मुंबई July 06, 2010
मॉनसून में कमी से इस साल ग्वारसीड का उत्पादन प्रभावित होने की आशंका है। हरियाणा और राजस्थान जैसे बड़े उत्पादक राज्यों में इसकी पैदावार में 10-12 फीसदी की गिरावट आ सकती है। व्यापरियों के अनुमानों के मुताबिक, शुरुआती रुझानों से संकेत मिल रहे हैं कि इस बार 70 लाख क्विंटल ग्वार का उत्पादन होगा, जबकि पिछली बार 80 लाख क्विंटल उत्पादन हुआ था। यद्यपि राजस्थान में सोमवार को मानसून पहुंच गया लेकिन राजस्थान और हरियाणा के कई जिलों में ग्वार उत्पादन के हिसाब से यह काफी विलंब से पहुंचा है।जोधपुर स्थित ग्वारसीड ट्रेडर राजेन्द्र प्रसाद पुरुषोत्तम मूंदड़ा के पार्टनर पुरुषोत्तम मूंदड़ा बताते हैं कि पिछले साल किसानों को चना और सरसों जैसी फसलों की काफी अच्छी कीमत मिली थी। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि दिसंबर में ग्वारसीड के दाम 30 फीसदी तक गिर गए। इससे किसान इसके उत्पादन को लेकर काफी हतोत्साहित हो गए और उन्होंने अन्य फसलों की ओर रुख कर लिया।मानसून की आमद के साथ ही सबसे ज्यादा ग्वारसीड का उत्पादन करने वाले दो राज्यों राजस्थान और हरियाणा में पिछले सप्ताह इसकी कीमतों में पांच फीसदी तक की कमी दर्ज की गई। सोमवार को अगस्त 2010 के लिए सबसे अधिक में 2,269 रुपये प्रति क्विंटल पर ग्वारसीड का सौदा हुआ, जो पिछले सोमवार के दाम 2,411 रुपये प्रति क्विंटल से छह फीसदी कम था। इसी प्रकार अगस्त 2010 के लिए ग्वारगम का सौदा 4,986 रुपये प्रति क्विंटल पर हुआ, जो पिछले सप्ताह के 5,313 रुपये प्रति क्विंटल से 6।16 फीसदी कम था। भारत के सबसे बड़े हाजिर बाजारों में से एक जोधपुर में भी ग्वारसीड के दाम 2,325 रुपये प्रति क्विंटल रहे। ग्वारगम ग्वारसीड का प्रसंस्कृत रूप होता है। इसे दवाइयों में इस्तेमाल किया जाता है। जोधपुर में इसके दाम पिछले सप्ताह की तुलना में 6-7 फीसदी गिरकर 5,000 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुए। मूंदड़ा के मुताबिक, हरियाणा और श्रीगंगानगर में 15 जून से 15 जुलाई के बीच 50 फीसदी हिस्से में ग्वारसीड की बुवाई पूरी हो जाती है।लेकिन इस साल मानसून की कमी की वजह से सिर्फ 25-30 फीसदी हिस्से में ही बुवाई की गई है। दूसरी बात यह है कि यदि शेष क्षेत्र में विलंब से बुवाई कर दी जाती है तो इस पर खरीफ या तिलहनी फसलों की बुवाई नहीं की जा सकेगी। यह भी तय है कि देर से बुवाई करने पर उपज भी अच्छी नहीं मिलेगी। सामान्य तौर पर राजस्थान और हरियाणा के किसान ग्वारसीड की फसल के बाद खेतों में चने की बुवाई करते हैं। लेकिन मानसून की कमी के चलते उनके अरमानों पर पानी फिर जाएगा। कई रिपोर्टों के मुताबिक, हिंदुस्तान गम, लुसिड इंडिया और विकास डब्ल्यूएसपी जैसे बड़े ग्वारगम विनिर्माता और आपूर्तिकर्ता खुले बाजार से खरीद करने की संभावनाएं तलाश रहे हैं। बीकानेर स्थित ग्वारसीड ट्रेडर नवरतन डागा ने बताया कि अधिक निर्यात की मांग पर विचार चल रहा है। इसलिए वर्तमान सत्र में इसके दामों को नई ऊंचाई छूता हुआ देख सकते हैं।ग्वारसीड की फसल पूरी तरह मानसून पर निर्भर है। ऐसे में अच्छी फसल के लिए बारिश काफी जरूरी है। पश्चिमी राजस्थान के किसानों का अभी भी सकारात्मक रुख है, क्योंंकि वहां पर 10 जुलाई के बाद ही ग्वारसीड की बुआई की जाती है।बहरहाल पिछले साल की तुलना में उपज कम होना लगभग तय है। जोधपुर स्थित एक अन्य व्यापारी संजय पेरीवाल कहते हैं कि अभी कुछ निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगा। हालांकि वह इस बात पर सहमत हैं कि निर्यात मांग बढऩे से इसकी कीमतें ऊपर जा सकती हैं। (बीएस हिंदी)
07 जुलाई 2010
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