स पर इसका नकारात्मक असर हो सकता है। इसलिए निवेशक चांदी और सोना में अपनी आधी पोजीशन काट सकते हैं। एंजल कमोडिटी के एग्री विश्लेषक बदरुद्दीन ने बताया कि मेंथा की पैदावार पिछले साल की तुलना में कम है जबकि निर्यात मांग लगातार बढ़ रही है। इसीलिए मेंथा ऑयल में निवेशक बने रह सकते हैं। पिछले दो महीने में मेंथा ऑयल ने एमसीएक्स पर 10.5 फीसदी का रिर्टन दिया है। दो अगस्त को इसका दाम 739 रुपये प्रति किलो था जो 17 सितंबर को बढ़कर 817 रुपये प्रति किलो हो गया। उन्होंने बताया कि अनुकूल मौसम के कारण ग्वार का बंपर उत्पादन होने का अनुमान है। निवेशकों के लिए इसे होल्ड करने के बजाय इसमें बिकवाली करना बेहतर होगा। पिछले दो महीने में एनसीडीईएक्स पर ग्वार के दाम 16.2 फीसदी घट चुके हैं। दो अगस्त को इसका भाव 2,395 रुपये प्रति क्विंटल था जो 17 सितंबर को घटकर 2006 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। कमोडिटी विशेषज्ञ अभय लाखवान ने बताया कि खुले बाजार में गेहूं का स्टॉक कम है तथा सरकार का बिक्री भाव ज्यादा है। अत: आगामी दिनों में गेहूं के दाम बढ़ सकते हैं। गेहूं के वायदा अनुबंध में पिछले दो महीने में 3.8 फीसदी की गिरावट आकर भाव 1,226 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं। इन भावों पर खरीद करना बेहतर होगा। रबर में निवेशकों की मुनाफावसूली से शनिवार को एनएमसीई पर भाव घटकर 167 रुपये प्रति किलो रह गए। अगस्त में उत्पादन बढ़ा है तथा चालू महीने में भी उत्पादन बढऩे की संभावना है इसीलिए मौजूदा कीमतों में और गिरावट की संभावना है। (Business Bhaskar......aar as raana)
21 सितंबर 2010
मांग तो बढ़ेगी लेकिन दाम नही
इस बार त्योहारों में खाद्य तेलों के दाम पिछले साल की तरह तेज नहीं रहेंगे। चालू खरीफ में तिलहन उत्पादन में बढ़ोतरी की संभावना है। अगस्त में खाद्य तेलों का रिकार्ड आयात भी हुआ है। ऐसे में त्योहारी मांग निकलने से आगामी दिनों में खाद्य तेलों की मांग तो बढ़ेगी, लेकिन मांग के मुकाबले उपलब्धता ज्यादा होने से कीमतों में तेजी की संभावना नहीं है। दिल्ली वैजिटेबल ऑयल ट्रेडर्स एसोसिएशन के सचिव हेमंत गुप्ता ने बताया कि घरेलू बाजार में आयात में बढ़ोतरी होने से खाद्य तेलों की उपलब्धता ज्यादा है। साथ ही बुवाई में बढ़ोतरी और अनुकूल मौसम से खरीफ में तिलहनों का उत्पादन भी बढ़ेगा। इसीलिए दिपावली पर खाद्य तेलों की मांग बढऩे के बावजूद मौजूदा कीमतों में तेजी की संभावना है। उन्होंने बताया कि सोमवार को दादरी में सरसों तेल का भाव 530 रुपये, क्रुड पॉम तेल का भाव कांडला बंदरगाह पर 420 रुपये, आर बी डी पॉमोलीन का 450-455 रुपये, इंदौर में सोया रिफाइंड तेल का भाव 475 रुपये तथा हरियाणा की मंडियों में बिनौला तेल का भाव 880-890 रुपये प्रति दस किलो बोला गया। साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन (एसईए) के अनुसार अगस्त महीने में 10,65,421 खाद्य तेलों का आयात हुआ है जोकि किसी एक महीने में अभी तक का रिकार्ड है। पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले इसमें 64 फीसद की बढ़ोतरी हुई है। पिछले साल अगस्त महीने में 6,50,603 टन खाद्य तेलों का आयात हुआ था। चालू तेल वर्ष के पहले दस महीनों (नवंबर-09 से अगस्त-10) के दौरान देश में 74.47 लाख टन खाद्य तेलों का आयात हो चुका है जोकि पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले पांच फीसदी ज्यादा है। पिछले साल इस समय तक 70.07 लाख टन खाद्य तेलों का आयात हुआ था। पहली सितंबर को भारतीय बंदरगाहों पर 6.80 लाख टन खाद्य तेलों का स्टॉक बचा हुआ है जबकि करीब सात लाख टन खाद्य तेलों के आयात सौदे हो चुके हैं। साई सिमरन फुड लिमिटेड के डायरेक्टर नरेश गोयनका ने बताया कि उत्पादक मंडियों में सोयाबीन का 15 से 18 लाख टन का स्टॉक बचा हुआ है। अनुकूल मौसम से चालू खरीफ में सोयाबीन का उत्पादन भी बढऩे की संभावना है। तथा रबी में सरसों की बुवाई भी ज्यादा होने का अनुमान है। इसीलिए खाद्य तेलों की कीमतों में तेजी की संभावना नहीं है। कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ में 171.39 लाख हैक्टेयर में तिलहनों की बुवाई हो चुकी है जोकि पिछले साल की समान अवधि के 167.70 लाख टन से ज्यादा है। (Business Bhaskar....aar as raana)
ग्राहकों को नसीब नहीं हो रही सस्ती दाल
चालू खरीफ में बुवाई में बढ़ोतरी से दालों का उत्पादन बढऩे की संभावना है। इसीलिए आयातित दालों की कीमतों में पिछले तीन महीने में 85 से 350 डॉलर प्रति टन तक की गिरावट आ चुकी है। घरेलू बाजार में थोक में दालों के दाम महीने भर में ही 400-800 रुपये प्रति क्विंटल तक घट चुके हैं। लेकिन इसका फायदा आम उपभोक्ता को नहीं मिल पा रहा है। फुटकर बाजार में अब भी दालें थोक के मुकाबले डेढ़ से दोगुने दाम पर मिल बिक रही हैं।रिटेल स्टोर पर उड़द की दाल 95 रुपये प्रति किलो तक बिक रही है जबकि थोक बाजार में इसका दाम 57 रुपये प्रति किलो है। इसी तरह से मूंग धूली का भाव रिटेल में 96 रुपये प्रति किलो है जबकि थोक में इसका भाव 48 रुपये प्रति किलो है। मसूर दाल रिटेल स्टोर पर 57 रुपये प्रति किलो बिक रही है जबकि थोक में इसका भाव 36 रुपये और अरहर दाल रिटेल स्टोर पर 75 रुपये प्रति किलो बिक रही है लेकिन थोक में इसका भाव 60 रुपये प्रति किलो है। दलहन के थोक कारोबारी निशांत मित्तल ने बताया कि दालों के दाम थोक में घटे हैं लेकिन रिटेल में अभी ऊंचे बने हुए हैं। दिल्ली थोक बाजार में अरहर दाल का भाव घटकर 6,000 रुपये, मूंग धोया का 4,800 रुपये, उड़द का 5,700 रुपये और मसूर लाल दाल का घटकर 3,600 रुपये प्रति क्विंटल रह गया है। पिछले महीने भर में इनके दाम 400 से 800 रुपये प्रति क्विंटल तक घट चुके हैं। गुलबर्गा स्थित ग्लोबल दाल इंडस्ट्रीज के डायरेक्टर चंद्रशेखर एस नादर ने बताया कि खरीफ में उड़द और मूंग के साथ अरहर का उत्पादन बढऩे की संभावना है। इसीलिए उत्पादक मंडियों में दालों की कीमतों में मंदा आया है। गुलबर्गा मंडी में उड़द के भाव घटकर 3,000 से 4,000 रुपये और अरहर के 3,600 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। मसूर का भाव बरेली और इंदौर मंडी में घटकर 3,340 से 3,500 रुपये और मूंग का कानपुर और इंदौर मंडी में घटकर 4,000 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। मुंबई के दलहन आयातक भावेन भाई ने बताया कि खरीफ में अच्छे उत्पादन की उम्मीद से आयातक नए आयात सौदे नहीं कर रहे हैं। इस समय केवल सार्वजनिक कंपनियां आयात कर रही हैं। मांग घटने से आयातित दालों की कीमतों में पिछले तीन महीने में 85 से 350 डॉलर तक की गिरावट आई है। जून में लेमन अरहर का भाव 950 डॉलर प्रति टन था जबकि इस समय भाव घटकर 800 