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05 जून 2009

खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कमर कस रही है सरकार

नई दिल्ली: संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने गुरुवार को जिस तरह खाद्य सुरक्षा एक्ट का हवाला दिया और यूपीए सरकार की नई कौशल विकास नीति का जिक्र किया उससे लगता है कि सरकार भूख के खिलाफ जंग में मजबूत मोर्चा बांधने की तैयारी में है। इसमें नरेगा और सूचना के अधिकार विधेयक जैसे कानूनों से भी मदद मिलेगी। परिभाषा के मुताबिक खाद्य सुरक्षा में हर व्यक्ति के लिए सभी तरह के पोषक तत्व, साफ पीने का पानी, संतुलित आहार, सफाई सुविधाएं, स्वच्छता, प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा तक पहुंच के जरिए शारीरिक, आर्थिक, सामाजिक और वातावरणीय विकास को शामिल किया गया है ताकि व्यक्ति देश के लिए उत्पादक और उपयोगी बन सके। खाद्य सुरक्षा मुहैया कराने का वादा कांग्रेस पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में शामिल किया गया था। घोषणा पत्र में वायदा किया गया था कि गरीबी के नीचे गुजर-बसर कर रहे हर परिवार को अनिवार्य तौर पर कानून के मुताबिक 25 किलो चावल या गेहूं हर महीने तीन रुपए प्रति किलो की दर से मुहैया कराया जाएगा। राष्ट्रपति के मुताबिक इस कानून के जरिए सार्वजनिक वितरण तंत्र (पीडीएस) में वृहद स्तर पर चरणबद्ध तरीके से सुधार किया जाएगा। इसके अलावा केंद्र सरकार हर शहर में प्रवासियों और ऐसे लोगों के लिए जिनके पास घर नहीं है, सब्सिडी आधारित सामुदायिक रसोई की व्यवस्था करेगी। पिछले महीने के अंत में नई सरकार बनने के बाद मीडिया के साथ अपनी पहली बातचीत में खाद्य मंत्री शरद पवार ने संकेत दिया था कि मध्य और दीर्घकालीन खाद्य सुरक्षा मुहैया कराना सरकार के लिए प्राथमिक चिंता का विषय है। यूपीए सरकार ने साल 2004 में राष्ट्रीय किसान आयोग से मध्यकालीन दृष्टिकोण से खाद्य सुरक्षा मुहैया कराने की योजना तैयार करने को कहा था। इस लक्ष्य को पाने के लिए एक व्यापक मध्यकालीन रणनीति तैयार करने की योजना बनाई गई थी। आईएफपीआरआई के प्रमुख अशोक गुलाटी के मुताबिक खाद्य सुरक्षा के लक्ष्य को सफलतापूर्वक हासिल करने के लिए जरूरी है कि पीडीएस को ही खाद्य उपलब्धता का एकमात्र आधार न बनाया जाए और योग्य ग्राहकों तक पहुंच बनाई जाए जिनमें पांच करोड़ परिवार या 25 करोड़ लोग शामिल हैं। आईएफपीआरआई ने सरकार को सुझाव दिया है कि खाद्य सुरक्षा मुहैया कराने के लिए हर परिवार को बायोमीट्रिक फूड कार्ड और ग्राहकों को कूपन दिए जाएं। यह सुझाव इस वजह से दिया गया है कि पीडीएस के जरिए आवंटित राशन का 35 फीसदी हिस्सा सही तरीके से वितरित नहीं हो पाता है। इसके अलावा यह भी कहा गया है कि राशन कार्डों से एएवाई (अंत्योदय अन्न योजना ग्राहकों) और बीपीएल (गरीबी रेखा के नीचे गुजर कर रहे परिवार) जैसे ज्यादा जरूरतमंद परिवारों को वक्त पर अनाज की उपलब्धता मुश्किल से हो पाती है। (ET Hindi)

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