मुंबई July 09, 2010
देश के लगभग सभी हिस्सों में मॉनसून सक्रिय होने से किसानों के चेहरे भले ही खिले हों लेकिन बाजार में सक्रिय सटोरिए इस बार भी उत्पादन कम होने की आशंका जता रहे हैं। सटोरियों की चाल में बाजार भी फंसता नजर आ रहा है और यही वजह है कि बहुत अच्छी मांग न होने के बावजूद कृषि जिंसों की कीमतें ऊपर जा रही हैं।पिछले एक सप्ताह में विभिन्न कृषि जिंसों की कीमतें 5-15 फीसदी तक मजबूत हुई हैं और बाजार में जिस तरह से अफवाहों का बाजार गरम है, उसको देखते हुए लग रहा है कि कीमतों को अभी और हवा मिलेगी। उत्तर भारत के कई राज्यों में आई बाढ़ से खरीफ सीजन की फसल खराब होने की आशंका जाहिर की जा रही है। इसके अलावा मध्य जुलाई तक अरब सागर में आने वाले ला निनो के कारण भारी बारिश हो सकती है जिससे दक्षिण भारत के कई राज्यों में खरीफ की फसल प्रभावित हो सकती है। बाजार में सक्रिय सटोरिये और बिचौलियों का मानना है कि इस साल उत्पादन पिछले साल की अपेक्षा कम होगा। क्योंकि कृषि उत्पादक कई राज्य बाढ़ की चपेट में हैं जबकि कई आने वाले हैं। उत्तर भारत के कई राज्यों पंजाब और हरियाणा में बाढ़ के चलते हजारों एकड़ जमीन पर बुआई नहीं हो सकी है। राजस्थान के कई इलाके भी बाढ़ की चपेट में हैं जबकि कुछ हिस्सों में मॉनसून अभी तक बेहरमान नहीं हुआ है। उत्तर भारत के ज्यादातर हिस्सों में कई बारिश तो कहीं सूखे की स्थिति बनी हुई है। ये दोनों परिस्थितियां फसल के लिए सही नहीं हैं जिससे उत्पादन कम होगा। उत्पादन कम होगा या फिर ज्यादा या तो अभी पता नहीं हैं। किसानों की किस्मत चमकेगी या फिर धोखा दे जाएगी, यह कुछ सप्ताह बाद ही पता चलेगा, लेकिन सटोरियों ने अपना काम शुरू कर दिया है। मौसम विभाग जुलाई मध्य में ला निनो आने की आशंका जता रहा है।ला निनो के कारण भारी बारिश होने की आशंका से किसानों को डर है कि कई दक्षिणी राज्यों में भी बाढ़ जैसी स्थिति पैदा न हो जाए। इन्ही आशंकाओं के चलते कृषि जिंसों की कीमतें मांग के अभाव में भी मजबूत हो रही हैं, जबकि कृषि मामलों के जानकार अभी से इस तरह की आशंका जाहिर करने को गलत मान रहे हैं। शेयरखान कमोडिटी हेड मेहुल अग्रवाल के अनुसार कई राज्यों में बाढ़ आने और जुलाई में ला निनो आने की आंशका से कीमतें ऊपर जा रही हैं। दरअसल व्यापारियों को लग रहा है कि बाढ़ या फिर ज्यादा बारिश से कम पानी वाली फसलें प्रभावित होंगी जिससे इनका उत्पादन इस बार भी कम होने वाला है। बाजार में फैली इसी आशंका के चलते कीमतों को हवा मिल रही है। जानकारों का कहना है कि दरअसल यह पूरा खेल सटोरियों का है वह बाजार में ऐसा माहौल बना रहे हैं कि कीमतें ऊपर जा रही है। जिसका फायदा उनको मिल रहा है। जून के अंतिम सप्ताह में लगभग सभी कृषि जिंसों में गिरावट देखने को मिल रही थी लेकिन जुलाई के दूसरे सप्ताह से कीमतों ने करवट लेना शुरू किया।कृषि जिंसों में 5 फीसदी से लेकर 15 फीसदी तक की तेजी दर्ज की गई है। कृषि जिंसों में सबसे ज्यादा संवेदनशील माने जाने वाले ग्वार की कीमतें तेजी से बढऩे लगी है। ग्वार के प्रमुख उत्पादक राज्य राजस्थान और हरियाणा में कम मानसून और बाढ़ के कारण इस बार 10-12 फीसदी कम उत्पादन होने की आशंका जताई जा रही है। कारोबारियों के अनुसार पिछले साल 80 लाख क्विंटल ग्वार का उत्पादन हुआ था जो इस बार मुश्किल से 70 लाख क्विंटल ही हो पाएगा क्योंकि बुआई कम हो पाई है।इस बात का असर बाजार पर भी देखने को मिल रहा है। एक जुलाई को ग्वारगम 5200 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही थी जो 9 जुलाई को 5300 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर पहुंच गई। जबकि ग्वारसीड 2293।75 रुपये से बढ़कर 2316 रुपये प्रति क्विंटल हो गई। ग्वार के अलावा मूंगफली , मक्का, चना, अरहर की कीमतों में भी बढ़ोतरी देखने को मिल रही है।एक जुलाई को मूंगफली 2981 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 2994 प्रति क्विंटल पहुंच गई। जबकि मक्का की भाव में करीबन 6 रुपये और तुअर के दाम 50 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ गए। खरीफ फसल खराब होने की आशंका से चना के दाम भी तेजी से बढ़ रहे हैं। 2150 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर चना 2215 रुपये में पहुंच गया। इनके साथ चाय और चीनी के दाम भी कुलांचे भर रहे हैं। खाद्यान्न से भी ज्यादा मसालों की कीमतें मजबूत हो रही हैं। हल्दी, जीरा और काली मिर्च की कीमतें पिछले 10 दिनों में 10 फीसदी तक बढ़ी है। (बीएस हिंदी)
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