डॉलर प्रति टन रह गया है। इसी तरह से उड़द एफएक्यू का 1,085 डॉलर से घटकर 1,000 डॉलर और मूंग पेड़ीसेवा का भाव 1,300 डॉलर से घटकर 950 डॉलर प्रति टन रह गया है। म्यामंार में उड़द का करीब दो लाख टन, मूंग का डेढ़ लाख टन और अरहर का 60 हजार टन का स्टॉक बचा हुआ है। कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ में दलहन की बुवाई बढ़कर 110.08 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 90.57 लाख हैक्टेयर में बुवाई हुई थी। (Business Bhaskar....aar as raana)
महंगा होने के बावजूद सोने की मांग बढ़ने की उम्मीद
मुंबई : सोने के दाम 19,000 रुपए प्रति दस ग्राम के मनोवैज्ञानिक स्तर पर पहुंचने के बावजूद भारत के अग्रणी गोल्ड ज्वैलरी रीटेलरों को पूरी उम्मीद है कि फेस्टिव सीजन में ग्राहक दिल खोलकर खर्च करेंगे। ज्वैलरी रीटेलर कंपनियां इस बात की उम्मीद कर रही हैं कि इस साल मानसून बेहतर रहने और औद्योगिक उत्पादन के संशोधित आंकड़ों को देखते हुए गहनों की बिक्री में अच्छी तेजी आएगी। तनिष्क, गीतांजलि जेम्स, राजेश एक्सपोर्ट, श्रेनुज और दूसरे रीटेलरों का मानना है कि पिछले साल की तुलना में इस साल सोने के गहनों की बिक्री में 40 फीसदी का इजाफा हो सकता है। गीतांजलि जेम्स के सीएमडी मेहुल चोकसी ने कहा, 'इस साल मानसून अच्छा रहा है। इसीलिए, नकदी से भरपूर ग्रामीण और छोटे शहरों में बड़े पैमाने पर ज्वैलरी की खरीद देखी जा सकती है।' गीतांजलि जेम्स के ब्रांड में नक्षत्र और गिली शामिल हैं। उन्होंने कहा, 'वैल्यू के लिहाज से हम 40 फीसदी और पिछले फेस्टिव सीजन की तुलना में 20 फीसदी ज्यादा बिक्री की उम्मीद कर रहे हैं।' देश की सबसे बड़ी गोल्ड ज्वैलरी निर्यातक कंपनी राजेश एक्सपोर्ट्स के चेयरमैन राजेश मेहता ने चोकसी की बातों से सहमति जताते हुए कहा, 'लोगों को इस बात का डर है कि आगे आने वाले दिनों में सोने की कीमतें और बढ़ेंगी। यही वजह है कि कीमतें चढ़ने के बावजूद ग्राहक अपनी खरीदारी कर रहे हैं। पिछले साल की तुलना में इस साल घरेलू बाजार में वॉल्यूम के लिहाज से बिक्री 40 फीसदी ज्यादा रहने का अनुमान है।' राजेश एक्पोर्ट्स का मुख्यालय बंगलुरु में है। कंपनी ने अगली दो तिमाहियों में 900 करोड़ रुपए के निवेश से देश के बड़े शहरों में 'शुभ' नाम से 80 आउटलेट खोलने की योजना बनाई है। बॉम्बे बुलियन एसोसिएशन के एक वरिष्ठ सदस्य के मुताबिक 2010 में भारत 450 टन सोने का आयात कर सकता है। यह आंकड़ा 2009 में आयातित 343 टन सोने से 31 फीसदी ज्यादा है। पिछले साल चार दशक का सबसे खराब मानसून था, जिसकी वजह से ग्रामीण इलाकों में होने वाली बिक्री में काफी कमी आई थी। भारत के गोल्ड मार्केट में ग्रामीण इलाके बेहद अहम भूमिका निभाते हैं। तनिष्क के वीपी (मार्केटिंग) संदीप कुलहल्ली ने कहा, 'औद्योगिक और आईटी सेक्टर में सुधार के कारण कंज्यूमर सेंटिमेंट में काफी सुधार आया है।' तनिष्क, टाटा समूह की कंपनी टाइटन इंडस्ट्रीज लिमिटेड (टीआईएल) की ज्वैलरी इकाई हैं। उन्होंने कहा, 'शहरी इलाकों में लोगों को दिवाली पर बोनस मिलने और पिछले साल की तुलना में ज्यादा सैलरी बढ़ने की उम्मीद है। तनिष्क ब्रांड को उम्मीद है कि इस दौरान बिक्री में 40 फीसदी की बढ़ोतरी होगी।' देश भर में फिलहाल तनिष्क के 120 शोरूम हैं और कंपनी की योजना मार्च 2011 तक 14 नए शोरूम खोलेन की है। श्रेनुज एंड कंपनी के श्रेयस दोषी ने कहा, 'सोने के दाम बढ़ने के कारण खरीदार इस साल प्लैटिनम पर भी नजर बनाए हुए हैं।' (ET Hindi)
