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16 मई 2009

कमोडिटी व शेयर बाजार का नियामक एक नहीं हो सकता

देश के कमोडिटी बाजारों की नियामक संस्था फॉरवर्ड मार्केट कमीशन (एफएमसी) के चेयरमैन बी.सी. खटुआ कमोडिटी बाजार और पूंजी बाजार, दोनों के लिए एक नियामक संस्था के खिलाफ हैं। उनका कहना है कि दोनों बाजारों की मूल प्रवृत्ति अलग-अलग है। कमोडिटी या उनके डेरिवेटिव को कभी एसेट क्लास (आस्ति श्रेणी) नहीं माना जा सकता है। अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों में कमोडिटी को भी एसेट क्लास माना गया जो उनके मौजूदा वित्तीय संकट का एक प्रमुख कारक बना। भारत में दोनों बाजारों की एकल नियामक संस्था बनाई गई तो यहां भी वैसा ही संकट पैदा हो सकता है।खटुआ ने बिजनेस भास्कर से खास बातचीत में कहा कि कृषि या दूसर जिंसों में उपभोग का एक चक्र होता है। उनमें उत्पादन और खपत का सिलसिला लगातार चलता रहता है। उनमें शेयर प्रपत्र जैसा मामला नहीं है कि उसे पीढ़ियों तक आगे बढ़ाया जा सके। दूसर, शेयर बाजार समेत पूर पूंजी बाजार में सभी का हित भाव बढ़ने में रहता है। जबकि कमोडिटी बाजार में भाव का बढ़ना किसान, स्टॉकिस्ट या उत्पादक के लिए तो अच्छा हो सकता है, लेकिन वह उपभोक्ता के लिए नुकसानदेह होता है। उन्होंने कहा कि दोनों बाजारों में बुनियादी फर्क है।अगर कभी उनका नियंत्रण किसी एक संस्था के हाथ में दे दिया गया तो सारा अनुशासन गड़बड़ा सकता है।उनसे पूछा गया कि दोनों बाजारों में एक ही तरह से वित्तीय सौदे होते हैं तो नियामक संस्था एक क्यों नहीं हो सकती, पूंजी और कमोडिटी बाजार जिसके दो अलग-अलग विभाग हों या कम से कम इनका शीर्ष मंत्रालय तो एक हो सकता है? इस पर उनका कहना था कि भारत ही नहीं, इंडोनेशिया और अमेरिका तक में कमोडिटी और पूंजी बाजार के शीर्ष मंत्रालय अलग-अलग हैं। कमोडिटी बाजार का मंत्रालय कृषि या उपभोक्ता मामलात विभाग ही हो सकता है।उन्होंने बताया कि दूसर विश्व युद्ध में खाद्यान्न संकट के बाद कमोडिटी ट्रेडिंग के बार में जो सोच बनी, उसे देश में खाद्यान्न में आत्मनिर्भर हो जाने के बावजूद नहीं बदला जा सका। यही वजह है कि कमोडिटी ट्रेडिंग अब भी अपने यहां पूरी तरह विकसित नहीं हो पाई है। एफएमसी को अभी तक कई अधिकार नहीं दिए गए हैं। यहां तक कि कमोडिटी एक्सचेंज की अनुमति तक का अंतिम अधिकार उसके पास नहीं है।बैंकों को मिल सकती है कमोडिटी ट्रेडिंग की इजाजत बैंकों को मिल सकती है कमोडिटी ट्रेडिंग की इजाजतदेश के कमोडिटी एक्सचेंजों में जल्द ही बैंकों को भी ट्रेडिंग करने की इजाजत मिलने की उम्मीद है। भारतीय रिजर्व बैंक इसके लिए पहले से ही तैयार है और नई सरकार के गठन के बाद बैंकों को इसकी अनुमति मिल सकती है। एफएमसी चेयरमैन बी.सी. खटुआ के मुताबिक फॉरवर्ड कांट्रैक्ट (रगुलेशन) एक्ट, 1952 में संशोधन करके बैंकों, म्यूचुअल फंडों या विदेशी फंडों (एफआईआई) को कमोडिटी ट्रेडिंग की अनुमति दी जा सकती है। लेकिन इसमें पहली प्राथमिकता बैंकों को मंजूरी देने की है। उन्होंने बताया कि बैंकों को कमोडिटी की फ्यूचर ट्रेडिंग की अनुमति देने से तीन काम एक साथ हो जाएंगे।एक तो बैंक छोटे-छोटे किसानों को एक सामूहिक मंच दे सकते हैं। दूसर, वे गोदामों में रखी उनकी उपज के एवज में तात्कालिक ऋण उपलब्ध करा सकते हैं। और तीसर, उनके ट्रेडिंग में उतरने से बाजार में सक्रियता और गहराई बढ़ जाएगी। श्री खटुआ ने बताया कि जिंस बाजार बड़ी तेजी से बढ़ रहा है और इसमें किसानों से लेकर आम निवेशकों तक की रुचि लगातार बढ़ रही है। हालांकि व्यक्तिगत रूप से किसानों की भागीदारी इसमें अभी कम है लेकिन सहकारी संस्थाओं के तौर पर इसमें कारोबार करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।फ्क्क्क्-क्ख् में जिंस बाजार का सालाना कारोबार मात्र ब्भ्,क्क्क् करोड़ रुपये था जो फ्क्क्ब्-क्भ् में बढ़कर ख्.ब् लाख करोड़ हो गया। फ्क्क्8-क्9 में जिंस बाजार का सालाना कारोबार म्फ्.भ्9 लाख करोड़ का हो गया। एफएमसी के मुताबिक फ्क्क्9-ख्क् के अंत तक जिंस बाजार का वायदा कारोबार स्त्रक् लाख करोड़ रुपये हो जाने की उम्मीद है। देश में अभी कुल 22 कमोडिटी एक्सचेंज हैं। हालांकि कारोबार के 9म्त्न हिस्से पर एमसीएक्स, एनसीडीईएक्स और एमएमसीई का कब्जा है। इन तीनों एक्सचेंजों ने मिलकर फ्क्क्8-क्9 के दौरान म्ख्.म्9 लाख करोड़ का कारोबार किया। (Buisness Bhaskar)

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