July 09, 2010
अमेरिकी फेडरल रिजर्व के दो अनुमानों में एल्युमीनियम बाजार के लिए द्वंद्व छिपा है। फेडरल रिजर्व का कहना है कि छोटी अवधि में ब्याज दर शून्य के निकट रहेगा। यह अवधि संभवत: 2012 तक खींचेगी और यह एल्युमीनियम के क्षेत्र में खान सौदों के लिए अच्छा होगा। ब्याज दर जहां है वहीं रहने पर इस तरह के समझौते से एलएमई के भंडार भी स्थिर बने रहेंगे।इन सब से कुल मिलाकर एल्युमीनियम बाजार को फायदा होगा। 2008 में सुस्ती के दौरान मांग घटने से कई एल्युमीनियम इकाइयां बंद हो गई थीं। अब इनका परिचालन शुरू हो रहा है जिससे एल्युमीनियम की आपूर्ति बढ़ रही है। साथ ही नई क्षमता विस्तार परियोजनाओं के पूरा होने से भी आपूर्ति को बल मिल रहा है। अनुमानों के मुताबिक लंदन मेटल एक्सचेंज के 45 लाख टन के भंडार का 80 फीसदी वित्तीय सौदों में बंध चुका है।इसके बाद भी वैश्विक अर्थव्यवस्था को लेकर जारी चिंताओं से एल्युमीनियम की कीमतें पिछले साल के आखिर से अब तक 12 फीसदी नीचे जा चुकी हैं। फेडरल रिजर्व के दूसरे आकलन के मुताबिक वित्तीय परिस्थितियां आर्थिक विकास को लेकर कम मददगार रह गए हैं, इससे बाहर के देशों में विकास के संकेत मिलते हैं। ऐसे में गैर कृषि उत्पादों के व्यापार के लिए थोड़ी चिंता पैदा होती है।लिहाजा कम ब्याज दरों से एल्युमीनियम बाजार को होने वाले फायदा कुछ हद तक आर्थिक चिंताओं से ठंडा पड़ जाएगा। एक जिंस विश्लेषक का कहना है बाजार में भरोसा या इसकी कमी, बाजार को सबसे ज्यादा प्रभावित करती है और फिलहाल इसकी कमी है जिसकी वजह से आमदनी लडख़ड़ाई हुई है। इस साल के अंत तक या 2011 में एल्युमीनियम की कीमतें कहां होंगी, अगर इस बारे में कोई सटीक अनुमान लगाना है, तो सबसे महत्त्वपूर्ण काम चीन पर नजर रखना है। चीन एलुमीना और एल्युमीनियम दोनों के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है। कारोबारी भी एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) के पेश किए जाने से एल्युमीनियम आपूर्ति पर होने वाले असर को लेकर उत्सुक हैं। दुनिया की सबसे बड़ी एल्युमीनियम उत्पादक यूसी रसल अगले साल एक ईटीएफ लाने की योजना बना रही है। बाजार में यह भी चर्चा गर्म है कि स्विट्ïजरलैंड की कमोडिटी कारोबारी कंपनी ग्लेंकोर के्रडिट स्वीसे के साथ मिलकर दूसरा ईटीएफ लाने जा रही है। लेकिन, ये दोनों ईटीएफ मिलकर बाजार से कितना एल्युमीनियम निकालेंगे? अगर एटीएफ 15 लाख टन एल्युमीनियम या इससे ज्यादा खींचते हैं, तो इससे एलएमई कीमतों को बड़ी उछाल मिलनी चाहिए।कई कारोबारियों का मान ना है कि ईटीएफ की क्षमता जारी होने पर छोटी अवधि में कीमतें 300 डॉलर प्रति टन तक चढ़ सकती हैं। विश्लेषकों के हिंडाल्को ताजा विषय है। विश्लेषकों का कहना है कि इस साल चीन 18 फीसदी ज्यादा एल्युमीनियम का इस्तेमाल करेगा और यह कुल 164।07 लाख टन रहेगा। भारतीय उपभोग भी 18 फीसदी बढ़कर 16.64 लाख टन रहने का अनुमान है। चीन का छोड़कर इस साल एल्युमीनियम की वैश्विक जरूरत 225.92 लाख टन होगी। विश्लेषकों का कहना है कि 2008 में चीन में पेश 586 अरब डॉलर के राहत कार्यक्रम से एल्युमीनियम और दूसरे धातुओं को फायदा हो रहा है। भवन निर्माण और रेलवे के लिए होन वाला खर्च बने रहने की उम्मीद है जिससे एल्युमीनियम की आगे मांग बढ़ेगी। प्रमुख मेटल कंसल्टेंसी सीआरयू के आंकड़ों के मुताबिक मई में चीन ने 15.12 लाख टन एल्युमीनियम का इस्तेमाल किया जिससे लगता है कि चीन का सालाना उपभोग 178 लाख टन रह सकता है। इस साल की शुरुआत से चीन में एल्युमीनियम का उत्पादन हर महीने बढ़ रहा है। मई में उत्पादन 15.3 लाख टन के रिकॉर्ड स्तर पर रहा, लेकिन चीन में सीआरयू के सूत्र निर्माण क्षेत्र में आने वाले महीनों में थोड़ी स्थिरता की आशंका जता रहे हैं क्योंकि सरकार की सख्ती का असर दिखने लगा है। मई में चीन में महंगाई बढऩा धातु बाजार के लिए अच्छा नहीं होगा। मई में महंगाई 19 महीनों में सबसे तेजी से बड़ी है।इससे चीन में ब्याज दर बढ़ाए जाने के संकेत मिलते हैं। अगर ऐसा होता है, तो मई में 2,800 टन का मामूली चीनी एल्युमीनियम आयात एक अपवाद रह जाएगा और चीन 2010 और उससे आगे शुद्घ रूप से एल्युमीनियम का निर्यातक ही रहेगा। (बीएस हिंदी)
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