एनसीडीईएक्स में बढ़ेगा जेपी कैपिटल का हिस्सा
मुंबई September 19, 2010
बाजार में हिस्सेदारी और कारोबार की मात्रा के हिसाब से देश के दूसरे बड़े जिंस एक्सचेंज, नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) ने नए मुख्य निवेशक की तलाश की है। इसका उद्देश्य आने वाले महीनों में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के दौर में कारोबारी क्षमता का विस्तार है। एक्सचेंज ने अपनी 26 प्रतिशत इक्विटी नई दिल्ली के शेयरधारक जेपी कैपिटल को आवंटित करने का फैसला किया है। सूत्रों ने कहा कि शेयर की कीमतों के बारे में कोई फैसला नहीं हुआ है, लेकिन यह एक्सचेंज की इक्विटी के पिछले सौदे से काफी कम होगी।माना जा रहा है कि इन 26 प्रतिशत नए शेयरों में करीब 3 प्रतिशत शेयर श्री रेणुका शुगर्स को जाएंगे जिससे उसकी हिस्सेदारी करीब 15 प्रतिशत हो जाएगी। माना जा रहा है कि जेपी और श्री रेणुका दोनों की इसमें अहम भूमिका होगी। इस सिलसिले में पूछे जाने पर एनसीडीईएक्स के प्रवक्ता ने कुछ भी कहने से इनकार किया है।हाल ही में श्री रेणुका शुगर्स ने क्रिसिल से 145 रुपये प्रति शेयर की दर से 7 प्रतिशत इक्विटी हासिल की है। एनसीडीईएक्स का चुकता पूंजी आधार 37.5 करोड़ रुपये है और 13 करोड़ रुपये की नई पूंजी (10 रुपये मूल्य के 1.30 करोड़ शेयर) लगाने का फैसला किया है जिससे कि वायदा बाजार आयोग के नियमों के मुताबिक 50 करोड़ रुपये के पूंजी आधार की शर्त पूरी हो सके। ये नए शेयर जेपी कैपिटल को जारी किए जाएंगे, जिसने यूनाइटेड एक्सचेंज आफ इंडिया के नाम से करेंसी एक्सचेंज शुरू करने का फैसला किया है। यह एक्सचेंज सोमवार से काम शुरू कर देगा।नए शेयरों के भाव इस साल की शुरुआत में एक्सचेंज द्वारा जारी राइट इश्यू से कम होंगे। राइट इश्यू के भाव 110 रुपये प्रति शेयर थे। सस्ते शेयरों की एवज में नया निवेशक यह वादा करेगा कि एक्सचेंज के विकास में वह भूमिका निभाएगा। यह इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि एक तरफ इस कारोबार में नए कारोबारी प्रवेश कर रहे हैं, वहीं कैबिनेट के एफसीआर अधिनियम में संशोधन की स्वीकृति देने से कई नई संभावनाएं भी पैदा होंगी। डेरिवेटिव्स कारोबार में जेपी कैपिटल की बड़ी हिस्सेदारी है। बहरहाल, एफएमसी के नियमों के मुताबिक शेयरधारक को उस एक्सचेंज में कारोबार या हेजिंग की अनुमति नहीं है, जिस एक्सचेंज में उसकी हिस्सेदारी है। माना जा रहा है कि जेपी यह मानदंड पूरा करने के लिए अपनी सदस्यता छोड़ेगी। सूत्रों ने कहा कि सिर्फ जेपी ही एक्सचेंज में एंकर निवेशक की भूमिका नहीं निभाएगी, बल्कि इस श्रृंखला में श्री रेणुका भी है, जिसकी पहले से ही 12 प्रतिशत हिस्सेदारी है।एनसीडीईएक्स की शुरुआत आईसीआईसीआई बैंक की अगुआई में कुछ संस्थागत निवेशकों के एक समूह ने 2003 में की थी। बाद में आईसीआईसीआई एक्सचेंज से बाहर हो गया और उसके बाद एनएसई ने एक्सचेंज में प्रमुख भूमिका हासिल कर ली। एनएसई की एक्सचेंज में 15 प्रतिशत हिस्सेदारी है। बहरहाल एफएमसी ने नए नियमों में किसी स्टॉक एक्सचेंज की जिंस एक्सचेंज में हिस्सेदारी 5 प्रतिशत तक सीमित कर दी है। इसके चलते उम्मीद की जा रही है कि एनएसई अपनी हिस्सेदारी घटाएगा। बहरहाल इसके बारे में ज्यादा सूचना उपलब्ध नहीं है। (BS Hindi)
