भुवनेश्वर July 07, 2010
देश का जूट उद्योग एक बार फिर विवादों में घिर गया है। केंद्र सरकार ने 33 मिलों की पहचान की है, जिन पर आरोप है कि उन्होंने 41,730 गांठ बी-ट्विल जूट बाजार से महंगे दाम पर बेचा है। जबकि ये मिलें पंजाब सरकार को पिछले दिसंबर महीने में अपने उत्पादों की आपूर्ति नहीं कर सकी थीं। देश में सबसे ज्यादा बी-ट्विल जूट की बोरियों की खरीद पंजाब करता है। जूट उद्योग का 65 प्रतिशत माल इसी राज्य में बिकता है। जूट का देश में अनुमानित कारोबार 6000 करोड़ रुपये का है। इसके अलावा हरियाणा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, बिहार और उड़ीसा में भी बी-ट्विल जूट की बोरियों की खरीदारी करते हैं। इस मामले से जुड़े एक अधिकारी ने कहा, 'इन डिफाल्टर जूट मिलों ने अगर 41,730 गांठ बी-ट्विल जूट की बोरियों की आपूर्ति अगर पंजाब को नवंबर-दिसंबर 2009 की पुरानी दरों पर इस साल जुलाई तक नहीं किया तो उनके खिलाफ सरकार कड़ी कार्रवाई करेगी।अगर ये जूट मिलें सरकार के आदेश का पालन करती हैं तो वर्तमान दरों पर उन्हें जूट की बोरियों की आपूर्ति पर 12000 रुपये प्रति टन का नुकसान उठाना पड़ेगा। उद्योग जगत से जुड़े सूत्रों ने कहा कि कुछ मिलें सरकार के आदेश के मुताबिक बोरियों की आपूर्ति कर सकती हैं, जिससे बाद में की जाने वाली कड़ी कार्रवाई से बचा जा सके।जूट मिलों का संगठन इंडियन जूट मिल्स एसोसिएशन सरकार के इस आदेश के बाद डिफाल्टर जूट मिलों के बारे में कुछ भी कहने में सक्षम नहीं पा रहा है। इस तरह के सौदे में आधे से ज्यादा जूट मिलें शामिल हैं। मिलें सरकार के आदेश के खिलाफ कानूनी दाव पेच भी टटोल रही हैं। इस मामले से जुड़े सूत्रों का कहना है कि सरकार को संदेह है कि इन मिलों ने न सिर्फ अपने उत्पादों की बिक्री महंगे दाम पर खुले बाजार में दिसंबर 2009 में की, बल्कि इन्होंने नए ऑर्डर के लिए वायदा बाजार का भी रुख किया। ये सौदे 61 दिन की लंबी हड़ताल के बाद नए और महंगे दाम पर हुए।केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय ने मार्च 2010 में फैसला किया था कि डिफाल्टर मिलें दिसंबर 2009 की कीमतों पर पंजाब सरकार को 30 अप्रैल 2010 तक बी-ट्विल जूट की बोरियों की आपूर्ति करें, जिसका पालन मिलों ने नहीं किया। इस सिलसिले में न तो मिलों ने और न ही आईजेएमए ने मामले को गंभीरता से लिया क्योंकि स्थानीय आपूर्ति महानिदेशालय ने भरोसा दिला दिया था कि पंजाब सरकार के लंबित ऑर्डर निरस्थ कर दिए गए हैं और अब इसके आपूर्ति की कोई आवश्यकता नहीं है।मामला तब सामने आया जब पंजाब सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर आपूर्ति महानिदेशालय के सामने मामला उठाया। पंजाब सरकार केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय को यह समझाने में सफल रही कि पुराने ऑर्डर को निरस्थ नहीं किया गया है। (बीएस हिंदी)
08 जुलाई 2010
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