05 05, 2009
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आश्वस्त किया है कि अच्छी तरह पकाए गए सुअर के मांस या फिर इससे जुड़े पदार्थो में स्वाइन फ्लू वायरस के संक्रमण का कोई खतरा नहीं है।
फिलहाल डब्ल्यूएचओ एलर्ट लेवल 5 के मद्देनजर कई देशों जिनमें चीन, रूस भी शामिल हैं, ने सुअर के मांस के आयात पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है। हाल के दिनों में फ्लू वायरस को लेकर जो चिंता बनी यह उसका ही एक रूप है।
गोल्डमैन सैक्स का कहना है कि जब एवियन इन्फ्लुएंजा का असर बढ़ा तब पूर्वी यूरोप और पूर्वी एशिया में मुर्गियों की मांग में कमी आई। इसी तरह अमेरिका में गाय के मांस की मांग में कमी आई इसकी वजह मैड काऊ बीमारी का डर था।
जब चार महादेशों के 12 देशों में स्वाइन फ्लू वायरस का खतरा मंडराया और कुछ लोगों की मौत हुई तब कई देशों में लोगों ने सुअर का मांस खाना बंद कर दिया। इसमें कोई संदेह नहीं है कि वैश्विक खाद्य और फसल बाजार पर इसका असर हुआ है।
एक कारोबारी अधिकारी के मुताबिक चीन ने अमेरिका से सोयाबीन मंगाने का काम स्थगित कर रहा है। इसका कोई वाणिज्यिक मसला नहीं है बल्कि इसकी एकमात्र वजह स्वाइन फ्लू की आशंका ही है। भारत में खाद्य तेल आयात में पाम तेल के बाद सोयाबीन तेल का स्थान ही आता है। जहां तक खली निर्यात की बात है तो सोया खली का स्थान सूची में सबसे ऊपर आता है।
पिछले साल कुल खली निर्यात 54.2 लाख टन रहा जिसमें से सोया खली का हिस्सा 41.7 लाख टन था। ऐसे में आने वाले दिनों में यह देखना बेहद दिलचस्प होगा कि वैश्विक स्तर पर स्वाइन फ्लू का असर सोया तेल के आयात पर और सोयाखली के निर्यात पर किस तरह पड़ेगा।
घरेलू जरूरतों के मद्देनजर चीन से तेल और तिलहन के आयात को लेकर बहुत अटकलबाजी की जा रही है। भारत में तेल के आयात में 59 फीसदी तक का उछाल आया और मौजूदा तेल वर्ष के पहले पांच महीनों में ही 36 लाख टन हो गया।
ऐसे में सरकार किसी भी चरण पर शुल्क फिर से लगा सकती है, इसी वजह से ज्यादा से ज्यादा आयात किया जा रहा है और यह बड़ी खतरनाक स्थिति है। हालांकि, ऐसा होने की संभावना बहुत कम है। बाजार में तेल को लेकर तेजी का रुख है हालांकि गर्मी की वजह से खाना पकाने में इसका इस्तेमाल बहुत कम ही होता है।
लेकिन फिर भी किसान रैप मस्टर्ड फसल का हिस्सा बचाने की कवायद में जुटे हैं क्योंकि उन्हें ऐसी उम्मीद है कि कीमतें तेजी से आगे बढ़ेंगी। कई जगह ज्यादा भंडारण होने के बावजूद भी ज्यादा आयात किया जा रहा है। वैसे कई अनुबंध कारोबार की योजना पर अमल नहीं हो पाया है और यह सॉल्वेंट एक्सटै्रक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष अशोक सेथिया के लिए चिंता का विषय है। सेथिया का कहना है कि भारत इस तेल वर्ष में 75 लाख टन तेल का आयात कर सकता है जो पिछले साल के मुकाबले 12 लाख टन ज्यादा है। हालांकि, उनका सवाल है कि क्या देश में अगले पांच सालों में 1 करोड़ टन तेल का आयात खत्म हो जाएगा जिसकी लागत 40,000 करोड़ रुपये तक है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर इसका गहरा असर पड़ सकता है।
आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक भारत में 9 तिलहनों की उत्पादकता 900 किलोग्राम से 1000 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। ऐसा कहने की कोई जरूरत नहीं है कि तिलहन की उत्पादकता पर बेहतर कृषि कार्यक्रम के जरिए ध्यान देने की कोशिश करनी चाहिए।
भारत में इस सीजन में तेल के आयात से कोई इनकार नहीं कर सकता है। गोदरेज इंटरनेशनल के निदेशक दोराब मिस्त्री का कहना है, 'चीन में रैपसीड फसल का 1.2 करोड़ टन तक उत्पादन होता है और इस साल भी इसने रेपसीड का आयात रिकॉर्ड स्तर पर किया है।'
वैसे इस बात में कोई संदेह नहीं है कि घरेलू कीमतों की स्थिरता को सुनिश्चित करने के लिए कवायद की जानी चाहिए। चीन वर्ष 1994 तक दुनिया का सबसे बड़ा सोयाबीन निर्यातक देश था लेकिन अब वह तिलहन का आयात करने वाला प्रमुख देश बन चुका है।
पिछले साल भी चीन ने 3.74 करोड़ टन सोयाबीन का आयात किया था और यह वर्ष 2007 तक 21.5 फीसदी तक बढ़ चुका था। चीन में आयातित 40 फीसदी सोयाबीन अमेरिका से ही आता है। जब तक स्वाइन फ्यू वायरस का आतंक नहीं फैला था तब तक चीन अमेरिका से ही सोयाबीन का आयात करता था। (BS Hindi)
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