नई दिल्ली June 04, 2009
केंद्रीय खाद्य मंत्रालय हाल में ही चीनी मिलों के लिए शुरू की गई चीनी जारी करने की साप्ताहिक व्यवस्था को समाप्त करने पर विचार कर रहा है।
जानकार सूत्रों को कहना है कि मंत्रालय साप्ताहिक व्यवस्था को बदलकर पाक्षिक प्रणाली में तब्दील कर सकता है। मिल मालिकों ने हाल में ही शुरू की गई साप्ताहिक व्यवस्था से खुश नहीं हैं, और इसे समाप्त करने की मांग कर रहे हैं। इस प्रणाली से चीनी मिल मालिकों को कम कीमतों पर चीनी की बिक्री करनी पड़ रही है।
इस साल 16 अप्रैल को मासिक व्यवस्था को बदलकर साप्ताहिक कर दिया गया था। इसकेपीछे सरकार का मकसद बाजार में नियमित अंतराल पर चीनी की आपूर्ति के लिए चीनी मिलों पर दबाव डालना था।
ऐसे समय में जबकि देश में चीनी का उत्पादन पिछले तीन वर्षों के सबसे न्यूनतम स्तर पर है, सरकार बाजार में चीनी की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाह रही थी। मौजूदा समय में चीनी की कीमतें पिछले साल के अक्टूबर के 28 प्रति किलो के मुकाबले 40 रुपये के स्तर पर पहुंच गई है।
चीनी मिलों को इस नियम का कडाई से पालन करने के लिए कहा गया था और ऐसा नहीं कर पाने की स्थिति में छुपाकर रखी गई चीनी को लेवी शुगर में तब्दील करने और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिये बिक्री का प्रावधान कि या गया था। लेवी सुगर से आने वाली प्राप्तियां मात्र 1,300-1,400 रुपये प्रति क्विंटल है जो खुले बाजार के 1,300-2,350 रुपये प्रति क्विंटल के मुकाबले कहीं कम है।
सूत्रों का कहना है कि जिस समय से साप्ताहिक प्रणाली लागू की गई थी, उसी समय से कोई भी चीन मिल इस नए नियम का पालन कर पाने में सक्षम नहीं हो पाएं हैं। इस नई प्रणाली से पहले चीन मिलों को बाजार में चीनी की आपूर्ति के लिए मासिक कोटा आवंटन खाद्य मंत्रालय में चीनी निदेशालय के जरिये होता था।
मिलों को निर्धारित कोटे से ज्यादा की बिक्री की इजाजत नहीं थी और महीने के अंत में बची चीनी को लेवी शुगर में परिवर्तित कर दिया जाता था। दिलचस्प बात है कि इस साल चीनी की किल्लत हुई है जबकि दो साल पहले बाजार में चीनी की आपूर्ति आवश्यकता से अधिक थी।
उस समय सरकार को चीनी मिलों को चीनी के निर्यात करने के कहा था और इसमें सरकार इनकी सहायकता भी कर रही थी। हाल के महीनों में सरकार ने कच्ची चीनी के निशुल्क आयात, साथ ही सरकारी एजेंसियों को 10 लाख टन परिष्कृत चीनी के भी शुल्क मुक्त आयात की छूट दी थी।
सरकार ने चीनी के वायदा कारोबार पर भी रोक लगा दी थी और कीमतों पर नियंत्रण रखने के लिए आवश्यक उपाय भी किए थे। दूसरी तरफ मिल और विश्लेषक का मानना है कि आने वाले साल में भी चीनी की कीमतें ऊं ची रहेगी, साथ ही अगले साल 22 मिलियन टन चीनी की जरूरत होगी जबकि इसके मुकाबले चीनी का उत्पादन कमजोर रहेगा।
इस साल चीनी के उत्पादन के 14.7 मिलियन टन रहने की उम्मीद है जो पिछले साल के मुकाबले 44 फीसदी कम है।
दबाव काम आया
वर्तमान प्रणाली से खुश नहीं हैं मिल मालिकसरकार ने मासिक व्यवस्था को हाल ही में साप्ताहिक में बदला थाचीनी की कीमतें बढ़ने से दबाव बनाने के लिए सरकार ने यह तरीका अपनाया था (BS Hindi)
05 जून 2009
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