राजकोट May 12, 2009
मूंगफली के निर्यातकों को यूरोपीय संघ के बाजारों में निर्यात करने में काफी दिक्कत हो सकती है।
भारतीय तिलहन और उत्पादन निर्यात संवर्द्धन परिषद (आईओपीईपीसी) जो पहले भारतीय तिलहन और उत्पादन निर्यातक संघ (आईओपीईए) के नाम से जानी जाती थी उसने मूंगफली के निर्यातकों के लिए चेतावनी दी है।
यूरोपीय संघ (ईयू) ने एफ्लाटॉक्सिन समस्या की वजह से मूंगफली के आयात पर प्रतिबंध लगा सकती है। राजकोट में निर्यात किए जाने वाली मूंगफली की गुणवत्ता के अपग्रेडेशन पर जागरूकता कार्यक्रम के दौरान तिलहन निर्यातकों की शीर्ष संस्था को यह कहा गया कि भारत में बेहतर गुणवत्ता वाले उत्पाद की जरूरत है।
आईओपीईपीसी के अध्यक्ष संजय शाह का कहना है, 'अगर हम एफ्लाटॉक्सिन समस्या को दूर करने में अक्षम होते हैं और अंतरराष्ट्रीय मानकों की गुणवत्ता को बरकरार नहीं रखते हैं तो हमारा भविष्य गर्त में जा सकता है। हमें बेहतर चीजों का उत्पादन न केवल भारत के लिए बल्कि अंतराष्ट्रीय बाजारों के लिए भी करना चाहिए। लंबे समय से देश के प्रसंस्करणकर्ताओं ने तकनीकी अपग्रेडेशन और मशीनरी में बदलाव की कोई पहल नहीं की है ताकि निर्यात के लिए बेहतर गुणवत्ता वाली मूंगफली दी जा सके।'
गुजरात एग्रो इंडस्ट्रीज कॉर्पोरेशन लिमिटेड के प्रबंध निदेशक डी थारा का कहना है, 'यूरोपीय प्रतिनिधिमंडल निर्यात इकाईयों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाली प्रसंस्करण प्रक्रिया का निरीक्षण करने के लिए इस साल सितंबर में भारत का दौरा करने वाला है।
अगर वे इकाईयों में कोई बदलाव नहीं पाते हैं तो वे भारत से मूंगफली आयात पर रोक लगाने में देर नहीं करेंगे। प्रसंस्करर्णकत्ता सफाई और गुणवत्ता के सभी नियमों से वाकिफ हैं लेकिन वे इसका पालन नहीं करते हैं।'
उनका कहना है, 'एपीएमसी के स्तर पर बदलाव लाया जाना चाहिए और सभी प्रसंस्करण की इकाई के साथ उन किसानों का पंजीकरण भी होना चाहिए जो कच्चे माल की आपूर्ति करते हैं।' संजय शाह का कहना है, 'भारत गुजरात से ज्यादातर 2.50-2.75 लाख टन मूंगफली का निर्यात करता है। यूरोपीय संघ को देश से निर्यात की जाने वाली मूंगफली का हिस्सा 15 फीसदी से भी कम होता है।
अगर हम यूरोपीय संघ के मानकों के अनुरूप नहीं होते हैं तो हमें प्रतिबंध का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा। ईयू के कदम का आधार बना कर दूसरे आयातक देश भी ऐसा फैसला ले सकते हैं।'
सितंबर में यूरोपीय आयोग देश में मूंगफली प्रसंस्करण की गुणवत्ता का निरीक्षण करने के लिए आने वाला है क्योंकि इसका इस्तेमाल लोगों के उपभोग के साथ ही पक्षियों के खाने के लिए किया जाता है। एपीडा ने यूरोपीय गुणवत्ता के मानकों के अनुकूलन के लिए एक नई प्रक्रिया को लाने का मन बनाया है। (BS Hindi)
13 मई 2009
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