नई दिल्ली 05 05, 2009
उत्तर प्रदेश में चीनी मिल एवं गन्ना विभाग के कर्मचारी इन दिनों गन्ना किसानों को पटाने में जी-जान से जुटे हैं।
गन्ना उत्पादन के लिए वे उन्हें खाद, बीज, व अन्य सुविधाएं देने का वादा कर रहे हैं, लेकिन किसानों का रुझान गन्ना की ओर झुकता नजर नहीं आ रहा है। भुगतान में देरी के कारण गन्ना किसान चावल और गेहूं की खेती करने का मन बना रहे हैं।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों के मुताबिक चावल व गेहूं की फसल 120 दिनों में तैयार होकर मंडी में पहुंच जाती है। और 3-10 दिनों के भीतर उन्हें फसल की बिक्री का भुगतान मिल जाता है। लेकिन गन्ना के मामले में ऐसा नहीं होता है। चीनी की बिक्री के हिसाब से गन्ना किसानों को भुगतान किया जाता है।
गाजियाबाद के किसान राजबीर सिंह कहते हैं, 'गन्ना किसानों को चीनी उत्पादन का सही अनुमान भी नहीं बताया जाता है। इस बार किसानों को 215 लाख टन चीनी उत्पादन का अनुमान बताया गया जबकि असलियत में उत्पादन 150 लाख टन से भी कम रहा। ऐसे में किसान गन्ने की खरीद-फरोख्त के लिए सरकार व मिल मालिक से सही मोल भाव नहीं कर पाये।'
किसानों ने बताया कि एक एकड़ जमीन पर साल भर के लिए खेती करने पर करीब 250 क्विंटल गन्ने का उत्पादन होता है। और 140 रुपये प्रति क्विंटल की दर से इसकी कीमत 35,000 रुपये होती है। उत्तर प्रदेश में इस साल गन्ना किसानों को 140-145 रुपये प्रति क्विंटल की दर से भुगतान किया गया था।
दूसरी तरफ सिर्फ चार महीनों के लिए गेहूं की खेती करके उन्हें करीब 19,000 रुपये का भुगतान मिलता है। किसान कहते हैं कि गेहूं की फसल कटने एवं धान की बुवाई शुरू होने के बीच उन्हें लगभग दो महीनों का समय मिल जाता है और इस दौरान वे अपने खेतों में सब्जी या अन्य कोई फसल उगा लेते हैं।
धान की फसल भी 120 दिनों में तैयार हो कर मंडी में पहुंच जाती है। और एक एकड़ जमीन पर धान की खेती करने पर उन्हें चार महीनों के बाद 17-18 हजार रुपये का भुगतान मिल जाता है।सिंह कहते हैं कि धान व गेहूं के लिए सरकारी खरीद की व्यवस्था होती है जबकि गन्ना की खरीदारी के लिए उन्हें पूर्ण रूप से चीनी मिलों पर निर्भर करना पड़ता है। गन्ना उत्पादन में उत्तर प्रदेश का भारत में दूसरा स्थान है।(BS Hindi)
06 मई 2009
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