नई दिल्ली/मुंबई July 06, 2010
सरकार ने लंबी ऊहापोह के बाद आखिरकार सुधार की राह पर एक और कदम बढ़ाते हुए मल्टी ब्रांड रिटेल में भी विदेशी निवेश के लिए दरवाजा खोलने की तैयारी शुरू कर दी है। लेकिन अभी उसने यह खुलासा नही किया है कि कितने निवेश की अनुमति इस क्षेत्र में दी जाएगी।इस मामले में संबंधित पक्षों से सरकार ने तकरीबन दर्जन भर मामलों पर राय मांगी है। इनमें विदेशी पूंजी वाली रिटेल शृंखलाओं को चुनिंदा शहरों में स्टोर खोलने की अनुमति देने से लेकर ऐसे हरेक स्टोर को खोलने के लिए सरकारी अनुमति लेने, ग्रामीणों को रोजगार अनिवार्य करने और छोटे-मझोले उद्यमियों से सामान लेना जरूरी करार देने जैसे मसले शामिल हैं।ध्यान छोटे रिटेलर पर औद्योगिक नीति एवं संवद्र्घन विभाग ने अपनी वेबसाइट पर जो परिचर्चा पत्र इसके लिए जारी किया है, उसमें सरकार की योजना शुरुआत में विदेशी निवेश वाले स्टोर ऐसे शहरों में खोलने का विकल्प है, जिनकी जनसंख्या कम से कम 10 लाख है। इसके अलावा सरकार ने छोटे रिटेलरों के हितों की रक्षा के लिए विशेष कानूनी और नियामक ढांचा तैयार करने की बात भी कही है। परिचर्चा पत्र के मुताबिक इसे राज्यों के विवेक पर भी छोड़ा जा सकता है। सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली को बचाए रखने का मसला भी उठाया है।डीआईपीपी के सचिव आर पी सिंह ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, हमने संगठित रिटेल और असंगठित रिटेल के असर की पड़ताल करने की कोशिश की है ताकि सरकार को इस क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के पहलू को समझने का मौका मिले। हमें लगता है कि एफडीआई आए तो उससे बुनियादी ढांचे की कमी जरूर पूरी होनी चाहिए। हम यह बुनियादी ढांचा विकसित करने के लिए रिटेल में एफडीआई का इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे फलों और सब्जियों की बर्बादी ही कम नहीं होगी बल्कि मूल्य शृंखला में छोटे-मझोले उद्यमियों की अहमियत भी बढ़ जाएगी। इस परिचर्चा पत्र में हमने एफडीआई की सीमा का जिक्र नहीं किया है क्योंकि सरकार बाद में इस पर फैसला कर सकती है।दिग्गजों को पसंदभारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की) के अध्यक्ष और भारती एंटरप्राइजेज उपाध्यक्ष और प्रबंध निदेशक राजन भारती मित्तल ने कहा, नीति समझबूझकर बनाई गई तो इससे छोटे और बड़े रिटेलरों के बीच तालमेल हो सकता है। भारत चाहे तो अपनी क्षमताओं का इस्तेमाल कर खुद का मॉडल तैयार कर सकता है। भारती थोक कैश ऐंड कैरी क्षेत्र में विदेशी कंपनी वालमार्ट की साझेदार भी है।21 पन्ने के परिचर्चा पत्र में यह चिंता भी जताई गई है कि मल्टी ब्रांड रिटेल में विदेशी पूंजी आने से रोजगार पर कितना असर पड़ेगा, असंगठित रिटेल का क्या हाल होगा और देसी रिटेल शृंखलओं को भविष्य क्या होगा। लेकिन डीआईपीपी ने निवेश की कमी के कारण खस्ता बुनियादी ढांचे के नतीजे भी इसमें बताए हैं।सरकार में इस मसले पर अंदरखाना बहस कई साल से चल रही है। फिलहाल विदेशी कंपनियों को एक ही ब्रांड बेच रही रिटेल कंपनियों में 51 फीसदी हिस्सेदारी खरीदने की छूट है। थोक कैश ऐंड कैरी में तो उन्हें 100 फीसदी निवेश की अनुमति है। इसी वजह से वालमार्ट और मेट्रो जैसे वैश्विक खिलाड़ी भारत आए भी हैं। अन्स्र्ट ऐंड यंग के विश्लेषक प्रशांत खटोरे कहते हैं, 'सरकार बिना शर्त निवेश को अनुमति नहीं देगी। निवेश का विरोध करने वाले इन शर्तों को सुनकर शायद मान जाएंगे। (ई टी हिंदी)
07 जुलाई 2010
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