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09 जून 2009

वित्त वर्ष-10 में कपड़ा निर्यात में सुधार के आसार

मुंबई June 08, 2009
मौजूदा वित्तीय वर्ष 2009-10 में घरेलू कपड़ा निर्यात में सुधार होने की पूरी संभावना दिख रही है।
इसकी वजह यह है कि पश्चिमी देशों में जहां मंदी की मार सबसे ज्यादा पड़ी थी वहां सरकार से राहत पैकेज मिलने की वजह से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिल रही है। पिछली तीन तिमाही से कपड़ा उद्योग को विदेशी बाजार खासतौर पर अमेरिका और यूरोप से मांग में कमी की वजह से काफी संघर्ष करना पड़ा है।
वैश्विक मंदी की वजह से यही आशंका जताई जा रही थी कि वित्तीय वर्ष 2010 में कपड़ा निर्यात कम होकर नाकारात्मक हो जाएगा। इसी संदेह की वजह से कई निर्यात से जुड़ी इकाइयां बंद हो गई जिसकी वजह से कई लोगों की नौकरी चली गई। पिछले साल अगस्त से घरेलू निर्यात में स्थिरता कायम नहीं हो सकी।
हालांकि अब बहुत खराब स्थिति नजर नहीं आती और सब कुछ सकारात्मक ही नजर आ रहा है। इसकी वजह यह भी है कि खासतौर पर यूरोपीय बाजारों से भी मांग आना शुरू हो गया है।
क्लोदिंग मैन्यूफैक्चर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष राहुल मेहता का कहना है, 'घरेलू कपड़ा उद्योग के खराब दिन अब खत्म हो सकता है और आगे इकाइयों के बंद होने का भी अब कोई खतरा नहीं है। हमें उम्मीद है कि मौजूदा वित्तीय वर्ष के वस्त्र निर्यात में 3-3.5 फीसदी तक की वृद्धि हो सकती है।'
पिछले साल अगस्त से ही भारतीय कपड़ों के निर्यात में लगातार गिरावट होने लगा। नवंबर के दौरान निर्यात में लगभग 13 फीसदी तक की कमी आई। दिसंबर महीना अपवाद था जब निर्यात में 18 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई लेकिन जनवरी और फरवरी में क्रमश: लगभग 9 से 10 फीसदी तक की गिरावट हुई।
अप्रैल-फरवरी की अवधि के दौरान देश का कपड़ा निर्यात लगभग 4 फीसदी ज्यादा था। कपड़ा आयुक्त अनिल बी. जोशी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'वैश्विक मंदी से चिंताएं बढ़ी है कि भारतीय कपड़ा उद्योग में सुधार होगा या नहीं। हालांकि रिकवरी के मजबूत संकेत मिल रहे हैं। हम यूरोपीय बाजार में जल्द ही रिकवरी कर सकते हैं जबकि अमेरिका में कुछ और समय लग सकता है।
मुझे यह उम्मीद है कि मौजूदा वर्ष एक आशा के साथ खत्म हो सकता है कि अगला साल बेहतर होगा।' वर्ष 2004-05 के कपड़ा निर्यात में लगभग 55 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई। यह वित्तीय वर्ष 2005 के 14 अरब डॉलर के मुकाबले वित्तीय वर्ष 2009 में 22 अरब डॉलर हो गया है। मौजूदा वर्ष के निर्यात में रिकवरी के संकेत देखे जा सक ते हैं।
लेकिन अगर मौजूदा पांच सालों की योजना के लक्ष्य की तुलना करें तो देश का वास्तविक निर्यात कहीं भी नजर नहीं आता है। कंफेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल्स इंडस्ट्री (सीआईटीआई) के महासचिव डी के नायर का कहना है, 'मौजूदा महीने में निर्यात में 10 फीसदी गिरावट के रूझान दिख रहे हैं और सितंबर तक हम नकारात्मक वृद्धि को देख सकते हैं।
हालांकि हमें यह उम्मीद है कि अक्टूबर से यूरोपीय बाजारों से हमें नए ऑर्डर मिलने शुरू हो जाएंगे। इससे वित्तीय वर्ष 2009 के मुकाबले उद्योगों को मामूली रूप से बेहतर करने में मदद मिलेगी।' पश्चिमी देशों की अर्थव्यवस्था को मिले राहत पैकेज से मांग को बरकरार रखने में मदद मिलेगी। जो ऑर्डर मिल रहे हैं उन पर अमल करने में भी तीन महीने लगेंगे वहीं से सकारात्मक संकेत मिलना शुरू हो जाएगा।
इसी वक्त में उद्योगों को यह उम्मीद है कि आने वाले बजट में सरकार कुछ अनुकूल उपाय कर सकती है। नायर का कहना है, 'हमें उम्मीद है कि अमेरिका में मांग की रिकवरी में 3-4 महीने लगेंगे। रिकवरी बहुत तेजी और मजबूती से होने की उम्मीद है।' अमेरिका भारतीय कपड़ों का आयात करने वाला सबसे बड़ा बाजार है। मेहता का कहना है कि देश के निर्यात को पड़ोसी देशों के निर्यातकों से जबरदस्त झटका लग रहा है।
उनका कहना है, 'हमें विदेशी बाजारों में चुनौती मिल रही है इसकी वजह यह है कि निर्यात के मोर्चे पर चीन, बंग्लादेश और वियतनाम से कड़ी टक्कर मिल रही है।' (BS Hindi)

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