बाजार में हिस्सेदारी और कारोबार की मात्रा के हिसाब से देश के दूसरे बड़े जिंस एक्सचेंज, नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) ने नए मुख्य निवेशक की तलाश की है। इसका उद्देश्य आने वाले महीनों में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के दौर में कारोबारी क्षमता का विस्तार है। एक्सचेंज ने अपनी 26 प्रतिशत इक्विटी नई दिल्ली के शेयरधारक जेपी कैपिटल को आवंटित करने का फैसला किया है। सूत्रों ने कहा कि शेयर की कीमतों के बारे में कोई फैसला नहीं हुआ है, लेकिन यह एक्सचेंज की इक्विटी के पिछले सौदे से काफी कम होगी।माना जा रहा है कि इन 26 प्रतिशत नए शेयरों में करीब 3 प्रतिशत शेयर श्री रेणुका शुगर्स को जाएंगे जिससे उसकी हिस्सेदारी करीब 15 प्रतिशत हो जाएगी। माना जा रहा है कि जेपी और श्री रेणुका दोनों की इसमें अहम भूमिका होगी। इस सिलसिले में पूछे जाने पर एनसीडीईएक्स के प्रवक्ता ने कुछ भी कहने से इनकार किया है।हाल ही में श्री रेणुका शुगर्स ने क्रिसिल से 145 रुपये प्रति शेयर की दर से 7 प्रतिशत इक्विटी हासिल की है। एनसीडीईएक्स का चुकता पूंजी आधार 37.5 करोड़ रुपये है और 13 करोड़ रुपये की नई पूंजी (10 रुपये मूल्य के 1.30 करोड़ शेयर) लगाने का फैसला किया है जिससे कि वायदा बाजार आयोग के नियमों के मुताबिक 50 करोड़ रुपये के पूंजी आधार की शर्त पूरी हो सके। ये नए शेयर जेपी कैपिटल को जारी किए जाएंगे, जिसने यूनाइटेड एक्सचेंज आफ इंडिया के नाम से करेंसी एक्सचेंज शुरू करने का फैसला किया है। यह एक्सचेंज सोमवार से काम शुरू कर देगा।नए शेयरों के भाव इस साल की शुरुआत में एक्सचेंज द्वारा जारी राइट इश्यू से कम होंगे। राइट इश्यू के भाव 110 रुपये प्रति शेयर थे। सस्ते शेयरों की एवज में नया निवेशक यह वादा करेगा कि एक्सचेंज के विकास में वह भूमिका निभाएगा। यह इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि एक तरफ इस कारोबार में नए कारोबारी प्रवेश कर रहे हैं, वहीं कैबिनेट के एफसीआर अधिनियम में संशोधन की स्वीकृति देने से कई नई संभावनाएं भी पैदा होंगी। डेरिवेटिव्स कारोबार में जेपी कैपिटल की बड़ी हिस्सेदारी है। बहरहाल, एफएमसी के नियमों के मुताबिक शेयरधारक को उस एक्सचेंज में कारोबार या हेजिंग की अनुमति नहीं है, जिस एक्सचेंज में उसकी हिस्सेदारी है। माना जा रहा है कि जेपी यह मानदंड पूरा करने के लिए अपनी सदस्यता छोड़ेगी। सूत्रों ने कहा कि सिर्फ जेपी ही एक्सचेंज में एंकर निवेशक की भूमिका नहीं निभाएगी, बल्कि इस श्रृंखला में श्री रेणुका भी है, जिसकी पहले से ही 12 प्रतिशत हिस्सेदारी है।एनसीडीईएक्स की शुरुआत आईसीआईसीआई बैंक की अगुआई में कुछ संस्थागत निवेशकों के एक समूह ने 2003 में की थी। बाद में आईसीआईसीआई एक्सचेंज से बाहर हो गया और उसके बाद एनएसई ने एक्सचेंज में प्रमुख भूमिका हासिल कर ली। एनएसई की एक्सचेंज में 15 प्रतिशत हिस्सेदारी है। बहरहाल एफएमसी ने नए नियमों में किसी स्टॉक एक्सचेंज की जिंस एक्सचेंज में हिस्सेदारी 5 प्रतिशत तक सीमित कर दी है। इसके चलते उम्मीद की जा रही है कि एनएसई अपनी हिस्सेदारी घटाएगा। बहरहाल इसके बारे में ज्यादा सूचना उपलब्ध नहीं है। (BS Hindi)
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