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16 मई 2009

रबर की रिप्लांटेशन में देरी से घट सकता है उत्पादन

बर के मूल्य ऊंचे होने के कारण किसान इन दिनों रबर के पेड़ों की रिप्लांटेशन के बजाय पुराने पेड़ों से पैदावार लेने में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं। इससे रबर की रिप्लांटेशन में देरी हो रही हैं। जानकारों के मुताबिक दीर्घकाल में इसका असर देश के रबर उत्पादन में कमी के रूप में दिखाई दे सकता है।हाजिर बाजारों में मांग बढ़ने की वजह से आरएसएस-4 रबर की कीमत 103 रुपये किलो तक पहुंच चुका है जो पिछले छह महीनों का उच्चतम स्तर है। रबर बोर्ड के मुताबिक इस साल अप्रैल में यहां रबर के उत्पादन में करीब 9.2 फीसदी की गिरावट आई है। इस दौरान करीब 52,000 टन रबर का उत्पादन हुआ है। हालांकि इस दौरान खपत 70,025 टन से बढ़कर करीब 73,000 टन हो गई। काराबारियों के मुताबिक मांग बढ़ने की वजह से रबर की कीमतों में तेजी आई है। रबर बोर्ड के उपाध्यक्ष सिबी मोनीपाल्ली के मुताबिक किसानों द्वारा देर से रिप्लांटेशन करने से रबर की उत्पादकता में करीब 20-30 फीसदी की कमी आ सकती है। फिलहाल भारत में रबर की उत्पादकता करीब 1,800 किलो प्रति हैक्टेयर है। दरअसल रबर के पौधों को तैयार होने में करीब सात साल का समय लगता है और इसकी आयु करीब तीस साल की होती है। ऐसे में पेड़ों की उत्पादन क्षमता जब घटने लगती है, तब पेड़ों का रिप्लांटेशन जरूरी हो जाता है। रबर बोर्ड के मुताबिक पिछले साल से उत्पादक इलाकों में रबर की रिप्लांटेशन का लक्ष्य तय हो चुका है। पिछले दो सालों में महज 7,122 हैक्टेयर में ही रिप्लांटेशन हुआ, जबकि रिप्लांटेशन का लक्ष्य करीब 12,550 हैक्टेयर था। रबर बोर्ड ने 2012 तक करीब 33,500 हैक्टेयर में रिप्लांटेशन का लक्ष्य रखा था। नेशनल फेडरशन ऑफ रबर प्रोडयूर्स के अध्यक्ष सुरश कोशे के मुताबिक ऐसे हालात में आने वाले सालों में रबर के उत्पादन पर असर पड़ सकता है। (Business Bhaskar)

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