मुंबई May 12, 2009
सीमेंट उद्योग में सुधार के संकेत मिल रहे हैं। इसकी वजह यह है कि घरेलू सीमेंट की बड़ी कंपनियों द्वारा नए संयंत्र में लगने वाली लागत (प्रतिस्थापन लागत) के भाव में भी सुधार हो रहा है और अब यह कम हो रहा है।
पुराने सीमेंट संयत्र में बदलाव के लिए जिस पूंजी की जरूरत होती है उसे प्रतिस्थापन लागत कहते हैं। पिछले छह महीनें के दौरान सीमेंट बाजार में अप्रत्याशित मांग बढ़ी और फिर सीमेंट की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। इसके अलावा इसके भाव में भी 48 फीसदी तक का उछाल आया है।
पिछले अक्टूबर में इस उद्योग में मंदी की आशंका के मद्देनजर निराशाजनक स्थिति बन गई थी और ज्यादा आपूर्ति बढ़ने का डर भी पैदा हो गया था। कंपनियों के भाव में औसत प्रतिस्थापन लागत 120 डॉलर प्रति टन के मुकाबले 30 फीसदी तक की कमी आई।
कुछ मामले में तो यह 50 फीसदी तक कम हो गया। नवंबर से ही सीमेंट की वृद्धि दर 8 फीसदी से ऊपर है जबकि मार्च की तिमाही में 50 किलोग्राम के सीमेंट की बोरी की कीमतों में 12-15 रुपये तक की बढ़ोतरी हुई।
इसके अलावा कोयले की कीमतों में ज्यादा से ज्यादा 160 डॉलर प्रति टन से लेकर कम से कम 70 डॉलर प्रति टन तक की कमी आई। इसकी वजह से मार्च तिमाही के नतीजों में इस उद्योग की स्थिति बेहतर नजर आई और सीमेंट उत्पादकों के मुनाफे का अंदाजा भी मिला।
घरेलू ब्रोकरेज कंपनी के एक विशेषज्ञ जो सीमेंट कंपनियों पर निगाह रखते हैं उनका कहना है, 'पिछले वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही के शुरुआत में सीमेंट कंपनियों में बहुत निराशा का माहौल बना हुआ था। इसके अलावा घाटे की खबरों के साथ ही वित्तीय वर्ष 2010 को एक मुश्किल साल के तौर पर पेश किया जाने लगा था। लेकिन अचानक ही स्थिति बदलने लगी।
इस उद्योग के विशेषज्ञों की मानें तो मांग बढ़ने की वजह से मुनाफे में बढ़ोतरी हुई और जब दूसरे सेक्टर संघर्ष कर रहे थे तब सीमेंट का भंडार बढ़ने लगा।' हाल के एक रिर्पोट के मुताबिक जे. पी. मॉगर्न ने वित्तीय वर्ष 2010 में कीमतों में गिरावट की आशंका को कम करते हुए इसे पहले के 10 फीसदी के लक्ष्य के मुकाबले 5 फीसदी तक रखा था।
मिसाल के तौर पर फिलहाल सबसे बड़े घरेलू सीमेंट निर्माता एसीसी का भाव 100 डॉलर प्रति टन है और इसमें अक्टूबर के 76 डॉलर प्रति टन के मुकाबले 32 फीसदी तक का उछाल आया है। इसी तरह ग्रासिम और अल्ट्राटेक के प्रति टन भाव में 48 और 41 फीसदी तक का उछाल आया और यह क्रमश: 66 डॉलर और 61 डॉलर प्रति टन के मुकाबले 98 डॉलर और 86 डॉलर प्रति टन हो गया।
अंबुजा सीमेंट के मामले में कंपनी का भाव प्रतिस्थापन लागत 118 डॉलर प्रति टन के बराबर ही था। अंबुजा सीमेंट के प्रबंध निदेशक अमृत लाल कपूर का कहना है, 'अगर मांग में वृद्धि बरकरार रहती है तो भाव आगे बढ़ता ही जाएगा। सीमेंट इकाईयां अपने पावर प्लांट के साथ भी आ रही हैं इसकी वजह से बुनियादी ढांचे जिसमें जमीन, प्रतिस्थापन लागत भी शामिल है, उसकी कीमत में बढ़ोतरी हो रही है और यह 120-150 डॉलर प्रति टन के दायरे में है।'
जब सीमेंट के भाव गिरे तो यह आशंका पैदा हो गई कि विदेशी सीमेंट खिलाड़ी इस मौके का फायदा उठा सकते हैं क्योंकि घरेलू सीमेंट उद्योग अब भी बहुत बंटा हुआ सा है। लेकिन सीमेंट खिलाड़ियों इस तरह की बात से पूरी तरह इंकार किया है और उनका कहना है कि सीमेंट को 140 डॉलर प्रति टन से नीचे बेचने का कोई मतलब नहीं है।
हालांकि पहले के मुकाबले स्थिति में बहुत बदलाव आया है। एसीसी के आर्थिक पहलू का विश्लेषण करने वाले अशोक भट्टाचार्या का कहना है, 'इससे कुछ ठोस बिकवाली करने वालों को उम्मीद हो सकती है लेकिन मंदी के इस दौर में कौन खरीदने के लिए तैयार है। इस साल पहले से ही विलय और अधिग्रहण के समझौते में खासतौर पर कमी देखी जा रही है।'
हाल के वर्षो में 21.2 करोड़ टन क्षमता वाले सीमेंट उद्योग में बहुत बड़े-बड़े सौदे देखे गए हैं। वर्ष 2008 में ही आयरलैंड की कंपनी सीआरएस ने माई होम इंडस्ट्रीज के लिए 235 डॉलर प्रति टन का भुगतान किया। वहीं पुर्तगाल की खिलाड़ी किम्पर ने श्री दिग्विजय सीमेंट कंपनी को वर्ष 2007 में 162 डॉलर दिया जबकि हॉल्सिम ने अंबुजा सीमेंट को 200 डॉलर प्रति टन का भुगतान किया।
पिछले साल जून में फ्रांस की कंपनी विकाट ने सागर सीमेंट को 100 डॉलर प्रति टन का भुगतान किया। यह प्रतिस्थापन लागत में कमी की खबर आने से पहले सीमेंट उद्योग से जुड़े विलय और अधिग्रहण के मामलों में सबसे कम रकम थी। (BS HIndi)
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